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Sengol: क्या है सेंगोल, जिसे नई संसद में रखा जाएगा? पीएम नेहरू से कैसा जुड़ा है इसका इतिहास

28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। इस नए संसद भवन में स्पीकर के आसन के पास में ‘सेंगोल’ को स्थापित किया जाएगा। सेंगोल भारतीय परंपरा का प्रतीक है, जिसका इतिहास 1947 में ब्रिटिश हुकूमत से सत्ता के हस्तांतरण से जुड़ा हुआ है। हालांकि, विपक्ष ने इसे मनगढ़ंत कहानी बताते हुए झूठा इतिहास बताया; जिसका कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं है।


By Team Mojo, 25 May 2023


नए संसद भवन में स्पीकर के आसन के पास रखा जाएगा राजदंड का प्रतीक 'सेंगोल'।

नई संसद संसद भवन के उद्घाटन को लेकर सियासी संग्राम छिड़ा हुआ है। विपक्ष राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के द्वारा इस नए भवन का उद्घाटन करवाने की मांग कर रहा है। अब तक 19 विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया है। विपक्षी पार्टियों का कहना है कि राष्ट्रपति के बजाय पीएम मोदी द्वारा इसका उद्घाटन किया जाना संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है। वहीं, इस बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा कर दी है कि 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नए संसद का उद्घाटन करने जा रहे हैं। साथ ही, उन्होंने यह भी बताया है कि नई संसद भवन में ऐतिहासिक ‘सेंगोल’ (Sengol) को स्थापित किया जाएगा।

गृह मंत्री ने बताया कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 14 अगस्त 1947 को तमिल परंपरा के अनुसार राजदंड के रूप में इस सेंगोल को स्वीकार किया था। यह भारत के लोगों के लिए अंग्रेजों से सत्ता के हस्तांतरण का संकेत था। अब तक इसे इलाहाबाद के एक संग्रहालय में रखा गया था, जिसे नई संसद भवन में लाया जाएगा। उन्होंने कहा कि इसका हमारे इतिहास में बड़ा योगदान है। इसे संसद भवन में स्पीकर के आसन के बगल में रखा जाएगा। अमित शाह ने कहा, “सेंगोल को संग्रहालय में रखना ठीक नहीं है। यह अंग्रेजों से सत्ता ट्रांसफर का प्रतीक है, जो अब अमृतकाल का प्रतिबिंब होगा।”

सेंगोल के ऊपरी हिस्से में बने 'नंदी' को भगवान शिव के वाहन के रूप में मान्यता प्राप्त है।

सेंगोल क्या है?

सेंगोल शब्द तमिल शब्द ‘सेम्मई’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘नीतिपरायणता’। सेंगोल एक राजदंड होता है। यह चांदी के सेंगोल पर सोने की परत होती है। इसके ऊपर हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान शिव के वाहन नंदी महाराज विराजमान होते हैं। यह सेंगोल पांच फीट लंबा है।

देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा 1947 में स्वीकारे गए इसी सेंगोल को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लोकसभा में अध्यक्ष के आसन के पास प्रमुखता से स्थापित किया जाएगा। जानकारी के मुताबिक, सेंगोल विशेष अवसरों पर बाहर ले जाया जाएगा ताकि जनता भी इसके महत्व को जान सके।

सेंगोल को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू को 1947 में सत्ता हस्तांतरण के रूप में सौंपा गया।

नेहरू को आजादी से ठीक पहले क्यों मिला सेंगोल

ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक, तमिल परंपरा में राज्य के महायाजक (राजगुरु) नए राजा को सत्ता ग्रहण करने पर एक राजदंड भेंट करता है। परंपरा के अनुसार, यह राजगुरु थिरुवदुथुरै अधीनम मठ का होता है। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने 14 अगस्त 1947 को रात के 11:45 बजे यानी, आजादी मिलने से 15 मिनट पहले इसे नेहरू को सौंपा।

पहले, मठ के राजगुरु ने इस राजदंड को भारत के अंतिम वायसराय माउंटबेटन को दिया। इसके बाद ब्रिटिश राज से सत्ता हस्तांतरण के तौर पर सेंगोल को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू को भेंट किया गया।

चोल साम्राज्य में एक राजा से उसके उत्तराधिकारी को सेंगोल का प्रतीकात्मक हस्तांतरण किया जाता था।

सेंगोल का महत्व

ब्रिटिश हुकूमत से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण के समारोह पर चर्चा के दौरान वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने जवाहरलाल नेहरू से एक प्रश्न किया। माउंटबेटन ने भारत के भावी प्रथम प्रधानमंत्री से प्रतीकात्मक समारोह के बारे में जानकारी ली। इसके लिए नेहरू ने सी. राजगोपालाचारी से सलाह मांगी, तब राजगोपालाचारी ने पंडित नेहरू को चोल वंश के सत्ता हस्तांतरण के मॉडल से प्रेरणा लेने का सुझाव दिया।

दरअसल, चोल वंश में एक राजा से दूसरे राजा को सत्ता सौंपते वक्त शीर्ष पुजारियों का आशीर्वाद दिया जाता था। राजगोपालाचारी के अनुसार, चोल काल में एक राजा से उसके उत्तराधिकारी को सेंगोल का प्रतीकात्मक हस्तांतरण शामिल था, इसलिए सेंगोल को अधिकार और शक्ति का प्रतीक माना गया।

प्रयागराज में आनंद भवन के नेहरू संग्रहालय में रखा सेंगोल।

अब तक कहां रखा था सेंगोल?

जवाहरलाल नेहरू को सेंगोल सौंपे जाने के बाद इस राजदंड को इलाहाबाद (प्रयागराज) में पंडित नेहरू के संग्रहालय आनंद भवन में रख दिया गया। यह नेहरू परिवार का पैतृक निवास है, जिसे बाद में संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया।

बताया जा रहा है कि कुछ समय पहले प्रधानमंत्री मोदी ने 1947 में हुई इस घटना और संगोल के बारे में जानकारी मांगी, जिसके बाद प्रयागराज के संग्रहालय में इसके रखे होने का पता चला।

न्यायपूर्ण व निष्पक्ष शासन का प्रतीक

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मान्यता के अनुसार सेंगोल को ग्रहण करने वाले व्यक्ति को न्यायपूर्ण और निष्पक्ष रूप से शासन करने का ‘आदेश’ (तमिल में ‘आणई’) होता है। और, यह किसी भी जनप्रतिनिधि के लिए उसके आवश्यक कर्तव्यों में एक माना जाता है।

जानकारी के अनुसार, 28 मई को नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में सेंगोल के निर्माण से जुड़े रहे 96 साल के वुम्मिडी बंगारु चेट्टी भी शामिल होंगे।

हालांकि, विपक्ष और कई जानकार सेंगोल के इतिहास को लेकर चल रही इन मीडिया रिपोर्ट्स को एक मनगढ़ंत कहानी बता रहे हैं। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने दावा किया है कि ‘सेंगोल’ को भारत में सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में वर्णित करने का कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं है।

वह कहते हैं कि लॉर्ड माउंटबेटन, सी राजगोपालाचारी और जवाहरलाल नेहरू को लेकर भाजपा द्वारा फैलाई गई बातें झूठ हैं। जयराम ने यह भी आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा, तमिलनाडु में अपने राजनीतिक फायदे के लिए औपचारिक राजदंड का इस्तेमाल कर रहे हैं।