राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के ‘स्वच्छ वायु सर्वेक्षण’ में इंदौर ने आठ पैमानों पर बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 200 में से 187 अंक प्राप्त कर प्रथम स्थान हासिल किया।
देश के सबसे साफ शहर इंदौर के लोग शहर की सफाई को लेकर बेहद संजीदा हैं। उनके लिए यह गर्व का विषय एक नैतिक जिम्मेदारी भी बन गया है। यहां के नागरिकों ने अब एक और बीड़ा उठाया है; वे सबसे साफ हवा पाने की कोशिश कर रहे हैं। यह कोशिश बीते तीन वर्षों से जारी है और अब इसके परिणाम भी मिलने लगे हैं। केंद्र सरकार ने इंदौर को स्वच्छ वायु सर्वेक्षण 2023 में 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों की श्रेणी में वायु गुणवत्ता सुधार के लिए सबसे जरूरी प्रयास करने के लिए सम्मानित किया है।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पिछले साल उन 131 शहरों की प्रगति को रैंक करने के लिए स्वच्छ वायु सर्वेक्षण शुरू किया था, जहां वायु की गुणवत्ता मानकों के आधार पर नहीं थी। इसके बाद उन शहरों में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत सुधार की कोशिशें शुरू हुईं। यह रैंकिंग स्थानीय नगरीय निकायों के ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, सड़कों से उड़ने वाली धूल, वाहनों से होने वाले उत्सर्जन, उद्योग, भोजनालयों, घरेलू खाना पकाने के लिए गैर एलपीजी साधनों और ईंट-भट्टों जैसे वायु प्रदूषण के प्रमुख कारकों के साथ शहरों की प्रगति को मापने वाले मूल्यांकन ढांचे के आधार पर तय की गई है।
केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव और सीएम शिवराज सिंह चौहान भोपाल में महापौर पुष्यमित्र भार्गव एवं कमिश्रर हर्षिका सिंह को पुरस्कार प्रदान करते हुए।
स्वच्छ वायु सर्वेक्षण में इंदौर ने 200 में से 187 अंक हासिल किए जोकि सबसे ज्यादा थे। बीते 7 सितंबर को विश्व शुद्ध वायु दिवस के मौके पर केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने पुरुस्कार के रूप में इंदौर को ट्रॉफी के साथ 1.50 करोड़ रुपये का चेक प्रदान किया। प्रदेश की राजधानी भोपाल इस सर्वेक्षण में पांचवें, जबलपुर 13वें और ग्वालियर 41वें नंबर पर रहा। इस सर्वेक्षण में यह भी देखा गया कि शहर वायु गुणवत्ता के दूरगामी परिणामों को हासिल करने के लिए कितना ध्यान देते हैं और इस संबंध में आने वाली शिकायतों पर उनकी प्रतिक्रिया कैसी होती है।
इंदौर शहर के महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने पिछले दिनों ही यह पुरुस्कार प्राप्त किया है। वह कहते हैं कि यह इंदौर की जागरूक जनता के कारण ही हो रहा है, जिन्होंने जमीन की गंदगी की तरह हवा की गंदगी को भी समय रहते समझ लिया है। इसके अलावा निगम के अधिकारियों और संस्थाओं का भी इसमें अहम योगदान है।
भार्गव वायु प्रदूषण कम करने के लिए शहर में ई-व्हीकल पर जोर दे रहे हैं। वह खुद भी इलेक्ट्रिक गाड़ियों को अहमियत दे रहे हैं और जनता के लिए भी शहर में सोलर बेस इलेक्ट्रिक व्हीकल चार्जिंग स्टेशन लगवाया है।
इंदौर में मेट्रो रेल का ट्रायल होते हुए।
इंदौर के लिए हवा को साफ करना आसान नहीं था। मध्यप्रदेश के सबसे तेज गति से विकास कर रहे इस शहर में आए दिन नए निर्माण हो रहे हैं एवं कल-कारखाने खुल रहे हैं। यहां भीड़ और प्रदूषण का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि करीब 35 लाख की आबादी वाले इस शहर में 22 लाख वाहन हैं। हालांकि, इस बोझ को कम करने के लिए यहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट को तरजीह दी जा रही है और जल्द ही इंदौर में मेट्रो ट्रेन सेवा शुरू होने वाली है।
क्लीन एयर कैटेलिस्ट प्रोग्राम के भारतीय प्रमुख कौशिक हजारिका कहते हैं, “इंदौर में प्रदूषण की तीन वजहें प्रमुख हैं; ट्रैफिक, कचरे को जलाना और औद्योगिक प्रदूषण। ऐसे में शुरू से ही इन तीन स्त्रोंतों से प्रदूषण को कम करने पर जोर दिया जा रहा है।”
इस प्रोजेक्ट की अहम भागीदार और दुनिया की जानी-मानी संस्था वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टिट्यूट (डब्ल्यूआरआई इंडिया) के एयर क्वालिटी सीनियर प्रोग्राम एसोसिएट संजर अली कहते हैं कि इंदौर ने सिटी बस और बीआरटीएस के जरिये पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर काफी ध्यान दिया है। इससे काफी हद तक प्रदूषण कम करने में मदद मिली है।
वह बताते हैं कि शहर में यातायात के लिए बुनियादी ढांचे के विकास के साथ ही पब्लिक बाइसिकिल सिस्टम को विकसित किया गया है। वहीं, मेट्रो परियोजना से इसमें और भी मदद मिलेगी।
इंदौर में मेट्रो रेल का ट्रायल जारी है। विशेषज्ञ मानते हैं कि इसके चलने से शहर के वायु प्रदूषण में कमी आएगी।
खानपान के लिए दुनियाभर में मशहूर इंदौर शहर में अब लकड़ी से जलने वाले पारंपरिक तंदूर प्रयोग में नहीं आते। बीते साल तक यहां तंदूर थे, लेकिन जलाऊ लकड़ी से होने वाले प्रदूषण को खत्म करने के लिए अब यहां के होटल-ढ़ाबा के कारोबारियों ने तंदूरों में जलाऊ लकड़ी का उपयोग करना बंद कर दिया है। इसके अलावा शहर की सीमा से ईंट-भट्टों को भी बाहर कर दिया गया है।
इंदौर की हवा को साफ करने के लिए दुनिया की कुछ बड़ी संस्थाएं काम कर रहीं हैं। यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट के सहयोग से दुनिया के तीन शहरों में क्लीन एयर कैटलिस्ट प्रोग्राम शुरु किया गया, जिसमें इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता, कीनिया की राजधानी नायरोबी और इंदौर शामिल है। इस कार्यक्रम में इंदौर में कई दूसरी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने सहयोग दिया है।
शहर के राजेंद्र नगर इलाके में ढाबा चलाने वाले जसपाल बताते हैं कि उन्होंने तंदूर बंद कर दिया है, क्योंकि नगर निगम ने इसके लिए नए नियम बना दिए हैं – लिहाजा अब वह केवल एलपीजी से ही खाना बनाते हैं। हालांकि, जसपाल कहते हैं कि ग्राहक तंदूरी रोटी की मांग करते हैं तो उन्हें मना करना पड़ता है।
इंदौर में फरवरी 2023 में तंदूर और खुली भट्टियां पूरी तरह से बंद कर दी गई थीं। वहीं, इसके एक साल पहले से ही लकड़ी के कोयले के इस्तेमाल पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था। हालांकि, जब यह फैसला लागू किया गया तो इसे विरोध का सामना भी करना पड़ा, लेकिन बाद में लोगों ने इस नियम को मानना शुरू किया और स्थितियां बदलने लगीं।
इंदौर नगर निगम की कमिश्नर हर्षिका सिंह कहती हैं कि उन्हें विश्वास है कि आने वाले समय में इंदौर की हवा और बेहतर होगी।
इंदौर में इन दिनों इलेक्ट्रिक वाहनों का चलन बढ़ रहा है।
क्लीन एयर कैटलिस्ट कार्यक्रम के कम्युनिकेशन कंसल्टंट सुधीर गोरे बताते हैं कि इस कार्यक्रम में लोगों के स्वास्थ्य पर हवा के दुष्प्रभावों को लेकर सबसे शुरुआती काम किया गया। उनके अनुसार, “इंदौर को साफ-सफाई में पहले नंबर पर पहुंचाने में सबसे अहम योगदान सड़कों पर काम करने वाले सफाईकर्मियों का रहा है।”
सुधीर आगे कहते हैं, “सड़क से उड़ने वाली धूल के संपर्क में सफाईकर्मी ही सबसे पहले आते हैं, ऐसे में उन कर्मचारियों के स्वास्थ्य पर हवा के प्रभावों को सूचीबद्ध किया गया। वहीं, ट्रैफिक संभालने के लिए तैनात पुलिसकर्मियों के स्वास्थ्य पर भी हवा के प्रतिकूल प्रभाव नजर आए।”
वह बताते हैं कि वायु प्रदूषण को कम करने के उपाय से पहले इससे बचत के बारे में लोगों को जागरूक किया गया। इससे असर यह हुआ कि लोग इसके बारे में सचेत होने लगे और इस तरह वायु प्रदूषण से रोकथाम को लेकर जमीनी संदेश प्रसारित करने में मदद मिली।
इंदौर के मालव कन्या स्कूल परिसर में स्थापित सीएएक्यूएमएस यानी सतत वायु गुणवत्ता मापन उपकरण।
नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर शहर के इंडस्ट्रियल इलाके में कारखाना चलाने वाले एक उद्यमी बताते हैं कि पहले उनके कारखाने में वायु प्रदूषण पर बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया जाता था, लेकिन बीते कुछ वर्षों में स्थानीय नगर निगम इसे लेकर सख्त हुआ है। इस बीच उन्होंने अपने कारखाने से निकलने वाले धुएं को कम करने के लिए कई उपाय किए हैं। उनके अनुसार, ऐसा करने वाले वह अकेले नहीं हैं बल्कि उनके आसपास के कई दूसरे कारखानों में पहले स्थिति वैसी ही थी, लेकिन कठिन नियमों के लागू होने के कारण अब सभी उनका पालन कर रहे हैं।
क्लीन एयर कैटलिस्ट के लिए डब्ल्यूआरआई इंडिया द्वारा किए गए एक फील्ड सर्वेक्षण के मुताबिक, इंदौर के 77 फीसद उद्योगों ने धूल और कणों को हटाने के लिए बैग फिल्टर जैसे प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों का उपयोग करना शुरू कर दिया है। यहां वायु में ब्लैक कार्बन की मात्रा को कम करने के लिए ईंट-भट्टों को बड़े पैमाने पर शहर की सीमाओं से बाहर ले जाया गया है, जिनसे होने वाला प्रदूषण फेफड़ों की बीमारी का कारण बन सकता है। इसके अलावा वह काफी हद तक जलवायु परिवर्तन की वजह भी बनता है।
इंदौर के नजदीक पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में संचालित कारखाने।
डब्ल्यूआरआई इंडिया में वायु गुणवत्ता निदेशक डॉ. प्रकाश दोराइस्वामी कहते हैं कि इंदौर के क्लीन एयर एक्शन प्लान में वायु प्रदूषण से निबटने के लिए इसकी मात्रा का अनुमान लगाना जरूरी है, जिसके लिए आवश्यक है कि पहले एमिशन इन्वेंटरी तैयार करवाई जाए। वह बताते हैं कि उनकी संस्था नेशनल क्लीन एयर प्लान सोर्स अपोर्शनमेंट स्टडी पर भी काम कर रही है; इसे सीधे शब्दों में कहें तो प्रदूषण के सोर्स को पहचानकर उसे समाप्त करने या सुधारने पर भी काम किया जा रहा है।
इंदौर की हवा में प्रदूषण का पता लगाने के लिए इन संस्थाओं ने काफी काम किया। इसी साल फरवरी में इंदौर में तीन विश्वस्तरीय मॉनिटरिंग सिस्टम लगाए गए। ये तीनों सिस्टम शहर के व्यवस्ततम इलाकों में लगाए गए हैं – जो वहां हवा का जायजा ले रहे हैं। इन्हें क्लीन एयर कैटेलिस्ट प्रोग्राम की सहयोगी संस्था डब्ल्यूआरआई, ईडीएफ (एन्वायर्नमेंटल डिफेंस फंड) और यूएसएआईडी (यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट) ने मिलकर लगाया है, जिनके माध्यमों से हवा की लगातार निगरानी की जा रही है।
अब इस काम में नगर निगम भी आगे आ रहा है और इसी तरह के तीन अन्य उन्नत सिस्टम शहर के कुछ अन्य स्थानों पर लगवा रहा है। इस तरह अब पूरे शहर की हवा की मॉनिटरिंग हो सकेगी। इससे पहले प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी ऐसे दो सिस्टम शहर में लगवाए हैं।
इंदौर की हवा को साफ रखने के लिए भले ही लगातार काम हो रहे हैं, लेकिन इस शहर के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। इंदौर से लगा हुआ प्रदेश का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर है जो लगातार अपना विस्तार कर रहा है। इस क्षेत्र में लोग वायु प्रदूषण के कारण कई तरह की बीमारियों की शिकायत करते रहे हैं। इस इलाके में करीब 25 वर्षों से काम कर रहीं महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. आशा पवैया बताती हैं कि इलाके में संतानहीनता की परेशानी काफी बढ़ी है और उनका मानना है कि इसके पीछे प्रदूषण एक वजह है; विशेषकर वायु प्रदूषण।
हालांकि, डॉ. पवैया कहती हैं कि इस मामले में अध्ययन किए जाने की जरूरत है। पवैया के क्लिनिक पर ऐसी समस्या लेकर रोजाना कई मरीज आते हैं। उनके मुताबिक, इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए क्योंकि यह परेशानी पीथमपुर के अलावा इससे सटे आसपास के इलाकों में भी फैल रही है; ऐसे में इंदौर भी इससे खासा दूर नहीं है।
फिलहाल, इंदौर में एयर क्वालिटी इंडेक्स 90-100 के बीच होता है। प्रदूषण नियंत्रण विभाग के क्षेत्रीय अधिकारी श्रीनिवास द्विवेदी बताते हैं कि इसे 68 तक लाना है, लेकिन यह काम आसान नहीं है। प्रदूषण सबसे ज्यादा सड़कों के निर्माण में तकनीकी गड़बड़ियों के कारण और यातायात से उड़ने वाली धूल के कारण बढ़ रहा है। इसमें पीएम 2.5 की मात्रा काफी अधिक होती है। बड़ी एजेंसियां प्रदूषण के स्त्रोतों को पहचानने में उनकी मदद कर रही हैं।
वह आगे कहते हैं कि पहले उद्योगों में फर्निस यानी भट्टियां सीधे जलतीं थीं, लेकिन अब उनमें से ज्यादातर एलपीजी का उपयोग करते हैं; जिससे निकलने वाला धुआं कम होता है और उसमें प्रदूषण की मात्रा पहले से बहुत कम होती है। नगर निगम फिलहाल कुछ ही स्थानों पर वाहनों में लगी मशीनी झाड़ू का उपयोग करता है, जिससे हवा में धूल न उड़कर मशीन के अंदर ही चली जाती है। यह तकनीक बेहतर है और इसे प्रोत्साहित करना होगा।
श्रीनिवास के अनुसार, अब इंदौर में करीब 89 फीसद तक होटल और ढ़ाबे लकड़ी या कोयले का उपयोग बंद कर चुके हैं।
वायु प्रदूषण का सबसे ज्यादा प्रभाव घरेलू और कामकाजी महिलाओं पर पड़ता है। कई संस्थाओं ने इसे लेकर व्यापक सर्वे भी किए, जिसमें प्रदूषण के कारण महिलाओं में कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं देखने को मिलीं। इनमें सबसे अहम लगातार खांसी का बना रहना है।
जानकार कहते हैं कि ये महिलाएं घरों में भी वायु प्रदूषण का सामना करती हैं। महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज के डीन और सांस की बीमारियों के विशेषज्ञ डॉ. सलिल भार्गव बताते हैं कि ये समस्याएं समय के साथ गंभीर होती जाती हैं और बड़े हो रहे शहरों में इसे लेकर बहुत जागरुकता नहीं है, इंदौर में भी नहीं। ऐसे में इसे लेकर समय-समय पर अध्ययन करना ठीक होगा।
इंदौर में हवा के प्रदूषण को कम करने पर सीधा असर उन लोगों पर सबसे पहले होगा जो सीधे तौर पर वायु प्रदूषण के प्रभाव में आते हैं। डॉ. भार्गव कहते हैं कि सड़कों के प्रदूषण का सबसे तेज असर बच्चों पर होता है और उनका श्वसन तंत्र कमजोर होता जाता है। ऐसे में अगर हमें अपनी अगली पीढ़ी को बचाना है तो सबसे पहले हवा की स्वच्छता पर ध्यान देना होगा।