Climate Change: हिमालयी क्षेत्रों में बर्फ़बारी न होना बना चिंता का सबब, जल संकट एवं तापमान बढ़ने की आशंका
मौसम वैज्ञानिकों और कृषि जानकारों के अनुसार, यह स्थिति चिंताजनक है। जलवायु परिवर्तन के असर साफ़ नज़र आने लगे हैं। पहाड़ों पर सीज़न में बर्फ़ की गैर-मौजूदगी आने वाले महीनों में गर्मी भीषण पड़ने के संकेत दे रही है।
19 Jan 2024 1:37 PM IST
क्रिसमस से नये साल के पहले सप्ताह तक देवेश सिंह का परिवार इस उम्मीद में विंटर ब्रेक पर रहा कि गुलमर्ग में बर्फ़बारी (स्नोफॉल) का लुत्फ़ उठा सकेंगे। “हमें ट्रेवल एजेंट बता रहे थे कि जनवरी के पहले हफ़्ते तक बर्फ़ गिर जाती है, पर अभी तो मध्य-जनवरी तक बर्फ़ नहीं गिरी है,” कश्मीर से लौटे देवेश सिंह ने कहा, “मुझे चार साल पहले भी जनवरी में कश्मीर आने का मौक़ा मिला था, तब गुलमर्ग बर्फ़ की चादर से पटा था।”
अमूमन पहाड़ी क्षेत्रों (खासकर हिमालय पर्वत से सटे) में नवंबर के आख़िरी दिनों से लेकर जनवरी तक बर्फ़ गिरने का समय होता है, लेकिन इस बार जनवरी के 18 दिन बीत जाने के बाद भी वहाँ बर्फ़ नहीं गिरी है। बर्फ़बारी में देरी से पर्यटन से जुड़े व्यवसायों पर असर तो है ही, इसके गहरे परिणाम कृषि पर भी देखने को मिल सकते हैं।
Climate Change बन रहा चिंता का सबब
नेपाल से हिंद कुश तक जलवायु परिवर्तन पर्यावरणविदों और नीति निर्माताओं के लिए चिंता का सबब बना है। “स्नोफॉल नहीं होने के आर्थिक नुक़सान बड़े हैं। फसलों पर असर के मद्देनज़र किसानों को सब्सिडी देने की ज़रूरत पड़ सकती है। पहाड़ों पर तापमान और गर्मी के दिन बढ़ेंगे, उसका मतलब है कि जैव-विविधता असंतुलित होगी। किसान हाइब्रिड और कृत्रिम बीजों की तरफ़ रुख़ करेंगे। उसका असर स्वाभाविक है कि स्वास्थ्य पर भी पड़ेगा,” सेव वूलर लेक के संस्थापक और पर्यावरण कार्यकर्ता शकील ख़ान ने मोजो स्टोरी से कहा।
“बर्फ़बारी कीट प्रबंधन का सबसे कारगर समाधान है। इससे पेड़-पौधों और मिट्टी में रहने वाले नुक़सानदेह कीड़े और बैक्टेरिया आदि ख़त्म हो जाते हैं और फ़सल बिना ज़हरीले रासायनिक कीटनाशक के अच्छी हो जाती है। हिमालयी राज्यों में बर्फ़बारी नहीं होने से फसलों की सेहत पर असर देखने को मिलेगा। उससे निपटने की तैयारी की जानी चाहिए,” कृषि विशेषज्ञ और रिजेनिरेटिव, बिहार से जुड़े इश्तियाक़ अहमद ने कहा, “वैज्ञानिकों का भी कहना है कि पहाड़ी क्षेत्रों के दरख़्त सर्दियों में इस उम्मीद में अपने पत्ते गिरा देते हैं कि बर्फ़बारी से उन्हें काफ़ी नमी मिल जाएगी और गहरी जड़ें केशिका गति को वक़्ती तौर पर रोक दिया करती हैं। इस बार न तो बारिश हुई और न ही बर्फ़बारी, ऐसे में इस बात का ख़तरा बहुत बढ़ जाता है कि पेड़ पानी की कमी की वज़ह से मर जाएं या बहुत बीमार पड़ जाएं।”
काठमांडू यूनिवर्सिटी के डॉ. रिजन भक्ता के अनुसार, “पश्चिमी विक्षोम के कमज़ोर पड़ने के कारण पहाड़ी क्षेत्रों (जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड) में बर्फ़बारी नहीं हो सकी है। यहां तक कि नेपाल के भी पहाड़ी क्षेत्रों में नाम मात्र की बर्फ़बारी हुई है। अगर अगले पांच से सात दिनों में पहाड़ों पर बर्फ़ नहीं गिरी तो फसलों का ख़राब होना निश्चित है। वर्तमान स्थिति को देखते हुए हमें आने वाले दिनों में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से जूझने के लिए तैयार हो जाना चाहिए।”
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में हिमालयी क्षेत्रों को जलवायु परिवर्तन के लिहाज़ से नाज़ुक बताया गया है। वहीं, हिंदकुश हिमालय रिपोर्ट के अनुसार, हिमालय का औसत तापमान पिछले 100 वर्षों में वैश्विक औसत तापमान से अधिक हो गया है। उसका असर यह हुआ है कि पहाड़ों के तापमान बढ़ते जा रहे हैं, जिससे गृष्म ऋतु का प्रभाव बढ़ा है और शीत ऋतु के दिन घट गए हैं।
गुलमर्ग से क्यों गुल बर्फ़बारी
“कश्मीर के लिए यह चिलई कलाँ का मौसम है। गुलमर्ग में इस मौसम में न्यूनतम तापमान कम से कम माइनस तीन से माइनस सात डिग्री तक और अधिकतम तापमान दो से पांच डिग्री तक होना चाहिए। जबकि, वहां अभी अधिकतम तापमान नौ से 11 डिग्री तक है और न्यूनतम तापमान ज़ीरो से दो के बीच है,” गुलमर्ग में अलताफ़ होम स्टे के मालिक अलताफ़ कादरी हुसैन ने कहा, “लोग यहां छुट्टियों में स्नोफॉल देखने आते हैं। बर्फ़ नहीं गिरने से सैलानियों को निराशा होती है। हम भी उन्हें कई तरह के स्नो स्पोर्ट नहीं करवा पाते, जिससे हमारे व्यवसाय और समूचे पर्यटन उद्योग को नुक़सान होता है।”
इंडियन मेटेरोलॉजिकल डिपार्टमेंट (आईएमडी श्रीनगर) के निदेशक मुख़्तार अहमद बताते हैं कि बर्फ़ न पड़ने का दूरगामी प्रभाव यह है कि पूरे राज्य में पानी की किल्लत हो जाती है। “पहाड़ों का बर्फ़ ही गर्मियों में पिघलकर नदियों का जल स्रोत बनता है। हिमनदों (ग्लेशिअर) में पानी पहाड़ों के बर्फ़ पिघलने से ही रिचार्ज होता है, ऐसे में अगर बर्फ़ नहीं गिरेगी तो पानी की दिक़्क़त शुरू हो जाएगी।”
पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने भी स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा, “मैंने ऐसा गुलमर्ग कभी नहीं देखा। अगर बर्फ़ नहीं पड़ी तो गर्मी कष्टकारी होने वाली है।”
इंडियन मेटेरोलॉजिकल डिपार्टमेंट (आईएमडी) का अनुमान है कि जनवरी के आख़िरी दिनों से बर्फ़बारी शुरू होगी जो कुछ 10-15 दिनों तक जारी रहेगी। हालांकि, बर्फबारी में देरी से फ़सल चक्रों को नुक़सान होगा; साथ ही मौसमी चक्र के भी बाधित होने की संभावना है। ऐसे में वक़्त की ज़रूरत है कि जलवायु परिवर्तन पर गंभीरता से विचार किया जाए और भौगोलिक क्षेत्रों के लिहाज़ से क्लाइमेट एक्शन प्लान बनाए जाएं।
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