Breakthrough

कौन हैं Mumtaz Khan जिन्हें अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ ने ‘राइजिंग स्टार ऑफ द ईयर’ के ख़िताब से नवाजा

आज मुमताज़ (Mumtaz Khan) को पूरी दुनिया जानती है, लेकिन उनके लिए यह मुकाम हासिल करना आसान नहीं था. मुमताज़ के माता-पिता कैसर जहां लखनऊ के तोपखाना बाज़ार में सड़क किनारे ठेले पर सब्जी बेचते हैं, जिसमें एक समय मुमताज़ ने भी उनका हाथ बंटाया है. हालांकि, अब मुमताज़ खान को इंडियन ऑयल में सहायक अधिकारी की नौकरी मिल गई है.


By Mohammad Sartaj Alam , 10 Jul 2023


जूनियर एशिया कप (2023) में भारतीय हॉकी टीम के जीतने के बाद विजेता ट्रॉफी के साथ मुमताज़ खान.

जूनियर एशिया कप (2023) जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा रहीं मुमताज़ खान ने श्रृंखला में छह गोल किए. महिला जूनियर एशिया कप के इतिहास में यह भारत की पहली जीत है. मुमताज़ ने अप्रैल 2022 में हुए जूनियर विश्व कप में भी हैट्रिक सहित पूरी श्रृंखला के दौरान आठ गोल किए.

लखनऊ की रहने वाली मुमताज़ के लिए यह सफ़लता हासिल करना आसान नहीं था. वह उनकी पांच बहनों, एक भाई व माता-पिता सहित एक कमरे के छोटे से घर में रहती हैं. कभी रिक्शा चलाकर परिवार का भरण-पोषण करने वाले उनके पिता हाल के कुछ वर्षों से सड़क के किनारे ठेले पर सब्जियां बेचते हैं.

“देश की उन कुछ खुशकिस्मत मांओं में से मैं एक हूँ जिनकी बेटियां देश का दुनिया भर में नाम रोशन कर रही हैं. मेरे परिवार के लिए इससे ज़्यादा गर्व की बात कोई हो ही नहीं सकती.”

उपरोक्त शब्द मुमताज़ की मां कैसर खान के हैं. उनके शब्दों में उस उपलब्धी को हासिल करने का आत्मविश्वास झलक रहा है, जिसकी बेटी ने हॉकी जैसे खेल के द्वारा दुनिया के सामने एक मिसाल कायम की. वह भी तब जब वे उस मुस्लिम समाज से हैं, जिसकी दयनीय सामजिक स्थिति पर विभिन्न रिपोर्टों के द्वारा हमेशा उंगलियां उठाई जाती रही हैं. अक्सर यह कहा जाता है कि मुस्लिम दिन-ब-दिन मुख्य धारा से पिछड़ते जा रहे हैं, लेकिन मुमताज़ की बड़ी बहन फरहा ख़ान ऐसा नहीं मानतीं.

वह कहती हैं, “मुस्लिम समाज के लोग आर्थिक रूप से कमज़ोर हो सकते हैं, लेकिन उन्हें पिछड़ा हुआ परिभाषित करना गलत है. उन्हें मौक़ा देकर तो देखिए, कामयाबी उनके क़दम चूमेगी. आप मुमताज़ का उदाहरण लीजिए. बिलकुल विपरीत परिस्थिति होने के बावजूद उसके जुझारूपन के कारण एक छोटे से स्कूल की टीम से शुरू हुआ उसका सफ़र उसे भारत की उस टीम तक पहुंचाने में सफ़ल हुआ, जिसने जून के महीने में महिला जूनियर एशिया कप जीता है.”

बहन फरहा (आगे दाएं में बैठी), मां कैसर (साथ खड़ी) एवं परिवार के अन्य सदस्य के साथ मुमताज़.

मुमताज़ के परिवार का संघर्ष

लखनऊ के तोपखाना बाज़ार में मुमताज़ खान का परिवार जिस घर में रहता है, उसी घर में उनके मामा व उनकी एक बेटी भी साथ रहते हैं – जो किराए के घर में रहने वाले मुमताज़ के परिवार को वर्ष 2000 में अपने घर ले आए.

वर्षों तक रिक्शा चलाकर परिवार के लिए दो जून के खाने की व्यवस्था करने वाले मुमताज़ के पिता हफीज़ ख़ान के गिरते स्वास्थ्य से फिक्रमंद मुमताज़ की नानी ने रिक्शा छोड़ कर उन्हें सब्ज़ी बेचने का मशविरा दिया. उसके बाद तोपखाना बाज़ार में सड़क के किनारे हफीज़ ख़ान व उनकी पत्नी कैसर जहां ठेले पर सब्ज़ी बेचने लगे, जहां अक़्सर मुमताज़ भी बग़ैर किसी झिझक के मां-पिता का हाथ बंटाया करती थीं.

उनकी बहन फ़राह बताती हैं कि मुमताज़ स्थानीय माध्यमिक विद्यालय में पढ़ाई कर रही थीं, जहां वह प्राइमरी कक्षा से ही खेलने लगीं. वह दौड़ की प्रतियोगिता में भाग लिया करतीं और अव्वल आतीं. उन्हें दौड़ने की मानो धुन सवार रहती थी.

मुमताज़ की अम्मी उनको खेलने के लिए मना करतीं और समझातीं कि पढ़ाई पर ही ध्यान दो, उसी से भविष्य बनेगा. चूंकि मुमताज़ पढ़ने में भी अच्छी थीं, इसलिए वह आरंभ में खेल को मनोरंजन की तरह लेतीं और पढ़ाई पर ध्यान भी देतीं.

वर्ष 2011 में मुमताज़ पांचवीं में थीं, उस दौरान वह स्कूल की स्पोर्ट्स टीम की तरफ से आगरा गईं; जहां उन्होंने दौड़ प्रतियोगिता में पहला स्थान हासिल किया.

फराह ख़ान के अनुसार, “आगरा में मिली कामयाबी मुमताज़ के जीवन का टर्निंग प्वाइंट था. आगरा से वापसी करने पर उनके स्कूल के स्पोर्ट्स टीचर ने कहा कि मुमताज़ तुम दौड़ती अच्छा हो, हॉकी खेलो.”

मुमताज़ की प्रतिभा को किसने पहचाना

मुमताज़ को हॉकी में निखारने वाली हॉकी कोच नीलम सिद्दीकी कहती हैं, “वर्ष 2013 में मुमताज़ स्कूल की ओर से केडी सिंह बाबू स्टेडियम आई थीं. वहां उनको खेलते हुए देखकर मैं समझ गई कि उनके अंदर अद्भुत प्रतिभा है. उनके अंदर स्पीड एंड्युरेंस की योग्यता प्राकृतिक रूप से मौजूद है, जो मुमताज़ को आज तक अन्य सभी हॉकी खिलाड़ियों से बेहतर करती रही है. मैं उस समय स्टेडियम में कोच थी, ऐसे में मैंने मुमताज़ को छात्रावास के लिए हो रहे हॉकी ट्रायल में भाग लेने के लिए प्रेरित किया. और, मुमताज़ ट्रायल में चुन ली गई.”

मुमताज़ का चयन तो हो गया, लेकिन घर में उनकी अम्मी तैयार नहीं थीं कि मुमताज़ हॉकी खेलें. दरअसल उनको रिश्तेदारों के द्वारा उलाहना मिलने लगी कि बेटी जैसे-जैसे बड़ी हो रही है, नेकर (शॉर्ट) पहन कर खेलती है. सगे संबंधियों की उन बातों से वह चिंतित रहतीं और मुमताज़ को समझाने की कोशिश करतीं कि बेटी हॉकी खेलना छोड़ दो.

मुमताज़ कहती हैं कि “अम्मी बहुत सीधी हैं. समाज में कौन क्या कहेगा, इस बात से विचलित हो जाती थीं. लेकिन पापा और फरहा आपी (बड़ी बहन) ने हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया और अम्मी को समझाया. यही वज़ह है कि मैं आज सफ़लता की ओर बढ़ रही हूं.”

फरहा कहती हैं, “दरअसल उस समय मुमताज़ की उम्र कम थी और अभ्यास के दौरान लड़कों के साथ भी खेला करती थी, ऐसे में लोग कहते कि देखो कैसर अपने बेटी को रोक नहीं रही हैं – समाज क्या कहेगा, लड़की शॉर्ट ड्रेस में लड़कों के साथ खेलती है. इस बात पर मैं अम्मी को समझाती कि अम्मी हम लोग तो कुछ बड़ा कर नहीं सके, मुमताज़ पर भरोसा रखिए. उसको खेलने का मौक़ा दें, वह जब एक दिन कामयाब होगी तो यही रिश्तेदार हम सभी पर फ़ख़्र करेंगे.”

मुमताज़ की अम्मी कहती हैं कि जैसे ही उसका चयन नेशनल हॉकी अकादमी के लिए हुआ, उन्हीं उलाहना देने वाले लोगों की भाषा बदल गई. अब वही लोग मुमताज़ की कामयाबी की मिसाल देकर अपने बच्चों को बेहतर करने के लिए प्रेरित करते हैं.

2018 में जूनियर ओलंपिक में मिली सफ़लता के बाद मुमताज़ ख़ान सीएम योगी व मंत्री रीता बहुगुणा से मिलने अपने पिता (मुख्यमंत्री के बगल में दाएं) व बड़ी बहन सहित पहुंची.

वर्ष 2018 में मुमताज़ के जूनियर ओलंपिक में सिलवर मेडल (रजत पदक) हासिल करने के बाद उनकी मुलाक़ात बहन फराह ख़ान और उनके पापा सहित उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से हुई.

फरहा कहती हैं, “मुख्यमंत्री ने मुमताज़ के योगदान की फाइल मांगी और पढ़ी. उसके बाद उन्होंने कहा कि आप आगे बढ़ो, हम आपके साथ हैं. उनका यह कहना मुमताज़ के लिए बड़ी बात है.”

मुमताज़ के अब तक के सफ़र पर एक नज़र

  • गर्ल्स अंडर-18 एशिया कप, 2016 : कांस्य पदक
  • बैंकॉक, यूथ ओलंपिक गेम्स क्वालीफायर (महिला), 2018 : रजत पदक
  • बेल्जियम में U23 छह राष्ट्र आमंत्रण टूर्नामेंट (महिला), 2018 : रजत पदक
  • युवा ओलंपिक खेल ब्यूनस आयर्स (महिला), अर्जेंटीना, 2018 : रजत पदक
  • हॉकी इंडिया असुंता लकड़ा अवार्ड फॉर अपकमिंग ऑफ द ईयर 2022 (महिला अंडर 21)

इसके अलावा, मुमताज़ को अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ (International Hockey Federation) ने महिला वर्ग में ‘राइजिंग स्टार ऑफ द ईयर’ (2021-22) के ख़िताब से नवाजा है.

फरहा, शहनाज़, तरन्नुम, सानिया व ममेरी बहन शीरीन में मुमताज़ ख़ान चौथे नंबर पर हैं, जबकि भाई अरमान सबसे छोटे हैं. तीन बहनों की शादी हो चुकी है, जबकि दो बहनें व भाई पढ़ाई कर रहे हैं. मुमताज़ ने लखनऊ स्थित स्थानीय माध्यमिक विद्यालय से हाईस्कूल व इंटर की पढ़ाई की, जबकि फिलहाल वह ग्वालियर के आईटीएम यूनिवर्सिटी से स्नातक कर रही हैं.

कोच राशिद अली ख़ान के साथ मुमताज़ ख़ान.

पांच महीने पहले सीनियर कैंप का हिस्सा बन चुकीं 20 वर्षीय मुमताज़ अंडर-21 वर्ल्ड कप की तैयारी भी कर रही हैं. उनका मानना है कि उनके कोच नीलम सिद्दीकी व राशिद ख़ान ने हॉकी के लिए उन्हें तराशा है. वर्ष 2016 से मुमताज़ भारतीय हॉकी के सब-जूनियर और अब सीनियर कैंप का हिस्सा हैं.

इंडियन ऑयल में जॉब मिलने से क्या बदला

मुमताज़ बताती हैं, “पहले परिवार में मम्मी-पापा सब्ज़ी बेचकर दो पैसे कमाया करते थे, लेकिन अब मैं भी उसमें सहयोग कर पाती हूं. मुझे पिछले साल अप्रैल में इंडियन ऑयल ने एक अच्छे पैकेज के साथ सहायक अधिकारी (असिस्टेंट ऑफिसर) के पद पर जॉब दिया. मैं बहुत खुशकिस्मत हूं कि जब मेरे पास कुछ नहीं था, तब इंडियन ऑयल ने मेरे लिए बहुत कुछ किया. अब मैं अपने मां-बाप का सहारा बनकर खड़ी हूं.”

“मेरे लिए यह सबसे बड़ी बात है कि मैंने मुस्लिम समाज से होते हुए सफ़लता हासिल की, ये मेरे लिए फ़ख़्र की बात है. अब मेरे समाज में जागरूकता आ गई है, आने वाले दिनों में मेरी जैसी बहुत सी लड़कियां आपको देश का नाम रौशन करती नज़र आएंगी.”

मुमताज़ आगे कहती हैं कि शुरुआत तो मनोरंजन के लिए की, लेकिन धीरे-धीरे हॉकी मेरा पैशन बन गया. “आरंभिक सफलता के बाद मुझे लगा कि हॉकी का खेल मुझे इस लायक बना देगा कि कहीं न कहीं मुझे नौकरी मिल जाएगी. पापा सब्ज़ी का ठेला लगाते हैं, मैं परिवार चलाने में उनकी मदद कर सकूंगी. मैंने सफ़लता भी पाई, लेकिन मैं सीनयर कैंप तक पहुंच जाऊंगी, इसके बारे में मैंने कभी नहीं सोचा था.”

उनकी सफ़लता पर माता-पिता की प्रतिक्रिया को लेकर मुमताज़ कहती हैं कि “मम्मी मुझ पर फ़ख़्र करती हैं, जबकि पापा शुरू से ही मुझे सपोर्ट करते थे. मैं ही उनके साथ दुकान पर जाया करती थी, इसलिए वह कहा करते थे कि यह बेटी नहीं बेटा बन गई है. वह अक़्सर कहा करते थे कि मुमताज़ एक दिन हमारा सहारा बनेगी, आज वह दिन आ गया.”

मुमताज़ आगे कहती हैं कि अल्लाह मुझे चोटिल होने से बचाए, ताकि एक दिन मैं भारत की सीनियर टीम का हिस्सा बनते हए देश का नाम रोशन कर सकूं.

कोच नीलम सिद्दीकी के साथ मुमताज़.

क्या कहना है मुमताज़ की कोच नीलम सिद्दीकी का

नीलम सिद्दीकी के अनुसार, भारत के दूसरे समाज की तरह मुस्लिम समाज के बच्चे भी जुझारू होते हैं और उनको मौक़ा मिलते ही वह सफ़लता हासिल कर लेते हैं. “मेरी समझ से परे है कि आख़िर क्यों मुस्लिम समाज में लड़कियों की अनदेखी की जाती है. आप मेरा उदाहरण लीजिए, मैं पिछले 20 साल से हॉकी कोच हूं. मुझे तो समाज में नहीं रोका गया कि आप लड़की हैं और हॉकी से नहीं जुड़ सकती हैं.”

वह कहती हैं कि खेल को लेकर लोगों में जागरूकता की कमी है, जैसे मुमताज़ की अम्मी के साथ था. हालांकि, उन्होंने समझदारी दिखाई और हम लोगों के द्वारा समझाए जाने पर मुमताज़ को हॉकी खिलाने के लिए तैयार हो गईं. ऐसा कदम यदि दूसरे परिवार भी उठाएं तो मुमताज़ जैसी प्रतिभाओं को सफ़लता मिलेगी.

“मुस्लिम समाज को पिछड़ा मान लेना गलत है, बल्कि उन्हें जागरूक करने की ज़रूरत है.”

नीलम सिद्दीकी आगे कहती हैं, “खेल की दुनिया में उत्तर प्रदेश आने वाले दिनों में दूसरे राज्यों को पीछे छोड़ देगा. उसका श्रेय आर पी सिंह को जाता है, जो राज्य स्पोर्ट्स के डायरेक्टर हैं. उन्होंने दूसरे खेलों की तरह हॉकी पर भी बहुत मेहनत की है.”