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Water Wastage: एक लाख के फोन की कीमत 21 लाख लीटर पानी? कांकेर के Food Inspector की करनी किसे पड़ेगी भरनी

Chhattisgarh: क़रीब 1 लाख रुपये का मोबाइल फोन ढूंढने के लिए एक फूड इंस्पेक्टर (Food Inspector) ने डैम का लाखों लीटर पानी बहा दिया. जल संरक्षणवादी एक अनुमान के मुताबिक़ बताते हैं कि इतने पानी से दो हज़ार बीघे खेत की सिंचाई की जा सकती थी.


By Mohammad Sartaj Alam , 27 May 2023


फूड इंस्पेक्टर ने फोन ढूंढने के लिए पंप लगवाकर बहा दिया परालकोट बांध का लाखों लीटर पानी.

छत्तीसगढ़ के कांकेर ज़िले (Kanker) में परालकोट बांध से एक अजीबोगरीब घटना सामने आई है. वहां राजेश बिस्वास नाम के एक फूड इंस्पेक्टर का मोबाइल फोन बांध में गिर जाने पर उसे ढूंढने के लिए बेसिन का 41,104 क्यूबिक मीटर पानी बाहर निकाल दिया गया. दरअसल, फूड इंस्पेक्टर का फोन बांध के निकट वेस्ट वियर के स्टेलिन बेसिन में गिर गया था. इसके बाद इंस्पेक्टर ने उनके कीमती मोबाइल फोन को ढूंढ निकालने के लिए जलाशय से 21 लाख लीटर पानी बाहर निकलवा दिया.

भारत के एक ऐसे इलाके में जहां आदिवासियों को पीने के पानी के लिए काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, उस उत्तर बस्तर कांकेर जिले में पानी की बर्बादी को लेकर हुई इस भयानक घटना ने ऐसा तूल पकड़ा कि इसे विदेशी मीडिया न्यू यॉर्क टाइम्स (New York Times) तक ने रिपोर्ट किया.

मालूम हो कि मामले में संज्ञान लेते हुए ज़िला कलेक्टर ने आरोपी फूड इंस्पेक्टर राजेश विश्वास को तुरंत कार्रवाई से निष्कासित कर दिया है. वहीं, अधीक्षण अभियंता कार्यालय ने इस मामले में सहआरोपी एसडीओ आरके धीवर के वेतन से पानी की राशि वसूलने का आदेश भी दिया है.

क्या है पूरा मामला?

कांकेर ज़िले के पखांजूर कस्बा के निकट स्थित परालकोट बांध के वेस्ट वियर के स्टेलिन बेसिन पर 21 मई को फूड इंस्पेक्टर राजेश विश्वास अपने दोस्तों के साथ घूमने आए थे. इसी दौरान जब वह पानी के निकट जाकर सेलफी लेने की कोशिश कर रहे थे, तभी उनका क़ीमती मोबाइल हाथ से छूट कर जलाशय में चला गया. बताया जाता है कि इंस्पेक्टर के उस फोन की कीमत 96,000 रुपये थी, जिसकी तलाश करवाने के लिए उन्होंने गोताखोर बुलाए.

बता दें कि स्थानीय लोगों के द्वारा इसी जलाशय का इस्तेमाल गर्मी के दिनों में पानी की आपूर्ति के लिए किया जाता है.

फूड इंस्पेक्टर राजेश विश्वास

आरोपी फूड इंस्पेक्टर राजेश विश्वास कहता है, “गोताखोरों ने बहुत कोशिश की, लेकिन मोबाइल नहीं मिला. चूंकि बेसिन की गहराई 10 फिट थी, इसलिए गोताखोर ने कहा कि यदि पानी सात फिट पर रहता है तो हम मोबाइल निकाल सकते हैं.”

आरोपी इंस्पेक्टर आगे कहता है कि “गोताखोर द्वारा मशविरा दिए जाने के बाद मैंने वहां के एसडीओ से बात की और उन्हें बताया कि यह नॉन युज़ेबल वाटर है. बावजूद इसके उसे यहां से निकालकर नहर में गिराया जा सकता है, जो किसानों के उपयोग में आ जाएगा. अधिकारी से सलाह लेने के बाद जलाशय को दो से तीन फिट खाली कराया, जिसके बाद मेरा मोबाइल फोन मुझे मिल गया.”

वह सफाई देते हुए कहता है, “चूंकि मैं भी एक अधिकारी हूं, इसलिए पानी के महत्व को समझता हूं. इसी वज़ह से मैंने डीज़ल पम्प की सहायता से बेसिन का पानी नहर में निकलवाया, ताकि वह बर्बाद न हो और किसानों के काम आए.”

वहीं, स्थानीय लोग इंस्पेक्टर की सफ़ाई को सिरे से ख़ारिज करते हैं. उनके अनुसार बेसिन का पानी चार दिनों तक दो डीज़ल पम्प की सहायता से बाहर की तरफ बहाया गया.

घटना के बाद क्या हुआ

घटना (21 मई) के पांच दिनों बाद 26 मई को मामले का खुलासा होने पर ज़िला कलेक्टर ने फूड इंस्पेक्टर को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया. ज़िला कलेक्टर प्रियंका शुक्ला कहती हैं, “जलाशय में फूड इंस्पेक्टर का मोबाइल फोन गिर गया था, जिसे ढूंढने के लिए उन्होंने बिना किसी आधिकारिक सूचना के जलाशय का पानी खाली कराया दिया. मामला संज्ञान में आने के बाद जलाशय पर एक टीम भेजी गई, और एसडीएम से मिले प्रतिवेदन के बाद फूड इंस्पेक्टर को निलंबित कर दिया गया है.”

आरोपी फूड इंस्पेक्टर को निलंबित करने का आदेश पत्र.

इस मामले में सामाजिक कार्यकर्ता व भाजपा नेता गौरीशंकर कहते हैं कि अपने स्वार्थ के किए फूड इंस्पेक्टर के द्वारा कई दिनों तक पानी का बहाया जाना अमानवीय हरक़त है. इस घटना ने हमारे प्रदेश को कलंकित किया है. ऐसे में आरोपी को केवल सस्पेंड करना ही काफ़ी नहीं है, बल्कि इस मामले में कठोरतम कार्रवाई होनी चाहिए. इसमें जांच का केंद्र सिर्फ़ आरोपी फूड इंस्पेक्टर ही नहीं हैं, बल्कि एसडीओ पर भी सवाल खड़ा होता है कि वह किस आधार पर एक अदने से अधिकारी को मोबाइल ढूंढने के लिए पानी बहाने की अनुमति दे सकते हैं?

वह आगे कहते हैं, “दोनों आरोपी अधिकारियों से पूरे पानी की रिकवरी करनी चाहिए, तब जाकर आदिवासियों को न्याय मिलेगा. इस पानी की क्या कीमत है, यह समझने के लिए स्थानीय आदिवासियों से पूछें कि वह किस प्रकार इस पानी पर निर्भर करते हैं. जलाशय में 30 एचपी के दो बड़े पंप लगाकर चार दिन में वहां से लाखों लीटर पानी व्यर्थ बहाया गया, जो दंडनीय अपराध है.”

वहीं, सहआरोपी जल संसाधन विभाग के एसडीओ आरके धीवर का कहना है कि उनकी ओर से केवल पांच फीट तक पानी निकलने की इजाज़त मौखिक तौर पर दी गई थी. जबकि, असल में इससे ज़्यादा पानी निकाल दिया गया जो उनकी जानकारी में नहीं था.

कांकेर ज़िले के पखांजूर कस्बा के निकट स्थित परालकोट बांध.

क्या कहते हैं जल संरक्षणवादी

“सोचें, आख़िर जलाशय में पानी एकत्र क्यों किया जाता है. आरोपी इंस्पेक्टर के भारी मात्रा में पानी निकलवा देने से दो समस्याएं आएंगी; एक तो जिस मकसद से बेसिन में पानी एकत्र किया गया वह पूरा नहीं होगा, जबकि दूसरा यह कि जो पानी बाहर निकाला गया वह किसी न किसी रूप में कोई न कोई समस्या पैदा करेगा.”

उपरोक्त शब्द सैहगल फाउंडेशन के भूजल विशेषज्ञ ललित मोहन शर्मा के हैं.

वहीं, छत्तीसगढ़ के मशहूर भूजल वैज्ञानिक विनीत दुबे कहते हैं कि ज़िला प्रशासन ने आरोपी इंस्पेक्टर को निलंबित करते हुए सज़ा दे दी. लेकिन, सज़ा से कोई काम नहीं बनता. सज़ा के बजाय आरोपी को ही नहीं, बल्कि पूरे मानव समाज को पानी के संबंध में अपनी मानसिकता बदलनी चाहिए.

वह आगे कहते हैं, “हर ग़लत काम एक सीख लेकर आता है. ऐसे में इंस्पेक्टर के द्वारा की गई गैर ज़िम्मेदाराना हरक़त का उदाहरण लेकर हमें जल के महत्व व उसके संरक्षण की दिशा में जनमानस को जागरूक करना होगा, ताकि भविष्य में ऐसी गलती दोबारा न हो.”

जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार की तरफ से जल संरक्षण के लिए किए गए कार्य के लिए दो बार नेशनल अवार्ड से सम्मानित विनीत कहते हैं कि “रही बात बेसिन से पानी बाहर किए जाने के बाद हुए नुक़सान की, तो बहाए गये पानी से लगभग दो हज़ार बीघे खेत की सिंचाई की जा सकती थी.”

पानी की इस हानि को अगर रुपये के माध्यम से समझें, तो मान लें कि एक रुपये प्रति लीटर में बिकता है. सरकारी डाटा के अनुसार, 21 लाख लीटर पानी की कीमत 21 लाख रुपये हुई. ऐसे में आरोपी फूड इंस्पेक्टर ने अपने एक लाख रुपए के मोबाइल फोन के लिए 21 लाख रुपये के पानी का नुक़सान पहुंचा दिया.

भूजल विशेषज्ञ ललित मोहन शर्मा कहते हैं कि जिस तरह की बातें सामने आई हैं उससे मुझे नहीं लगता कि मात्र 21 लाख लीटर बहाया गया है, बल्कि इससे कई गुना अधिक पानी बर्बाद किया गया है.

सरकार और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप

फूड इंस्पेक्टर विवाद पर मुख्यमंत्री बघेल व पूर्व मुख्यमंत्री रमन के बीच ट्वीट वॉर शुरू हो गया है.

पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने तंज कसते हुए ट्विटर पर लिखा, “दाऊ भूपेश बघेल की तानाशाही में अधिकारी प्रदेश को पुश्तैनी जागीर समझ बैठे हैं. आज भीषण गर्मी में लोग टैंकरों के भरोसे हैं, पीने तक के पानी की व्यवस्था नहीं है. वहीं अधिकारी अपने मोबाइल के लिए 21 लाख लीटर पानी बहा दे रहे हैं. इतने में डेढ़ हज़ार एकड़ खेत की सिंचाई हो सकती थी.”

इसके जवाब में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ट्वीट कर कहा कि “दो बातें हैं डॉक्टर साहब. पहली ये कि अपने पद का दुरुपयोग करने का हक ‘नवा छत्तीसगढ़’ में किसी को नहीं है. जिस अधिकारी ने यह कृत्य किया है, उसे निलंबित किया जा चुका है. वह दौर बीत गया जब लोग सत्ता में बैठकर फर्जी राशन कार्ड बनाते थे और अपने बेटे का ‘पनामा’ में खाता खुलवाते थे. दूसरी बात ये है कि आज हमने मितान योजना में राशन कार्ड को जोड़ा है. अब नंबर 14545 पर फोन करके मितान को घर बुलाएं और घर बैठे ही राशन कार्ड बनवाएं. यह बहुत अच्छी शुरुआत है, इसको आप आगे तीन लोगों को बताएं और उनसे कहें कि वह भी आगे तीन लोगों को बताएं. जय छत्तीसगढ़.”