Ground Reports

Human-Wildlife Conflict: Mhow के रिहायशी इलाकों में बाघ का आतंक, 3 गायों का कर चुका है शिकार

Tiger In Mhow: इंदौर में महू छावनी के नज़दीक पिछले 17 दिनों से बाघ घूम रहा है, जिससे स्थानीय लोग दहशत में जीने को मज़बूर हैं। कई प्रयासों के बाद भी वन विभाग को बाघ को पकड़ पाने में अब तक सफलता नहीं मिली है। वहीं, पिछले 15 दिनों में मध्य प्रदेश में छह बाघों की मौत हो चुकी है।


By Aditya Singh , 25 May 2023


महू छावनी के पास घूमता बाघ सीसीटीवी में हुआ कैद।

ज़मीन के लिए जंगली जानवर और इंसान के बीच संघर्ष (Human- Wildlife Conflict) नया नहीं है। मध्य प्रदेश जोकि एक टाइगर स्टेट है, वहां भी ऐसे मामले आए दिन सुनने को मिलते हैं। हालांकि, अब तक यहां तेंदुए के गांव या शहर में घुसने की खबरें आती थी, जबकि अब बाघ भी इंसानी आबादी के नज़दीक दिखाई दे रहा है।

बीते 8 मई से एक बाघ इंदौर शहर के नज़दीक बसी सेना की एक महत्वपूर्ण छावनी महू (Mhow) के आसपास घूम रहा है। इसे लेकर इलाके में दहशत का माहौल है। बाघ यहां बने सेना के एक महत्वपूर्ण संस्थान आर्मी वॉर कॉलेज (Army War College) के परिसर में पाया गया था।

जानकार बताते हैं कि पहले इस इलाके से कुछ ही दूरी पर घने जंगल हुआ करते थे, जो अब कम हो गया है। बीते कई दशकों में यह पहली बार है जब बाघ छावनी के आसपास आए हों। वन विभाग के मुताबिक़, यहां आसपास बाघ की मूवमेंट की जानकारी डेढ़ साल पहले ही मिली थी, लेकिन बाघ को कभी देखा नहीं गया।

इंदौर के नज़दीक बाघ दिखाई देने के हफ़्ते भर बाद भोपाल के पास कलियासोत इलाके में एक बाघिन अपने शावकों के साथ एक पेड़ के नीचे बैठी दिखाई दी। यह इलाका वन्य क्षेत्र के नज़दीक है। यहां कई रिहायशी कॉलोनियां हैं लिहाज़ा आवाजाही बनी रहती है, ऐसे में बाघ का आसपास देखा जाना ख़तरनाक है।

भोपाल के नज़दीक रायसेन में ही रातापानी अभ्यारण्य है, जहां पहले से ही कई बाघ हैं। इसके अलावा यह कई घने जंगलों से जुड़ता है। ऐसे में भोपाल में बाघ का आना ख़तरनाक तो है, लेकिन इसे बहुत अचरज भरा नहीं कहा जा सकता। यहां इंसानी आबादी के पास बाघ बीते कुछ वर्षों से दिखते रहे हैं।

मध्य प्रदेश में बाघों के इस तरह से नज़र आने की घटनाएं अभी तक किसी नेशनल पार्क के आसपास होती थी, जबकि यह पहली बार है जब बाघ बड़े शहरों के किनारों तक आ रहे हैं। इसके पीछे की वज़ह इलाके में कम हो रहे जंगल और यहां बढ़ रही रिहायशी और व्यापारिक गतिविधियों को माना जा रहा है, जो बाघों को परेशान कर रही हैं।

महू छावनी में स्थित आर्मी वार कॉलेज।

बाघ को महू छावनी के जिस सैन्य संस्थान के पास देखा गया है, वह शहर की मुख्य आबादी से केवल तीन किमी दूर है। वहीं, सैन्य संस्थान में भी हज़ारों की संख्या में कर्मचारियों और उनके परिवार रहते हैं। इसके पास ही रिटायर्ड सैन्य अधिकारियों की कॉलोनी भी है। इसके अलावा यहां इन्फेंट्री स्कूल और मिलेट्री कॉलेज ऑफ टेलिकम्यूनिकेशन इंजीनियरिंग (एमसीटीई) जैसे संस्थान हैं।

बाघ के दिखाई देने के बाद सैन्य संस्थानों ने अपने लोगों को चेतावनी जारी कर दी है कि वह सुबह और शाम की सैर को फिलहाल टाल दें, और जहां भी जाएं वहां लोगों के साथ जाएं। इसके बाद से ही महू में बाघ की खोज जारी है।

वन विभाग और सैन्य विभाग की टीम ने गहन तरीके से बाघ की खोजबीन के अलावा ड्रोन कैमरों का भी सहारा लिया। हालांकि, यह कोशिश भी नाकाम रही और करीब 15 दिनों के बाद भी बाघ अब तक पकड़ में नहीं आया है। इस दौरान बाघ करीब तीन से चार बार आर्मी वॉर कॉलेज में लगे सीसीटीवी में सड़कों पर टहलता दिखाई दिया है। इन तस्वीरों को देखने के बाद यहां बाघ के इतने नज़दीक होने के अहसास से लोग दहशत में हैं।

महू छावनी के आसपास कई बार देखा गया बाघ।

आर्मी वॉर कॉलेज के बाद बाघ यहां से कुछ दूर आलू चिप्स कारखानों के नज़दीक रात को दिखाई दिया। यहां काम करने वाले एक मज़दूर नारायण ने उसे देखा। नारायण बताते हैं कि बाघ देखकर ही वह घबरा गए और उन्होंने चिल्लाना शुरू कर दिया, जिसके बाद बाघ भाग गया।

वही, यशवंत नाम के मज़दूर ने बताया कि बाघ के डर से वह अचानक रात को उठकर परिवार की पहरेदारी करने लगते हैं। यशवंत की यह चिंता जायज़ है, क्योंकि वह उस इलाके से बस कुछ ही किमी दूर हैं जहां बाघ ने तीन गायों का शिकार किया है। यहां बाघ की काफी मूवमेंट देखी गई है।

महू में गाय का शिकार करने के बाद उसे खाता हुआ बाघ।

मलेंडी गांव के ग्रामीण ज्ञान सिंह ने सबसे पहले 14 मई को बाघ को जंगल की ओर जाते हुए देखा था। 16 मई को बाघ ने इसी गांव में रघुनाथ पटेल की एक गाय का शिकार किया था। इस घटना के बाद वन विभाग ने यहां एक पेड़ पर नाइट विजन सीसीटीवी कैमरे लगाए थे, जिसमें बाग अगले दो-तीन दिनों तक नजर आया। यहां बाघ को पकड़ने के लिए ट्रैप यानी पिंजरे लगाए गए, लेकिन बाघ उसमें नहीं फंसा।

बाघ को कैद करने के लिए लगाया गया पिंजरा।

इसके बाद, बाघ ने मलेंडी के नज़दीक ही 23 और 24 मई को फिर एक गाय का शिकार किया। वन विभाग ने वहां दोबारा पिंजरे लगाए, लेकिन बाघ उसमें भी नहीं फंसा। ऐसे में बाघ के बारे में अब तक वन विभाग के पास कोई ठोस जानकारी नहीं है।

महू के पास बाघ के होने का कोई प्रमाणित तथ्य नहीं हैं। यहां से करीब सौ किमी दूर देवास जिले में खिवनी अभ्यरण्य में बाघ हैं, लेकिन जानकार बताते हैं कि उनकी इंदौर या महू की ओर गतिविधि पहले कभी दर्ज नहीं की गई।

महू के पास खंडवा और बडवाह के जंगल हैं, लेकिन वहां भी दशकों से कोई बाघ स्थायी तौर पर नहीं रहा। ऐसे में बाघ का महू के जंगलों में आना असामान्य है, क्योंकि सबसे नज़दीकी टाइगर कॉरिडोर खिवनी अभ्यारण्य और रायसेन जिले के रातापानी के बीच है।

भोपाल में रहने वाले वन्यजीव के जानकार अजय दुबे कहते हैं कि बाघों के रहवास क्षेत्र में कई गतिविधियां हो रहीं हैं। ऐसे में उनके रहने और खाने के इलाकों में भी काफ़ी व्यवधान आ रहे हैं।

दुबे कहते हैं कि महू में बाघ का मिलना सामान्य नहीं है। इंदौर और आसपास के इलाकों में दशकों तक बाघ नहीं देखे गए। ऐसे में महू में बाघ दिखाई देना हैरतअंगेज़ करने वाला मामला है, और अब तक उसे न ट्रेस कर पाना ख़तरनाक है।

अजय दुबे की ही तरह सभी जानकार इस स्थिति को खतरनाक मानते हैं। उनके मुताबिक बाघों से जुड़ी किसी भी समस्या पर जल्द से जल्द क़दम उठाना ज़रूरी है, क्योंकि राज्य में पिछले 15 दिनों में छह बाघों की मौत हो चुकी है और पिछले पांच महीने में इसकी संख्या 21 है।

महू के नज़दीक देखा गया बाघ।

ग्लोबल टाइगर फोरम के प्रमुख पूर्व आईएफएस अधिकारी राजेश गोपाल कहते हैं कि महू में बाघ का आना एक डिस्प्लेसमेंट एक्टिविटी है। ऐसे में बाघ के असल इलाके का पता लगाना ज़रूरी है और उसे वहां पहुंचाना भी उतना ही आवश्यक है। राजेश प्रोजेक्ट टाइगर से क़रीब 35 वर्षों तक जुड़े रहे हैं, इसके अलावा वह नेशनल टाइगर कन्ज़रवेशन अथॉरिटी के सदस्य भी रहे हैं।

वह कहते हैं कि अगर बाघ अनफिट है तो उसे सेंचुरी में पहुंचाना होगा। राजेश के मुताबिक़ भोपाल से होते हुए पश्चिम मध्यप्रदेश का टाइगर कॉरिडोर रातापानी से देवास की ओर जाता है जो बहुत ख़राब हालत में है, क्योंकि यहां ज्यादा जंगल नहीं बचे हैं। ऐसे में बाघ का रिहायशी इलाकों में आना उसके नैसर्गिक आवास में हुई किसी अप्रत्याशित घटना के कारण है।

बाघ के न पकड़े जाने और समय बीतने के साथ वन विभाग पर कई तरह के सवाल भी उठ रहे हैं। हालांकि, विभाग के अधिकारियों के मुताबिक़ यह बहुत परेशान करने वाली बात नहीं है। डीएफओ नरेंद्र पंडवा के अनुसार, बाघ जंगलों में घूम रहा है और इसी रास्ते में गांव लगते हैं इसलिए इधर देखने को मिल गया है। वह कहते हैं कि एक पुराने टाइगर कॉरिडोर के नज़दीक ऐसा होना सामान्य बात है।

अधिकारी जहां इसे सामान्य बता रहे हैं, वहीं इलाके के लोग दहशत में हैं। दूसरी तरफ, वन विभाग ख़ुद मलेंडी और आसपास के गांवों में रोज़ाना मुनादी पिटवा रहा है कि शाम के वक़्त गांव में आवाजाही न करें, क्योंकि यहां बाघ का ख़तरा है।

मलेंडी गांव के बालाराम बनारसी कहते हैं कि उनके गांव के लोगों ने जंगल में जाना बंद कर दिया है। उनके जानवर खेत पर अकेले बंधे रहते हैं, क्योंकि लोग डरे हुए हैं।

इस बारे में बात करते हुए स्थानीय पत्रकार अरुण सोलंकी कहते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में पहली बार ऐसा कुछ देखा है। ग्रामीणों में बाघ का दहशत है। वह बताते हैं कि आसपास के जंगल लगातार कट रहे हैं, और वहां फार्म हाउस और होटल बनाए जा रहे हैं। ऐसे में जानवरों का क्षेत्र प्रभावित हुआ है।

सोलंकी आगे कहते हैं, “अब वन विभाग पहले से बाघ होने की बात कह रहा है और उनके मुताबिक़ यह कोई बड़ी बात नहीं है। जबकि ठीक इसी दौरान चोरल और आसपास के जंगलों में जंगल काटे जाने की कई घटनाएं दर्ज़ हुईं हैं, ऐसे में अगर यहां बाघ था तो जंगलों को बचाने पर ज़्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए था।”

इंदौर शहर और उसके आसपास के इलाकों में बसाहट तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में यहां का वन्य क्षेत्र प्रभावित हो रहा है। जंगली जानवरों को जंगलों में शिकार नहीं मिलते हैं तो वे भोजन की तलाश में गांव और शहरों की ओर रुख करते हैं।

महू में तेंदुए का घुस आना आम बात है। बीते 8 अप्रैल को यहां के घोड़ाखुर्द गांव में तेंदुआ एक घर में घुसा और उसने वहां बंधे सात जानवर मार दिए और फिर वहीं सो गया। लोगों ने घर को बाहर से बंद करके वन विभाग को बुलाया, जिसके बाद उसे पकड़ा जा सका।

घोड़ाखुर्द तो जंगल से लगा एक गांव था, लेकिन इंदौर शहर में भी तेंदुआ एक कॉलोनी में हमला कर चुका है। ऐसे में यह कहना ग़लत नहीं होगा कि अब ये जंगली जानवर शहरों के बहुत नज़दीक अपनी ज़मीन खोज रहे हैं, जोकि इंसान और वन्यजीव दोनों के लिए ख़तरनाक है।