दुमका में स्थित Jharkhand का एकमात्र रेफरल पशु अस्पताल बदहाल, पशुपालकों के लिए पशुओं का इलाज कराना हुआ मुश्किल
सरकार एक तरफ पशुपालन को प्रोत्साहित करने की बात करती है, वहीं दूसरी तरफ़ राज्य के एकमात्र रेफरल पशु अस्पताल की स्थिति बदहाल है। यह स्थिति तब ऐसी है जब क्षेत्र के विधायक ख़ुद राज्य के पशुपालन मंत्री बादल पत्रलेख हैं।
रेफरल पशु अस्पताल, दुमका में स्ट्रीट डॉग का इलाज कराते हुए अंकित सिन्हा।
झारखंड सरकार (Jharkhand Government) पशुपालकों के आय में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए उन्हें मुफ़्त में मवेशी उपलब्ध कराती है एवं अन्य कई सुविधाएं देती है ताकि आजीविका चलाने में उन्हें दिक़्क़त न हो। बावजूद इसके दुमका ज़िले के रेफरल पशु अस्पताल बदहाल है। कम संसाधनों में कार्यरत आसपास के अस्पतालों से यहां मामले रेफर किए जाते हैं; जिस कारण इसे रेफरल अस्पताल कहते हैं। केवल एक डॉक्टर और चार कर्मचारी के भरोसे ज़िले के इस अस्पताल में किसी तरह से पशुओं का इलाज किया जाता है। ग़ौरतलब है कि यहां पशुओं और मवेशियों की जांच के लिए मशीन तो हैं, लेकिन टेक्नीशियन न रहने के कारण वह धूल फांक रही हैं।
पेशे से इंजीनियर अंकित सिन्हा हाल ही में कुछ दिनों की छुट्टियों में दुमका आए थे। इस दौरान एक बीमार स्ट्रीट डॉग के इलाज के लिए वह दुमका ज़िले के रेफरल पशु अस्पताल पहुंचे। वह बताते हैं, “जब हमने डॉक्टर के करीब स्ट्रीट डॉग को रखा तो उन्होंने मुझे डांट लगाते हुए कहा कि इसको दूर रखिए। जब सरकार वेटनरी डॉक्टर को सैलरी देती है, फिर वे पशुओं के साथ इस तरह का व्यवहार क्यों करते हैं?”
रेफरल पशु अस्पताल के अपने अनुभवों को साझा करते हुए अंकित कहते हैं, “हमें यह कहकर दवाइयां नहीं दी गईं कि अस्पताल में उपलब्ध नहीं हैं। एक दुकान का नाम बताया गया, जहां से हम दवा लेकर आए। इसके बाद भी, स्ट्रीट डॉग को पूरा इंजेक्शन नहीं दिया गया। इंजेक्शन के बॉटल में लगभग आधे से भी अधिक दवाई बच गई, जिसे अस्पताल कर्मचारी ने रख लिया।”
अंकित ने हमें बताया कि इस अस्पताल में वह पहले भी पशुओं का इलाज कराने आ चुके हैं। उन्होंने दुख व्यक्त करते हुए जानकारी दी कि “जिस स्ट्रीट डॉग का हमने आज इलाज कराया उसने दम तोड़ दिया,” अंकित ने रेफरल अस्पताल की स्वास्थ्य व्यवस्था पर प्रश्न खड़े किए।
पशु प्रेमियों के लिए एक अकेली उम्मीद यह अस्पताल
बदहाल चिकित्सा व्यवस्था के बावजूद दुमका का यह रेफरल पशु अस्पताल पशुपालकों और पशु प्रेमियों के लिए एकमात्र उम्मीद की किरण है, जहां घंटों इंतज़ार के बाद भी इलाज के नाम पर उन्हें निराशा ही हाथ लगती है। जबकि, पशु के इलाज में लगने वाली अधिकांश महंगी दवाई उन्हें बाहर से खरीदनी पड़ती हैं।
मवेशियों के उपचार के लिए लैबोरेट्री में जांच की व्यवस्था न होना भी पशुपालकों के सामने संकट पैदा करता है। साथ ही डॉक्टर द्वारा दुर्व्यवहार पशुपालकों को प्राइवेट कंपाउंडर से अपने मवेशियों का इलाज कराने के लिए मजबूर करता है। उल्लेखनीय है कि यह रेफरल पशु अस्पताल संथाल परगना प्रमंडल के दुमका ज़िले में एकमात्र ऐसा अस्पताल है।
रेफरल पशु अस्पताल के प्रभारी डॉ. रमन कुमार ठाकुर ने बताया कि अस्पताल में चिकित्सकों की कमी और लैब टेक्नीशियन के न होने के कारण ज़ाहिर तौर पर इलाज में दिक़्क़तें आती हैं। इस मामले में हमने कई बार पत्राचार के माध्यम से सरकार को इसकी जानकारी दी है, लेकिन रिक्त पदों की पूर्ति नहीं की गई।
वहीं, रमन कुमार से पशुपालकों द्वारा उन पर लगाए गए दुर्व्यवहार के आरोपों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “स्ट्रीट डॉग या पशुओं को हम टेबल पर थोड़े ही रखेंगे। जो लोग आरोप लगाते हैं, वे लिखित में शिकायत करें।”
झारखंड में योजनाएं अनेक मगर सिस्टम फ़ेल
झारखंड पशुपालन निदेशालय के अंतर्गत कई योजनाएं राज्य में चलाई जा रही हैं, जैसे; बकरा विकास योजना, सुकर विकास योजना, बैकयार्ड लेयर कुक्कुट योजना, ब्रॉयलर कुक्कुट पालन योजना, बत्तख चूजा वितरण योजना आदि। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि एक ओर सरकार गरीब़ तबकों के जीविकोपार्जन के लिए कल्याणकारी योजनाएं लेकर आ रही है और दूसरी तरफ़ बीमार पशुओं के इलाज के लिए पशुपालकों को ज़िले के एकमात्र रेफरल अस्पताल के चक्कर काटने पड़ रहे हैं, जोकि स्वयं ख़राब अवस्था में है।
रेफरल पशु अस्पताल की लचर व्यवस्था की बानगी तब और पुख़्ता हो जाती है जब शान्तनु शान अपनी व्यथा बताते हुए कहते हैं, “इस अस्पताल से मेरा नाता काफ़ी पुराना है। कई दफ़ा हमने यहां चक्कर काटे हैं, लेकिन इस अस्पताल की व्यवस्था हमेशा मासूम बेज़ुबानों की मुश्किलें बढ़ाती ही है। यहां चिकित्सक असंवेदनशील हैं।”
ज़मीन पर ही लिटाकर पालतू पशु का इलाज करते अस्पताल कर्मी (बाएं) एवं दाएं में इलाज के दौरान बैठा स्ट्रीट डॉग।
शान्तनु एक स्ट्रीट डॉग के इलाज के दौरान हमें रेफरल पशु अस्पताल में मिले। उनकी समस्याएं भी अलग नहीं थीं। उनका कहना है कि “दवाइयां हमें बाहर से लेनी पड़ती हैं और स्ट्रीट डॉग को यहां एडमिट भी नहीं किया जाता है,” शान्तनु ने अस्पताल प्रशासन पर आरोप लगाते हुए कहा कि “रजिस्ट्रेशन के नाम पर कभी 10 तो कभी 50 रुपये लिए जाते हैं और रसीद भी नहीं मिलती है।”
पशुपालकों और पशु सेवकों द्वारा रेफरल पशु अस्पताल के कर्मचारियों पर दवाइयों की अनुपलब्धता और रजिस्ट्रेशन फ़ीस के नाम पर लगाए गए वसूली के आरोपों पर डॉ. रमन कहते हैं, “दवाइयां आवंटित रहती हैं तो पशुओं के लिए दिया जाता है। अगर रजिस्ट्रेशन के नाम पर लोगों से पैसे लिए गए हैं, तो उन्हें शिकायत दर्ज़ करानी चाहिए।”
अस्पताल की सेवा से निराश पशुपालक
दुमका ज़िले में लगभग पिछले आधे दशक से स्ट्रीट एनीमल को रेस्क्यू कर अजीत ओझा उनका इलाज कराने का काम करते हैं। एनीमल रेस्क्यू के ख़र्च भी वह स्वयं वहन करते हैं। ज़िले में स्ट्रीट एनीमल के साथ होने वाली समस्या और पशु अस्पताल के हालातों पर अजीत की अच्छी पकड़ है। वह बताते हैं, “एक-दो स्ट्रीट डॉग को ज़ख़्मी अवस्था में देखकर उनका इलाज कराने के बाद से मेरी यह यात्रा आरम्भ हुई। शुरुआत में ज़ख़्मी स्ट्रीट डॉग को लेकर मैं रेफरल पशु अस्पताल जाता था, लेकिन वहां से बेहतर रिस्पॉन्स न मिलने के कारण अब उनका इलाज प्राइवेट कंपाउंडर से कराता हूं। दुर्भाग्य है कि ज़िले में रेफरल अस्पताल के होते हुए मुझे अपनी जेब से पैसे ख़र्च कर उनका इलाज कराना पड़ता है।”
अभिषेक कुमार पंडित दुमका ज़िले के गोपाल मंदिर रोड के समीप दूध का व्यवसाय करते हैं। उनके पास लगभग 15 गाय और भैस हैं। वह अपनी व्यथा का ज़िक्र करते हुए कहते हैं, “यदि मैं रेफरल पशु अस्पताल के भरोसे रहूं तो शायद मेरा धंधा बंद हो जाए। हमने रेफरल पशु अस्पताल जाना ही छोड़ दिया है। एक बार मेरी गाय बीमार हो गई थी तब हम रेफरल पशु अस्पताल गए, जहां डॉ. रमन कुमार ठाकुर मौजूद थे। मेरी गाय दर्द से चीख रही थी और डॉक्टर मुझे और मेरी माँ को डांट रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे हमने कोई गुनाह किया है। हमें दवाइयां अस्पताल से नहीं दी गईं, कहा गया कि शिव पहाड़ में एक मेडिकल दुकान है; वहीं से लेना।”
दुमका ज़िले के तेली पाड़ा के निवासी निरंजन मंडल दिहाड़ी पर दूसरे का टोटो रिक्शा चलाते हैं और घर में एक गाय और दो भैंस रखे हैं। वह कहते हैं, “इलाज के अभाव में पूर्व में मेरे दो बछड़े मारे गए थे। रेफरल अस्पताल में इलाज से इनकार करने के बाद हम घर आ गए, आर्थिक तंगी के कारण प्राइवेट कंपाउंडर से इलाज नहीं करा पाए और बछड़ों ने दम तोड़ दिया।”
इन सभी समस्याओं पर सरकार का पक्ष जानने के लिए हमने झारखंड (Jharkhand) के कृषि एवं पशुपालन मंत्री बादल पत्रलेख से संपर्क करने की कोशिश की, मगर कई बार फ़ोन करने पर भी उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। उल्लेखनीय है कि कुछ माह पहले बादल पत्रलेख ने दुमका में एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि “पशुपालकों के लिए सरकार चिंतित है। ऐसा देखा गया है कि कई बार अस्पताल पहुंचने से पहले ही पशुओं की मौत हो जाती है। इसके मद्देनज़र केन्द्र और राज्य सरकार के सहयोग से झारखंड में पशुओं के लिए एंबुलेस सेवा शुरू की जाएगी, जिसका आगाज़ दुमका ज़िले से होगा।”
पशुपालन मंत्री ने अपने संबोधन में कहा था कि एम्बुलेंस के लिए ‘108’ फ़ोन नंबर की तरह ही पशु एंबुलेस सेवा के लिए एक नंबर जारी किया जाएगा; लेकिन अभी तक यह सेवा शुरू नहीं हो सकी है। उन्होंने बताया, “जैसे ही पशुपालक कॉल करेंगे, पशु चिकित्सक के साथ रिसोर्स पर्सन की टीम पशुपालक के दरवाज़े पर पहुंचेगी। यदि पशुओं को रेफर करने की ज़रूरत पड़ी तो उसकी भी व्यवस्था की जाएगी।”
हालांकि, मंत्री द्वारा किया गया यह वादा अभी तक ठंडे बस्ते में पड़ा है। और, सरकार द्वारा दुमका के रेफरल पशु अस्पताल में महंगे उपकरण मुहैया कराने के बावजूद पशुपालकों की तकलीफ़ें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। यहां बगैर एक्सरे और अल्ट्रासाउंड के मवेशियों का इलाज भगवान भरोसे हो रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि केन्द्र और राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाएं पशुपालकों के जीविकोपार्जन में आख़िर कैसे मददगार साबित होंगी?
उक्त समस्याओं पर जब हमने झारखंड के कृषि एवं पशुपालन मंत्री बादल पत्रलेख से संपर्क करने की कोशिश की तो उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला।