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सिमरनजीत सिंह मान: खालिस्तान के मुखर समर्थक के पंजाब की चुनावी राजनीति में वापसी के मायने

संगरूर संसदीय चुनाव में मेरा साथ देने के लिए मैं दुनियाभर में मौजूद हमारे पंजाबी सिख समुदाय का शुक्रगुज़ार हूं। आप हमेशा हमारी पार्टी के साथ खड़े रहे हैं और मैं आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने की दिशा में काम करूंगा! आइए न्याय, शांति और समृद्धि की दिशा में एक साथ काम करें।”


By Rohin Kumar, 30 Jun 2022


हाल ही में संपन्न हुए पंजाब उप-चुनाव में संगरूर की सीट पर  जीत दर्ज करने के बाद सिमरनजीत सिंह मान ने यह ट्वीट किया था। मान ने 5,822 वोटों के अंतर से उपचुनाव में जीत दर्ज की है। सिमरनजीत सिंह भले ही कुछ हज़ार वोटों के अंतर से जीते हो, लेकिन उनकी यह जीत सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के लिए एक झटका ज़रूर साबित हुई है। इस चुनाव में उन्होंने आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार गुरमैल सिंह को शिकस्त दी है। बता दें कि संगरूर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान का गृह क्षेत्र है। साल 2014 में वह खुद इस सीट से सांसद रह चुके हैं। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बने महज़ तीन महीने ही बीते हैं। विधानसभा चुनाव में संगरूर क्षेत्र की सभी 9 सीटों पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों ने ही जीत दर्ज की थी।

जीत के बाद इंडियन एक्सप्रेस को दिए गए एक इंटरव्यू में आम आदमी पार्टी को लेकर सिमरनजीत सिंह मान ने कहा कि विधानसभा चुनावों के बाद AAP ने कोई काम नहीं किया। राज्य में कानून-व्यवस्था ख़तरनाक बनी हुई है और AAP आज पंजाब में सार्वजनिक सुरक्षा और अपराध मुक्त माहौल की गारंटी देने में असमर्थ नज़र आ रही है। पंजाब की सरकार को दिल्ली से जोड़ते हुए उनका यह भी कहना था कि यह दिल्ली से पंजाब को चलाने का नतीजा है। जो लोग AAP हाई कमांड ऑपरेट कर रहे हैं उन्हें पंजाब की ज़मीनी हकीकत की कोई समझ नहीं है।

राज्य में गंभीर होती कानून व्यवस्था को सिद्धू मूसेवाला की हत्या से भी जोड़ा जा रहा है। इसलिए सिमरनजीत सिंह की जीत में सिद्धू मूसेवाला की हत्या को भी एक फैक्टर माना जा रहा है। दिनदहाड़े हुई सिद्धू की हत्या ने राज्य की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं। इस घटना के बाद पंजाब के लोग, ख़ासकर मूसेवाला के चाहनेवाले काफी गुस्से में हैं और उन्होंने इस हत्या के लिए सीधे तौर पर सरकार की लापरवाही को ज़िम्मेदार ठहराया है।

सिमरनजीत सिंह मान की जीत इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि वह खुले तौर पर शुरू से खालिस्तान का समर्थन करते आए हैं। उनकी छवि एक खालिस्तान समर्थक होने के साथ-साथ एक कट्टर सिख नेता की भी रही है। हर साल 6 जून को वह अपने समर्थकों के साथ स्वर्ण मंदिर के अंदर ऑपरेशन ब्लूस्टार की याद में खालिस्तान के समर्थन में नारे लगाते हैं। उन्होंने अपनी इस जीत के बाद भी कहा था कि उनकी यह जीत पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ-साथ संत जरनैल सिंह की दी गई शिक्षा की भी जीत है। मान के कई पुराने ट्वीट्स में भी खालिस्तान का कई बार ज़िक्र देखने को मिला है।

बता दें कि पेशे से आईपीएस अधिकारी रह चुके सिमरनजीत सिंह मान ने साल 1984 में ऑपरेशन ब्लूस्टार के विरोध में अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था।  मान को लगभग 30 बार या तो गिरफ्तार किया गया या हिरासत में लिया गया लेकिन आज तक उन्हें किसी मामले में दोषी नहीं करार दिया गया है।

अब तक का राजनीतिक सफ़र

संगरूर सीट पर मिली जीत के बाद पत्रकारों से बात करते हुए सिमरनजीत सिंह ने कहा, “कई लोग हंसते थे कि अब सिमरनजीत सिंह क्या करेगा, आज वे गलत साबित हो गए हैं।” इसी लिए लगभग दो दशक तक चुनावी राजनीति में हाशिए पर रहने के बावजूद, 77 वर्षीय मान की जीत उनकी मज़बूत वापसी का संकेत है। उनकी यह जीत उन राजनीतिक विशेषज्ञों को भी एक जवाब है जिनकी नज़र में सिमरनजीत सिंह का राजनीतिक करियर लगभग खत्म हो चुका था। दो दशकों में सिमरनजीत सिंह ने चुनावों में न जाने कितनी बार हार का मुंह देखा। वह एक के बाद एक चुनाव हारते जा रहे थे। अभी हाल ही में हुए पंजाब विधानसभा चुनाव में वह अमरगढ़ की सीट से लड़े और उन्हें एक बार फिर से हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन संगरूर की जीत ने यह ज़रूर साबित कर दिया है कि सिमरनजीत सिंह का राजनीतिक  सफर खत्म हो गया है, ऐसा मानने वाले लोग कर बैठे थे।

मान की शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) बादल परिवार के नेतृत्व वाले शिरोमणि अकाली दल से टूटा हुआ एक गुट है। मान तरन तारन से 1989 और फिर 1999 में सांसद चुने गए थे। लेकिन उसके बाद के वर्षों में न तो वो ख़ुद और न ही एसएडी (ए) से कोई और नेता यहां से कोई चुनाव जीत पाया।  साल 1990 में सांसद बनने के बाद जब उन्हें संसद में कृपाण लेकर जाने की इजाज़त नहीं दी गई तो उन्होंने अपने पद से ही इस्तीफ़ा दे दिया। इसके बाद जब 1999 में वह फिर से सांसद चुने गए तो इस दफ़े दूसरे सदस्यों के सम्मान में वह संसद में कृपाण नहीं लेकर जाने के लिए  राज़ी हो गए। इसके बाद 2004 से 2019 के बीच मान ने लगभग सभी लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन हर बार उन्हें हार का सामना ही करना पड़ा |

ऑपरेशन ब्लूस्टार के विरोध में दिया इस्तीफा

मान के पिता लेफ्टिनेंट कर्नल जोगिंदर सिंह मान (रिटा) अकाली दल नेता थे। 1960 के दशक में वे पंजाब विधानसभा के स्पीकर रहे थे। उनकी पत्नी गीतिंदर कौर मान प्रणीत कौर की छोटी बहन हैं, जो पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की पत्नी हैं।

वर्ष 1967 में मान आईपीएस अधिकारी बने। 1984 में  ऑपरेशन ब्लूस्टार के विरोध में उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया। नौकरी में रहते हुए मान उस दौर में ऑपरेशन ब्लूस्टार के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों में हिस्सा लिया करते थे।

इस कृत्य के लिए इंदिरा गांधी की सरकार ने उन्हें राजद्रोह और राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था। जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई, उस केस में भी कथित तौर पर उनकी जांच की गई। 1989 के आखिरी महीनों में उन्हें 100 से अधिक सिख बंदियों के साथ बिना किसी शर्त के रिहा कर दिया गया |

जेल से ही वर्ष 1989 में उन्होंने तरन तारन से लोकसभा चुनाव लड़ा था। और जीत भी गए। उसी साल उनकी पार्टी शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) ने पंजाब में 6 सीटें जीती थी। कहा जाता है कि उस दौर में पंजाब में उग्रवाद अपने चरम पर था और मान की राजनीति को लोगों का समर्थन प्राप्त था।

दीप सिद्धू और सिद्धू मूसेवाला के करीबी मान

मान के राजनीतिक प्रतिद्वंदियों के बीच भी एक बात जो कही जाती है, वह कि ‘सिमरनजीत सिंह मान ने कभी हार नहीं मानी।’ 1999 के बाद से शिरोमणी अकाली दल (अमृतसर) लगातार चुनावों में हारती रही। शिरोमणि गुरद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) तक के चुनाव नहीं जीत पाई। (एसजीपीसी सिखों की एक धार्मिक कमिटी है जिसका पंजाब की राजनीति में शुरू से ही हस्तक्षेप रहा है।)

शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के राजनीतिक पतन का कारण क्या रहा? “पंजाब में ज्यों-ज्यों मिलिटेंसी खत्म होती गई, अकाली दल ने राष्ट्रवाद की राजनीति को गले लगा लिया। यह भारतीय राज्य का राष्ट्रवाद था। इसे परंपरागत मतदाताओं ने पसंद नहीं किया। जो पार्टी कट्टर सिख राजनीति के लिए जानी जाती थी, वह अपने रास्ते से भटक गई इसीलिए उसके मतदाताओं ने उसका साथ छोड़ दिया,” चंडीगढ़ स्थित एक राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर ने कहा, मान कि सशक्त वापसी किसान आंदोलन से हुई। उन्हें लोगों का जबरदस्त जनसमर्थन मिला। भारतीय राज्य और मीडिया के खालिस्तान संबंधी गैर-जिम्मेदाराना बयानों को मान ने अपनी मजबूती बनाई।”

“सिमरनजीत सिंह मान पंजाबी कलाकार दीप सिद्धू और सिद्धू मूसेवाला के करीबी थे। पहले दीप और  29 मई को मूसे वाले की हत्या के बाद और आप सरकार के मूसेवाला की सुरक्षा वापस लेने के बाद से ही संगरूर उपचुनाव बदल गया था। उसका फायदा मान को मिला,” आप के एक स्थानीय नेता ने कहा। वह आप की पंजाब में राजनीति को ‘दिल्ली से रिमोट कंट्रोल’ के सहारे चलने से खफ़ा दिखे। मान की जीत से पंजाब की राजनीति के दिलचस्प होने के आसार हैं। साथ ही पुराने दौर के कुछ विवादित मसलों के भी वापसी के आसार हैं।