मध्य प्रदेश (MP) के इंदौर (Indore) को भारत का सबसे स्वच्छ शहर (Cleanest City) होने का दर्ज़ा प्राप्त होने के बाद इस शहर ने एक और मुकाम ‘जल संरक्षण’ (Water Conservation) के क्षेत्र में हासिल किया है, जिसके लिए इसे ‘राष्ट्रीय जल पुरस्कार’ (National Water Awards) से सम्मानित किया गया है।
सबसे स्वच्छ शहर 'इंदौर' की पहचान होलकर राजवंश का महल राजवाड़ा।
देश का सबसे साफ़ शहर होने का दर्ज़ा इंदौर (Indore) छह बार हासिल कर चुका है। यह शहर अपने नागरिकों के कारण ही सबसे साफ़ बना रहा और अब इंदौर के लोग जल संरक्षण को लेकर सराहनीय प्रयास कर रहे हैं। इसमें सफ़लता प्राप्त करने के लिए चंडीगढ़ के बाद इंदौर को राष्ट्रीय जल पुरुस्कार से सम्मानित किया गया है। यह उस शहर के लिए बड़ी उपलब्धि है जो देश का सबसे महंगा पानी पीता है।
जलशक्ति मंत्रालय की ओर से चलाए जा रहे ‘कैच द रेन वॉटर अभियान’ के अंतर्गत जल संरक्षण के लिए इंदौर को ‘राष्ट्रीय जल अवार्ड’ मिला है। पुरस्कार मिलने तक यहां 1.16 लाख घरों में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाए जा चुके थे, जबकि अब यह संख्या 1.18 लाख हो चुकी है।
इंदौर के मेयर पुष्यमित्र भार्गव (मध्य में सफ़ेद कुर्ता-पायजामा पहने), केंद्रीय जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से 'राष्ट्रीय जल पुरस्कार' प्राप्त करते हुए।
नगर निगम के अधिकारियों और कुछ विशेषज्ञों के दिशानिर्देश में इंदौर में यह कवायद पिछले क़रीब तीन साल से जारी है, जिसके परिणाम काफ़ी हद तक नज़र आने लगे हैं। निगम ने तय किया था लोगों को पानी के लिए उनकी जवाबदेही का अहसास कराना है। ऐसे में उन्होंने अपने संसाधन केवल प्रशिक्षण पर ही ख़र्च किए, जबकि पानी के लिए ख़र्च करने की जिम्मेदारी नागरिकों को दी।
निगम के प्रशिक्षण और मेल-जोल का असर ऐसा हुआ कि नागरिकों ने ख़ुद पहल करते हुए अपने घरों पर रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाए। यहां के नागरिकों और व्यापारिक संस्थानों ने पानी के संरक्षण के लिए क़रीब 60 करोड़ रुपये ख़र्च किए।
दीपकांत बागड़ी अपना वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम दिखाते हुए।
नागरिकों के इस प्रयास का असर यह हुआ कि इंदौर में भूजल स्तर बेहतर हो रहा है और पानी पर होने वाले ख़र्च में कमी आ रही है। इंदौर में यह बड़ी बात है क्योंकि यहां पानी का दोहन काफ़ी अधिक है। 40 लाख की आबादी वाला इंदौर हर दिन क़रीब 500 एमएलडी पानी की खपत करता है, जबकि यहां भूजल से केवल 150 एमएलडी पानी ही मिलता है। यह पानी भी क़रीब 10 तालाबों से आता है, जबकि बाक़ी पानी के लिए इंदौर को निमाड़ इलाके में बहने वाली नर्मदा नदी पर निर्भर करना पड़ता है।
मध्य प्रदेश की जीवन-रेखा मानी जाने वाली नर्मदा नदी के पानी का सबसे ज़्यादा दोहन करने वाला शहर इंदौर ही है, जो इस नदी से तीन बड़े पाइपलाइनों के माध्यम से पानी लेता है। इस प्रक्रिया में बड़ी मात्रा में बिजली और दूसरे संसाधन ख़र्च होते हैं, जिसका केवल बिजली ख़र्च ही क़रीब 300 करोड़ रुपये वार्षिक है।
एक आंकड़े के अनुसार, इंदौर में देश का सबसे महंगा पानी मिलता है जिसकी क़ीमत तक़रीबन 21 रुपये प्रति किलोलीटर है। इंदौर तक पानी पहुंचाने के लिए बिजली का ख़र्च और पाइपलाइन के इन्फ्रास्ट्रक्चर को देखें तो अब तक इस पर हज़ारों करोड़ रुपये ख़र्च हो चुके हैं।
शहर के पश्चिमी क्षेत्र से देश के उत्तरी हिस्से को महाराष्ट्र और दक्षिण के इलाकों से जोड़ने वाला नेशनल हाईवे गुज़रता है। ऐसे में यहां काफ़ी तेज़ी से शहरीकरण हो रहा है। हालांकि, इसी इलाके को यहां का कैचमेंट एरिया भी कहा जा सकता है; यानी, इस क्षेत्र में पानी जमा होता है जिससे शहर में पानी की कमी पूरी होती है। यहां अनुराधा नगर में दीपकांत बागड़ी का घर चार साल पहले ही बना है।
दीपकांत बताते हैं कि जब वह इस इलाक़े में घर बना रहे थे तो गर्मियों के चार महीने के दौरान उन्हें हर महीने 10-15 हज़ार रुपये से अधिक रुपये पानी पर ख़र्च करने पड़ रहे थे। उसी दौरान उन्होंने विशेषज्ञों की सलाह पर रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया। उनके मुताबिक़, अब बारिश का जितना पानी उनकी छत पर गिरता है वह उनकी ज़मीन से होते हुए उनके बोरवेल में चला जाता है। हार्वेस्टिंग सिस्टम के बाद उन्हें पानी पर कोई अतिरिक्त ख़र्च नहीं करना पड़ रहा है।
भूजल स्तर मापने के लिए शहर में इस तरह के 10 पीजो मीटर लगाए गए हैं।
रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की मुहिम में ‘नागरथ चैरिटेबल ट्रस्ट’ का अहम योगदान रहा है। यह संस्था इंदौर ज़िले में पानी के स्रोतों को सहेजने के लिए काफ़ी समय से काम कर रही है। संस्था के अधिकारी और इस काम को देख रहे सुरेश एमजी बताते हैं कि शहर का यह इलाक़ा भले ही कैचमेंट एरिया कहा जा रहा हो, लेकिन कुछ ही वर्ष पहले तक यहां भूजल सूख चुका था। गर्मियों में यहां हर बार बड़ी मात्रा में पानी पहुंचाना होता था और इस पर स्थानीय लोगों को काफ़ी ख़र्च भी करना पड़ता था। लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं है, फ़िलहाल इस कॉलोनी में ही क़रीब 200 घर हैं और एक-दो को छोड़ दें तो सभी ने बारिश का पानी बचाने का इंतज़ाम कर रखा है।
सुरेश एमजी बताते हैं कि जल संरक्षण के असर को वैज्ञानिक तकनीक से मापा जा रहा है। भूजल में आ रहे बदलाव का अंतर जानने के लिए शहर के कई इलाक़ों में पीजो मीटर लगाए गए हैं। वह बताते हैं कि कई इलाक़ों में जहां 800 सौ फुट गहराई तक पानी नहीं था, अब वहां क़रीब 300 सौ फीट का स्तर है। ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि बारिश के पानी को संरक्षित करने की कवायद का असर हो रहा है।
इंदौर में औद्योगिक संघ के पूर्व अध्यक्ष और उद्योगों के लिए वॉटर हार्वेस्टिंग कार्यक्रम के संयोजक प्रमोद डाफरिया बताते हैं कि अब तक क़रीब 1300 उद्योगों में बारिश का पानी संरक्षित करने के लिए उपकरण लगाए हैं। उनके मुताबिक, बीते वर्षों में तक़रीबन हर उद्योग को गर्मियों के क़रीब पांच महीने में औसतन पांच से आठ लाख रुपये पानी पर ख़र्च करने पड़ते थे, जबकि अब यह ख़र्च आधे से भी कम हो गया है।
प्रमोद डाफरिया के मुताबिक़, भूजल की उपलब्धता के साथ-साथ उसके टीडीएस और पीएच स्तर में भी कमी आई है। ऐसे में बहुत से वॉटर बेस्ड कारखानों का पानी की सफ़ाई पर होने वाला ख़र्च भी कम हुआ है।
डाफरिया कहते हैं, “अगले एक साल में इलाक़े के तक़रीबन सभी उद्योग इस कार्यक्रम में शामिल हो जाएंगे।”
राष्ट्रीय जल पुरस्कार के साथ मेयर और नागरथ चैरिटेबल ट्रस्ट के सुरेश एमजी, साथ में एडिशनल कमिश्नर सिद्धार्थ जैन (मेयर के दाएं)।
इंदौर के मेयर पुष्यमित्र भार्गव कहते हैं कि जल योजना का यह कार्य इंदौर के नागरिकों के प्रयास से ही संभव हो सका है। उनके अनुसार, “इंदौर का पानी भारत में सबसे महंगा है, ऐसे में भविष्य के लिए यह एक बड़ी चुनौती है जिसे नागरिकों ने अपने दम पर हल करने की ठानी है।”
वह बताते हैं कि “एक लाख से अधिक नागरिकों ने अपने घरों पर रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने का ख़र्च ख़ुद वहन किया। इसके अलावा कई बैंकों, कॉपोरेट्स और व्यापारियों एवं समाजसेवी संस्थाओं आदि ने भी मदद की जिससे हज़ारों घरों में यह सिस्टम लगाए जा सके।”
शहर में कई जगह ऐसे रिचार्ज शॉफ्ट लगाए गए हैं, जिसमें बारिश का पानी संचित होता है।
इंदौर नगर निगम कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए लगातार काम कर रहा है। मध्य प्रदेश में यह इकलौता निकाय है जो अपने कार्बन क्रेडिट बेचता है, जिससे क़रीब आठ से 10 करोड़ रुपये सालाना की आमदनी होती है। अब जब इंदौर को पानी के क्षेत्र में उपलब्धि हासिल हुई है और उससे हरियाली भी बढ़ रही है, ऐसे में तैयारी वॉटर क्रेडिट और ग्रीन क्रेडिट बेचकर पैसा कमाने की है।
मेयर पुष्यमित्र भार्गव कहते हैं कि इस पर काम शुरु हो चुका है, लेकिन फ़िलहाल मामला बेहद शुरुआती स्तर पर है।
नगर निगम इंदौर के एडिश्नल कमिश्नर आईएएस अधिकारी सिद्धार्थ जैन बताते हैं कि शहर के लिए यह शुरुआत ही बड़ी उपलब्धि है। यहां पानी का दोहन काफ़ी अधिक होता है और ऐसे में उसे बचाना भी नागरिकों की ही जिम्मेदारी है।
सिद्धार्थ के मुताबिक़, शहर में क़रीब छह लाख घर हैं जिसमें से एक लाख से कुछ अधिक घरों में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया जा चुका है। अभी भी काफ़ी घर इससे वंचित हैं, लेकिन सकारात्मक परिणाम आने से यह संख्या तेज़ी से बढेगी। वह कहते हैं इस साल ही नगर निगम क़रीब सवा लाख से अधिक घरों में यह सिस्टम लगाएगा।
उनके अनुसार, गर्मियों के मौसम में पानी की उपलब्धता रहने से निश्चित रुप से निगम पर टैंकरों का दबाव कम हुआ है। हालांकि, उन्होंने उससे वित्तीय बचत के आंकलन को जल्दबाजी बताया।
एडिश्नल कमिश्नर कहते हैं, “पानी के टैंकरों के लिए आने वाले दबाव में कमी आई है। पहले निगम पर जल आपूर्ति का जो दबाव होता था, उसमें सभी को सुविधा नहीं मिल पाती थी। लेकिन, अब पानी की जो भी मांग आ रही है वह पूरी हो जा रही है।”
तालाबों की ओर जाने वाले रास्ते पर रिचार्ज शॉफ्ट बनाए गए हैं।
इंदौर में केवल घरों की छत पर ही पानी बचाने की कोशिश नहीं की गई, बल्कि नदियों व तालाबों में भी बारिश के पानी को संरक्षित करने पर ज़ोर दिया गया और नए तालाब भी बनाए गए। हालांकि इंदौर शहर में करीब 10 तालाब हैं, लेकिन उनमें से कई पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण था जिसे हटाया गया। वहीं, तालाबों की भरण क्षमता बढ़ाने के लिए उन्हें गहरा और चौड़ा किया गया। उसका असर यह हुआ कि तालाबों में पानी बढ़ा और बीते महीने हुई बारिश में ही शहर के सारे तालाब आधा से ज़्यादा भर गए।
नगर निगम के मुताबिक़, उन्होंने क़रीब 100 मिलियन लीटर से अधिक तालाबों के पानी का पुनर्पयोग किया और उससे उन्होंने क़रीब 40 लाख रुपये बचाए।
इंदौर को इससे पहले भी राष्ट्रीय जल पुरस्कार मिला था। दो साल पहले ज़िले के ग्रामीण इलाक़ों में इसी तरह बरसात का पानी बचाने की कोशिश की गई थी। महू (Mhow) इलाक़े में बड़े पैमाने पर पुराने नालों को खोजा गया और उन्हें गहरा व चौड़ा किया गया। इसका असर यह हुआ कि उन इलाक़ों में गर्मियों के मौसम में भी सिंचाई का इंतज़ाम हो गया।
महू तहसील में भगोरा गांव के किसान कैलाश आंजना बताते हैं कि वह अब तीन से चार फसलें तक कर लेते हैं, क्योंकि अब उनके कुएं और बोरवेल में ज़्यादा पानी आता है। पहले यह पानी दिसंबर से ही ख़त्म होना शुरू हो जाता था, लेकिन अब जून के आख़िरी दिनों में ही कुछ धीमा होता है।
कैलाश बताते हैं कि पहले वह गांव की ज़मीनें बेचकर कहीं और ज़मीन खरीदना चाहते थे, लेकिन अब उनका इरादा बदल गया है। वह कहते हैं कि पानी के बिना सब सूना हो रहा था, मगर पुराने नालों के गहरीकरण से यहां के क़रीब 20 से अधिक गांवों में पानी की उपलब्धता बढ़ी है और किसानों को सिंचाई में आसानी हुई है।