“मैं चाहता हूँ कि फ़ूड पैकेट पर लिखे साम्रगियों को पढ़ने की एक पढ़ाई हो अथवा उससे संबंधित एक स्किल डेवलप करवाया जाए, जिससे कि लोग समझ सकें कि वे जो खा रहे हैं वह किस चीज़ से बनी है और उनके शरीर के लिए कितनी लाभदायक या नुक़सानदेह है,” अमरीका से भारत लौटे 31 वर्षीय रेवांत हिमतसिंगका ने मोजो स्टोरी (Mojo Story) से कहा।
हमने रेवांत से यह जानने की कोशिश की कि आख़िर उनके जीवन में ऐसा क्या हुआ कि वह अमरीका छोड़कर भारत अपनी मातृभूमि कोलकाता लौटे और वीडियो बनाकर लोगों को उनके खाने के प्रति जागरूक करने का काम शुरु कर दिया?
बता दें कि इससे पहले रेवांत अमरीका में मैकिंज़ी (McKinsey) जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में कंसलटेंट की नौकरी कर रहे थे। वहाँ नौकरी के साथ-साथ उन्होंने ‘सेल्फ़ीनोमिक्स’ (Selfienomics) नाम की क़िताब लिखी। क़िताब में विशेष रूप से एक अध्याय में उन्होंने उपभोक्ताओं को फूड पैकेट लेबल पढ़ने के लिए प्रेरित किया है।
“भारत दुनिया के लिए एक बाज़ार है और सभी कंपनी अपना रद्दी माल हमारे यहाँ खपाना (डंप करना) चाहती हैं। वे अपने प्रॉडक्ट्स में उन सस्ती साम्रगियों का इस्तेमाल करती हैं जो दुनिया में और कहीं इस्तेमाल नहीं कर सकतीं। ऐसे में बतौर उपभोक्ता यह जानना हमारी ज़िम्मेदारी है कि जो हमारे शरीर में जा रहा है, वह कितना लाभकारी या नुक़सानदेह है,” रेवांत ने कहा।
बीते साल अप्रैल से रेवांत ने विभिन्न कंपनी के खाद्य पदार्थों का रिव्यू शुरू किया, जिसका जहां एक तरफ़ सोशल मीडिया पर दर्शकों का समर्थन मिला; वहीं दूसरी ओर कंपनी (डाबर, पेप्सिको और मोंडलेज़) ने उनके ऊपर मुक़दमे करवाए।
भारत में जंक फ़ूड के बढ़ते चलन का नतीज़ा मोटापा, हृदयरोग और मधुमेह के बढ़ते मामलों में दर्ज़ किया जा रहा है। “जंक फूड को सेहतमंद बताकर मार्केट में बेचा जा रहा है, यह बड़ी समस्या है। मैं लोगों को जंक फ़ूड के संबंध में तथ्यपरक जानकारियाँ दे रहा हूँ,” रेवांत कहते हैं।
ग़ौरतलब है कि ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (2019) ने भी अपने शोध में पैकेट बंद खाद्य पदार्थों (अल्ट्रा प्रोसेस्ड) और कैंसर के बीच संबंध को लेकर चेताया था।
“ग़ौर करें कि हमारे बुज़ुर्ग क्या खाया करते थे। तब पैकेट बंद चीज़ों का चलन नहीं था, जबकि आज हर खाने-पीने की चीज़ पैकेट बंद है। हालाँकि उसे सेहतमंद बताकर हमें बेचा जा रहा है, लेकिन उसे बनाने में लगी साम्रगियाँ सेहत के लिए लाभकारी नहीं हैं,” रेवांत कहते हैं।
‘बॉर्नविटा’ को बदलाव के लिए किया मजबूर
मोंडलेज़ कंपनी के भारत में लोकप्रिय ब्रांड बॉर्नविटा का रिव्यू रेवांत का पहला वीडियो था जो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। उन्होंने अपने वीडियो में बताया कि मोंडलेज़ बॉर्नविटा में अत्यधिक सुगर का इस्तेमाल करता है, जो बच्चों के लिए हानिकारक है। रेवांत ने वीडियो में यह भी बताया कि बॉर्नविटा के अंदर इस्तेमाल होने वाले कुछ उत्पाद कैंसर के कारक भी हो सकते हैं।
वीडियो रिलीज़ होने के कुछ ही घंटों के भीतर मोंडलेज़ ने रेवांत को क़ानूनी नोटिस भेजकर वीडियो हटाने की अपील की। “मेरे पास मुक़दमे लड़ने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं थे, लिहाज़ा मैंने वीडियो हटा लिया,” रेवांत ने कहा।
मोंडलेज़ ने रेवांत की वीडियो चर्चित होने के बाद अपनी सफ़ाई में बताया कि बॉर्नविटा में कई तरह के विटामिन हैं। कंपनी ने कहा कि बॉर्नविटा में बच्चों के लिए प्रस्तावित सुगर की मात्रा से काफ़ी कम सुगर मौजूद है।
नोटिस मिलने पर भले ही रेवांत ने वीडियो हटा लिया हो, लेकिन तब तक वीडियो इतना लोकप्रिय हो चुका था कि लोगों ने उसे डाउनलोड करके व्हाट्सअप और अन्य सोशल मीडिया चैनलों पर डालना शुरू कर दिया था।
हालाँकि, मोंडलेज़ से नोटिस मिलने के बाद न्यूट्रिशन एडवोकेसी इन पब्लिक इंटरेस्ट इंडिया (NAPi India) ने रेवांत के समर्थन में स्टेटमेंट रिलीज़ किया। उसके बाद नेशनल कमीशन फ़ॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) ने मोंडलेज़ को नोटिस जारी किया। नतीज़न मोंडलेज़ ने अपने विज्ञापन और प्रॉडक्ट में बदलाव किया।
“इन छोटे-छोटे बदलावों का बड़ा असर पड़ता है,” रेवांत इसे जीत बतलाते हैं। वह कहते हैं कि इससे उन्हें अपना काम जारी रखने की प्रेरणा मिलती है।
Revant Himatsingka की सुगर बोर्ड मुहिम
रेवांत का मानना है कि आज भारत में होने वाली अधिकतर बीमारियों की जड़ में चीनी है। “दुःखद है कि स्वाद का मतलब हमारे लिए चीनी हो गया है। मार्केट में मिल रहे ज़्यादातर सॉफ़्ट ड्रिंक में चीनी की मात्रा मानक से अधिक है। 300 मिलीलीटर के ड्रिंक में 10 चम्मच तक चीनी का इस्तेमाल हो रहा है। यह मधुमेह के ख़तरे को बढ़ाता है,” वह कहते हैं।
लोगों को एक रियलिटी चेक देने के लिए रेवांत ने ‘सुगर बोर्ड’ की शुरुआत की। दरअसल, उनकी कोशिश है कि उपभोक्ता दिनभर में जितने भी तरह के सॉफ़्ट ड्रिंक ले रहा है उसे पता चले कि इस पेय पदार्थ के नाम पर वह कितनी चम्मच चीनी ले रहा है। मसलन, 300 मिलीलीटर कोका कोला में आठ चम्मच चीनी है, जबकि फ़्रूटी और फैंटा में 10 चम्मच चीनी की मात्रा होती है।
रेवांत की सुगर बोर्ड मुहिम काफ़ी चर्चा में है। ख़ासकर अभिभावकों के बीच इसकी बहुत सराहना हो रही है।
कड़कड़डुमा, नई दिल्ली में रहने वाली अर्चना गौतम ने मोजो स्टोरी को बताया कि रेवांत के इंस्टाग्राम से उन्होंने सुगर बोर्ड के बारे में जाना, यह आइडिया उन्हें इतना बढ़िया लगा कि उन्होंने उसी दिन एक चार्ट पेपर पर सुगर बोर्ड बनाया और फ़्रीज़ पर चिपका दिया।
वह आगे कहती हैं कि उन्होंने उनके दोनों बच्चों (एक छठी क्लास में और दूसरा आठवीं में) को सुगर बोर्ड के बारे में समझाया।
“पहले बच्चों को लगा कि मम्मी तो यूँ ही उन्हें चिप्स और कोल्ड ड्रिंक लेने से मना करती रहती हैं – यूट्यूब से कुछ सीखकर हमारे ऊपर पाबंदियाँ लगाई जा रही हैं। लेकिन, जब एक सप्ताह के अंदर उनके द्वारा खाये गए चिप्स और कोल्ड ड्रिंक का सुगर कॉन्टेंट कैल्क्यूलेट किया तब उन्हें लगा कि ये उनकी सेहत के लिए बुरा है। बच्चों ने ख़ुद ही आकर मुझसे कहा, मम्मी हम आगे से चिप्स और कंटेंट की जगह घर के रोस्टेड स्नैक खाया करेंगे,” अर्चना ने यह कहकर अपनी बात पूरी की।