ओलावृष्टि से आम की फसल को भारी नुकसान हो रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम चक्र में आ रहे बदलाव और सरकार की अनदेखी से बागवान निराश हैं।
ओलावृष्टि के कारण दागी हुए आम को दिखाते नारा-फरीदपुर के किसान।
आम की बागवानी हमारी कमाई का एकमात्र जरिया है। इस साल बागों में बौर भी काफी अच्छा आया था, जिससे हमें अच्छी पैदावार की उम्मीद थी। लेकिन ओलों की मार ने सब चौपट कर दिया। इससे हमें पांच लाख रुपये का घाटा हुआ है। इस नुकसान की भरपाई कैसे करेंगे, घर को कैसे चलाएंगे? कुछ समझ नहीं आ रहा। यह कहते हुए बागवान फिरासत खामोश हो जाते हैं।
बरेली के शाही कस्बे के बागवान फिरासत समेत उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में बागवान इसी तरह मायूस हैं। मार्च में हुई ओलावृष्टि ने आम की फसल को भारी नुकसान पहुंचाया है। जिले के मीरगंज एवं भोजीपुरा विधानसभा क्षेत्रों के सीमावर्ती इलाकों में छह से आठ किलोमीटर की रेंज में भारी ओलावृष्टि हुई है।
बागवान फिरासत बताते हैं, “मेरे होश में पहले कभी मार्च के महीने में इतने बड़े ओले नहीं गिरे थे, गिरते भी थे तो छोटे आकार के होते थे। इस बार 100 ग्राम तक के ओले गिरे हैं। इतने बड़े ओलों की मार छोटे-छोटे आम कैसे सह पाते? सारे आम ओलों की मार से झड़ गए। जो आम पेड़ों पर बचे भी थे, वह ओलों की चोट से दागी हो गए हैं। ओलावृष्टि इतनी तेज थी कि पेड़ों की पत्तियां भी झड़ चुकी हैं।
वह आगे कहते हैं, “न जाने मौसम कैसे रंग दिखा रहा है। कुल 70 बीघा क्षेत्र में फैले पांच बाग हमने ठेके पर लिए थे। बागों में बौर को देखते हुए 500 क्विंटल आम की पैदावार की उम्मीद थी, लेकिन अब 100 क्विंटल आम भी निकल आए तो बहुत है।
फिरासत का मानना है कि सरकार द्वारा हमारी आम की फसल को हुए नुकसान का सर्वे कराकर मुआवजा दिया जाना चाहिए। उनका कहना है, सरकार मदद नहीं करेगी तो कौन मदद करेगा?
आम के लिए प्रसिद्ध लखनऊ में भी ओलावृष्टि से आम की फसल को काफी नुकसान हुआ है। अवध आम उत्पादक एवं बागवानी समिति, नबीपनाह के महासचिव उपेन्द्र कुमार सिंह बताते हैं कि जिले के चार ब्लॉक – माल, मलिहाबाद, काकोरी एवं बख्शी में ओलावृष्टि के कारण आम की फसल को भारी नुकसान हुआ है। माल ब्लॉक में यह नुकसान 80 से 90 फीसद तक है।
उपेन्द्र आगे कहते हैं, “इस वर्ष बहुत अच्छा बौर आया था, अच्छी पैदावार की उम्मीद थी। 20 से 22 मार्च के बीच हुई ओलावृष्टि के बाद जब हमने अपने बाग देखे तो हमारे पांव तले से जमीन खिसक गई। ओलावृष्टि के कारण इतने बड़े स्तर पर नुकसान पहली बार हुआ है। फूल के फल में बदलने की प्रक्रिया मार्च में ही होती है। हमारे ध्यान में इस क्षेत्र में पहले कभी इस महीने में इतनी तेज ओलावृष्टि नहीं हुई है।”
ओलावृष्टि से आम की फसल नष्ट हो जाने के बाद लखनऊ के बागवानों ने मुआवजे की मांग करते हुए मुख्यमंत्री के नाम एसडीएम को ज्ञापन सौंपा है।
उपेंद्र कुमार सिंह के अनुसार, “हम लोगों ने सरकार को ज्ञापन के माध्यम से बागवानों को हुए नुकसान के बारे में अवगत करा दिया है। अब देखिए, सरकार हमें मुआवजा देती है कि नहीं।”
मौसम के कारण फसलों को हुए नुकसान के सर्वेक्षण के तरीकों पर सवाल उठाते हुए वह कहते हैं कि प्रत्येक ब्लॉक में मौसम विभाग का केंद्र है, जिसके पास मौसम की गतिविधियों से सम्बंधित सभी जानकारियां होती हैं। तो फिर, सरकार नुकसान के सर्वे के लिए सिर्फ एक लेखपाल पर क्यों निर्भर है? मौसम विभाग के केंद्र से आंकड़े क्यों नहीं लिए जाते?
उपेंद्र कुमार सिंह बताते हैं कि पहले तो बागवानों को फसल बीमा योजना में शामिल करने से ही मना कर दिया गया था। उन लोगों ने बीमा योजना में शामिल होने के काफी प्रयास किए, लेकिन उनके बागों का बीमा करने से बीमा कंपनियां और बैंक बचते रहे। उनकी ओर से बागवानों को सरकार की योजनाओं के बारे में न तो जागरूक किया जाता है और न ही प्रोत्साहित। सरकार भी बागवानों को लेकर उदासीन रवैया अपना रही है।
वर्ष 2017 में आम के निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए प्रदेश की भाजपा सरकार ने बागवानों को प्रोत्साहन राशि की घोषणा की थी। इसके बाद 2017-2018 में आम का निर्यात करने वाले बागवानों को ₹6/किलो की दर से प्रोत्साहन राशि दी गई थी, जिसके फलस्वरूप आम का निर्यात भी बढ़ा था। लेकिन, वर्ष 2019 में कोरोना काल के समय से ही यह निर्यात प्रोत्साहन नीति भी बंद कर दी गई है।
बरेली के नारा-फरीदपुर में हुई भारी ओलावृष्टि के कारण आम के पेड़ पर न तो फल बचे और न ही पत्तियां।
आम की फसल को हुए नुकसान की मुख्य वजहें जानने के लिए हमने केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान लखनऊ के निदेशक डॉ. टी. दामोदरन से बात की। वह बताते हैं कि तीव्र ओलावृष्टि, परागण प्रक्रिया ठीक से न होना, बारिश के कारण बौर में बीमारी लग जाना आम की फसल को हुए नुकसान के कारण हैं। जिन इलाकों में ओलावृष्टि हुई है, वहां के बागों में ज्यादा ही नुकसान हो गया है।
वह आगे कहते हैं, “जलवायु परिवर्तन का असर तो दिख ही रहा है। मौसम के पैटर्न में बदलाव, तापमान का तेजी से बढ़ना-घटना फसलों को प्रभावित कर रहा है। वहीं, बागों में गोबर खाद, वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग भी बहुत कम कर दिया गया है, जिस कारण परागण की प्रक्रिया भी प्रभावित हो रही है।”
आगे वे बताते हैं कि आम की फसल के नुकसान का सर्वेक्षण जारी है। केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ के अनुमान के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में आम की फसल को 25-30 फीसद तक नुकसान हुआ है।
ओलावृष्टि का कारण जानने के लिए हमने भारतीय मौसम विभाग के लखनऊ केंद्र में बात की। मौसम वैज्ञानिक दानिश बताते हैं कि जब एक बड़ा पश्चिमी विक्षोभ आकर गुजरता है, तब इस तरह की घटनाएं होती हैं। इस वर्ष मार्च में एक बड़ा पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय रहा है, इसी कारण मार्च में ओलावृष्टि एवं बारिश अधिक हुई है।
भारतीय मौसम विभाग द्वारा जारी आंकड़े के अनुसार, 5 मार्च से 22 मार्च के बीच भारत के 25 राज्यों एवं 4 केंद्र शासित प्रदेशों में ओलावृष्टि की घटनाएं हुई हैं।
भारतीय वायु सेना में जलवायु विज्ञान एवं मौसम विभाग के पूर्व निदेशक एवं मौसम विशेषज्ञ डॉ. एस एन मिश्रा बताते हैं कि ओलावृष्टि के कारण आम की फसल के नुकसान का मुख्य कारण इस बार ओलावृष्टि की टाइमिंग रही है। इस बार मार्च में ही काफी ओलावृष्टि हुई है। इस समय आम का फल बहुत छोटा था, ओले की मार से आम के फल झड़ गए। मार्च में मौसम का यह मिजाज असामान्य है।
वह आगे कहते हैं, “आमतौर पर ओलावृष्टि की घटनाएं 15 अप्रैल के बाद ही शुरू होती हैं। अप्रैल-मई में पश्चिमी विक्षोभ के आने पर गरजने वाले बादल (क्यूम्यलोनिम्बस क्लाउड) बनते हैं। इसी प्रक्रिया में बिजली का चमकना, गर्जन, आंधी, ओलावृष्टि, वर्षा जैसी मौसमीय घटनाएं होती हैं। इस तरह की मौसमी घटनाएं मई माह में अधिक प्रभावी होती हैं। मानसून आने के बाद से पश्चिमी विक्षोभ के कारण होने वाली ये मौसमी घटनाएं कमजोर हो जाती हैं।
एस एन मिश्रा बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन चरम मौसम की घटनाओं जैसे; बड़े तूफान, तेज ओलावृष्टि और बारिश, अत्यधिक सर्दी, अत्यधिक गर्मी जैसी घटनाओं की तीव्रता व आवृत्ति को बढ़ा रहा है। इन मौसमी घटनाओं के बदले पैटर्न के आंकड़ों का विश्लेषण किए जाने के बाद तथ्य अधिक स्पष्टता से सामने आएंगे।
मैरीलैंड यूनिवर्सिटी, अमेरिका (University of Maryland, America) एवं आईआईटी, मुंबई (IIT Bombay) से पृथ्वी प्रणाली वैज्ञानिक प्रोफेसर रघु मुर्तुगुड्डे मोजो स्टोरी (Mojo Story) को बताते हैं कि ओलावृष्टि कोई नई बात नहीं है, लेकिन यह याद रखना चाहिए कि वायुमंडल में ऊपर की ओर गर्म तापमान से ठंडे तापमान में जाने पर बारिश की बूंदों के जमने से ओलों का निर्माण होता है। एक गर्म जलवायु में वातावरण में नमी अधिक हो जाती है, इसलिए ऐसी ऊर्जावान प्रक्रियाओं की संभावना बढ़ जाती है। कुछ शोधों से पता चलता है कि गर्म जलवायु में ओलावृष्टि की आवृत्ति में कमी आई है, पर ओलावृष्टि की तीव्रता बढ़ी है।
उनके अनुसार, ओलावृष्टि के जलवायु परिवर्तन से सम्बंध को और गहनता से समझने के लिए पिछले दो दशक के आंकड़ों का गहन विश्लेषण किए जाने की जरूरत है।
ऑस्ट्रेलिया की दि यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यू साउथ वेल्स (UNSW Sydney) के द्वारा किये गए शोध अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन का ओलावृष्टि पर प्रभाव क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग हो सकता है। यह अध्ययन नेचर रिव्यूज अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुआ है।
अध्ययन में कहा गया है कि वायुमंडलीय तत्व ओलों को प्रभावित करते हैं। एक गर्म होती जलवायु के साथ अस्थिर वातावरण, ओलों के जमीन पर गिरने और वातावरण में पिघलने की मात्रा, हवा की गति, हवा की ऊंचाई आदि में बदलाव आएगा। इन बदलावों के चलते ओलावृष्टि की आक्रामकता बढ़ जाएगी। आक्रामकता बढ़ने के साथ ही होने वाला नुकसान भी बढ़ेगा।
डाउन टू अर्थ पत्रिका में मौसम एवं जलवायु परिवर्तन कवर करने वाले सीनियर रिपोर्टर अक्षित सांगोमला बताते हैं कि पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होने से जल-स्त्रोतों से वाष्पीकरण की प्रक्रिया भी तेजी से हो रही है। फलस्वरूप वायुमंडल में नमी की मात्रा बढ़ रही है। जब धरातल पर तापमान उच्च होता है, तभी आंधी, तूफान, ओलावृष्टि आदि मौसमीय घटनाएं आकार लेना शुरू करती हैं। धरातल पर गर्म दिनों में गर्म हवा अपने साथ नमी को लेकर ऊपर की तरफ गति करती है, ऊपर बढ़ने के साथ-साथ वायुमंडल के तापमान में कमी होती जाती है। ऊपरी वायुमंडल में ठंडी हवाएं बहती हैं, गर्म और ठंडी हवाओं की आपसी क्रिया के दौरान बादलों, आंधी-तूफानों और ओले के निर्माण की प्रक्रिया होती है। वायुमंडल के ऊपरी भाग में अत्यधिक निम्न तापमान में हवा द्वारा लाई गयी नमी ओलों में बदलने लगती है। वायुमंडल में नमी की मात्रा जैसे-जैसे बढ़ेगी आले का आकार और तीव्रता भी बढ़ेगी। इस तरह बढ़ रहा तापमान ओलावृष्टि की तीव्रता को बढ़ाने में सहायक है।
बहरहाल, बागवान एवं किसान मौसम के बदल रहे स्वरूप से स्थानीय स्तर पर प्रभावित हो रहे हैं। असामान्य मौसमी घटनाओं की आवृत्ति एवं तीव्रता भी लगातार बढ़ रही है। ऐसे में सरकार व अनुसंधान संस्थाओं को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए क्षेत्रीय स्तर पर किसानों और बागवानों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए नीति निर्माण, अनुसंधान एवं आवश्यक बदलाव करने की जरूरत है।