कमज़ोर तबके के बच्चों के लिए जीवनदान बना Ajmer का Night School, सुबह कमाई तो रात में करते हैं पढ़ाई

कमज़ोर तबके के बच्चों के लिए जीवनदान बना Ajmer का Night School, सुबह कमाई तो रात में करते हैं पढ़ाई

अजमेर के किशनगढ़ तहसील के कोटरी गांव में एनजीओ 'मंथन' द्वारा की गई एक अनूठी पहल समाज के हाशिए पर खड़े नन्हे बच्चों के जीवन में बड़ा बदलाव ला रही है।

वैसे तो भारतीय संविधान के शिक्षा के अधिकार, एक्ट 2009 के अंतर्गत देश के सभी छह से 14 साल के बच्चे को मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है। बावजूद इसके आज भी कमज़ोर तबके के सैकड़ों बच्चे शिक्षा से वंचित हैं।

सरकार की शैक्षणिक व्यवस्था का लाभ आज भी कोटरी जैसे गांवों तक नहीं पहुंच पाया है। असमानता की इस खाई को भरने के लिए मंथन नामक एक एनजीओ ने जुलाई, 2023 में कोटरी गांव में नाइट स्कूल शुरू किया। यह स्कूल आम सरकारी एवं निजी स्कूलों से हर मायने में अलग है। यह विद्यालय दिन में खेती-मजदूरी करने वाले बच्चों को शिक्षित करने के लिए शुरू किया गया था।

नाइट स्कूल का कॉन्सेप्ट और शिक्षकों की चुनौती

कोटरी में स्थित इस नाइट स्कूल में ठंड के दिनों में शाम 4 बजे से शाम 7 बजे तक, जबकि गर्मियों में शाम 4 से 8 बजे तक कक्षाएं चलाई जाती हैं। स्कूल का समय इस बात को ध्यान में रखकर तय किया गया है कि सुबह मेहनत-मजदूरी करने वाले बच्चे शाम को आकर यहां पढ़ सकें।


नाइट स्कूल के बाहर खड़े बच्चे और शिक्षक।

नाइट स्कूल में पढ़ाने वाली दो शिक्षिकाओं में से एक सुनीता बताती हैं, “पहले यह नाइट स्कूल कोटरी गांव में शुरू किया गया था। घर से स्कूल की दूरी अधिक होने की वज़ह से काफ़ी अभिभावक बच्चों को स्कूल नहीं भेजते थे। बच्चों के माता-पिता से बातचीत के बाद कोटरी से 12 किलोमीटर दूर आऊ गांव में नाइट स्कूल फ़िर से शुरू किया गया। फिलहाल स्कूल में पंजीकृत छात्रों की कुल संख्या 31 है, हालांकि उनमें से पढ़ने आने वालों की संख्या केवल 25 है। उन 25 बच्चों में से 17 लड़कियां और आठ लड़के हैं।”

सुनीता ने यह भी बताया कि शुरुआती दिनों में उन्हें साथी शिक्षिका पूजा के साथ घर-घर जाकर अभिभावकों को शिक्षा के महत्व पर जागरूक करना पड़ता था। इस दौरान उन्हें कई कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ा, जैसे; कई अभिभावक उन्हें दरवाज़े से भगा देते थे, जबकि कई का यह भी मानना था कि शिक्षा उनके बच्चों के लिए अनुपयोगी है।

नाइट स्कूल में पढ़ने आने वाले सभी बच्चे बागरिया और कालबेलिया समुदाय से आते हैं। बागरिया जनजाति मुख्यतौर पर बकरी, गाय और अन्य मवेशी चराने का काम करती है, जबकि कालबेलिया समुदाय के लोग कला प्रदर्शन जैसे कि नाच, गायन और यंत्र बजाकर जीवनयापन करते हैं।

बतौर नागरिक अधिकारों से वंचित दोनों समुदाय के लोग कई वर्षों से अनेक समस्याओं से जूझ रहे हैं, जैसे; साफ़ पानी की कमी, पर्याप्त खाने की कमी एवं मोतियाबिंद, गठिया व पायरिया जैसी शारीरिक बीमारियां। “उन सभी समस्याओं के बीच लोगों के लिए शिक्षा का महत्व काफ़ी बौना हो जाता है,” सुनीता ने जोड़ा।

हालांकि, वह यह भी मानती हैं कि उन सभी समस्याओं का निवारण केवल शिक्षा और जागरूकता है।

सुनीता बताती हैं, “शुरुआती दिनों में बच्चों का शिक्षा के प्रति रुझान बढ़ाने के लिए उन्हें बिस्किट और चॉकलेट का लालच दिया जाता था। लेकिन, धीरे-धीरे बच्चों का रुझान पढ़ने और सीखने में बढ़ने लगा और अब उन्हें किसी भी तरह का लोभ देने की जरूरत नहीं पड़ती।”


आऊ ग्राम स्थित नाइट स्कूल में अक्षर ज्ञान लेते हुए बच्चे।

आम विद्यालयों से कैसे अलग है नाइट स्कूल?

आऊ गांव का यह नाइट स्कूल आम स्कूल से कई मायनों में अलग है, जैसे; यहां पर कक्षाओं का विभाजन नहीं है, तो चार से लेकर 13 साल तक के बच्चे एक ही छत के नीचे बैठकर पढ़ाई करते हैं।

शिक्षिका पूजा नाइट स्कूल की शिक्षा प्रणाली के बारे में बताते हुए कहती हैं, “यहां आने वाले सभी बच्चे प्रारंभिक शिक्षा से वंचित रहे हैं, ऐसे में हमारा मुख्य उद्देश्य उन्हें सबसे पहले प्राथमिक शिक्षा देना है। शुरुआत में कई छह से सात साल के बच्चों को अपने माता पिता का नाम बताना तक नहीं आता था। ऐसे में हमने बच्चों को सबसे पहले अपना परिचय देना सिखाया। उसके कुछ महीने बाद हम उनके साथ स्वर-व्यंजन के अभ्यास की ओर बढ़े।”

वह आगे कहती हैं, “पढ़ाई में कुछ बच्चों का रुझान देखकर हमें काफ़ी प्रोत्साहन मिलता है। वहीं, कुछ ऐसे बच्चे भी हैं जो उम्र में बाकी बच्चों से बड़े हैं, परंतु स्कूल आने में दिलचस्पी नहीं रखते। हम इस समस्या का उपाय भी खोज रहे हैं।”

किस सामाजिक पृष्ठभूमि से आते हैं बच्चे?

नाइट स्कूल में पढ़ने आने वाले गगन कि उम्र 11 वर्ष है। गगन बागरिया समुदाय से आते हैं, उनके माता-पिता नमक के प्लांट पर मजदूरी का काम करते हैं। यह नमक का प्लांट सांबर लेक के नाम से प्रसिद्ध है, जहां नमक की खेती की जाती है। यहां मजदूरी करने वाले अधिकतर लोग बागरिया और कालबेलिया जनजाति से हैं।

गगन की कोई प्रारंभिक शिक्षा नहीं हुई है। उसकी बड़ी वज़ह यह है कि वे अपने माता-पिता के साथ छह वर्ष की उम्र से ही नमक के प्लांट पर जाते थे। अब भी वह सुबह के वक़्त नमक के प्लांट पर जाते हैं और शाम में पांच बजे नाइट स्कूल आते हैं।

गगन ने मोजो स्टोरी से बातचीत में बताया कि पहले उन्हें अपना नाम भी लिखना नहीं आता था, परंतु अब वह नाम लिखने के साथ-साथ स्वर, व्यंजन और गिनती करना भी सीख गए हैं। गगन भविष्य में डॉक्टर बनना चाहते हैं।

वहीं, पांच वर्षीय गुलाब बिना नागा किए हर रोज़ स्कूल आती हैं। शिक्षकों के अनुसार, गुलाब एक तेजस्वी छात्र एवं कक्षा में सबसे निपुण हैं।


नाइट स्कूल में उत्सव मनाते बच्चे।

किताबी ज्ञान के साथ व्यवहारिक ज्ञान पर भी ध्यान

नाइट स्कूल में बच्चों को शैक्षणिक ज्ञान के साथ-साथ व्यवहारिक ज्ञान भी सिखाया जाता है, जैसे; शौच के बाद हाथ धोने का तरीका, दांत साफ़ करने का महत्व एवं अन्य सफाई के तरीके। इसके अलावा बच्चों के बात करने के तरीके पर भी ध्यान दिया जाता है, ताकि उन्हें सही सलीका सिखाया जा सके।

मंथन संस्थान के तेजाराम माली बताते हैं कि वह सन् 1998 से मंथन संस्था के कोऑर्डिनेटर हैं। उनके अनुसार, संस्था द्वारा संचालित नाइट स्कूल वंचित समुदाय के बच्चों के विकास में हरसंभव सहयोग करते हैं।

वह आगे कहते हैं, “बच्चों के अभिभावकों को शिक्षा के महत्व पर जागरूक करना काफ़ी मुश्किल रहा, लेकिन निरंतर प्रयासों के बाद अब काफ़ी बदलाव देखा जा सकता है। नाइट स्कूल आने वाले बच्चे अब अपने आप को पिछड़ा हुआ महसूस नहीं करते, उनके व्यवहार और बातचीत के तरीके में एक सलीका दिखाई देता है। बच्चों में सीखने और पढ़ने की लालसा भी बढ़ी है।”

तेजाराम अफसोस भरे स्वर में कहते हैं कि संसाधनों की कमी के कारण नाइट स्कूल केवल बच्चों की शिक्षा पर ही ध्यान दे पा रहा है। उसके अतिरिक्त भोजन वगैरह की सुविधा उपलब्ध करवाने में संस्था अभी सक्षम नहीं है। साथ ही वह यह आशा करते हैं कि आने वाले समय में और भी बच्चे नाइट स्कूल आने के लिए प्रेरित होंगे।

बागरिया समुदाय के साथ काम करने वाले फेलो आकिफ़ अली कहते हैं कि नाइट स्कूल में प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी है, जिसके चलते उसका लाभ अधिक बच्चों तक नहीं पहुंच पा रहा है। उनके अनुसार, नाइट स्कूल में कक्षाओं का विभाजन किया जाना चाहिए ताकि अध्ययन शैली को बेहतर किया जा सके। इसके साथ ही प्रौढ़ शिक्षा द्वारा समुदाय के लोगों को सामान्य शिक्षा जैसे कि साक्षात्कार करना, सरकारी दस्तावेजों की समझ रखना एवं अन्य ज़रूरी जानकारी पर काम किया जा सकता है।

Next Story