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Waste Management: उज्जैन नगर निगम ने कचरा प्रबंधन को लेकर खड़ी की मिसाल, कचरे से बनी बिजली से रोशन हो रहे स्ट्रीट लाइट
मध्य प्रदेश में उज्जैन नगर निगम ने कचरा प्रबंधन को लेकर एक अनोखी पहल की है। वहाँ स्मार्ट सिटी के अंतर्गत बड़ी सब्जी मंडी में बने बायो मीथेनेशन प्लांट में कचरे से मीथेन गैस बनाने का काम किया जाता है। इससे एक तरफ़ जहाँ कचरे का सही प्रबंधन पर्यावरण को सुरक्षित रख रहा है, तो वहीं दूसरी ओर यह मीथेन गैस शहर की स्ट्रीट लाइट में बिजली देने का काम कर रही है।
20 Jan 2024 2:16 PM IST
वर्तमान समय में आए दिन पर्यावरण संबंधित नई-नई समस्याएं सामने आ रही हैं। ऐसी ही एक समस्या घर और होटलों से निकलने वाले ऑर्गेनिक और इनॉर्गेनिक कचरे (Waste) की है। यह दिक़्क़त केवल घरों से निकलने वाले गीले और सूखे कचरे की नहीं है, बल्कि इस कचरे का सही उपयोग करने की है। देश के प्रत्येक राज्य, शहर और गांव में इस समस्या का अलग निवारण है, लेकिन इसको लेकर मध्य प्रदेश (MP) के उज्जैन (Ujjain) नगर निगम ने एक अनोखी पहल की है।
वर्ष 2018 में उज्जैन स्मार्ट सिटी के अंतर्गत शहर की बड़ी सब्जी मंडी में 846 वर्ग मीटर में बायो मीथेनेशन प्लांट बनाया गया। प्लांट को लगाए जाने का मुख्य उद्देश्य शहर की कचरा संबंधित समस्या को हल करना था। वर्तमान समय में यह प्लांट शहर के 26 बड़े उद्योगों एवं होटलों से निकलने वाले जैविक और अकार्बनिक कचरे से मीथेन गैस बनाने का काम करता है। और, यह मीथेन गैस शहर भर में लगी स्ट्रीट लाइट को बिजली प्रदान करने का काम करते हैं।
कैसे बनती है कचरे से बिजली?
प्लांट के सुपरवाइजर इंजीनियर निर्झर शुक्ला ने एकत्रित किये गए कचरे से बायो मीथेनेशन प्लांट में गैस बनाने की पूरी प्रक्रिया को समझाते हुए बताया कि ऑर्गेनिक कचरे से मीथेन गैस दो चरणों में बनती है। सबसे पहले, होटल और रेस्टोरेंट से बचा हुआ या खराब खाना, फल और सब्जी के छिलके एवं अन्य कचरा इकट्ठा किया जाता है। उसके बाद पहले चरण में एकात्रित किए हुए ऑर्गेनिक वेस्ट की क्रशिंग की जाती है। इस प्रक्रिया में भी तीन चरण होते हैं – पहले चरण में इकट्ठा किये गए बचे हुए खाने, फल-सब्जी के छिलकों को मशीन में डालकर बारीक किया जाता है। बायो मीथेन गैस बनाने के लिए कचरे के मलीदे में कुछ नमी ज़रूरी होती है, नमी में कमी होने पर मलीदे में पानी मिलाया जाता है। उसके बाद यह अर्ध तरल पदार्थ के रूप में डाइजेस्टर में डाला जाता है।
निर्झर आगे कहते हैं, “दूसरे चरण में कचरे से बने हुए मलीदे को आवायवीय पाचन (Anaerobic Digestion) की मदद से मीथेन गैस (CH4) में तब्दील किया जाता है।”
क्या है आवायवीय पाचन की प्रक्रिया?
इसमें बचे हुए खाने, फल-सब्जी के छिलके एवं अन्य ऑर्गेनिक के अर्ध तरल मलीदे को डाइजेस्टर में डाला जाता है। डाइजेस्टर में यह मलीदा ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में मीथेन गैस में तब्दील हो जाता है। यह गैस डाइजेस्टर में इकट्ठा हो जाती है, जिसकी ऊपरी सतह पर वाल्व लगे होते हैं। जब डाइजेस्टर के अंदर गैस पूरी तरह से बन जाती है, तब उसके वाल्व को खोल दिया जाता है। इसके बाद मीथेन गैस डाइजेस्टर के पीछे लगे बलून में एकत्रित हो जाती है। उस मीथेन गैस के उपयोग से जनरेटर चलाया जाता है, जिससे निकलने वाली बिजली से शहर के स्ट्रीट लाइट काम करते हैं।
प्लांट पर काम करने वाले प्रशांत पटेल ने बताया कि बड़ी सब्जी मंडी स्थित बायो मीथेनेशन प्लांट पर केवल होटल और रेस्टरेंट से भारी मात्रा में निकला हुआ ऑर्गेनिक वेस्ट ही प्रोसेस किया जाता है। जबकि, घरों से निकलने वाले कचरे को शहर से थोड़ा दूर गोंदिया स्थित बायो मीथेनेशन प्लांट पर ले जाया जाता है। वहाँ सबसे पहले गीला कचरा और सूखा कचरा अलग-अलग किया जाता है। इसके बाद गीले कचरे को उसी प्रक्रिया से मीथेन गैस और खाद बनाने में उपयोग किया जाता है।
प्लांट पर काम करने वाले सहायक अजय जाटव ने बताया कि वह हर दिन कचरा गाड़ी की मदद से घरों से गीला और सूखा कचरा एकत्रित करते हैं। निगम की गाड़ी में लोगों को गीला और सूखा कचरा अलग-अलग करके डालने के निर्देश लगातार दिए जाते हैं, ताकि ऑर्गेनिक वेस्ट का आसानी से सही इस्तेमाल किया जा सके। लेकिन, आमतौर पर लोग गीला और सूखा कचरा एक साथ करके कचरा गाड़ी में डालते हैं जिससे कि आगे की प्रक्रिया जटिल हो जाती है।
Waste Management: प्लांट से हुए बदलाव
वर्ष 2018 में प्लांट लगने के पहले शहर से भारी मात्रा में निकलने वाला कचरा एक डंपिंग ग्राउंड में लाकर फेंक दिया जाता था। यह कचरा दुर्गंध फैलाने के साथ-साथ बीमारियों का कारण भी था। आवारा मवेशी इस कचरे में पड़ी फल एवं सब्ज़ियों को खाने से बीमार पड़ जाते थे। वहीं, बारिश के महीनों में हाल और भी बदतर हो जाते थे, क्योंकि तब डंपिंग ग्राउंड में पानी भर जाने से मच्छरों की संख्या बढ़ जाती थी जिसके फलस्वरूप डेंगू की समस्या का ख़तरा भी बढ़ जाता था।
जबकि, प्लांट लगने के बाद शहर में कचरा प्रबंधन (Waste Management) की समस्या का बेहतरीन उपाय निकल गया है। यह बायो मीथेनेशन प्लांट अब लगभग पांच टन ऑर्गेनिक वेस्ट से बनने वाली मीथेन गैस से प्रतिदिन तीन सौ यूनिट बिजली का उत्पादन करता है।
उज्जैन शहर की चिंतामन रोड निवासी फ़ातिमा बेग का कहना है कि बायो मीथेनेशन प्लांट बनने के पहले पूरी कॉलोनी के घरों से निकलने वाला कचरा उनके घर के नज़दीक फेंक दिया जाता था, इसके चलते धीरे-धीरे वह जगह डंपिंग ग्राउंड बन गई। ऐसे में घर के पास बनी नालियों का जाम हो जाना, कचरे की दुर्गंध, पानी का भराव आदि समस्याएं आम हो गई थीं। उनके अनुसार, प्लांट बनने के बाद उन सभी समस्याओं से निजात मिल गई है।
जानकारी के मुताबिक़, उज्जैन में बने इस प्लांट में वर्ष 2018 से लेकर 2023 तक 66,20,275 किलो ऑर्गेनिक वेस्ट से 1,21,517 यूनिट बिजली का उत्पादन किया जा चुका है।
निर्झर शुक्ला कहते हैं, “प्रत्येक शहर में बायो मीथेनेशन प्लांट लगाया जाना चाहिए, ताकि शहर भर से निकलने वाले कचरे को सही तरीक़े से उपयोग में लाया जा सके। उनका मानना है कि तकनीकी क्षेत्र में प्रत्येक दिन नवीनीकरण हो रहा है, ऐसे में घरों और होटलों से निकलने वाले कचरे को बिजली बनाने में उपयोग किया जाना पर्यावरण के लिए लाभदायक साबित हो सकता है”।
वहीं, उज्जैन स्थित जंतर मंतर वेधशाला के पर्यावरण संचार इकाई प्रमुख नवीन कुमार कहते हैं कि बायो मीथेनेशन प्लांट पर्यावरण के लिए अति लाभप्रद है। आवायवीय पाचन की प्रक्रिया से कचरे से मीथेन गैस बनाई जाती है जिससे पर्यावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा कम होती है।
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