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RML Special OPD: देश के पहले Transgender ओपीडी में क्या है ख़ास, ट्रांसजेंडर को इस पहल से कितनी है आस

डॉ राम मनोहर लोहिया (RML) अस्पताल प्रशासन का कहना है कि स्पेशल ओपीडी (Special OPD) को थर्ड जेंडर (Transgender) के प्रति समाज में झिझक ख़त्म करने की कोशिश के तर्ज़ पर भी देखा जाना चाहिए।


By Rohin Kumar, 30 Sep 2023


आरएमएल अस्पताल में ट्रांसजेंडर के लिए बना विशेष ओपीडी काउंटर।

बीते बुधवार को राम मनोहर लोहिया अस्पताल में ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक ‘विशेष पहल’ की गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन (17 सितंबर) के अवसर पर अस्पताल प्रशासन ने ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए स्पेशल ओपीडी की सुविधा शुरू की है। यह ओपीडी हर शुक्रवार को दो से चार बजे तक खुला करेगी। इसमें 10 से 12 डॉक्टरों का एक पैनल होगा जिसमें मेडिसीन, यूरोलॉजी, सायकेट्री, डर्मेटोलॉजी, पेडिएट्रिक्स आदि विभाग के विशेषज्ञ शामिल होंगे। ये चिकित्सक ट्रांसजेंडर समुदाय से पंजीकृत मरीजों का इलाज़ करेंगे।

जानकारी के अनुसार, अभी तक 24 ट्रांस समुदाय के लोगों ने इस ओपीडी की सेवा ली है। इस बात पर ग़ौर करना ज़रूरी है कि ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को अस्पतालों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है।

“अस्पतालों में जेंडर (लिंग) के बारे में सीमित जागरूकता के बीच ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक अलग ओपीडी बनाना सराहनीय क़दम है। हालांकि इसे कितनी ईमानदारी से निभाया जा सकेगा, यह सवाल बना रहेगा। क्योंकि सरकारी अस्पतालों में महिलाओं के संबंध में पर्याप्त जागरूकता होने के बावजूद उनके लिए स्वास्थ्य सुविधाओं की गुणवत्ता अभी भी स्तरहीन है,” डॉक्टर्स फॉर यू संस्था (बिहार चैप्टर) से जुड़ी डॉ. नीलम शर्मा ने कहा।

जेंडर संवेदनशीलता की ज़रूरत

“अच्छी पहल ही कहेंगे – बस दिक्कत है लोगों की नज़रों में। आपने हमारे लिए एक सुविधा की शुरूआत की है, लेकिन अगर हमें अस्पताल के कर्मचारी, दूसरे मरीज़, डॉक्टर आदि ही घूरेंगे तो हमें सहज तो महसूस नहीं होगा न?,” ट्रांस समुदाय से आने वाली गौरेया ने कहा। गौरेया राम मनोहर लोहिया अस्पताल के सिग्नल पर ही काम करती हैं। उन्हें अस्पताल प्रशासन की ओर से उद्धाटन के रोज़ बुलाया गया था। उस दिन का ज़िक्र करते हुए वह कहती हैं, “जैसे कोई मजमा लगा था, दूसरे मरीज़ हमें देखकर हंस रहे थे। अस्पताल के कर्मचारी हमसे अछूत जैसा व्यवहार कर रहे थे। हमारे लिए शुरू किए गए स्पेशल ओपीडी में अगर हमें अच्छा ही महसूस नहीं होगा तो हम कैसे इस सुविधा का लाभ ले सकेंगे?”

दरअसल सेवा भारती नाम की एक संस्था के प्रस्ताव के बाद ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए स्पेशल ओपीडी की सेवा शुरू की गई है। यह संस्था अस्पताल को मरीजों से कॉर्डिनेट करने में भी मदद कर रही है। जहां संस्था के लिए यह पहल उसके काम को पहचान दिलाता है, वहीं अस्पताल कर्मियों की उदासीनता इस पहल के सफल होने पर संशय पैदा करती है।

“ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए स्पेशल सुविधा शुरू हुई है इसका शोर तो बहुत है, लेकिन ज़रा इसको समझें। ओपीडी में हमने पंजीकृत करवा लिया, हमें संबंधित विभाग बता दिया गया। अब उस संबंधित विभाग में तो हमें सामान्य पंक्ति (लाइन) में ही लगना है। अगर हम उस लाइन में खड़े हो गए तो लोग ताने मारेंगे। हमारे लिए वार्ड भी कोई अलग नहीं है, न कोई डॉक्टर, न कोई विभाग। जब ये सब होगा तभी तो कह सकेंगे कि ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए कुछ सकारात्मक पहल की गई,” ट्रांस सेक्स वर्कर अबिना दास ने कहा। कलकत्ता की अबिना पिछले 10 वर्षों से दिल्ली में हैं।

“ऊंट के मुंह में जीरा देकर आप उसकी भूख मिटाने का दावा नहीं कर सकते,” अबिना ने जोड़ा।

अस्पताल में शुक्रवार के अलावा दूसरे दिनों में ट्रांसजेंडर ओपीडी का काउंटर नदारद मिलता है।

पहल पर प्रतिक्रियाएं

ट्रांस एक्टिविस्ट डॉ अक्सा शेख के मुताबिक़ यह पहल काफ़ी देर से हुई है और नाकाफ़ी भी है। “सुविधाएं ऐसी होनी चाहिए कि वह हर दिन मिलें; अगर ट्रांस समुदाय के लोगों को कोई दिक्कत हुई तो उन्हें स्पेशल ओपीडी का इंतज़ार न करना पड़े। अस्पताल प्रशासन को लिंग संवेदनशीलता (जेंडर सेंसेटाइजेशन) कार्यक्रम चलाने चाहिए, जिससे कि किसी भी ट्रांस व्यक्ति के लिए असहज होने की स्थिति न बने। चिकित्सकों की ज़िम्मेदारी है कि वह ट्रांस मरीजों को सहज महसूस कराएं। साथ ही जेंडर क्लिनिक बनाए जाने चाहिए, तब जाकर ट्रांस समुदाय का असली सशक्तिकरण हो सकेगा,” डॉ शेख ने कहा।

राम मनोहर लोहिया अस्पताल के मीडिया संयोजक शैलेश कुमार के अनुसार, “अभी स्पेशल ओपीडी एक ही दिन हुआ है। सभी के यह लिए पहली बार था तो कुछ असमंजस की स्थिति हुई होगी। थर्ड जेंडर हमारी प्राथमिकता है। अस्पताल प्रशासन समावेशिता का समर्थन करता है, इसलिए भी हमने यह पहल की। ऐसा नहीं है कि अगर शुक्रवार के अलावा किसी दूसरे दिन ट्रांसजेंडर जेंडर समुदाय के लोग आएंगें तो अस्पताल उन्हें वापस भेज देगा; उस दिन भी उनका इलाज़ किया जाएगा।”

नई पहल के सामाजिक दृष्टिकोण को समझने की अपील करते हुए शैलेश ने कहा, “स्पेशल ओपीडी को थर्ड जेंडर के प्रति समाज में झिझक ख़त्म करने और उन्हें मुख्यधारा में लाने की कोशिश की तर्ज़ पर भी देखा जाना चाहिए।”