Consumer Rights: बतौर ग्राहक अपने अधिकारों के बारे में कितना जागरूक हैं लोग? आख़िर कंज्यूमर कोर्ट में क्यों लंबित रहते हैं मामले

Consumer Rights: बतौर ग्राहक अपने अधिकारों के बारे में कितना जागरूक हैं लोग? आख़िर कंज्यूमर कोर्ट में क्यों लंबित रहते हैं मामले

ASSOCHAM की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 40 फ़ीसद लोगों को पता ही नहीं होता है कि यदि उनके कंज्यूमर राइट का हनन हो रहा है तो उसकी शिकायत कहां करें।

बीते 15 मार्च को ‘विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस’ (World Consumer Rights Day) मनाया गया। सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म पर फ़िल्म सेलिब्रिटीज़, पॉलिटिशियन्स, सोशल वर्कर्स, एक्टिविस्ट्स व अन्य लोगों ने इस मौक़े पर ग्राहकों के अधिकारों से संबंधित संदेश साझा किए। उस एक दिन में जागरुकता से जुड़ी इतनी बातें साझा की गईं जैसे उसकी बाढ़ सी आ गई। ऐसे में यह समझना बहुत ज़रूरी है कि क्या वाक़ई आम लोग ‘कंज़्यूमर राइट’ को लेकर जागरूक हैं?

रोज़मर्रा की गतिविधियों में छोटी से बड़ी खरीददारी के दौरान यदि एक ग्राहक के अधिकारों का हनन हो रहा है, तो क्या वे उसको समझ पा रहे हैं? और, अगर समझ पा रहे हैं तो क्या किसी गड़बड़ी की स्थिति में वह ‘उपभोक्ता फोरम’ जाकर मामला दर्ज़ करा पा रहे हैं? यदि नहीं, तो ऐसी कौन-सी चीज़ है जो उन्हें ऐसा कर सकने से रोक रही है? वहीं, कुछ ऐसे भी मामले हैं जहां लोग उपभोक्ता फोरम में ‘कंज़्यूमर राइट’ के हनन के मामले दर्ज़ कराते हैं लेकिन फैसला उनके पक्ष में नहीं आता है या फिर उपभोक्ता की मांग के मुताबिक़ फैसला नहीं आता है।

दुमका ज़िले के एक मोटर मैकेनिक मो. ज़ुबेर आलम से जब हमने पूछा, “क्या आपको पता है कि एक ग्राहक के तौर पर आपके क्या अधिकार हैं?” तो उनका जवाब था ‘नहीं’। आगे जब हमने उनसे पूछा कि मान लें आप ऑनलाइन कोई सामान खरीदते हैं या बाज़ार से ही कोई चीज़ खरीदते हैं और आपको लगता है कि किसी भी प्रकार से आपको ठग लिया गया है या आपसे सामान के लिए अधिक पैसे लिए गए हैं, तो ऐसे में आप क्या करते हैं?” इस प्रश्न के जवाब में ज़ुबेर कहते हैं कि दुकानदार से बहस हो जाती है।

मसलन, गिनती की जाए तो ज़ुबेर जैसे युवाओं की फेहरिस्त बड़ी लंबी होगी; जिन्हें उपभोक्ता अधिकारों के बारे में जानकारी नहीं है।

दुमका ज़िले के मसलिया प्रखंड अंतर्गत रांगामटिया गांव के झंटु बताते हैं, “फतेपुर में दवा की कुछ दुकान हैं जहां एमआरपी से दो रुपये अधिक क़ीमत पर दवा बेची जाती है। कई बार हम सोचते हैं कि दुकानदार के ख़िलाफ़ शिकायत करें, लेकिन यह सोचकर पीछे हट जाते हैं कि हमें तो गांव में ही रहना है और पैसे वाले लोगों से दुश्मनी करके क्या फ़ायदा।

ज़ुबेर और झंटु जैसे युवाओं ने ग्राहक अधिकारों के हनन को लेकर जो बातें बताईं; वह लोगों के बीच आम-सी हो चुकी हैं। यानि कि ऐसी चीज़ें प्रचलित होने से लोगों ने इसे अपने मन में स्वीकार लिया है। यह स्वीकार्यता वहां अधिक है जहां शिक्षा की कमी है।


मोटर मैकेनिक कृष्णा •

तेज़ी से डिजिटल होते दौर में कृष्णा जैसे युवा भी सामने आते हैं; जो कहते हैं कि ऑनलाइन शॉपिंग करने में पहले डर लगता था। पता नहीं कि ईंट-पत्थर भरकर भेज देंगे या टूटा हुआ सामान आ जाएगा, लेकिन अब हम सोशल मीडिया में वीडियो देखते हैं कि अगर हमारे साथ कुछ ऐसा हुआ तो क्या करना है। हम सीधे ‘कंज्यूमर कोर्ट’ में केस कर सकते हैं।

डोर-टू-डोर सर्विस के नाम पर ‘कंज्यूमर राइट’ का हनन

लीगल डॉक्यूमेंट का सहारा लेकर दिल्ली-एनसीआर के आसपास की कंपनियां खुलेआम ‘ग्राहकों के अधिकारों’ का हनन कर रही हैं। अपने बेरोज़गारी के दिनों में अंकित सिन्हा ने वर्ष 2021 में गूगल पर टॉप 10 बिज़नेस आइडियाज़ ढूंढा, जिस दौरान उन्हें गूगल सर्च लिस्ट में ‘कार डिटेलिंग सर्विस’ के बारे में बताया गया। फिर अंकित ने जब गूगल पर कार डिटेलिंग सर्विस के बारे में रिसर्च करना शुरू किया तो कई कंपनियों के नाम आए, जिनमें से एक नाम था ‘Easydays Marketing LLP’। उसके बाद अंकित ने उक्त कंपनी की वेबसाइट में जाकर अपनी जानकारी दी, जिसके बाद उन्हें एक महिला एग्जीक्यूटिव का कॉल आया। उस कॉल में अंकित को बताया गया कि आपको फ़्रेंचाइज़ी लेने के लेने के लिए 50 हज़ार रुपये देने होंगे, जिसके बाद हम हर रोज़ आपको चार से पांच लीड (कस्टमर) देंगे। उन्हें यह भी बताया गया कि हर महीने अंकित और कंपनी के बीच 70:30 (अनुपात में) कमीशन शेयर होगा।


अंकित कार वॉश फ़्रेंचाइज़ी के तहत के तहत कार की धुलाई होते हुए।


अंकित बताते हैं, “कुछ समय बाद मैंने तय किया कि दिल्ली जाकर देखता हूं कि यह कंपनी सही है या फ्रॉड? तब तक 500 रुपये एडवांस पेमेंट मुझसे ले लिए गए थे और फ़ोन पर दबाव बनाया जा रहा था कि मैं दिल्ली आने से पहले पूरे 50 हज़ार रुपये कंपनी के खाते में ट्रांसफर कर दूं।”

अपनी व्यथा का ज़िक्र करते हुए अंकित कहते हैं, “दिल्ली पहुंचकर पता चला कि कंपनी का ऑफिस हरोला सेक्टर-2 (नोएडा) में है। वहां पहुंचने के बाद हमें चाय-नाश्ता कराया गया और बार-बार दबाव बनाया जाने लगा कि मैं जल्द से जल्द उनकी अग्रीमेंट साइन कर दूं। उस दौरान मैंने लगभग 40 हज़ार रुपये ऑफिस में बैठकर ही उनको ट्रांसफर कर दिया और फिर कहा कि घर पहुंचकर शेष राशि भेज दूंगा। उसके बाद कंपनी वालों ने कॉर वॉश के लिए कुछ सामग्री दी और इस वादे के साथ मुझे झारखंड भेजा कि हर दिन आपको लीड प्राप्त होंगे।”


अंकित को कंपनी की ओर से मिला कार वॉश कीट।

छह महीने में मिली ‘फ़्रेंचाइज़ी रिन्यू’ करने की नोटिस

अंकित के घर लौटकर बाकी पैसा कंपनी के अकाउंट में जमा करने के बावजूद लगभग दो महीने तक कंपनी ने उनका काम ही शुरू नहीं कराया। अंकित को उनके जमा की गई राशि से दुमका और देवघर की फ़्रेंचाइज़ी मिली थी। कंपनी ने उनको भरोसा भी दिया था कि काम मिलेगा, इसलिए अंकित ने देवघर में किराये पर एक मकान भी ले लिया ताकि वहां रहकर अच्छे से काम हो। लेकिन उसके बाद कंपनी पर दबाव बनाने पर जैसे-तैसे कभी एक तो कभी दो लीड मिलने शुरू हुए, जबकि आगे चलकर चौथे महीने में कंपनी ने लीड देना बंद कर दिया।

अंकित बताते हैं कि जब लीड न मिलने के बारे में कंपनी के अधिकारियों को जानकारी दी तो बताया गया कि “आपका अग्रीमेंट छह महीने तक ही मान्य था, फिर से 50 हज़ार रुपये जमा कराएं तभी आपका अग्रीमेंट अगले छह महीने के लिए रिन्यू होगा।”

अंकित के मुताबिक़, काम शुरू करने से पहले कंपनी ने ऐसी कोई भी बात उन्हें नहीं बताई थी कि हर छह महीने में उक्त राशि देकर अग्रीमेंट को रिन्यू करना पड़ेगा। ऐसे में अब अंकित समझ चुके थे कि उनसे साथ फ्रॉड हुआ है।

उनसे पूछे जाने पर कि क्या यह मामला आपने कंज्यूमर फोरम में दर्ज़ कराया था? अंकित कहते हैं, “कंपनी ने बड़ी चालाकी से अग्रीमेंट में छोटे अक्षरों में लिख रखा था कि प्रत्येक छह महीने में अग्रीमेंट रिन्यू होगा, जबकि मौखिक तौर पर ऐसा कुछ भी नहीं कहा गया था। इसलिए मैंने यह सोचकर कंज़्यूमर फोरम में मामला दर्ज़ नहीं कराया कि अब तक इतने पैसों का नुक़सान हो गया, न जाने आगे और कितने पैसे ख़र्च होंगे।”

‘Easydays Marketing LLP’ ने केवल अंकित के साथ ही फ्रॉड नहीं किया था। देशभर से कई लोगों ने डोर-टू-डोर कार डिटेलिंग सर्विस के नाम पर कंपनी की फ़्रेंचाइज़ी ली थी। किसी का काम महीने भर में बंद हो गया तो किसी का काम शुरू ही नहीं हो पाया। ऐसा ही एक मामला कोलकाता के दिलीप चक्रवर्ती (बदला हुआ नाम) के साथ हुआ, जिन्होंने उक्त कंपनी को ही 20 हज़ार रुपये दिए थे। हालांकि, जब उन्हें पता चला कि कंपनी फ्रॉड है तो उन्होंने और पैसा देने से मना कर दिया।

अंकित और दिलीप के मामलों से पता चलता है कि कंपनियां लीगल हथकंडे अपनाकर फ्रॉड कर रही हैं। अंकित द्वारा ‘Easydays Marketing LLP’ पर लगाए गए आरोपों के बारे में कंपनी के मार्केटिंग टीम के सदस्य रवि तिवारी से पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “कंपनी की पॉलिसी है कि हर छह महीने में फ़्रेंचाइज़ी अग्रीमेंट रिन्यू कराना पड़ता है। अग्रीमेंट में भी ये चीज़ें लिखी हैं।”

जब हमने रवि से पूछा कि क्या दुमका और देवघर के फ़्रेंचाइज़ी ओनर अंकित सिन्हा को मौखिक तौर पर भी यह बात बताई गई थी कि हर छह महीने में अग्रीमेंट को रिन्यू करना पड़ेगा? इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि टीम ने बताया होगा, जबकि अंकित का स्पष्ट रूप से कहना है कि “मुझे अगर बताया जाता तो मैं फ़्रेंचाइज़ी क्यों लेता?”


प्रतीकात्मक चित्र •

दिल्ली की तारा आर्या ने वर्षों लगाए ‘कंज्यूमर कोर्ट’ के चक्कर

मल्कागंज इलाके की तारा आर्या पेशे से पत्रकार हैं। वर्ष 2016 में ई-कॉमर्स वेबसाइट ई-बे से तारा ने एक टैबलेट ऑर्डर किया था। तारा का कहना है कि उनके ऑर्डर में ई-बे की ओर से उन्हें डैमेज टैबलेट भेज दिया गया था। वह बताती हैं, “मैंने जब ई-बे के सेलर से संपर्क कर उन्हें यह जानकारी दी कि टैबलेट डैमेज है, तो उन्होंने टैबलेट रिप्लेस करने से साफ़ मना कर दिया। उसके बाद मेरी बात ई-बे कस्टमर केयर से हुई, लेकिन उन्होंने भी मुझे सपोर्ट नहीं किया।”

तारा आगे कहती हैं, “ई-बे ने टैबलेट के डिब्बे में जो पता दिया था, वह बाराखंभा रोड का था; लेकिन वहां पहुंचने पर पता चला कि वह ग़लत पता है। उसके बाद मैंने ई-बे को आठ लीगल नोटिस भेजा, लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया। फिर मुझे जानकारी मिली कि उन्होंने अपना ऑफिस बाराखंभा रोड से कहीं और शिफ्ट कर दिया है, जिसके बाद मैंने उन्हें दोबारा नये पते पर लीगल नोटिस भेजा।”

तारा ने बताया कि लगभग एक साल कोर्ट के चक्कर लगाने पड़े, तब कहीं जाकर मामला ख़त्म हुआ। उनके अनुसार, जब भी तारीख़ पर कोर्ट जाना होता तो वे मल्कागंज से आईटीओ जाती थीं जिसमें उनके काफ़ी पैसे ख़र्च हो गए। कोर्ट में जब दोनों पार्टी के बीच समझौता हुआ तो तारा को ई-बे की ओर से केवल 25 हज़ार रुपये हर्जाना मिला, जबकि उन्होंने एक लाख रुपये का दावा किया था।


प्रतीकात्मक चित्र •

दिवाकर को है 'इंश्योरेंस क्लेम' मिलने का इंतज़ार

दुमका के दिवाकर की ब्रेज़ा गाड़ी पिछले तीन वर्षों से धनबाद के मारुती शोरुम में पड़ी है। मामला यह है कि एक कार हादसे में उनकी गाड़ी बुरी तरह क्षतिग्रसत हो गई थी। इंश्योरेंस क्लेम के लिए जब दिवाकर ने आवेदन किया तो कंपनी ने यह कहकर क्लेम रिजेक्ट कर दिया कि दिवाकर की गाड़ी का नंबर प्राइवेट है, जबकि हादसे के दौरान पाया गया कि गाड़ी ‘कमर्शियल पर्पज’ से इस्तेमाल की गई थी।

दिवाकर का कहना है कि इंश्योरेंस कंपनी ने जान-बूझकर क्लेम रिजेक्ट कर दिया, ताकि कंपनी क्लेम का पैसा बचा पाए। आज भी दिवाकर दुमका कंज़्यूमर फोरम के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन मामले का समाधान नहीं हो पा रहा है।

दुमका कंज़्यूमर फोरम के अधिवक्ता विक्रमादित्य पांडे से मामले की तकनीकी पहलुओं के बारे में पूछे जाने पर वह बताते हैं कि यह साबित करना बड़ा मुश्किल है कि गाड़ी प्राइवेट यूज में थी या कमर्शियल। हादसे के दौरान यदि एफआईआर में कहीं पर भी ज़िक है कि गाड़ी कमर्शियल यूज में थी, तब थोड़ा मुश्किल होता है।


प्रतीकात्मक चित्र •

क्या कहते हैं कंज्यूमर फोरम के अधिवक्ता?

दुमका कंज़्यूमर फोरम के अधिवक्ता विक्रमादित्य पांडे बताते हैं कि लोग ‘कंज्यूमर राइट’ को लेकर जागरूक नहीं हैं। उदाहरण देते हुए विक्रमादित्य ने कहा कि लोगों में एक भय यह भी रहता है कि वे जिस कंपनी के ख़िलाफ़ कंज़्यूमर फोरम में केस कर रहे हैं, उनकी पहुंच भी काफ़ी दूर तक होगी। उन्होंने कहा कि मान लें दुमका में बैठकर किसी ने टाटा के ख़िलाफ़ कंज्यूमर फोरम में केस किया। ऐसे में धनबाद से लेकर नेशनल कंज्यूमर तक उनके पैनल लॉयर रहते हैं। दुमका में कोई मामला हुआ तो वह स्टेट कंज्यूमर में गया। उसके बाद स्टेट कंज्यूमर से नेशनल कंज्यूमर में गया। सभी जगहों पर टाटा के पैनल लॉयर मौजूद हैं; ऐसी स्थिति में आम ग्राहकों को दिक्कतें होती हैं लेकिन फिर भी जागरूकता ज़रूरी है।

विक्रमादित्य पांडे ने बताया कि पहले कंज्यूमर फोरम में केस करने पर ग्राहकों को 100 रुपये का शुल्क देना पड़ता था, लेकिन अब चार लाख तक के क्लेम में उन्हें एक रुपये भी नहीं देने पड़ते हैं।

आम लोगों को उपभोक्ता अधिकारों के बारे में जागरुक करने को लेकर वह बताते हैं, “डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विसेज ऑथरिटी (DLSA) स्टेट गर्वनमेंट की बॉडी है। उसमें पैनल लॉयर से लेकर वॉलिंटियर तक मौजूद हैं। उसके तहत सरकार को शिविर लगाने की ज़रूरत है, ताकि आम लोगों को उपभोक्ता अधिकारों की जानकारी मिल पाए।”

उदाहरण के लिए मान लें कि किसी ग्राहक ने इंवर्टर की बैटरी खरीदी, जिसमें 48 महीने की वारंटी मिली। 48 महीने के अंदर अगर बैटरी में कोई समस्या आ जाए और ग्राहक क्लेम के लिए सर्विस सेंटर जाते हैं, तब उन्हें कहा जाता है कि आपने बैटरी में सही से पानी नहीं दिया; जबकि ऐसा कोई भी नियम नहीं है।

दुमका कंज्यूमर कोर्ट में मामले खिंच क्यों जाते हैं, इस पर बात करते हुए विक्रमादित्य पांडे बताते हैं, “दुमका कंज्यूमर फोरम में चेयरमैन नहीं हैं। चेयरमैन जामताड़ा ज़िले से आते हैं। वे मामलों को देखते हैं तब सुनवाई होती है। किसी भी कंज्यूमर कोर्ट में केस को रीजाल्व करने के लिए एक चेयरमैन और एक मेंबर का होना अनिवार्य है। जबकि, होता यह है कि राज्य सरकार ने मेंबर को रिक्रूट कर दिया लेकिन इस बीच चेयरमैन का कार्यकाल समाप्त हो गया।

कंज्यूमर फोरम में चेयरमैन रिटायर्ड डिस्ट्रिक्ट जज और एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज रैंक के होते हैं। उनका कार्यकाल पांच वर्ष का ही रहता है। अगर 63 वर्ष की आयु में कोई डिस्ट्रिक्ट जज या एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज कंज्यूमर फोरम में कार्यभार लेते हैं, तो वे केवल दो वर्ष ही यानि कि 65 वर्ष की आयु तक ही कंज्यूमर फोरम में रहेंगे।

बहरहाल, अगले वर्ष ‘कंज्यूमर राइट डे’ का थीम कुछ और होगा लेकिन ज़रूरी यह है कि थीम चाहे कुछ भी हो; आम लोग जागरुक बनें। उन्हें यदि महसूस हो कि उनके अधिकारों का हनन हो रहा है, तो उन्हें पता हो कि कंज्यूमर फोरम में शिकायत दर्ज़ कैसे करना है। और ऐसा संभव करने के लिए सरकार, सामाजिक संस्था और लोगों को सामूहिक पहल करनी होगी।

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