मोबाइल फ़ोन पर इंटरनेट के माध्यम से Advertisement के रूप में पहुंच रही Online Gambling platforms की जानकारी। जाने-अनजाने हुआ एक क्लिक बच्चों से लेकर ज़रूरतमंद युवाओं को पहुंचा दे रहा Referral Code की चंगुल में।
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जुआ, भारतीय समाज का सबसे तिरस्कृत खेल जिसे समाज में कभी स्वीकार्यता नहीं मिली। समाज ने हमेशा जुए का विरोध किया और जुआरियों को कभी भी अच्छी दृष्टि से नहीं देखा गया। इसके बावज़ूद यह खेल चलन में रहा और समाज का हिस्सा बना रहा। गांव-कस्बों में जुए से बर्बाद और आबाद होने के किस्से एक जैसे ही हर कालखंड में मौज़ूद हैं। समय परिवर्तन के साथ ताश के पत्तों से खेला जाने वाला खेल अब मोबाइल व इंटरनेट पर आधारित भी हो गया है। इसके बावज़ूद समाज में जुए को नैतिक स्वीकार्यता नहीं मिल सकी।
सूचना क्रांति के इस दौर में इंटरनेट और स्मार्टफोन ने भारत के गाँवों में अच्छी-खासी पैठ बना ली है। भले नेटवर्किंग की दृष्टि से यह अब भी बड़े स्तर पर फिसड्डी हो, मगर दुष्परिणाम के मामले में किसी शहर से पीछे नहीं है। उसी का एक नमूना भर है गांवों में ऑनलाइन गेमिंग के साथ गैंबलिंग का बढ़ता चलन। काफ़ी संख्या में ग्रामीण युवा इन वर्चुअल खेलों के शिकार हो रहे हैं, जिनकी रोकथाम के नियम-कायदे यानी रेग्युलेशन शून्य के लगभग हैं। ऐसे ही कुछ ग्रामीण क्षेत्रों के बारे में हम आगे इस स्टोरी में देखने वाले हैं, जहां आए दिन कोई अमीर और तो कोई गरीब हो जा रहा है – चांद घंटों में ही, केवल एक खेल से। मगर सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ़ एक खेल भर है या, इसके आड़ में कई आपराधिक गतिविधियां पनाह ले रही हैं।
पहले के ज़माने में जुआ खेलने के लिए एक अलग जगह तय की जाती थी; जहां सुरक्षा के साथ इस बात का भी ध्यान रखा जाता था कि जुआ खेलते हुए कोई देखे नहीं, ख़ासकर बच्चे और घर की महिलाएं। खेलने वाले भी इस सामाजिक ज़िम्मेदारी को समझते थे। लेकिन आज यह खेल तकनीकि के आने से इतना बदल गया कि अब खेलने के लिए न अलग जगह तय करने की ज़रूरत पड़ती है और न खेलने वालों को ढूंढना पड़ता है। आज किसी अन्य खेल की तरह ही लोग इसे भी जब चाहे तब मोबाइल पर खेल सकते हैं।
आज स्मार्टफ़ोन का इस्तेमाल करने वाले लोगों के मोबाइल पर तरह-तरह के विज्ञापन आते हैं, फ़ोन का इस्तेमाल करते हुए उनको यह विज्ञापन कहीं भी कभी भी किसी भी रूप में दिख सकते हैं। फ़ोन पर दिखने वाले इस तरह के विज्ञापनों में ज़्यादातर गेमिंग ऐप या फिर क्रिप्टो करेंसी और ऑनलाइन ट्रेडिंग से जुड़े कंपनियों के होते हैं। गेम वाले उन विज्ञापनों में अधिकतर ड्रीम इलेवन, माई इलेवन सर्किल, रमी सर्किल, जूपी जैसे कुछ प्रमुख कंपनियों के होते हैं। इन कंपनियों का प्रचार क्रिकेट और बॉलीवुड के स्टार कर रहे होते हैं, जिससे लोगों का ध्यान बरबस उनकी ओर चला जाता है।
विज्ञापनों में विराट कोहली, रोहित शर्मा, शाहरुख़ खान, महेंद्र सिंह धौनी, सौरव गांगुली जैसे कुछ बड़े नाम इनका प्रचार करते दिखते हैं, जिससे उन चीज़ों के प्रति एक विश्वास पैदा होता है। चूंकि प्रचार की दुनिया ही विश्वास पर टिकी हुई है, ऐसे में विज्ञापनों में स्टार प्रचारकों के अलावा कुछ ऐसे लोगों की कहानियां भी दिखाई जाती हैं जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि रातोंरात और जल्दी अमीर बनने का नुस्ख़ा उन ऐप पर गेम खेलने पर ही टिका हुआ है।
गेमिंग ऐप कंपनियां केवल विज्ञापन तक ही सीमित नहीं हैं। ऑनलाइन पेमेंट ऐप जैसे गूगल पे, फोन-पे आदि अपने ग्राहकों को लुभाने के लिए ट्रांजेक्शन के बदले में कुछ कूपन देती हैं। ग्राहकों को मिलने वाले कूपनों में शॉपिंग से लेकर खाने तक के कूपन होते हैं। उनमें भी कई कूपन गेमिंग ऐप पर ले जाने वाले ही होते हैं। उन कूपनों में गेमिंग ऐप पर रजिस्टर करने पर मिलने वाला बोनस सबसे आकर्षक है। यह संभावित गेमर्स को अपनी तरफ खींचने का प्रयास करता है।
दरअसल, ऑनलाइन गेमिंग भारत में तेज़ी से बढ़ता हुआ बाज़ार है, हर कोई व्यापार के लिहाज़ से इस बढ़ते हुए बाज़ार का फायदा उठाना चाहता है। ऐसे में गैम्बलिंग कपंनियां भी पीछे नहीं रहना चाहतीं और इसके लिए वह लोगों को लुभाने के लिए तरह-तरह की तरकीब अपनाती हैं।
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कुछ दिन पहले बुंदेलखंड क्षेत्र के मेरे एक दोस्त जगदीप (बदला हुआ नाम) का फोन आया और उसने मुझसे मेरे मोबाइल पर आया एक ओटीपी मांगा। बचपन का दोस्त होने के कारण बिना कुछ सोचे-विचारे मैंने उसको ओटीपी बता दिया। उसने लगातार तीन-चार बार ऐसा किया, हर बार मैंने उसे ओटीपी दे दिया। कुछ दिनों बाद जब वह मिला तो मैंने पूछा कि ये बार-बार ओटीपी क्यों मांगते हो? क्या करते हो इसका, कुछ बताओ तो, बात क्या है? उसने बताया, “वह ऑनलाइन तीन पत्ती” गेम खेलता है।
ऑनलाइन गेमिंग में रमी, तीन पत्ती या फिर वह खेल जो परंपरागत रूप में खूब प्रचलित हैं, उनका चलन बहुत ज़्यादा है; उसमें भी तीन पत्ती (ताश) का सबसे अधिक। इन खेलों के प्रचलित होने का कारण यह माना जाता है कि इन्हें हर कोई खेलना जानता है। इसके उलट उन्हें ऑनलाइन खेलने वालों में ज़्यादातार युवा हैं। इसका कारण यह बताया जाता है कि युवा मोबाइल और तकनीकि का प्रयोग बेहतर तरीके से जानते हैं। यही युवा पैसा कमाने के उद्देश्य से जुए के इन ऑनलाइन गेम्स में हाथ आज़मा रहे हैं।
जगदीप कहता है, ‘‘मेरे गांव में पंद्रह से तीस साल के ज़्यादातर लड़के ऐसे ऐप्स पर गेम खेल रहे हैं। आसपास के हर गांव में कुछ लड़के हैं जो इन खेलों के जरिए बहुत पैसा जीत चुके हैं”। आगे वह कहता है, ‘‘इन खेलों में ऐसा क्या है जो इतना चर्चा का विषय बना हुआ है यह जानने के लिए एक दिन मैंने भी खेलना शुरू किया। मेरी शुरुआत भी अच्छी हुई, पहले ही दिन कुछ हज़ार रुपये जीते। धीरे-धीरे यह मेरी रोज़ की दिनचर्या बन गई। ख़ाली समय में या फिर रात को सोने से पहले मैं हर रोज़ इस गेम को खेलने लगा। कुछ हज़ार रुपये गंवाने के बाद समझ आया कि मुझे इन खेलों की लत लग गई है।”
आठवीं तक पढ़ा निखिल (बदला हुआ नाम) बुंदेलखंड के ही एक ट्रेवल एजेंसी में ड्राइवर का काम करता है। बात करते हुए वह कहता है ”बहुत ज़्यादा पढ़ा-लिखा नहीं हूं, सो नौकरी तो मिलने से रही। घर चलाने के लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा, इसलिए जो भी काम मिलता है वह कर लेता हूं। इतना सब करने के बाद भी घर का खर्च़ बड़ी मुश्क़िल से निकल पाता है, इसलिए पैसा कमाने की हर मुमक़िन कोशिश करता हूं।”
गेम खेलने की शुरुआत कैसे हुई पूछने पर निखिल कहता है, “एक दिन फ़ुर्सत में बैठे हुए यूट्यूब पर कुछ देख रहा था, तभी मेरे व्हाट्सएप पर एक मैसेज आया। मैसेज खोला तो उसमें किसी गेमिंग ऐप का रेफरल था। जिसने भेजा था, उसने ऐप पर लॉगिन कर खेलने के लिए कहा था। उसमें भेजे गए लिंक से ऐप डाउनलोड करने और उस पर लॉगिन करने से मुझे और लिंक भेजने वाले को रेफरल के तौर पर पैसा मिलता, जिसको हम लोग गेम खेलने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।” उसने कहा कि हालांकि, रेफरल के इस मैसेज से पहले भी मैंने फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम पर उन ऐप का विज्ञापन देखा था। उसके बाद भी मेरा कभी जुआ खेलने का मन नहीं किया। मैं अपनी मेहनत की कमाई को जुए पर ख़र्च नहीं कर सकता था।
ख़ैर, आज की तारीख़ में 23 वर्षीय निखिल भी ऑनलाइन गेमिंग के एक्टिव प्लेयर में से एक है। जगदीप की ही तरह एक दिन उसने भी ओटीपी मांगा, बदले में उसने कुछ रुपये देने की बात भी कही। ओटीपी लेकर वह क्या करेगा, यह पूछने पर उसने बताया कि “यह ऑनलाइन तीन पत्ती गेम खेलने के लिए ज़रूरी है, क्योंकि वह अपनी आईडी से काफ़ी पैसे हार गया है। अब उन पैसों को वापस पाने के लिए वह अलग-अलग मोबाइल नंबरों का प्रयोग कर नई आईडी बनाएगा, जो उसे उसका हारा हुआ पैसा वापस दिला सकती हैं।”
ऑनलाइन गेमिंग के जरिये लाखों रुपये जीत चुका बुंदेलखंड क्षेत्र निवासी कपिल (बदला हुआ नाम) कहता है, ”ऑनलाइन गेमिंग से मैंने काफ़ी पैसा जीता है। उसी पैसे से घर बनवा रहा हूं, उससे ही बाइक और कार भी खरीदी है।” आगे वह कहता है, “पैसा आने के बाद मेरी जीवनशैली में बदलाव आया है, जोकि मेरी उम्र के लड़कों के लिए किसी सपने के पूरे होने जैसा है। आज के समय में पैसा ही सब कुछ है, अगर आपके पास पैसा है तो सब ठीक है। बिना इसके कोई पूछने वाला भी नहीं।”
कपिल का मानना है, ”पैसा कमाने में बुराई क्या है? ख़ाली बैठे रहने से तो अच्छा है कि मैं जहां से पैसा कमा सकता हूं, हर वह काम करूं। किसी के यहां चोरी-डकैती नहीं कर रहा हूं, वसूली नहीं कर रहा हूं, तो फिर मैं क्यों सोचूं पैसा कहां से आ रहा है। जब खिलवाने वालों को शर्म नहीं है तो फिर मैं खेलने में क्यों शर्म करूं? गेम कंपनियां अपना कमीशन लेती हैं, सरकार अपना टैक्स लेती है। मुझे नहीं लगता कि इसमें कुछ भी बुरा है।”
दूसरी ओर, प्रयागराज (पहले, इलाहाबाद) में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाला 28 साल का पुष्पेंद्र ऑनलाइन तीन पत्ती खेलते हुए दो लाख रुपये के करीब हार चुका है। अब परेशान है कि पैसे को चुकाएगा कैसे। चूंकि जुए में पैसे का नुक़सान हुआ है तो वह किसी से कह भी नहीं सकता, क्योंकि जुआरियों को कोई पैसे नहीं देता है। शुरुआत कैसे हुई और इतना पैसा हार जाने का कारण पूछने पर वह बताता है, ”पढाई के लिए घर से बाहर रहता हूं। कुछ काम करने का दबाव है, लेकिन कहीं कोई रोज़गार मिल नहीं रहा है। और, अब इस उम्र में अपने खर्च़ के लिए घर से पैसा मागंना अच्छा नहीं लगता है। ऐसे में खर्च़ निकालने के लिए पढ़ाई के साथ कुछ काम करने की कोशिश की, लेकिन पढ़ाई और काम एक साथ नहीं हो पा रहे थे। फिर काम करना तो छोड़ दिया, लेकिन बिना पैसे के घर से बाहर रह पाना भी मुश्क़िल हो रहा था। इस सब के बीच ही सबसे पहले आईपीएल के एक सीज़न में ड्रीम इलेवन ऐप पर क्रिकेट में थोड़ा सा पैसा लगाया। जब आईपीएल खत्म हुआ तो मैं कुछ हज़ार रुपये जीत चुका था। मगर आईपीएल से शुरु हुई यह लत रमी सर्किल जैसे ऐप तक पहुंच गई और अब ये हाल है कि दो लाख रुपये हार चुका हूं।”
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रमी सर्किल की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, तीन करोड़ से ज़्यादा लोग रमी सर्किल के ऐप और वेबसाइट पर पंजीकृत हैं। रमी सर्किल का यह आंकड़ा माय इलेवन सर्किल से अलग है। रमी सर्किल इलेवन और माई इलेवन सर्किल, गेम 24×7 प्राइवेट लिमिटेड द्वारा संचालित गेमिंग ऐप हैं। मालूम हो कि माई सर्किल इलेवन के ब्रांड एंबेसडर बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष सौरव गांगुली हैं।
वहीं, विंजो, ए-23 जैसे प्लेटफॉर्म भी गेमिंग इंडस्ट्री के बड़े प्लेयर हैं। इसके अलावा भारत में 900 के करीब गेमिंग प्लेटफॉर्म हैं जो पे-टू-प्ले गेमिंग प्लेटफॉर्मेट में सक्रिय हैं। ऑनलाइन गेमिंग भारत में बढ़ता हुआ बाज़ार है। गेमिंग फोकस्ड वेंचर कैपिटल फंड कपंनी लुमिकाई की रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत पैंतालिस करोड़ गेमर के साथ दुनिया में पहले नंबर पर है।
हाल की एक रिपोर्ट (Indian Gaming Industry Report 2022) के अनुसार, भारत का गेमिंग मार्केट 2.6 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। भारत में गेमिंग मार्केट की मौज़ूदा वृद्धि दर (CAGR) 27 प्रतिशत बढ़ गई है। अनुमान के मुताबिक़, इसके 2027 तक बढ़कर 8.6 अरब डॉलर की मार्केट बनने की संभावना है।
एक लड़का अपने मोबाइल पर ऑनलाइन गैम्बलिंग करता हुआ। Photo Credit: Aman Kumar
बुलदेनखंड का बारहवीं में पढ़ने वाला लल्लू कहता है, ”गेमिंग के जो ऐप्स हैं, वह भी पैसा कमाने के लिए ही हैं। ये कंपनियां क्यों चाहेंगी कि हर कोई पैसा जीते? इसलिए उन ऐप्स का एल्गोरिदम ही ऐसा सेट किया जाता है कि जब भी कोई नया गेमर खेलना शुरु करता है, तो उसके जीतने की संभावनाएं ज़्यादा होती हैं। इसके बाद वह धीरे-धीरे पैसा गंवाना शुरू करता है। इस तरह वह हार और जीत के बीच में फंस जाता है। आख़िर में वह देखता है कि वह पैसे हार चुका है, और गंवा दिए पैसे को वापस पाने के लिए वह लगातार खेलता जाता है।”
बुंदेलखंड में स्नातक प्रथम वर्ष का छात्र अरुण बताता है, ”साधारण तरीक़े से इन गेम्स में पैसा जीतना लगभग मुश्क़िल है, और हम तो पैसा जीतने के लिए ही खेल रहे हैं, इसलिए हर तरीका आज़माते हैं।” आगे वह कहता है, ”सबसे पहले तो हमने इन ऐप्स के पैटर्न को समझा। बहुत समय बाद एक पैटर्न समझ आया कि ज़्यादातर गेमिंग ऐप नए खिलाड़ियों को शुरुआत में पैसा जीतने देते हैं। यह इसलिए होता है कि जो लोग इन ऐप्स तक पहुंचे हैं, वे कुछ देर तक रुककर गेम खेलें। हमने इस तरीके से ही खेलना शुरू किया, जिसका नतीजा है कि हमने बहुत कम समय में ठीक-ठाक पैसा कमाया है।”
वह बताता है कि इस तरीक़े से खेलने के लिए हमें सबसे ज़्यादा जिस एक चीज़ की ज़रूरत थी, वह है बहुत सारे मोबाइल नंबर जिससे हम नई गेमिंग आईडी बना सकें। यह हमारे सामने सबसे बड़ी समस्या भी थी कि इतने सारे मोबाइल नंबर कहां से लाएं? कोई भी व्यक्ति एक समय में दो या तीन फ़ोन नंबर प्रयोग नहीं करता (भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण ‘TRAI’ के नियमानुसार, एक आधार कार्ड से अधिकतम 9 SIM Cards खरीद सकते हैं), जबकि हमें तो एक नंबर के यूजर आईडी का प्रयोग पांच से सात बार ही करना था। ऐसे में हम एक आईडी से कुछ घंटे ही गेम खेल सकते थे।
उसने बताया कि इस मुसीबत को दूर करने के लिए हमने अपने सभी जान-पहचान वालों के नंबरों का प्रयोग किया। ऐसा करने के दौरान जो हमसे कारण पूछता था उसको बता देते थे, और जो नहीं पूछता उसको बिना बताए ही उसका नंबर प्रयोग कर लिया करते थे। लेकिन यह तरीक़ा बहुत दिनों तक नहीं चल पाया, क्योंकि किसी के भी जान-पहचान वाले लोगों की संख्या सीमित ही होती है। इसको आज़माने के बाद हमने कुछ लोगों का पहचान पत्र लेकर सिम खरीदना शुरू किया। मगर यह तरीक़ा भी बहुत कारगर नहीं था, क्योंकि कोई भी इतनी आसानी से अपने निजी दस्तावेज़ देने को तैयार नहीं होता।
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खेल में नए-नए मोबाइल नंबरों की ज़रूरत को लेकर अरुण बताता है, “इन सब परेशानियों से बचने के लिए हमने सीधे सिम बेचने वाले दुकानदारों से बात की, जो हमें तीन सौ से पांच सौ रुपये लेकर सिम देने को तैयार थे; वह भी बिना किसी पहचान पत्र के। हमारे लिए इससे अच्छा क्या होता। सबकुछ हमारे हाथ में था, हम बिना किसी समस्या के गेम खेल सकते थे। दुकानदार हमें सिम देते और हम उनका प्रयोग कर उन्हें रद्दी में डालते जाते। इस तरीक़े से हमने लाखों रुपये की सिम खरीदी। यह तरीक़ा हर उस व्यक्ति ने अपनाया जो ऑनलाइन गेम खेल रहा था।”
गेम खेलने के लिए ज़रूरी ओटीपी के लिए लाखों रुपये के सिम खरीद चुका बुंदेलखंड का हनी (बदला हुआ नाम) कहता है कि ऑनलाइन गैम्बलिंग तकनीकि पर आधारित जुआ है जिसे कोई भी कहीं खेल सकता है। इसमें न लोगों को एक साथ एक जगह जुटाने की समस्या है और न सुरक्षा जैसे मसलों का ध्यान रखने का झंझट। ऑनलाइन खेलते हुए सामने बैठकर जुआ खेलने में होने वाली समस्याएं भी नहीं हैं। हर किसी के हाथ में मोबाइल है, अपने फ़ोन में कौन क्या कर रहा है इससे किसी को कोई मतलब नहीं है। किसी जगर पर पारंपरिक तरीक़े से बैठकर जुआ खेलने पर तो हमेशा डर ही लगा रहता था कि कोई देख न ले, पुलिस का डर अलग होता था।
हनी बताता है कि गेम खेलने के लिए ज़्यादा सिम कार्ड खरीदना भी अपने आप में एक समस्या है। इससे बचने के लिए हमें दुकानदारों ने ही एक तरीक़ा सुझाया कि अगर हम (गेमर्स) चाहें तो वे जिन ग्राहकों को सिम बेच रहे हैं, उनसे ओटीपी दिलाने का बंदोबस्त कर सकते हैं। हमारे लिए यह तरीक़ा सबसे आसान और सस्ता भी था।
बुंदेलखंड में मोबाइल एक्सेसरीज की दुकान चलाने वाले भरत कुमार राजपूत (बदला हुआ नाम) फर्जी तरीक़े से सिम बेचने के सवाल पर कहते हैं, “हां, ऐसा हो रहा है”। कारण बताते हुए वे कहते हैं कि इसके पीछे सिम कपंनियों का दबाव है, जिसमें ज़्यादा सिम बेचने वाले को ज़्यादा फ़ायदा दिया जाता है। ऐसा न करें तो एक सिम पर मिलने वाले दस-पंद्रह रुपये कमाकर ही काम करते रह जाएंगे, जोकि बहुत कम है। भरत बताते हैं कि एक आईडी से कई सिमें निकालना, फिर ज़्यादा पैसा लेकर दूसरे लोगों को बेच देना; यह कम समय में अधिक कमाई का आसान तरीक़ा है।
समाजविज्ञानी रमाशंकर सिंह कहते हैं कि पैसे से खेले जा रहे ऑनलाइन गेम पुराने तरीकों का बदला हुआ स्वरूप है। मानव स्वभाव से लालची रहा है, और वह हर हाल में पैसा कमाना चाहता है। सिंह ऋगवेद का उदाहरण देकर कहते हैं कि उस समय की अर्थव्यवस्था आज के जैसी नहीं थी। गाय और पुत्र सबसे बड़ा धन था, लेकिन उस समय भी लोग जुआ खेलते थे। ऑनलाइन गेमिंग और तकनीकि ने लोगों की दबी आकांक्षाओं को बाहर ला दिया है। यहां वे अपनी पहचान को ज़ाहिर किए बिना जुआ खेल सकते हैं। इसमें शामिल ज़्यादातर वही लोग हैं जो जल्दी पैसा कमाना चाहते हैं, लेकिन वे सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण सामने आकर जुआ, सट्टा नहीं खेल सकते।
ऑनलाइन गेमिंग के बढ़ते असर पर मीडिया अध्येता विनीत कुमार कहते हैं, “गेमिंग, डिजिटल मीडिया पर ‘Way Of Expressions’ का Fusion है, जो पुराने सभी तरीकों का मिला हुआ रूप है। यह मनोरंजन के साथ कमाई का साधन भी बन रहा है। ऑनलॉइन गेमिंग में होने वाली रिस्क से जो एंटरटेनमेंट पैदा होता है, उससे लोगों को किक मिलती है। पहले यह जुआ, लॉटरी जैसी चीज़ों में मिलती थी। औसतन लोग बारह से चौदह घंटे ऑनलाइन या डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अवेलबल रहते हैं, जिसकी वज़ह से गिल्ट भी होता है। इस एहसास से बचने के लिए वे सोचते हैं कि इससे ही कुछ सोर्स ऑफ़ इनकम बन जाए। वहीं, समाज में रोज़गार और मनोरंजन की संभावनाएं बहुत तेज़ी से ख़त्म हुई हैं। अब लोग हर चीज़ के लिए इंटरनेट पर निर्भर हैं। जिसे हम मनोरंजन कह रहे हैं, वह दरअसल एडिक्शन है और उसके बीच से निकला छोटे आकार का बिज़नेस मॉडल गैम्बलिंग है।”
इसके आगामी नतीज़ों पर बात करते हुए विनीत कहते हैं, “कम उम्र वालों के लिए तो यह ट्रैप जैसा है। स्कूल में पढ़ने वाले जो बच्चे बुलिंग के कारण आत्महत्या की कोशिश तक कर लेते हैं, वे लाख़-दो लाख़ रुपये गंवाने पर ऐसे कदम नहीं उठाएंगे इसकी क्या गारंटी है? आगे वे कहते हैं, आने वाले समय में समाज में हर जगह डिप्रेशन से घिरे लोग होंगे और वही लोग अपराध के चंगुल में फंसे हुए मिलेंगे या उसी अपराध का शिकार होंगे।”
इंदौर हाईकोर्ट के वकील विभोर खंडेलवाल कहते हैं, “इन खेलों को नियंत्रित करने के लिए अभी तक भारत में कोई केंद्रीय क़ानून नहीं है। जो भी क़ानून हैं, वे पुराने क़ानूनों (पब्लिक गैम्बलिंग एक्ट 1867) के आधार पर हैं। ऑनलाइन गेमिंग को दो भागों, स्किल और चांस के आधार पर बांटा गया है; पहला चांस (तुक्के) पर आधारित खेल, जिसे गैम्बलिंग माना गया है और इस पर प्रतिबंध है। दूसरा कौशल आधारित गेमिंग, जिसे कानूनी वैधता प्राप्त है।
खंडेलवाल आगे कहते हैं, क़ानूनी रुप से खेलों पर नियमन राज्य सरकार का विषय है। इसके आधार पर ही ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों ने अलग-अलग मुद्दों के आधार पर ऑनलाइन खेलों को प्रतिबंधित किया हुआ है। वहीं, तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने राज्य सरकार के एक अध्यादेश को मंजूरी दी है जो राज्य में ऑनलाइन गेमिंग को अवैध घोषित करता है। इसके उलट केरल और कर्नाटक की अदालतों ने राज्य सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को अपने आदेश में पलट दिया।
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गैर सरकारी संस्था ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन (AIGF) ऑलनाइन गेमिंग ऐप्स का नियमन करती है। उनकी आधिकारिक वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक़, सभी गेमिंग प्लेटफॉर्म इसके अप्रूवल के बाद ही गेमिंग के व्यापार में आ सकते हैं। इन ऐप्स के लिए एआईजीएफ की सील को प्रदर्शित करना ज़रूरी है। एआईजीएफ के गेमिंग चार्टर के मुताबिक़ ऑनलाइन खेले जा रहे सभी प्रकार के गेम फैंटेसी, रमी और पोकर कौशल पर आधारित हैं, इसी आधार पर उनका नियमन किया जाता है।
वहीं, भारत में जुए की रोकथाम के लिए जो वर्तमान क़ानून है; वह अंग्रेजों के ज़माने का बना ‘पब्लिक गैम्बलिंग एक्ट 1867 है, जो पब्लिक गैम्बलिंग में सज़ा का प्रावधान करता है। उस समय के हिसाब से इस कानून में जो प्रावधान किये गए हैं, वह 600 सौ रुपये के दंड और एक साल की सज़ा तक सीमित हैं। क़रीब डेढ़ सौ साल बाद आज इन पुराने क़ानूनों के हिसाब से गैम्बलिंग को रोक पाना बमुश्क़िल है।
सूचना क्रांति के दौर में डेढ़ सौ साल पुराने क़ानून से नियंत्रण संभव न कर पाने के कारण वर्तमान में राज्य सरकारें अपने हिसाब से प्रावधान कर रही हैं। लेकिन इसमें उनके बनाए क़ानून भी बहुत प्रभावी नहीं हैं, इसका कारण है कि आईटी एक्ट से जुड़े नियम और क़ानून सूचना एंव प्रसारण मंत्रालय बनाता है जो केंद्र सरकार के अंतर्गत आता है।
बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने 3 दिसंबर, 2021 को राज्यसभा में एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश करते हुए ऑनलाइन गेमिंग के नियमन के लिए कानून बनाने की मांग की थी। बिल पेश करते हुए उन्होंने कहा, “ऑनलाइन गेमिंग एक बड़ी लत बनता जा रहा है। मैं इस बात को रेखांकित करना चाहूंगा कि क्रिप्टो इंडस्ट्री की तरह इस क्षेत्र में भी नियामक ख़ामियां हैं। मैं सरकार से ऑनलाइन गेमिंग पर एक समान टैक्स लाने का आग्रह करूंगा। साथ ही मैं सरकार से आग्रह करता हूं कि ऑनलाइन गेमिंग के लिए नियमन का एक व्यापक ढांचा बनाया जाए।”
बीते एक फरवरी को सरकार ने बज़ट 2023 में ऑनलाइन गेमिंग से जीती कुल राशि पर 30 फ़ीसदी टैक्स लगाने का प्रस्ताव पारित किया है। आम बजट 2023-24 में ऑनलाइन गेमिंग पर टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स (TDS) के लिए दो नए प्रावधानों को लाने का प्रस्ताव किया गया है। इनमें एक वित्त वर्ष में कुल जीती गई राशि के भुगतान पर 30 फ़ीसद टैक्स लगाने और दूसरा, टीडीएस लगाने के लिए 10,000 रुपये की मौज़ूदा सीमा को हटाने का प्रावधान शामिल है।
बीते साल अप्रैल में लोकसभा में ऑनलाइन गेमिंग (रेग्युलेशन) बिल पेश किया गया था, जिसमें ऑनलाइन गेमिंग कमिशन के गठन की मांग की गई थी। सरकार ने इसके लिए दो टास्क फोर्स का गठन किया था, जो इससे जुड़े अलग-अलग मुद्दों पर अपनी राय देंगे। ऑनलाइन गेमिंग को नियंत्रित करने के लिए एक इंटर-मिनिस्ट्रियल टास्क फोर्स का गठन किया गया, जो ऑनलाइन गेमिंग से जुड़े केंद्रीय कानून बनाने को लेकर सुझाव देगी।
टास्क फोर्स की सिफ़ारिश में कहा गया कि 1867 का पब्लिक गैम्बलिंग एक्ट मौज़ूदा समय में इसे कवर तो करता है, लेकिन डिजिटल गतिविधियों और हर रोज़ विकसित होती तकनीकों से निबटने में सक्षम नहीं है। इसके लिए एक केंद्रीय नियामकीय निकाय गठित करने का भी प्रस्ताव दिया गया, जो ऑनलाइन गेमिंग में स्किल आधारित और चांस पर आधारित खेलों को परिभाषित करेगा। इसके साथ ही निकाय ऑनलाइन गेमिंग को धन-शोधन निवारण अधिनियम (Prevention of Money Laundering Act, 2002) के दायरे में लेकर आएगा।