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सेक्स वर्कर्स के लिए क्यों असभ्य है ‘सभ्य’ समाज

बीते तीन-चार दिन पहले राजस्थान के अजमेर में एक सेक्स वर्कर की संदिग्ध हालत में लाश मिली। एक सेक्स वर्कर के अनुसार, मौत का सही कारण जानने के लिए पुलिस ने उसका पोस्टमार्टम कराना भी जरूरी नहीं समझा।


By Prince Mukherjee , 30 Apr 2023


प्रतीकात्मक फोटो

नेशनल नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर्स (NNSW) ने अपने एक बयान में कहा कि कोरोना संक्रमण के दौरान सेक्स वर्कर्स को अपने परिवार द्वारा बहुत अधिक शोषण का सामना करना पड़ा था। इसकी एक बड़ी वजह थी महामारी के दौरान उनके काम का ठप्प हो जाना। मगर क्या सेक्स वर्कर्स का शोषण सिर्फ उनके परिवार के लोग ही करते हैं? तो इसका जवाब मिलता है – नहीं।

पुलिस हम सेक्स वर्कर्स से पैसे मांगती है, और नहीं देने पर ग्राहक बनकर आती है और हमें ब्लैकमेल करती है। पुलिसकर्मी हमारे साथ मारपीट करते हैं। ये शब्द हैं राजस्थान के अजमेर ज़िले के सेक्स वर्कर सुल्ताना के। यह कहते हुए उनकी आंखें नम हो जाती हैं। वह कहती हैं, “इस धंधे में हमें प्रेस और पुलिस वालों को पैसा खिलाते रहना पड़ता है।”

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना के दौरान सेक्स वर्कर्स को होने वाली परेशानियों को लेकर दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान कहा था कि सेक्स वर्कर्स भी कानून के तहत गरिमा और समान सुरक्षा के हकदार हैं।

जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने सेक्स वर्कर्स के अधिकारों को सुरक्षित करने की दिशा में निर्देश जारी करते हुए कहा था कि इस देश के हर नागरिक को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार मिला है। अगर पुलिस को किसी वजह से सेक्स वर्कर्स के घरों पर छापेमारी करनी पड़ती है, तो उनको गिरफ्तार या परेशान न करें। पीठ ने कहा, अपनी सहमति से सेक्स वर्कर बनना अवैध नहीं है। केवल वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है।

बीते दिन एक और जान गुमनाम

अजमेर के दोराई के पास रेल की पटरी पर 3-4 दिन पूर्व एक लाश मिली जिसके गले में कई निशान थे। जब लाश की पहचान हुई तो पता चला यह सीमा की लाश है, जो अजमेर के वैशाली में रहती थीं और पेशे से सेक्स वर्कर थीं। 40 वर्षीय सीमा अपने पीछे एक 11 साल की बेटी छोड़ गई हैं।

सुल्ताना बताती हैं, “जब सीमा की लाश मिली तब मैं अजमेर में नहीं थी, लेकिन सेक्स वर्कर दीदी के माध्यम से मुझे पता चला कि सीमा एक ग्राहक के साथ गई थी और उसके बाद इस हालत में उसका शव पाया गया। साफ तौर पर यह मर्डर है, लेकिन पुलिस ने शव का पोस्टमॉर्टम भी नहीं कराया।”

इस बारे में जानने के लिए जब हमने रामगंज थाने के हेड कॉन्सटेबल सुनील कुमार से बात करने की कोशिश की, तो हमें बताया गया कि वह राउंड पर गए हैं। जब हमने सीमा के बारे में पूछा तो वहां से प्रतिक्रिया मिली कि “इस बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है।”

वहीं, सुल्ताना द्वारा पुलिस पर सेक्स वर्कर्स को ब्लैकमेल करने के आरोप लगाए जाने को लेकर हेड कांस्टेबल ने कहा कि ना तो हम और न ही थाने का कोई पुलिसकर्मी सेक्स वर्कर्स को टॉर्चर करता है, ये आरोप बेबुनियाद हैं।

‘समाज’ को सेक्स चाहिए, वैश्या नहीं

सलमा, जो कि ऑल इंडिया नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर्स की सक्रिय सदस्य हैं, वह कहती हैं, “लॉकडाउन में तो कई रोज हमें दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हुई। मैंने सब्जी बेचना शुरू किया तो पुलिस वालों ने मुझे परेशान करना शुरू कर दिया। मैं ठेला लगाती थी और पुलिस वाले आकर ठेला पलट देते थे। तंग आकर मैंने सब्जी बेचना ही बंद कर दिया।”

शाहीन कहती हैं, “हर कोई हर किसी की मदद करता है, मगर हम सेक्स वर्कर्स की मदद कोई नहीं करता। लॉकडाउन खत्म हुए दो साल हो गए, मगर आज भी हमें ग्राहकों के लिए जद्दोजहद करना पड़ता है। जो ग्राहक पहले 2000 रुपये देते थे, वे आज 300-400 भी मुश्किल से देते हैं।”

यूएन गैप (UN GAP) की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में सेक्स वर्कर्स की संख्या 8,68,000 है, जिनमें से 2.8 प्रतिशत सेक्स वर्कर्स एचआईवी से ग्रसित हैं।

अजमेर की सेक्स वर्कर पूनम, पुलिस की क्रूरता के बारे में कहती हैं, “एक रात मैं ग्राहक के घर जा रही थी। रास्ते में गश्त पर निकली पुलिस की गाड़ी से एक कॉन्सटेबल ने मुझे बुलाया, गालियां दीं और एक-एक कर तीन पुलिसवालों ने मेरा रेप किया।”

पूनम कहती हैं कि “मैं अगर थाने में जाकर कहूंगी कि मेरा रेप हुआ है तो लोग मेरा मजाक उड़ाएंगे। क्योंकि हम तो सेक्स वर्कर हैं, कोई भी कभी भी हमारा रेप कर सकता है।”

दोराई के पास रेल की पटरी पर मिली सीमा की लाश से अजमेर की सेक्स वर्कर्स कम्युनिटी में खासी नाराजगी है। सुल्ताना का कहना है कि जब नेताओं को वोट चाहिए होता है तो हमें ढूंढकर हमारा वोटर कार्ड बनवाया जाता है, और जब जरूरत खत्म हो जाती है तो हमें मरने के लिए छोड़ दिया जाता है।

बहरहाल, एक समाज के तौर पर हमें भी सेक्स वर्कर्स के प्रति संवेदनशील होना पड़ेगा। उनके हक की बातें हमें दबे जुबान से नहीं, खुलकर करनी होगी। ये महिलाएं भी समाज का हिस्सा हैं और उनके लिए हक की आवाज उठाई जानी चाहिए।