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कौन हैं Akli Tudu जिन्होंने बनाए 93 तालाब

Jharkhand के पूर्वी सिंहभूम ज़िले की Akli Tudu अपने समुदाय में तालाब आधारित आजीविका को बढ़ावा देने के लिए एक प्रेरणा बन गई हैं। उन्होंने जहां अपने इलाके में सौ के करीब तालाबों का निर्माण किया है, वहीं 1500 से अधिक लोगों को जल संचय की इस पहल के लिए प्रेरित भी किया है।


By Mohammad Sartaj Alam , 13 Mar 2023


Akli Tudu की ट्रस्ट द्वारा धतकिबनी गांव में निर्मित एक तालाब। Photo credit: Sartaz Alam

“जल एक अनमोल प्राकृतिक संसाधन है, जल के बिना हम जीवन की कल्पना नहीं कर सकते।”

ये शब्द पैंतीस वर्षीय Akli Tudu के हैं जो झारखंड के पूर्वी सिंहभूम ज़िले की निवासी हैं। इस महिला ने झारखंड के अत्यंत पिछड़े ब्लॉक गुड़ाबांदा के तीस गांवों में 90 तालाब और चाकुलिया ब्लॉक में एक व धलभुमगढ़ ब्लॉक में दो तालाब मिलाकर अब तक कुल 93 तालाब बनाए हैं।

आकली टुडू के द्वारा निर्मित तालाबों की ज़मीनी हक़ीक़त जानने के लिए हमने उनके बनाए नौ तालाबों का दौरा किया। इस दौरान हम धालभूमगढ़ ब्लॉक के ‘धतकिबनी’ गांव व चकुलिया ब्लॉक के ‘चंदनपुर’ गांव के बाद गुड़ाबांदा ब्लॉक में बने तालाबों की साइट पर गए। यहां हमें भाकर, सिंहपुरा, ज्वलकटा, अर्जुनबेड़ा व सुड़गी गांव में आकली टुडू के द्वारा बनाए गए तालाबों पर एक बोर्ड लगा मिला, जिस पर तालाब का साइज़ एवं निर्माण वर्ष के अलावा ‘Executed by Jumid Tirla Gawanta & supported by Tata Steel’ दर्ज़ है।

इस बारे में पूछने पर आकली टुडू बताती हैं कि जुमिद तिरला गावंता (Jumid Tirla Gawanta) के माने ‘हिंदी एकता महिला समिति’ है। वर्ष 2014 में इस ट्रस्ट की शुरुआत ‘शांति महिला महासंघ’ के नाम से हुई, लेकिन 2017 में ट्रस्ट का नाम संथाल भाषा के तहत ‘जुमिद तिरला गावंता’ कर दिया गया।

ट्रस्ट की स्थापना का कारण

आकली टुडू कहती हैं, ”2012 में मुझे टैगोर सोसाइटी नाम की संस्था से जुड़ने का मौक़ा मिला, जिसके द्वारा गांवों में खेती के विकास से संबंधित कार्य किए जा रहे थे। उसी समय टैगोर सोसाइटी ने मुझे जमशेदपुर स्थित टाटा स्टील फाउंडेशन (Tata Steel Foundation, Jamshedpur) की ओर से आयोजित ट्राइबल लीडरशिप प्रोग्राम की वर्कशॉप में जुड़ने का अवसर दिया। वर्कशॉप का फोकस कृषि में सिंचाई हेतु पानी पर केंद्रित था। वहां तालाब के महत्व के अलावा यह भी बताया गया कि वर्षा जल का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है, इसलिए इसे संचित किया जाना चाहिए।”

आकली बताती हैं कि ”वर्कशॉप के दौरान मुझे यह बात समझ में आ गई कि जल संचय के लिए सबसे उपयुक्त तालाब हैं, जिसके माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है। मैंने तभी यह तय किया कि अब गांवों में तालाब निर्माण का काम करूंगी।”

आकली टुडू के मुताबिक़, गांवों में तालाब बनाने में तीन मुख्य चुनौतियां थीं – एक तो तालाब बनाने के लिए तकनीकि मदद, दूसरी चुनौती ज़मीन और तीसरा आर्थिक सहयोग। इस बीच उन्हें पता चला कि टाटा स्टील फाउंडेशन से तालाब बनाने में तकनीकी व आर्थिक सहयोग मिल सकता है। लेकिन यहां समस्या थी कि फाउंडेशन की मदद हासिल करने के लिए ट्रस्ट का पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) अनिवार्य है।

आकली बताती हैं, “ट्राइबल लीडरशिप प्रोग्राम के दौरान मेरी प्रतिभा से प्रभावित टाटा स्टील फाउंडेशन के अधिकारियों ने मुझे मेरे ट्रस्ट को पंजीकृत करवाने की सलाह दी।” जिसके बाद उन्होंने 2014 में ‘शांति महिला महासंघ’ नामक ट्रस्ट को पंजीकृत करवाते हुए फाउंडेशन की मदद से किसानों के लिए तालाब निर्माण का कार्य शुरू किया।

तालाब बनाने के लिए अगली चुनौती ज़मीन थी

ट्रस्ट के पंजीकरण के बाद अगली चुनौती तालाब के लिए ज़मीन की उपलब्धता थी। 23 हज़ार हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला गुड़ाबांदा ब्लॉक एक आदिवासी (Tribal) क्षेत्र है। इस ब्लॉक में कुल 93 गांव हैं। बता दें कि आदिवासी इलाका होने की वज़ह से इस क्षेत्र में ज़मीन से संबंधित कोई भी कार्य करने के लिए किसान आदिवासियों की ‘ग्राम सभा’ में अनुमति लेते हैं।

आकली टुडू ने सबसे पहले अपने पैतृक गांव सुड़गी में ग्राम सभा का आयोजन करवाया। वह कहती हैं, “आरंभ में साप्ताहिक सभा रखी जाती थी। मैंने प्रत्येक सभा में तालाब से होने वाले लाभों को सभा के समक्ष प्रस्तुत किया।” उनके मुताबिक़, इससे प्रभावित होकर गांव के एक किसान जयसिंह मुर्मू तालाब निर्माण हेतु अपनी ज़मीन देने को इच्छुक हुए।

आकली टुडू को उनके संघर्ष के दिनों से जानने वाले स्थानीय पत्रकार काजल मिश्रा कहते हैं कि आकली दीदी ने आरंभ में किसान जयसिंह मुर्मू की तरह ही दूसरे किसानों को भी तालाब बनवाने के लिए बड़ी जद्दोजहद के बाद तैयार किया। कई बार पहले किसान तैयार हो गए, लेकिन काग़ज़ी प्रक्रिया पूरी होने के बाद उन्होंने अचानक तालाब निर्माण के लिए अपनी ज़मीन देने से इनकार कर दिया। ऐसी परिस्थिति में आकली के सामने टाटा फाउंडेशन को यह समझाने की चुनौती खड़ी हो जाती कि किसान ने तालाब देने से इंकार कर दिया है।

काजल आगे कहते हैं, “जैसे-जैसे तालाबों की संख्या बढ़ी, वैसे-वैसे आकली दीदी के काम की प्रशंसा होने लगी। जो लोग पूर्व में तालाब निर्माण के लिए ज़मीन देने से कतराते थे, वे अब तालाब निर्माण के लिए आकली दीदी से संपर्क करने लगे।”

इस बारे में ख़ुद आकली टुडू कहती हैं कि “साल 2016 तक वह तालाब के लिए ज़मीन देने वाले किसानों की तलाश करती थीं, जो सबसे मुश्क़िल वक़्त था। लेकिन अब तालाब निर्माण के लिए किसान उनको ख़ुद ही ढूंढते हैं।”

वह बातचीत के दौरान कहती हैं, “आप 93 तालाब गिन रहे हैं, जबकि मैं 50 हज़ार की आबादी वाले गुड़ाबांदा ब्लॉक के किसानों को गिनती हूं। अब जब किसान ख़ुद ही तालाब बनवाने के लिए आ रहे हैं, ऐसे में प्रतिवर्ष तालाब निर्माण के हमारे लक्ष्य में बढ़ोतरी होती जाएगी।”

तालाब निर्माण की प्रक्रिया

आकली के अनुसार, ग्राम सभा से किसान को तालाब निर्माण की अनुमति मिलने के बाद कोर्ट से एक हलफ़नामा (एफीडेविट) बनता है जिसमें किसान स्वीकार करता है कि उसकी ज़मीन पर बना तालाब समाज कल्याण के लिए है। ऐसे में निर्मित तालाब का इस्तेमाल उसके अलावा अन्य ग्रामीण सिंचाई, मवेशियों को पानी पिलाने व विभिन्‍न घरेलू उपयोग के लिए करेंगे।

आकली बताती हैं कि हलफ़नामा में यह भी दर्ज़ होता है कि गर्मी के दिनों में यदि जलस्तर चार फिट नीचे पहुंच जाए, तब तालाब का इस्तेमाल सिर्फ़ उसका मालिक ही कर सकता है। हलफ़नामा, किसान की आईडी व ज़मीन से संबंधित काग़ज़ात की जांच करने के बाद आकली टुडू का ट्रस्ट ‘टाटा स्टील फाउंडेशन’ से संपर्क करता है। इसके बाद फाउंडेशन के इंजीनियर ज़मीन का सर्वेक्षण करते हुए तालाब की मिट्टी व जल स्तर का अध्ययन करते हैं।

आकली टुडू कहती हैं कि पॉज़िटिव रिपोर्ट आने के बाद 2.5 लाख रुपये या अधिक लागत से बनने वाले तालाब के लिए किसान से 12 हज़ार रुपये बतौर अंशदान जमा करवाए जाते हैं। यह राशि किसान के सभी दस्तावेज़ के साथ ट्रस्ट के माध्यम से टाटा स्टील फ़ाउंडेशन को उपलब्ध कराई जाती है। इन सभी काग़ज़ी प्रकियाओं के बाद तालाब का निर्माण शुरू किया जाता है।

वे आगे बताती हैं, “तालाब बनने के बाद टाटा फाउंडेशन हमारे ट्रस्ट से बिल मांगती है। बिल लेने के बाद फाउंडेशन ‘जुमिद तिरला गावंता’ ट्रस्ट के खाते पर बिल की राशि ट्रांसफर करती है। उसके बाद हमारे ट्रस्ट की ओर से तालाब की ज़मीन, निर्माण कार्य में लगे मज़दूर आदि के लिए बिल पास किया जाता है।” आकली बताती हैं कि इस तरह मात्र पांच प्रतिशत अंशदान करने वाले किसान को 2.5 लाख की लागत वाला तालाब मुफ़्त में बन कर मिल जाता है।

तालाब निर्माण से आपको क्या लाभ होता है, इस पर आकली कहती हैं कि “आत्मा को संतुष्टि मिलती है कि मैंने जो ट्राइबल लीडरशिप प्रोग्राम में सीखा, वह समाज के काम आया।” वह बताती हैं, “आर्थिक दृष्टि से एक प्रोजेक्ट पूरा होने पर ट्रस्ट को 20 से 25 हज़ार रुपये बचते हैं, जिससे मैं अपने 22 कर्मचारियों का पेमेंट करती हूं।” इसके अलावा हर साल के आख़िर में हमारी ट्रस्ट को टाटा फाउंडेशन के द्वारा 30 हज़ार रुपये बतौर प्रोत्साहन राशि प्रदान किया जाता है।

संजय कुमार दास ‘जुमिद तिरला गांवता’ ट्रस्ट के कोऑर्डिनेटर हैं। वह कहते हैं कि वर्ष 2022 में हमारी ट्रस्ट ने कुल 10 तालाब बनाए, लेकिन 2023 में हमारा लक्ष्य 15 तालाब बनाने का है।

सिंहपुरा की रहने वाली गीतिका महतो व उनके पति काली महतो आकली टुडू की नॉन प्रॉफिटेबल ट्रस्ट में तीन वर्षों से काम कर रहे हैं। गीतिका कहती हैं कि पहले मैं घर पर रहती थी, पति मज़दूरी करते थे। हमें साल में धान की फसल से जो चावल मिलता, वही आय का साधन था। अब जब से हम दोनों पति-पत्नी दीदी के साथ जुड़े हैं, हमें पांच-पांच हज़ार रुपए प्रति महीने वेतन मिलता है। इससे हमारा जीवनयापन आसान हो गया है।

धालभूमगढ़ ब्लॉक में Jumid Tirla Gawanta ट्रस्ट की ओर से निर्मित एक तालाब। Photo credit: Sartaz Alam

क्या कहते हैं तालाब बनावाने वाले किसान

गुड़ाबांदा ब्लॉक में स्थित सुड़गी गांव के निवासी जयसिंह मुर्मु ने साल 2014 में 200 फिट लंबा, 100 फिट चौड़ा और 10 फिट गहरा तालाब बनवाया था। वह कहते हैं कि पूर्व में उनके गांव में कोई तालाब नहीं था, गर्मी का मौसम शुरू होते ही हैंडपंप सूखने लगते थे। खेतों की सिंचाई तो छोड़िए, घरेलू कामों के लिए भी पानी उपलब्ध नहीं रहता था।

जयसिंह बताते हैं कि तालाब बनवाते समय उनको डर था कि कहीं यह असफल हुआ तो उनका खेत बेकार हो जाएगा। जिस पर थोड़ा बहुत धान होता है, वह भी नहीं उगेगा। वह कहते हैं, “मैंने अपनी इस दुविधा से जब आकली दीदी को अवगत कराया तो उन्होंने आश्वस्त किया कि हम जो तालाब निर्मित करते हैं, वह इंजीनियर के द्वारा किए गए सर्वेक्षण रिपोर्ट के बाद ही बनता है। उनके समझाने के बाद मैंने तालाब बनवाने की स्वीकृति दी और आज तालाब बनने के बाद जीवन बदल गया है।”

“पहले धान बेचने के बाद साल में मुश्क़िल से लगभग 20 हज़ार रुपये ही कमा पाते थे, लेकिन तालाब बनने के बाद मछली पालन, साग-सब्जी की खेती से प्रत्येक वर्ष लगभग एक लाख रुपये की आय हो जाती है,” जयसिंह मुर्मू ने आगे कहा।

सिंहपुरा गांव के धनर्धर महतो ने हाल ही में तालाब बनवाया है। वह उत्सहित होकर कहते हैं, “जून-जुलाई से मैं तालाब की मेड़ पर गोभी, टमाटर की खेती आरंभ करूंगा। फिलहाल मैंने मत्स्य पालन के लिए एक लाख मछलियां तालाब में छोड़ दी हैं, जो भविष्य में आय का बड़ा साधन बनेंगी।”

क्या कहते हैं तालाब का पानी इस्तेमाल करने वाले ग्रामीण

जयसिंह मुर्मु के तालाब पर कपड़े धुलती सानतना मुर्मू बातचीत के दौरान कहती हैं कि पूर्व में गर्मी आते ही गांव के हैंडपंप और कुएं सूख जाते थे। उस समय यहां एक भी तालाब नहीं था, तब गांव की हम सभी महिलाओं को नहाने और कपड़े धुलने के लिए दो किलोमीटर दूर स्वर्णरेखा नदी तक जाना पड़ता था। और, घर की ज़रूरतों के लिए नदी से पानी लाना पड़ता था।

वह आगे कहती हैं, “तालाब निर्माण के बाद गांव की महिलाएं कपड़े धुलने के लिए तालाब पर आती हैं। साथ ही यहीं से स्नान व अन्य उपयोग के लिए पानी घर ले जाती हैं। आज यह तालाब हमारे गांव के लिए वरदान साबित हो रहा है।”

सुड़गी गांव के किसान श्याम सोरेन जयसिंह मुर्मु के तालाब से अपने खेतों की सिंचाई करते हैं। वह कहते हैं, “गर्मी के मौसम में हमारे गांव में मवेशियों को पालना सबसे बड़ी चुनौती थी। उनको पिलाने के लिए पानी नहीं मिलता था, लेकिन तालाब बनने के बाद इस समस्या से निजात मिल गई।”

वह आगे कहते हैं कि “पहले हम लोग यहां सिर्फ़ धान की फसल लगाते थे, जो बारिश पर निर्भर थी। तालाब बनने के बाद हम गोभी, अरहर, बैगन, टमाटर व तरबूज़ जैसी फसलों की खेती भी कर रहे हैं, जिससे हमारी आय पहले की तुलना में पांच गुना बढ़ गई है।”

तालाब बनाने के लिए ऐसे मिली प्रेरणा

तीन भाई व चार बहनों में सबसे छोटी आकली टुडू का जन्म सुड़गी गांव में हुआ। इस गांव में 239 घर मौजूद हैं, जिनमें 90 फ़ीसद घर आज भी मिट्टी के हैं। आकली सातवीं तक पढ़ाई करने के बाद स्कूल दूर होने के कारण आगे पढ़ नहीं सकीं। साल 2004 में उनकी शादी उनके गांव से दस किलोमीटर दूर मुसाबनी ब्लॉक के लातिया गांव में हो गई।

आकली कहती हैं, “मेरे पति कोई काम नहीं करते थे। शादी के कुछ दिनों के बाद ही मैं बांस की टोकरी बनाने लगी, ताकि तेल साबुन के पैसे जुटा सकूं। यह सिलसिला वर्ष 2012 तक चला।”

“वर्ष 2012 में ही बड़े भाई स्वर्गीय प्रधान मुर्मू मुझे अपने गांव सुड़गी लेकर गए। वहां कृषि के विकास पर काम करने वाली टैगोर सोसाइटी नाम की संस्था से मुझे जुड़ने का मौक़ा मिला। उस संस्था ने टाटा फाउंडेशन के द्वारा आयोजित ट्राइबल लीडरशिप प्रोग्राम की वर्कशॉप में भेजा। वहां सिंचाई से लेकर कई अन्य तरह की खेती से जुड़ने के लिए प्रेरित किया जा रहा था,” आकली आगे कहती हैं।

“मुझे बाबा की बातें याद आने लगीं। मैं छठी कक्षा में पढ़ रही थी, तब सिंचाई के साधन के अभाव में मेरे बाबा दुख से कहते थे कि यदि सिंचाई का साधन बेहतर हो तो गुड़ाबांदा के किसान धान के अलावा अन्य फ़सल उगाकर आय बढ़ा सकते हैं। उस समय बाबा जल संरक्षण की बात भी किया करते थे, जिसे मैं उस समय समझ नहीं पाई थी। लेकिन वर्कशॉप के दौरान मुझे इसकी दिशा मिल गई और मैंने तय किया कि जब तक जीवित हूं, तालाब बनाती रहूंगी। यही जल संचित करने का सबसे अच्छा साधन है,” आकली टुडू ने आगे कहा।

नक्सलियों ने दी जान से मारने की धमकी

वर्ष 2014 में गुड़ाबांदा व मुसाबनी क्षेत्र घोर नक्सल प्रभावित था। इसी बीच टैगोर सोसाइटी व टाटा स्टील से जुड़ने के बाद आकली टु़डू को नक्सलियों के द्वारा धमकाया गया। जान से मारने की धमकी के साथ उनके नाम के पोस्टर लगाए गए।

आकली बताती हैं, “नक्सलियों का कहना था कि मैं महिला हूं, इसलिए तालाब व खेती से संबंधित कार्यों से दूर रहूं। लेकिन स्थानीय प्रशासन की मदद से मैंने अपना कार्य जारी रखा।”

वह आगे कहती हैं कि “आज मैं तालाब निर्माण के अलावा क्षेत्र के किसानों को खेती से संबंधित यंत्र सब्सिडी रेट पर उपलब्ध करवाती हूं। साथ ही उनके उपयोग, फलदार पौधे और बत्तख व मछली पालन पर ब्लॉक के स्थानीय किसानों को प्रशिक्षित कर रही हूं।”

जानकारी के मुताबिक़, आकली टुडू ने 120 गांवों के किसानों को कृषि से संबंधित मुफ़्त प्रशिक्षण देने के अलावा रियायती दरों पर कृषि के यंत्र उपलब्ध कराए। उन्होंने ऑर्गेनिक कृषि से संबंधित बीज व मत्स्य पालन के लिए मछलियां उपलब्ध कराके ग्रामीणों को आधुनिक खेती से जोड़ा है।

परिवार ने छोड़ा साथ, किराये के मकान में रहती हैं आकली टुडू

नक्सलियों द्वारा दी गई धमकी के बाद आकली के पति ने उनसे दूरी बना ली, जबकि ससुराल वालों ने उनसे नाता तोड़ लिया। इसके बाद ही उन्होंने सुड़गी गांव छोड़ दिया और 20 किलोमीटर दूर धालभूमगढ़ में अकेले रहने लगीं। लेकिन इसके बावजू़द वह प्रतिदिन अलग-अगल गांव के दौरे और ग्राम सभाएं आयोजित करती रहीं। इस दौरान स्थानीय प्रशासन ने उनकी सुरक्षा के लिए लगातार सहयोग किया।

तालाब के आकार के बारें में आकली बताती हैं कि तालाब का कॉमन साइज़ 75X75 फिट और 100X100 फिट है। ये तालाब दस फिट गहरे होते हैं। इन तालाबों के चारों तरफ 25 फीट चौड़ी मेड़ तालाब की मिट्टी से बनाई गई है, जिस पर तालाब के मालिक मौसम के अनुसार गोभी, टमाटर, भिंडी, साग, तरबूज़ आदि की खेती करते हैं। जबकि तालाब के ऊपर कुछ हिस्से में बनी मचान पर लौकी, खीरा जैसे फ़सलों की खेती होती है।

आकली कहती हैं कि व्यवस्थित तरीके से खेती करने के कारण किसानों को छोटी सी ज़मीन से साल भर आय होती रहती है। इसके अलावा तालाब के चारों तरफ मौज़ूद खेतों में हमेशा नमी बनी रहती है, जो धान के अलावा अन्य कई फ़सलों के लिए सहयोगी है।

टाटा फाउंडेशन के चीफ़ सौरव राय कहते हैं कि टाटा फाउंडेशन के साथ आकली का बहुत पुराना व गहरा रिश्ता है। आकली ने ख़ुद को एक लीडर साबित किया। उन्होंने क्षेत्र में कृषि के विकास के लिए न केवल 93 तालाब बनाए, बल्कि उन्होंने 1500 लोगों को तालाब बनाने के लिए प्रेरित भी किया है।

पार्थ सारथी टाटा फाउंडेशन के प्रोजेक्ट मैनेजर हैं। वह कहते हैं कि टाटा फाउंडेशन का मकसद है कि किसान की आय साल के हर महीने में जारी रहे, जैसे हमें हर महीने वेतन मिलता है। इस मक़सद को पूरा करने में आकली दिन-रात मेहनत कर रही हैं। हमें गर्व है कि आकली टुडू जैसी कर्मठ महिला हमारे साथ जुड़ीं, जिन्होंने फाउंडेशन के उद्देश्य को अपना उद्देश्य बना लिया।

स्थानीय बीडीओ सुमिता नगेसिया कहती हैं कि विपरीत परिस्थिति से लड़कर आकली‌ टुडू का 93 तालाब बना देना हम सभी को बेहतर करने के लिए प्रेरित करता है।