वर्ष 2023 में इंटर के विज्ञान संकाय में 73,833 विद्यार्थियों ने झारखंड एकेडमिक काउंसिल की परीक्षा दी, जिसमें से 60,134 छात्र उत्तीर्ण हुए. उन विद्यार्थियों में से एक रामगढ़ की दिव्या कुमारी हैं, जो परीक्षा में 95.8 फ़ीसद अंक हासिल कर स्टेट टॉपर बनीं. दिव्या एक साधारण परिवार से हैं, जिनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है.
रामगढ़ के सिविल सर्जन डॉ प्रभात कुमार ने दिव्या को उनके घर पहुंच कर सम्मानित किया.
”शिक्षा से ही विकास होता है, वह चाहे आर्थिक हो या सामाजिक, इसलिए पढ़ाई पर ध्यान दिया कि कुछ बन जाऊंगी तो घर की स्थिति बदल जाएगी.”
उपरोक्त शब्द कहने वाली झारखंड स्टेट टॉपर दिव्या कुमारी वर्ष 2021 में डिवाइन ओमकार मिशन हाईस्कूल से दसवीं में 93 फ़ीसद अंक हासिल कर स्कूल की टॉपर बनीं. उनके अनुसार, उस समय उन्हें ज़रा भी आभास नहीं था कि वह ठीक दो साल बाद राज्य की इंटरमीडिएट (इंटर) टॉपर बन जाएंगी.
वह कहती हैं कि यह सफलता स्कूल के सुबह 9 से 3 बजे के अलावा प्रतिदिन छह घंटे की नियमित पढ़ाई करने के बाद मिली है. इस सफलता का श्रेय दिव्या अपने मां-बाप, भाई व स्कूल के अध्यापकों को देती हैं.
मां कुसुम, पिता श्लोक बिहारी व भाई गौरव वर्मा के साथ दिव्या.
दिव्या बताती हैं, “मैंने इंटर के दौरान कभी किसी विषय का ट्यूशन नहीं किया. मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि मैं उसकी फ़ीस अदा कर पाती. इसलिए मैं जिस दिन जो भी टॉपिक स्कूल में पढ़ती, उसे शाम को घर में कंटस्थ करने के बाद लिख कर अभ्यास कर लेती. ऐसा इसलिए कि मुझे डर रहता था कि यदि मैंने समय पर याद नहीं किया तो स्कूल में पढ़ाया गया टॉपिक अगले दिन भूल जाऊंगी.”
सरकारी स्कूल से विज्ञान संकाय में इंटर करना कितना चुनौतीपूर्ण रहा? इस सवाल का जवाब देते हुए दिव्या कहती हैं कि “शिक्षा हासिल करने की प्रक्रिया को कभी जटिलता से नहीं लेना चाहिए. पहले तो मैं स्कूल के शिक्षक द्वारा पढ़ाया गया टॉपिक ख़ुद से पूरा करती, यदि कुछ गुंजाइश बचती तो मैं दो तरह से मदद लेती. एक, जो शिक्षक बीएड की ट्रेनिंग के लिए हमारे विद्यालय आते, उनसे स्कूल में समय मांग कर विषयवस्तु को समझने की कोशिश करती. लेकिन, इस प्रक्रिया से नियमित सहायता नहीं मिलती थी, क्योंकि ट्रेनिंग करने वाले शिक्षक की उपलब्धता पर यह निर्भर करता था. ऐसे में मैं यूट्यूब पर विषयवस्तु पर उपलब्ध फ्री वीडियो देखकर समझने का प्रयास करती, जो दूसरा विकल्प था.”
वह आगे कहती हैं, “मुझे याद है कि फिज़िक्स के टीचर स्कूल में कई बार बदले गए, साथ ही कई बार इस विषय की कक्षा में रुकावट आई. तब मैं फिज़िक्स के रनिंग टॉपिक को यूट्यूब पर उपलब्ध फ्री वीडियो देखकर समझती, उसके बाद अपनी रिफरेंस बुक की मदद से नोट्स तैयार करती थी. इस वज़ह से मैं फिज़िक्स में कभी पिछड़ी नहीं.”
रामगढ़ टाउन में स्थित ‘गांधी स्मारक प्लस टू हाई स्कूल’ से 12वीं कक्षा में 95.8 फ़ीसद अंक हासिल करने वाली दिव्या कहती हैं कि “मेरा प्रिय विषय बायलॉजी है, इस विषय में मैंने 98 अंक हासिल किए. इस विषय की तैयारी पूर्णतः किताब पर निर्भर रहते हुए किया. जबकि रसायन शास्त्र की तैयारी स्कूल में शिक्षक के द्वारा दिए गए लेक्चर और उसके बाद अपनी एनसीईआरटी पुस्तक की मदद से की.”
दिव्या के अनुसार, उन्हें बारहवीं में अच्छे नंबर आने की उम्मीद तो थी, लेकिन यह एहसास नहीं था कि वह झारखंड टॉपर बन जाएंगी.
एस्बेस्टस की शीट से बनी छत के नीचे रहती हैं स्टेट टॉपर दिव्या.
रामगढ़ का विकास नगर, जहां स्थित है गली नंबर एक; वहां मौजूद सभी मकान पक्के बने हुए हैं सिवाय दिव्या के घर के. दिव्या के घर की छत एस्बेस्टस की शीट से बनी है, जबकि पक्की ईंट से खड़ी दीवारों पर पलास्टर की नामौजूदगी परिवार की आर्थिक स्थिति को बयान करती है. उनके इस घर में दो कमरे हैं.
दिव्या कुमारी बताती हैं, “मुश्किल बारिश के दिनों में बढ़ जाती है, जब छत के क्रैक्स से बारिश का पानी टपकता है. बावज़ूद इसके मां और पापा हमेशा मुझे फ़िक्र न करते हुए पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित करते हैं. यही वज़ह है कि हर हालात में मैं पढ़ाई करती रही. हमारे यहां इलेक्ट्रिसिटी की समस्या है, बिजली न होने पर मैं मोमबत्ती की रोशनी में पढ़ाई करती थी.”
वह आगे कहती हैं कि “फिज़िक्स, केमिस्ट्री व बायलॉजी की रिफरेंस बुक बहुत महंगी हैं. उन्हें खरीदने के लिए पैसे नहीं थे, लेकिन मेरे कज़िन ब्रदर ने वह किताबें अरेंज करा दी. पापा मुझे हमेशा प्रोत्साहित करते, और उनसे किताबों के लिए कहती तो वह भी खरीद कर ले आते. लेकिन, मैं उन्हें अधिक मुश्किल में नहीं डालना चाहती थी.”
दिव्या के पिता श्लोक बिहारी मामूली से वेतन पर गार्ड की नौकरी करते हैं. जबकि उनकी मां कुसुम देवी सिलाई करती हैं, जिसके एवज में उन्हें लगभग तीन हज़ार रुपये की आय हो जाती है. लेकिन ये आय फिक्स नहीं है, क्योंकि यह उनके द्वारा सिले गए सूट की संख्या पर निर्भर करता है. यदि सिलाई के लिए कम सूट मिले तो आय घट जाती है.”
कुसुम देवी दिव्या की परीक्षा के दिनों को याद करते हुए कहती हैं कि उन दिनों में वह हमेशा की तरह वर्कशॉप में काम करने के लिए सुबह आठ बजे ही घर से निकल जाती थीं, जबकि रात में 8-9 बजे वापस लौटती थीं. उस दौरान दिव्या दिन में खाना बनाने और घर का सारा काम करने के बाद परीक्षा केंद्र जाती थीं.
दिव्या की मां कहती हैं कि बेटी ने जो सफलता पाई है, वह उसकी अपनी मेहनत का परिणाम है.
दिव्या के भाई गौरव वर्मा ने इसी वर्ष स्नातक प्रथम श्रेणी से पास किया है. इस दौरान वह पार्ट टाइम जॉब भी करते रहे. गौरव आगे अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहते हैं, लेकिन फिलहाल वह एमए में एडमीशन नहीं ले सकेंगे. वह चाहते हैं कि पहले दिव्या मेडिकल में प्रवेश की परीक्षा नीट (NEET) क्वालिफाई कर लें, उसके बाद वह अपनी आगे की पढ़ाई जारी करेंगे.
राज्य टॉपर बनने के बाद बधाई में मिले पुरस्कारों के साथ दिव्या कुमारी.
दिव्या बताती हैं, “रामगढ़ व रांची से मुझे कई कोचिंग संस्थानों ने नीट (NEET) के लिए फ्री कोचिंग क्लास ऑफ़र किया है, लेकिन यह उतना आसान नहीं है. रामगढ़ से बेहतर रांची है, लेकिन रांची जाकर पढ़ाई करने के लिए मुझे रांची में हॉस्टल लेना पड़ेगा. हॉस्टल व खाने का ख़र्च कैसे अरेंज होगा, मैं इसी कशमकश में हूं. लेकिन, भाई कहते हैं कि मैं कोचिंग में दाखिला ले लूं, वह हॉस्टल के खर्च का इंतज़ाम कर लेंगे. इसीलिए वह एक छोटी सी फैक्ट्री में जॉब कर रहे हैं. जबकि कुछ परिचितों ने आश्वस्त किया है कि वे किताबें उपलब्ध करवा देंगे.”
आपको लगता है कि आप मेडिकल की प्रवेश परीक्षा (NEET) क्वालिफाई करके एक दिन डॉक्टर बन जाएंगी? इसके जवाब में दिव्या कहती हैं, “देखिए झारखंड बोर्ड से बारहवीं करना एक बात थी, अब नीट की तैयारी दूसरा चरण है. यहां मुझे अपनी न्यूमेरिकल स्किल को निखारना है, साथ ही बारहवीं की तुलना में कहीं अधिक अभ्यास करना है. मेरा काम मेहनत करना है, बाक़ी परिणाम भगवान के हाथ में है, इसलिए मैं भविष्य के बारे में नहीं सोचना चाहती.”