चंपाई सोरेन की ‘बग़ावत’ से गरमाई झारखंड की राजनीति, नई ‘पार्टी’ बनाने की अटकलों के बीच पशोपेश में कार्यकर्ता

चंपाई सोरेन की ‘बग़ावत’ से गरमाई झारखंड की राजनीति, नई ‘पार्टी’ बनाने की अटकलों के बीच पशोपेश में कार्यकर्ता

अगर चंपाई सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) से अलग होकर और बिना भाजपा में शामिल हुए चुनाव में उतरते हैं, तो वह जेएमएम को अच्छा-खासा नुक़सान पहुंचा सकते हैं।

झारखंड के विधानसभा चुनाव में अभी कुछ साढ़े पांच महीने बचे हैं। भ्रष्टाचार के आरोपों में हेमंत सोरेन जब जेल गए, तब 31 जनवरी 2024 को चंपाई सोरेन ने मुख्यमंत्री पद संभाला था। हेमंत सोरेन जब रिहा हुए तो 3 जुलाई को चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। कहने को तो उन्होंने इस्तीफ़ा दिया, लेकिन इस्तीफ़े के बाद के घटनाक्रमों से स्पष्ट होने लगा था कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) में सबकुछ ठीक नहीं है।

उक्त संदेह की पुष्टि तब हो गई जब बीते 19 अगस्त को पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने अपने वक्तव्य में पार्टी नेतृत्व पर उन्हें ‘अपमानित’ करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “हमारे पास तीन विकल्प खुले हैं — रिटायर होना, नई पार्टी शुरू करना, या किसी और पार्टी में शामिल होना।”

हालांकि, उसके बाद बुधवार को सरायकलां खरसावां में चंपाई सोरेन ने अपने संबोधन में सन्यास लेने के विकल्प को ख़ारिज कर दिया। उन्होंने कहा, “पिछले साढ़े चार दशकों से आम जनता के मुद्दों को लेकर संघर्ष करता रहा हूँ और आपका आशीर्वाद, जीवन के इस नए अध्याय में मुझे सही फ़ैसला लेने का हौसला दे रहा है। फ़िलहाल जनता से मिल रहा हूँ, सन्यास लेना अब विकल्प नहीं है। सभी लोगों की राय के आधार पर शीघ्र ही उचित निर्णय लिया जाएगा।”

बहरहाल, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री के बदले बदले-से सुर के बीच यह समझना बेहद महत्वपूर्ण है कि आख़िर उनकी नाराज़गी की वज़ह क्या रही है?


राज्यपाल को इस्तीफ़ा पत्र सौंपते झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन •

अचानक मुख्यमंत्री पद से हटाया जाना

हेमंत सोरेन के जेल से रिहा होने के तुरंत बाद ही चंपाई सोरेन पर इस्तीफ़े का दबाव बना दिया गया, यह बात उन्हें चुभ गई। उनके सहयोगी गोप सोरेन के मुताबिक़, “3 जुलाई को चंपाई सोरेन टीजीटी शिक्षकों को नियुक्ति पत्र देने वाले थे। उनका यह कार्यक्रम कथित तौर पर मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) के आदेश पर रद्द कर दिया गया लेकिन सोचने की बात है कि मुख्यमंत्री का कार्यक्रम बिना उनकी सहमति के सीएमओ कैसे रद्द सकता है? इस घटना ने चंपाई सोरेन को बहुत आहत किया।”

“इस कार्यक्रम के बाद सिलसिलेवार ढंग से उन्हें ‘कमतर’ महसूस करवाया गया। तीन जुलाई के कार्यक्रम के रद्द होने के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा की ओर से बयान में कहा गया कि कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्ति पत्र का वितरण चंपाई सोरेन ही करेंगे, लेकिन फिर से उस कार्यक्रम को रद्द कर दिया गया। इसी बीच चंपाई सोरेन से इस्तीफ़ा ले लिया गया और हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली,” उन्होंने जोड़ा।

चंपाई के समर्थकों और क़रीबियों का मानना है कि हेमंत सोरेन के जेल से आने के बाद मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन से तुरंत इस्तीफ़ा लिया जाना अशोभनीय था। उनके अनुसार, “उन्हें (चंपाई) को कम से कम 15 दिन से एक महीने का समय देना चाहिए था।” कई तो यह भी मानते हैं कि चंपाई अपने फ़ैसलों से लोकप्रिय हो रहे थे और वह हेमंत सोरेन की जगह भर सकते थे। उससे ही विचलित होकर हेमंत सोरेन के गुट ने उनके (चंपाई) साथ इस तरह का अपमानजनक व्यवहार किया।”

चंपाई सोरेन के क़रीबियों का यह भी मानना है कि पूर्व मुख्यमंत्री का छह विधायकों को लेकर भाजपा के साथ चले जाने की ख़बर हेमंत सोरेन के समर्थकों ने मीडिया में ‘प्लांट’ करवाई।

वहीं, हेमंत सोरेन के समर्थकों का कहना है कि अगर चंपाई सोरेन वाक़ई मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने से नाराज़ थे तो उन्हें पार्टी से इस्तीफ़ा दे देना चाहिए था। “उन्होंने (चंपाई सोरेन) अभी तक इस्तीफ़ा नहीं दिया है। वह अभी भी झारखंड सरकार से कैबिनेट मंत्री के दर्ज़े की सुविधाएं प्राप्त कर रहे हैं। उनके सहयोगी पार्टी से सौदेबाज़ी (बार्गेनिंग) भी कर रहे हैं, जबकि दूसरी तरफ़ चंपाई सोरेन जनता में कह रहे हैं कि वह नई पार्टी बनाएंगे। दरअसल, वह असमंजस और दबाव की स्थिती बनाकर पार्टी से अपने लिए एक बेहतर सौदा करना चाहते हैं,” झारखंड मुक्ति मोर्चा, जिला सरायकलां के नेता सुनील किशु ने मोजो स्टोरी से कहा।


कार्यक्रम में संबोधन के दौरान जेएमएम नेता कल्पना सोरेन •

कल्पना सोरेन की ‘एंट्री’ और चंपाई सोरेन के साथ भेदभाव

झारखंड विधानसभा के सदस्य और चंपाई के क़रीबी विधायक ने नाम न उजागर करने की शर्त पर मोजो स्टोरी को बताया कि पार्टी में कल्पना सोरेन के बढ़ते क़द से कई वरिष्ठ विधायकों और पार्टी कार्यकर्ताओं को शिकायत रही है। “चंपाई सोरेन शिबू सोरेन के दौर के नेता रहे हैं और वह झारखंड आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभा चुके हैं। कायदे से देखें तो हेमंत सोरेन भले ही मुख्यमंत्री बन गए हों क्योंकि उनके पिता मुख्यमंत्री थे, लेकिन राजनीतिक अनुभव और संघर्ष के हिसाब से चंपाई सोरेन सबके अग्रज (सीनियर) हैं। कल्पना सोरेन को उस वरिष्ठता का लिहाज़ करना चाहिए था। कल्पना राजनीति में नई हैं, हेमंत सोरेन की पत्नी होने के अलावा उनकी राजनीतिक पात्रता कुछ भी नहीं है। उन्हें यह बात ख़ुद भी समझना चाहिए,” फ़ोन पर बात करते हुए उन्होंने यह भी कहा, “चंपाई सोरेन के कार्यक्रम रद्द करवाना अपमानजनक था। यह एक तरह से हेमंत सोरेन की राजनीतिक असुरक्षा की भावना को भी उजागर करता है। यह विवाद झारखंड मुक्ति मोर्चा के भविष्य के लिए ठीक नहीं है। उस वक़्त जब चुनाव क़रीब आ गए हैं; पार्टी को इस तरह के विवाद से बचना चाहिए था। अगर ख़ुदा-न-ख़ास्ता चंपाई सोरेन पार्टी छोड़ देते हैं तो आदिवासियों के बीच अच्छा संदेश नहीं जाएगा।”

चंपाई समर्थकों का यह भी कहना है कि गांडेय उपचुनाव के दौरान गिरिडीह से जेएमएम विधायक सुदिव्य कुमार सोनू ने मंच से कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री के समांतार बता दिया था। उन्होंने जनता को संबोधित करते हुए कहा, “आप कल्पना सोरेन को नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री के बराबर के प्रत्याशी को चुन रहे हैं।”

झारखंड निवासी और सामाजिक कार्य से जुड़े आसिफ़ असरार ने चंपाई सोरेन के ‘अपमानों’ की फेहरिस्त में एक और वाकया जोड़ा। उन्होंने मोजो स्टोरी को बताया, “7 मार्च 2024 को तत्कालीन मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने अपने हाथों से टीजीटी की परीक्षा में सफ़ल हुए पहले अभ्यर्थी को नियुक्ति पत्र सौंपा था; उनका नाम प्रमोद कुमार कुशवाहा था। बाद में उस अभ्यर्थी की नियुक्ति को झारखंड सर्विसेस सिलेक्शन कमिशन (जेएसएससी) ने अवैध ठहरा दिया। चंपाई खेमे के लोगों को लगता है कि यह इरादतन किया गया है, यह सिर्फ़ आयोग की ग़लती नहीं है; जबकि जेएसएससी की तरफ़ से जारी कटऑफ़ के अनुसार ही प्रमोद परीक्षा में उत्तीर्ण हुए थे।”


‘मइयां सम्मान योजना’ का बैनर पकड़े कार्यक्रम में शामिल महिलाएं •

‘मइयां सम्मान योजना’ के श्रेय पर विवाद

बताया जाता है कि मइयां सम्मान योजना का ज़िक्र चंपाई सोरेन मुख्यमंत्री रहते हुए अपने भाषणों में कर चुके थे। हालांकि, तब उस योजना का नाम दूसरा हुआ करता था। बावजूद उसके कल्पना सोरेन की तरफ़ से उनके विधानसभा क्षेत्र के दौरे के वक़्त बाक़ायदा कहा गया कि “जेल में रहकर आपके हेमंत भैया ने ‘मइयां सम्मान योजना’ के बारे में सोचा है।” चंपाई सोरेन के क़रीबियों को लगता है कि इस योजना का ऐलान चंपाई सोरेन को करने देना चाहिए था।


जेल से आने के बाद एक कार्यक्रम में संबोधन के दौरान झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन •

“हेमंत सोरेन के जेल जाने से पार्टी के पक्ष में अच्छी हवा बही थी। लोकसभा चुनावों में उसका असर भी दिखा। अगर झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार अपने पांच साल पूरे कर रही है तो पार्टी को एकसूत्र में बांधकर रखने वालों में चंपाई सोरेन अग्रणी रहे हैं। ऐसे में अगर मइयां सम्मान योजना का ऐलान चंपाई सोरेन करते तो उनकी और पार्टी दोनों की ही छवि बनी रहती। यह विवाद तुच्छ अहंकार और राजनीतिक अपरिपक्वता का नतीज़ा है,” झारखंड मुक्ति मोर्चा की महिला मोर्चे से जुड़ी दीप्ती हेब्रोम ने मोजो स्टोरी से कहा। दीप्ती हेब्राम चंपाई सोरेन के गृहक्षेत्र कोल्हान से ताल्लुक़ रखती हैं।

चंपाई सोरेन से जुड़ा यह घटनाक्रम झारखंड की राजनीति में काफ़ी महत्वपूर्ण है; जिस तरह से भाजपा ने चंपाई सोरेन के पक्ष में बयानबाजी की है, उससे स्पष्ट है कि आने वाले चुनावी महीने दिलचस्प होने वाले हैं। राजनीतिक टिप्पणीकारों के अनुसार, “अगर चंपाई सोरेन पार्टी से अलग होते हैं और अपना संगठन बनाकर चुनाव में उतरते हैं तो वह झारखंड मुक्ति मोर्चा को अच्छा-ख़ासा नुक़सान पहुंचा सकते हैं; लेकिन अगर वह भाजपा का दामन थामते हैं, तो हेमंत सोरेन को उसका फ़ायदा मिलेगा।” पार्टी समर्थकों का कहना है कि भाजपा को आदिवासियों के बीच आरक्षण ख़त्म करने वाली पार्टी के तौर पर देखा जा रहा है। एक ऐसी पार्टी के साथ जाकर चंपाई सोरेन अपने चार दशक से लंबे राजनीतिक करियर को नुक़सान पहुंचाएंगे।

हालांकि, चंपाई सोरेन के दिल्ली में कथित तौर पर वरिष्ठ भाजपा नेताओं से मुलाक़ात के बाद भाजपा के अंदर उत्साह में कमी देखी जा रही है। “हमारे कार्यकर्ता पांच साल मेहनत करते हैं और जब चुनाव क़रीब आते हैं तो दूसरे दल से ‘पैराशूट कैंडिडेट’ (बाहरी) को पार्टी में शामिल करके अपने किसी कार्यकर्ता का हक़ माता जाता है। उसका पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच अच्छा असर नहीं पड़ता और पार्टी में भीतरघात होती है, ऐसे में अपने उम्मीदवार और कार्यकर्ता ही अपनी पार्टी के ख़िलाफ़ काम करते हैं। चंपाई सोरेन का मामला उनका और झारखंड मुक्ति मोर्चा का है। किसी भी अनुभवी दल की तरह हमें उनकी आपसी लड़ाई को अपने राजनीतिक हित में इस्तेमाल करना चाहिए, न कि उन्हें शामिल करके अपने कार्यकर्ताओं और मतदाताओं को नाराज़ करना चाहिए,” भाजपा के कार्यकर्ता विवेक भानु ने मोजो स्टोरी से कहा।

“बतौर पार्टी कार्यकर्ता, जो भी पार्टी में चल रहा है उससे मैं खुश नहीं हूं। विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं, पार्टी को सारी ऊर्जा चुनावी रणनीति और तैयारियों में लगाना चाहिए था। पिछले पांच साल में भाजपा ने पार्टी को तोड़ने की कई कोशिशें की हैं, लेकिन पार्टी नहीं टूटी है। अब जब चुनाव आने को हुए तो वरिष्ठ नेताओं में ही फूट डल गई। यह पार्टी के लिए नुक़सानदेह और अफ़सोसजनक है,” झारखंड मुक्ति मोर्चा रांची इकाई के कोषाध्यक्ष कमलेश्वर टिर्की ने कहा।

बहरहाल, चंपाई सोरेन जनता के बीच जा रहे हैं और अपने क़रीबियों के साथ चर्चाएं कर रहे हैं। माना जा रहा है कि सितंबर के पहले सप्ताह में चंपाई कोई निर्णायक राजनीतिक निर्णय लेंगे। चंपाई के क़रीबियों का मानना है कि वह अगले दो सप्ताह झारखंड मुक्ति मोर्चा नेतृत्व का भी इंतज़ार करेंगे; इस उम्मीद में कि उनसे संपर्क कर उन्हें मनाने की कोशिश की जाए। यही वज़ह है कि दोनों ही, हेमंत गुट और चंपाई गुट एक दूसरे के ख़िलाफ़ खुलेआम बयानबाजियों से बच रहे हैं।

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