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महंगे हुए LPG सिलिंडर ने गरीबों को पारंपरिक चूल्हा जलाने पर किया मजबूर, चूल्हे के धुएं से महिलाओं व बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा बुरा असर

मार्च 2014 में घरेलू एलपीजी (LPG) सिलिंडर की कीमत 410 रुपये थी, जबकि जुलाई 2023 में यह कीमत 1120 रुपये तक पहुंच गई है। वहीं, गैस पर मिलने वाली सब्सिडी कई जगहों पर बंद कर दी गई, जबकि कुछ स्थानों पर लोग सब्सिडी न के बराबर या नहीं मिलने की कर रहे शिकायत।


By Shivam Bhardwaj , 24 Jul 2023


शांति देवी घर में एक किनारे खाली पड़े एलपीजी सिलिंडर को दिखाती हुईं।

शाम का समय है, मानसूनी बरसात हो रही है। यह बरेली जिले का एक कस्बा शाही है। नगर के एक छोर पर बसी यह दलितों की बस्ती है। वही दलित बस्ती, जहां नगर के सबसे गरीब, भूमिहीन, मेहनतकश दिहाड़ी मजदूर रहते हैं। जहां लोगों की बेहतर शिक्षा एवं स्वास्थ्य तक पहुंच कम है।

कच्चे आंगन वाले एक कमरे के अपने घर में बैठकर रामा देवी बारिश के रुकने का इंतजार कर रही हैं। बारिश रुकेगी तभी वह परिवार के लिए खाना पका पाएंगी। रामादेवी का मिट्टी का चूल्हा छत पर रखा है, जिसमें लकड़ी व उपलों को जलाकर वह खाना बनाती हैं।

आप नीचे ही कमरे के आगे खाना क्यों नहीं बना लेतीं? पूछे जाने पर रामा देवी कहती हैं, “दम घुटता है। पूरे घर में धुआं ही धुआं हो जाता है, जिससे बच्चों को भी परेशानी होती है।”

रामा देवी एक गृहणी हैं, साथ ही काम मिलने पर खेतों में मजदूरी भी कर लेती हैं। रामा देवी के पांच बच्चे हैं। उनके पति बादाम सिंह दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। रामा देवी के परिवार के पास खेती के लिए जमीन नहीं है।

लकड़ी जलाकर मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनातीं रामा देवी।

रामा देवी बताती हैं, “उज्ज्वला योजना के तहत मुफ्त एलपीजी कनेक्शन मिला था, लेकिन खाना बनाने के लिए मिट्टी के चूल्हे का ही इस्तेमाल करती हूं। गैस सिलिंडर भराने के लिये पैसे ही नहीं हैं तो क्या करें? सिलिंडर भराने के लिए 1100 रुपये चाहिए। अब हम बच्चों का पेट पालें या सिलिंडर भराएं? खेतों से लकड़ी बीन लाते हैं, उन्हें जलाकर ही खाना बनाते हैं।” पिछले सात वर्षो में रामा देवी ने सात से आठ बार ही सिलिंडर भराया है।

“चूल्हे पर लकड़ी जलाकर खाना बनाते हुए सांस फूलती है, आंखो से पानी आता है। गर्मी में और ज्यादा दिक्कत होती है,” खाना बनाने की दुश्वारियों को बताते हुए रामा देवी कहती हैं।

1 मई 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के बलिया से उज्जवला योजना की शुरुआत की थी। योजना की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में चूल्हे पर खाना पकाने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य पर धुएं के दुष्प्रभाव की समस्या पर प्रकाश डाला था। पीएम ने कहा था, “मुझे अपनी गरीब माताओं को कष्टदायक जिंदगी से मुक्ति दिलानी है।”

पीएम मोदी ने दावा किया था कि उज्ज्वला योजना के तहत गरीब परिवारों में गैस का कनेक्शन पहुंचने के बाद खाना पकाने का खर्चा कम हो जाएगा एवं महिलाओं को धुएं के कारण होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा।

आंकड़ों के अनुसार, 1 अप्रैल 2023 तक प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत 9.59 करोड़ एलपीजी कनेक्शन प्रदान किये गए हैं। देश में एलपीजी के कुल उपभोक्ताओं की संख्या अब 31.40 करोड़ है, जो 2014 में 14.52 करोड़ थी। देश के गरीब परिवारों में एलपीजी कनेक्शन पहुंचाने में उज्ज्वला योजना का महत्वपूर्ण योगदान है।

गैस सिलेंडर भरवाने में असमर्थ खेमा देवी मिट्टी के चूल्हे पर खाना पकाते हुए।

क्या एलपीजी सिलिंडर गरीबों के वहन योग्य

“हमारे पास खेतीबाड़ी के लिए अपनी जमीन नहीं है। मजदूरी करते हैं। हम अपना और बच्चों का पेट भरें, बच्चों की बीमारी में पैसा लगाएं या सिलिंडर भराएं?” गैस सिलिंडर भराने में अपनी असमर्थता जताते हुए खेमा देवी कहती हैं।

अपने खाली पड़े सिलिंडर की तरफ इशारा करते हुए खेमा देवी कहती हैं, “वो देखो भूसे में विराज रहो है हमारो सिलिंडर, डेढ़ साल से न भरो गओ है।”

खेमा देवी को सिलिंडर भराने पर सब्सिडी भी नहीं मिल पाती है, क्योंकि उनका एलपीजी कनेक्शन उज्ज्वला योजना के तहत नहीं आता है। नाराजगी जताते हुए खेमा देवी कहती हैं, “सरकार की तरफ से मिलो का है हमें?”

चूल्हे पर खाना पकाने के लिए खेमा देवी जलावन की लकड़ी जंगल से बीन कर लाती हैं, जबकि बरसात के मौसम में कभी-कभी उन्हें जलावन की लकड़ी खरीदनी भी पड़ जाती है।

वह कहती हैं, “लकड़ी, उपले जलाकर खाना बनाना गैस से खाना बनाने के मुकाबले सस्ता पड़ता है, इसीलिए मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाते हैं।” इसका दुष्प्रभाव खेमा देवी की आंखों पर पड़ा है। वह बताती हैं कि धुएं में रहने के कारण उन्हें कम दिखाई देता है, आंखों की रोशनी बहुत कम हो गई है।

गैस भराने में असमर्थ खेमा के परिवार ने अपना खाली सिलिंडर छज्जे पर रख दिया है।

“गैस सिलिंडर जिस रेट पर पहले बिकता था, वही रेट कर दिया जाए तब हम पेट काटकर सिलिंडर भरवा सकते हैं। अगर सिलिंडर इसी तरह महंगा होता रहा तो हम जैसे गरीब लोग तो सिलिंडर भरवाने में ही मर जाएंगे और ये सिलिंडर धरे के धरे रह जाएंगे,” खेमा देवी मांग करते हुए कहती हैं।

मिट्टी के चूल्हे पर खाना पकाने के दौरान आग में हवा देतीं गुड़िया।

मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाती गुड़िया बताती हैं कि पात्र होते हुए भी राशन कार्ड नहीं बन पाने के कारण उनको उज्ज्वला योजना का लाभ नहीं मिल पाया। गुड़िया के पति मुकेश मजदूरी करते हैं। वह कहती हैं कि पाई-पाई जोड़कर उन्होंने एलपीजी का कनेक्शन खरीदा था। अब उनका गैस चूल्हा घर के एक कोने में बेकार पड़ा है।

गुड़िया आगे कहती हैं, “महंगाई की वजह से हम एलपीजी सिलिंडर नहीं भरा पाते हैं। पहले सिलिंडर कम पैसे में भरा जाता था, तब हम भरवा लेते थे। अब 1100 रुपये में सिलिंडर भरे जाते हैं, इतना पैसा कहां से लाएं? पहले सब्सिडी मिलती थी, अब वो भी नहीं मिलती है।”

आजमगढ़ के जमुआ गांव की नीलम देवी बताती हैं, “हम जमीन वाले किसानों की थोड़ी जमीन बटाई पर लेकर खेती करते हैं, उससे ही हमारा परिवार चलता है। लकड़ी खरीदकर खाना पकाते हैं, लकड़ी हमें सस्ती पड़ती है। गैस तो हम नहीं भरा पाते हैं। पिछले चार महीने से हमारा गैस सिलिंडर नहीं भरा गया है।”

वह आगे कहती हैं, ” प्रधानमंत्री मोदी ने जब सिलिंडर बांटे थे, तब गैस के दाम 400 रुपये थे। हम सबने खुश होकर सिलिंडर ले लिए, लेकिन अब तो गैस के दाम 1100 रुपये से भी ऊपर पहुंच चुके हैं। हम ही क्या, कोई भी गरीब अब सिलिंडर नहीं भरा पा रहा है।”

“इस महंगाई के दौर में रोज के 300-350 रुपये कमाने वाले लोग महंगा सिलिंडर कैसे खरीदें ?” वह सवाल उठाती हैं।

नीलम देवी कहती हैं कि लकड़ी जलाकर चूल्हे पर खाना बनाने के दौरान धुएं से समस्या होती है, लेकिन क्या करें हमारे लिए तो यह रोज का ही है। अब इस धुएं की आदत पड़ गई है।

प्रतीकात्मक फोटो

कितने लोग कर पा रहे एलपीजी का प्रयोग

खाना पकाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा के इस्तेमाल के क्षेत्र में कार्य कर रहीं स्मोकलेस कुकस्टोव फाउंडेशन की संस्थापक एवं निदेशक नितिशा अग्रवाल बताती हैं कि एलपीजी की कुछ सुदूर क्षेत्रों (पहाड़ी एवं आदिवासी) में पहुंच अभी भी सुलभ नहीं है। वहां के निवासियों को एलपीजी सिलिंडर प्राप्त करने में और भी ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते हैं। वहां सिलिंडर की कीमत के साथ ही परिवहन का खर्चा भी जुड़ जाता है।

हाल ही में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट द्वारा जारी की गई स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमेंट 2023 इन फिगर्स रिपोर्ट के अनुसार, 47 फीसद ग्रामीण परिवार आज भी भोजन पकाने के लिए जलावन लकड़ी, उपले, पेड़ों की छाल एवं फसल अवशेष का इस्तेमाल करते हैं, जबकि सिर्फ 49 फीसद ग्रामीण परिवार ही एलपीजी का इस्तेमाल कर पा रहे हैं।

छत्तीसगढ़, उड़ीसा एवं पश्चिम बंगाल तीन ऐसे राज्य हैं जहां 75 फीसद से अधिक ग्रामीण परिवार भोजन पकाने के लिए लकड़ी, उपले, छाल एवं फसल अवशेष का इस्तेमाल करते हैं। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों को मिलाकर राष्ट्रीय स्तर पर कुल 62 फीसद लोग एलपीजी का इस्तेमाल कर रहे हैं, जबकि 33.8 फीसद लोग जलावन लकड़ी, उपले, छाल एवं फसल अवशेष का इस्तेमाल करते हैं।

पांचवे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, 2019-21 के बीच 43.2 फीसद ग्रामीण परिवार ही भोजन पकाने के लिए एलपीजी का प्रयोग कर रहे थे। वहीं, 89.7 फीसद शहरी आबादी इसके लिए एलपीजी एवं पीएनजी का प्रयोग कर रही थी।

वर्ष 2022 में राज्यसभा में उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, 2021-22 में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के 9.34 करोड़ उपभोक्ताओं में से 92 लाख उपभोक्ता एक बार भी सिलिंडर रिफिल नहीं करा पाए। जबकि, 1.8 करोड़ उपभोक्ता सालभर में एक बार ही सिलिंडर रिफिल करा पाए। ऐसे में योजना के 21.4 फीसद लाभार्थी एक बार भी नहीं या सिर्फ एक बार ही सिलिंडर रिफिल करा पाए।

वर्ष 2021-22 में कुल 30.53 करोड़ सक्रिय एलपीजी उपभोक्ताओं में से 2.11 करोड़ उपभोक्ता एक बार भी सिलिंडर रिफिल नहीं करा पाए। जबकि, 2.91 करोड़ उपभोक्ता सिर्फ एक बार ही सिलिंडर रिफिल करा पाए। कुल एलपीजी गैस के घरेलू उपभोक्ताओं में 5.2 करोड़ उपभोक्ता एक बार भी नहीं या सिर्फ एक बार ही सिलिंडर रिफिल करा पाए।

प्रतीकात्मक फोटो

गरीबों की पहुंच से बाहर हो रहे एलपीजी सिलिंडर

इंडिया रेजिडेंशियल एनर्जी कंसंप्शन सर्वे 2020 से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर ने वर्ष 2021 में स्टेट ऑफ क्लीन कुकिंग एनर्जी एक्सेस इन इंडिया रिपोर्ट जारी की थी। रिपोर्ट के अनुसार, देश में एलपीजी की पहुंच में वृद्धि के बावजूद 38 फीसद भारतीय परिवार (मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्र के) भोजन पकाने हेतु स्वतंत्र रूप से उपलब्ध ठोस ईंधन (लकड़ी, उपले, फसल अवशेष) पर निर्भर थे।

रिपोर्ट के मुताबिक, इसका मुख्य कारण एलपीजी सिलिंडर की ऊंची कीमत है। सर्वे के अनुसार घरों में महिलाओं के हाथ में सिलिंडर खरीदने, भुगतान करने की निर्णयन क्षमता एवं आर्थिक शक्ति का न होना भी एक कारक है जो एलपीजी के इस्तेमाल को प्रभावित करता है।

सरकार की तरफ से एलपीजी की कीमत बढ़ने का मुख्य कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ रही कीमत एवं सऊदी अनुबंध को बताया जा रहा है। वित्त वर्ष 2023-24 के लिए आयोजित बजट सत्र में केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा था कि एलपीजी की अंतरराष्ट्रीय कीमत में कमी आने के बाद वह उसे और किफायती दामों में उपलब्ध करा पाएंगे।

एलपीजी सिलिंडर पर मिलने वाली सब्सिडी

अहमद भारत गैस सर्विस के संचालक आरिश खान बताते हैं कि उज्ज्वला योजना के तहत आने वाले उपभोक्ताओं को एक सिलेंडर पर 200 रुपये की सब्सिडी मिलती है। ऐसे में उज्ज्वला उपभोक्ताओं को 1120 रुपये का सिलिंडर 920 रुपये का पड़ता है। वहीं, सामान्य घरेलू निजी गैस कनेक्शन पर एक सिलिंडर भराने पर 18.50 रुपये की सब्सिडी आती है। इस तरह उपभोक्ता को 1120 रुपये का सिलिंडर सब्सिडी मिलने के बाद 1102 रुपये का पड़ता है।

सरकार द्वारा एलपीजी सब्सिडी पर सार्वजनिक व्यय लगातार घट रहा है। केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2019-20 में सरकार ने एलपीजी सब्सिडी पर 24,172 करोड़ रुपये खर्च किए थे। जबकि, वर्ष 2020-21 में सरकार ने एलपीजी सब्सिडी पर 11,896 करोड़ रुपये ही खर्च किए। वहीं, वर्ष 2021-22 में सरकार ने एलपीजी सब्सिडी पर सिर्फ 242 करोड़ रुपये खर्च किए।

जेएनयू में क्षेत्रीय विकास अध्ययन केंद्र से प्रोफेसर अतुल सूद कहते हैं, “सरकार की जनकल्याण संबंधी नीतियों में बदलाव हो रहा है। हमारे नीति निर्माताओं की प्राथमिकताएं बदल रही हैं। जन-कल्याण से जुड़ी योजनाओं का स्वरूप बदल चुका है। योजनाओं की जरूरत को जनता के अधिकार के स्थान पर सरकार की दया पर निर्भर कर दिया गया है।”

उनके अनुसार, “वहन योग्य कीमत में एलपीजी सिलिंडर को प्राप्त करना गरीब लोगों का अधिकार होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है। सरकार यदि चाहे तो महंगे एलपीजी पर सब्सिडी देकर गरीब लोगों के अधिकार की रक्षा कर सकती है, लेकिन सरकार की प्राथमिकता तो सब्सिडी पर सार्वजनिक व्यय को लगातार कम करना बन चुका है।”

“जन-कल्याण की योजनाओं का स्वरूप जनता के अधिकारों पर आधारित न रहकर सरकार की दया, मर्जी एवं प्राथमिकताओं पर आधारित होता जा रहा है। सरकार एवं नीति निर्माताओं को याद रखना चाहिए कि कम से कम वहन योग्य कीमत पर जीवन-यापन संबंधी सुविधाओं की पूर्ति गरीब लोगों का अधिकार है और सरकार जनता के अधिकारों की रक्षा करने के लिए है न कि उनके अधिकारों को कमजोर करने के लिए,” अतुल सूद ने यह कहते हुए अपनी बात पूरी की।

प्रतीकात्मक फोटो ©Unsplash

घरों के अंदर होने वाला वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा

लकड़ी और उपले जलाकर खाना बनाने वाली रामा देवी को सांस लेने में समस्या होती है, तो वहीं खेमा देवी की आंखों की रोशनी काफी कम हो चुकी है। यह सिर्फ रामा देवी एवं खेमा देवी की समस्या नहीं है। ये दोनों महिलाएं देश की एक बड़ी महिला आबादी का प्रतीक हैं जो चूल्हे पर खाना पकाने के लिए मजबूर हैं। जिनकी समस्याएं आर्थिक-सामाजिक पृष्ठभूमि एक जैसी ही है।

स्मोकलेस कुकस्टोव फाउंडेशन की नितिशा बताती हैं, “खाना बनाने के दौरान लकड़ी, उपले, कोयला आदि जलाने के कारण महिलाओं के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। महिलाओं को आंखों, त्वचा, हाथों, श्वसन तंत्र, हृदय संबंधी बीमारियों के साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता एवं हीमोग्लोबिन की मात्रा में कमी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।”

“घरों में छोटे बच्चे अपनी मां एवं धुएं के निकट संपर्क में रहते हैं, इसलिए वे भी प्रभावित होते हैं। गर्भवती महिलाओं व गर्भस्थ शिशुओं पर भी घरों में होने वाले वायु प्रदूषण का हानिकारक प्रभाव पड़ता है। घरों में रहने वाले बुजुर्ग भी इस प्रदूषण से प्रभावित होते हैं।”

ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी 2019 के अनुसार, घरेलू वायु प्रदूषण के कारण वर्ष 2019 में भारत में छह लाख मौतें हुई हैं। घरों में पारंपरिक चूल्हे पर ठोस ईंधन (लकड़ी, उपले, फसल अवशेष) जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण का सबसे हानिकारक प्रभाव महिलाओं एवं छोटे बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार घरेलू वायु प्रदूषण के कारण हृदय संबंधी रोग, श्वशन तंत्र संबंधी रोग, फेफड़ों का कैंसर जैसे गंभीर रोग एवं दृष्टिहीनता होने की संभावना बढ़ जाती है।

स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट 2020 के मुताबिक, भारत में वर्ष 2019 में घरेलू एवं बाह्य वायु प्रदूषण के कारण 1,16,000 नवजातों की जन्म के एक महीने के अंदर ही मृत्यु हो गई थी।

नितिशा के अनुसार, घरेलू वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों से लड़ने एवं एलपीजी सिलिंडर के उपयोग को सुनिश्चित कराने के लिए सरकार को वंचित एवं ग्रामीण समाज के समुदायों की स्थायी आय को बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए। सुलभ पहुंच, वहन योग्य कीमत एवं बेहतर समझ (जागरूकता) के साथ ही एलपीजी एवं स्वच्छ ऊर्जा के साधनों के इस्तेमाल को सुनिश्चित किया जा सकता है।

इस पूरे मामले को लेकर हमने निर्वाचित जन प्रतिनिधियों से बात करने का प्रयास किया, लेकिन उन्होंने इस मामले में कोई भी टिप्पणी करने से मना कर दिया।

मीरगंज से भाजपा विधायक डीसी वर्मा ने समस्या को केंद्र का मामला बताते हुए कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया।

वहीं, बरेली से भाजपा सांसद एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार भी व्यस्तता का हवाला देते हुए इस मामले में कुछ भी कहने से बचते दिखे।

यदि हमें इस मामले में कोई आधिकारिक बयान मिलता है तो हम उसे स्टोरी में अपडेट करेंगे।