Cyclone Remal: बंगाल में आए चक्रवात ने कोलकाता व तटवर्ती इलाक़ों में ढाया क़हर, लोगों का घर से निकलना हुआ मुश्किल

Cyclone Remal: बंगाल में आए चक्रवात ने कोलकाता व तटवर्ती इलाक़ों में ढाया क़हर, लोगों का घर से निकलना हुआ मुश्किल

कोलकाता में रविवार सुबह 8:30 बजे और सोमवार सुबह 05:30 बजे के बीच 146 मिलीमीटर बारिश दर्ज़ की गई। उत्तर और दक्षिण 24 परगना, पूर्वी मेदिनीपुर, दीघा, काकद्वीप, जयनगर, कोलकाता, हुगली और हावड़ा में रेमल चक्रवात का सबसे अधिक प्रभाव देखने को मिला।

रविवार रात 8:30 बजे चक्रवाती तूफ़ान ‘रेमल’ पश्चिम बंगाल के कैनिंग और बांग्लादेश के मोंगला में 135 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से आया। लैंडफॉल (जब चक्रवात का असर पानी के बाद ज़मीन पर पड़ने लगे) चार घंटे तक चला। चक्रवात ने इस दौरान पूरे बंगाल में भयानक तबाही मचाई। स्टोरी लिखे जाने तक पश्चिम बंगाल में कुल छह, बांग्लादेश में 10 एवं पूर्वोत्तर प्रदेशों में 31 लोगों के मौत की सूचना मिली।

रेमल का असर कुछ इस क़दर भयानक था कि पश्चिम बंगाल के तटवर्ती इलाकों में 29,000 घर इसकी जद में आए। प्रभावित इलाकों में बिजली बाधित रही। विभिन्न इलाकों में तेज़ हवाओं के कारण बिजली के खंभे और पेड़ गिर गए। वहीं, तूफ़ान के कारण विमान एवं रेल सेवा भी बाधित रहीं; इस दौरान 394 विमान एवं दर्ज भर रेलगाड़ियां रद्द हुईं। मंगलवार को 21 घंटे के बाद कोलकाता के नेताजी सुभाष चंद्र बोस इंटरनेशनल एयरपोर्ट में हवाई सेवा शुरू हुई।


काकूली मुखर्जी के घर के बाहर लगा पानी •

कहां रहा चक्रवात का सबसे अधिक असर?

दक्षिण 24 परगना के बेहाला इलाक़े की काकूली मुखर्जी बताती हैं, “मेरा दफ़्तर बेहाला-14 में है; सोमवार को भारी बारिश और तेज़ हवाओं के कारण मैं दफ़्तर नहीं जा सकी। तैयार होकर बैठी रह गई कि शायद तूफ़ान का प्रभाव कम हो और हम दफ़्तर के लिए निकल पाएं। प्राइवेट कंपनी है, आंधी हो या तूफ़ान; हमें तो जाना ही पड़ता है।”

“सोमवार सुबह मैंने अपने किचन में घुटने तक पानी के बीच खाना बनाया। हमारे इलाके में पानी निकासी की समस्या बहुत अधिक है। इतनी बारिश में जलजमाव स्वभाविक है, लेकिन यदि बेहतर ड्रेनेज (निकासी) सिस्टम होता तो हालात इतने बुरे नहीं होते। मंगलवार को स्थिति सामान्य हुई, तब मैं दफ़्तर के लिए निकली,” काकूली ने जोड़ा।


साधन गांगुली के घर के बाहर जमा पानी •

वहीं, शकुन्तला पार्क के पास कमज़ोर तबक़े के लिए बने कॉलोनी में रहने वाले साधन गांगुली अपनी व्यथा बताते हुए कहते हैं, “तेज़ बारिश होने पर बेहाला में ख़ासकर शकुन्तला पार्क के आसपास के इलाकों का हाल बुरा होता है। ऐसे में यह इलाक़ा तूफ़ान कैसे झेल पाएगा? इस इलाके में रहते-रहते हम बूढ़े हो गए, लेकिन नहीं बदली तो केवल यहां की स्थिति। यहां के लोगों को बारिश के मौसम में घर में पानी भर जाने के बाद भी रहने की आदत-सी पड़ गई है।”

उन्होंने आगे कहा, “चक्रवात का आना तय था। आपदा प्रबंधन विभाग भले ही आंकड़ों में क्षति की बात करे, लेकिन हम कोलकाता के लोग जानते हैं कि ऐसे हालात में हमें क्या झेलना पड़ता है। जब चक्रवात का आना तय था, तो पूर्व में ड्रेनेज सिस्टम पर काम क्यों नहीं किया गया? भला चुनाव का वक़्त है और 28 तारीख को प्रधानमंत्री मोदी आने वाले थे, इसलिए एनडीआरएफ की टीम ने तत्परता से काम किया; वरना हम कोलकाता के लोगों को तकलीफ़ झेलने की आदत है।”


सौजन्य से: राणा

ग़ौरतलब है कि मौसम विभाग ने पश्चिम बंगाल के दक्षिण और उत्तर 24 परगना ज़िलों में बिजली और संचार की लाइनें, कमज़ोर इमारतों, कच्ची सड़कों, फ़सलों और बगीचों को बड़ी क्षति पहुंचने की चेतावनी दी थी। प्रभावित क्षेत्रों के लोगों को घर के अंदर रहने और कमज़ोर इमारतों से दूर रहने की सलाह दी गई थी।

बता दें कि साल 2020 के मई में चक्रवाती तूफ़ान ‘अम्फान’ सागर द्वीप पहुंचा था। उससे कोलकाता, दक्षिण और उत्तर 24 परगना, हावड़ा एवं नदिया में काफ़ी नुकसान देखने को मिला था। वहीं, रेमल मॉनसून से पहले बंगाल की खाड़ी में आने वाला पहला चक्रवात है।


सौजन्य से: कोलकाता यातायात पुलिस •

कोलकाता नगर निगम के मेयर ने क्या कहा?

कोलकाता नगर निगम के मेयर फिरहाद हक़ीम ने बताया, “रेमल चक्रवात से शहर के कई इलाक़े बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। शहर के कई इलाक़ों में वॉटर पंप का प्रयोग करके पानी निकालने के प्रयास किये गए। तूफ़ान के कारण उखड़े पेड़ों को हटाने का काम किया गया है। कुछ इलाक़ों में काम अब भी जारी है। जो पेड़ पूरी तरह से उखड़े नहीं हैं, उन्हें दोबारा लगाने का प्रयास किया जा रहा है।”

जलजमाव पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि “लोगों को प्लास्टिक के बुरे प्रभावों के बारे में पता नहीं है। उनके द्वारा प्लास्टिक फेंकने के कारण ही पार्क स्ट्रीट में जलभराव हो जाता है।” मेयर कहते हैं, “ऊंची और जर्जर इमारतों में रह रहे लोगों को हमने दूसरी जगह शिफ़्ट किया है। तूफ़ान के बाद की स्थिति से निपटने के लिए 15 हज़ार लोगों को तैनात किया गया है।”

चक्रवात से प्रभावित बंगाल के निवासियों को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “घर में रहें और सुरक्षित रहें। हम हमेशा की तरह आपके साथ हैं। यह तूफान भी गुज़र जाएगा।”

जबकि, केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ट्वीट करके बताया कि उन्होंने रेमल को लेकर संबंधित अधिकारियों से बात की है। सभी क्षेत्रों में एनडीआरएफ की तैनाती कर दी गई है। लोगों को सुरक्षित क्षेत्रों में पहुंचाया जा रहा है।

‘सब काम पड़ गए ठप’

कोलकाता का दमदम इलाका भी नॉर्थ-24 परगना में आता है, वहां भी रेमल तूफ़ान का प्रभाव देखने को मिला। उसी इलाक़े के एक बिल्डिंग की चौथी मंज़िल पर रहती हैं बिहार के समस्तीपुर ज़िले की सुष्मिता चटर्जी। सुष्मिता एनिमेशन का कोर्स करती हैं, जिसके लिए उन्हें उल्टाडांगा जाना पड़ता है। उल्टाडांगा भी नॉर्थ-24 परगना इलाक़े में आता है।

सुष्मिता बताती हैं, “मौसम विभाग द्वारा जारी अलर्ट के बाद मैं और मेरी रूममेट भयभीत थे, लेकिन यह अंदाज़ा नहीं था कि तूफ़ान का इतना विकराल रूप देखने को मिलेगा। चूंकि मैं चौथी मंज़िल पर रहती हूं, तो घर में पानी घुसने जैसी दिक़्क़तों से मुझे दो-चार नहीं होना पड़ा। लेकिन मैं ट्रेनिंग के लिए उल्टाडांगा नहीं जा पाई। जबकि, अगर एक दिन यदि हमारी क्लास मिस हो जाती है तो एनिमेशन के क्लास में प्रैक्टिकल चीज़ें सीखने की प्रक्रिया में हम एक हफ़्ता पीछे हो जाते हैं। आने वाले साल में मुझे नौकरी करनी है, काम सीखूंगी तभी तो नौकरी मिलेगी। उस वक़्त कौन सुनेगा कि तूफ़ान के कारण इंस्टीट्यूट नहीं गई थी।”


चक्रवात के कारण सुंदरवन में डॉक किये गए जहाज •

कैनिंग में कहर बनकर बरपा ‘रेमल’

कैनिंग में रेमल चक्रवात के प्रभाव पर हमने सुन्दरवन ट्रैवल्स के देबोत्रा ममंड से बात की। उन्होंने बताया, “हमारा टूर एंड ट्रैवल्स का काम है। चूंकि मौसम विभाग द्वारा पहले ही रेमल को लेकर अलर्ट जारी कर दिया गया था, इसलिए लगभग पिछले सात दिनों में कई बुकिंग्स रद्द हुईं। लोगों में ख़ौफ़ है कि अभी बुकिंग किया और अगर तूफ़ान फिर से आ गया तो क्या होगा।”

देबोत्रा कहते हैं कि “जब हमें ख़बर मिली कि तूफ़ान तबाही मचाने वाली है, उससे पहले ही हमने अपने जहाज़ों को डॉक कर दिया। अब जहाज़ जब पानी में हैं तो तूफ़ान आने पर हमारे जहाज़ों में केवल इतना असर हुआ कि वे डोलने लग गए। दूर से देखने पर यह दृश्य भयावह था। आसपास काफ़ी पेड़ गिरे, बिजली के खंभे गिरे एवं दुकानें व कई घर डैमेज हुए।”

रेमल से सर्वाधिक प्रभावित इलाकों में से एक कैनिंग की रहने वाली उषा बताती हैं, “मैं टीवी न्यूज़ नहीं देखती हूं। मेरी मां ने मुझे फ़ोन किया और कहा कि बेटा संभलकर रहना, ख़तरा आ रहा है। आसपास के लोगों ने बताया कि आने वाले कुछ घंटों में तेज़ बारिश होने वाली है। बारिश का नाम सुनकर लगा कि बरसात होगी, लेकिन इतनी तबाही होने वाली है; यह नहीं सोचा था।”

उषा की मां एक घरेलू कामगार महिला हैं। कोलकाता के दमदम कैंटॉनमेंट इलाके के कुछ घरों में वह झाडू-पोछा लगाने का काम करती हैं। उन्होंने बताया कि “तेज़ बारिश से बचने के लिए कोई सुरक्षित जगह तलाश ही रही थी कि टीन का असबैस्टस मेरे सामने गिरा। असबैस्टस की झनझनाहट सुनकर लोग भागने लगे, मैं बाल-बाल बच गई। किसी तरह भागते-भागते घर पहुंची तो दरवाज़े के सामने पेड़ गिरा हुआ था।” वह जोड़ती हैं, “मां से इस बीच 24 घंटे बात नहीं हुई। वह मुझे फोन लगा रही थीं, लेकिन मेरा फ़ोन चार्ज नहीं था। मां के आख़िरी शब्द थे, ‘बेटा संभलकर रहना।’ 24 घंटे के बाद जब माँ से बात हुई तब जाकर सुकून मिला।”


चक्रवात से पूर्व का दृश्य •

क्यों आते हैं ‘रेमल’ जैसे चक्रवात?

बंगाल में आए चक्रवात के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं। वहीं, इसे तूफ़ान की संज्ञा भी दी जा रही है। ऐसे में हमने इसकी सही परिभाषा और कारण जानने के लिए क्लाइमेट एक्सपर्ट नीतीश प्रियदर्शी से बात की। उन्होंने बताया कि “रेमल को बहुत लोग कंफ्यूज़ कर रहे हैं और इसे तूफ़ान बता रहे हैं, लेकिन टेक्निकली तूफ़ान साइक्लोन का आउटकम है। जहां लो डिप्रेशन फॉर्म करता है, वहां से चक्रवात उत्पन्न होता है; बीच में बहुत प्रेशर हो जाने के कारण वह फैलता चला जाता है। अभी टेम्परेचर डिफरेंस बहुत अधिक हो रहा है, उसका ही परिणाम है ‘रेमल चक्रवात’। समुद्र के लेयर की ओर काफ़ी गर्म और ऊपर ठंडा होता है; उसी हॉट और कोल्ड विंड का लैंड से जो संपर्क होता है, उससे 'आई’ शेप का फॉर्मेसन होता है और वही बनता है चक्रवात।”

उन्होंने आगे बताया, “कुछ इसी प्रकार से मार्च-अप्रैल के महीने में आप रांची व कुछ अन्य जगहों में देखेंगे कि हर दो से तीन दिन में बादलों की गर्जन होती है और ओले पड़ते हैं। ये भी टेंपरेचर डिफरेंस के कारण है। धरती की गर्म हवा और ऊपर की ठंडी हवा का जैसे ही मिश्रण शुरू होता है, वैसे ही वेलोसिटी बढ़ती है; ऊपर का तापमान बहुत कम होता है जिसके कारण वहां ओला बनता है। ओला का आकार जितना बड़ा होगा, ऊपर उतना ही अधिक टर्मॉइल (Turmoil) होगा। जितना अधिक टर्मॉयल होगा, उतना बड़ा ओला बनता जाएगा। जब छोटा सा बर्फ़ बनता है, तो वह नीचे गिरता है। जैसे ही वह नीचे गिरता है। धरती की गर्म हवा उसको टॉस करती है और फिर ऊपर जाकर वह कोटिंग करता है। उसके बाद फिर से वह बर्फ़ बनकर नीचे गिरता है। इसी प्रकार से टॉस की प्रकिया चलती रहती है। टॉस की प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि उसका वज़न इतना भारी न हो जाए कि नीचे की गर्म हवा उसको रोक दे। इसलिए जितना बड़ा ओला गिर रहा है, उतना अधिक टॉसिंग हुआ है और ऊपर उतना ही ज़्यादा टर्मॉइल है।”

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