Almond Workers' Protest: बादाम मज़दूरों के विरोध ने दिखाया दम, मांगें पूरी होने पर 24वें दिन ख़त्म हुई हड़ताल

दिल्ली के करावल नगर में बादाम मज़दूरों की तीन हफ़्ते से अधिक समय से चली आ रही हड़ताल 24 मार्च को मांगें पूरी होने के साथ समाप्त हो गई।

बीते एक मार्च को करावल नगर के क़रीब चार हज़ार बादाम मज़दूरों ने गोदाम मालिकों के विरुद्ध हड़ताल शुरू की थी। मज़दूरों को 24 दिनों की लंबी हड़ताल के बाद तब सफ़लता मिली जब गोदाम मालिक आपसी समझौते के लिए तैयार हो गए।


समझौते की प्रतिलिपी •

करावल नगर मजदूर यूनियन के संयोजक योगेश स्वामी ने बताया कि समझौते के अनुसार, “एक किलो बादाम की सफ़ाई का मेहनताना दो रुपये से बढ़ाकर तीन रुपये किया गया है। वहीं, बादाम की पैकिंग करने वाले मज़दूरों का मेहनताना पांच रुपये से बढ़ाकर छह रुपये किया गया है। मालिकों ने महिला और पुरुष मज़दूरों के लिए अलग-अलग शौचालय बनाने का भी आश्वासन दिया है। साथ ही बादाम की सफ़ाई के लिए ग्लव्स और मास्क देने की बात तय हुई है।

पूर्वी दिल्‍ली में पिछले तीन दशकों से बादाम उद्योग करावल नगर व दिल्ली के कुछ अन्य इलाकों में चलाया जा रहा है। वहां प्रकाश विहार, भगतसिंह कॉलोनी व न्‍यू सभापुर आदि इलाकों में बादाम के गोदाम कई वर्षों से संचालित किए जा रहे हैं। ये गोदाम वास्तव में छोटे कारख़ाने के समान हैं, जिनमें से अधिकतर गोदाम रिहायशी इलाकों में बने हुए घरों के तलघर में स्थित हैं। यहां हर एक गोदाम में लगभग 40 से 60 तक की संख्या में मज़दूर काम करते हैं। दिल्ली के कुल बादाम गोदामों का 80 फ़ीसद करावल नगर क्षेत्र में स्थित है।


करावल नगर में विरोध रैली निकालते मज़दूर •

क्या थी हड़ताल की वज़ह?

करावल नगर के बादाम मज़दूर अपनी मज़दूरी बढ़ाने की मांग को लेकर करावल नगर मजदूर यूनियन के नेतृत्व में एक मार्च से हड़ताल पर थे, जिससे उस इलाक़े में बादाम की छंटाई करने वाली 95 फ़ीसद फैक्ट्रियां बंद पड़ी थीं।

करावल नगर क्षेत्र में ऐसे क़रीब 500 मज़दूर परिवार हैं जो बादाम छंटाई के काम में लगे हैं। यहां के कारखानों में काम करने वाले मज़दूरों में से 90 फ़ीसद महिलाएं हैं। वैश्विक असेम्बली लाइन का एक जीता-जागता उदाहरण हमें बादाम संसाधन उद्योग में मिलता है। दिल्ली के खारी बावली के कई बड़े मालिकों के अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में अपने फार्म हैं, जिन पर वे बादाम की खेती करवाते हैं। जबकि, उन्होंने मानव संसाधन के लिए भारत को चुना है क्योंकि यहां जितना सस्ता श्रम पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिल सकता।

पिछले 24 दिनों से हड़ताल पर बैठे 38 वर्षीय मज़दूर पवन कहते हैं कि वह रोज़ पूरे परिवार के साथ इस आंदोलन में शामिल हुए। उन्हें यह उम्मीद थी कि मेहनताना को बढ़ाकर कम से कम 10 रुपये प्रतिकिलो किया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, जिसको लेकर वे काफ़ी निराश हैं।

'अधिक काम और कम मज़दूरी'

गोदाम में काम करने वाली रानो देवी ने बताया कि वे 12 साल पहले परिवार के साथ बिहार से दिल्ली के करावल नगर आई थीं। तभी से वह कारखाने में काम कर रहीं हैं। रानो बताती हैं, “गोदाम में बादाम की सफ़ाई से लेकर उनके किस्म के मुताबिक़ बादामों को अलग करना एवं उनकी पैकिंग की जाती है। यह प्रक्रिया काफ़ी जटिल होती है क्योंकि कई बार निर्यात किये गए बादामों में काफ़ी धूल और कचरा होता है; जिसे साफ़ करना मेहनत का काम है। ऐसे में एक किलो बादाम साफ़ करने का दो रुपये मेहनताना बहुत कम है।”


नारेबाज़ी करती हुईं महिला मज़दूर •

वहीं मौजूद 72 वर्षीय कुसुम देवी काफ़ी थकी हुई और बेजान नज़र आ रही हैं। पूछने पर उन्होंने बताया कि वे पिछले 24 दिनों से साथी मजदूरों के साथ हड़ताल पर हैं। कुसुम आगे बताती हैं, “धूल-मिट्टी के बीच काम करते हुए काफ़ी समय हो गया है। बिना मास्क और ग्लव्स के काम करने से आंखों में जलन, गले में दर्द और सांस संबंधित बीमारियां उत्पन्न हो गई हैं। जान जोख़िम में डालकर काम करने के बाद भी एक किलो बादाम की सफ़ाई के एवज में दो रुपये मिलना न्यायसंगत नहीं है। हालांकि, अब मांगों को लेकर हुए समझौते के बाद थोड़ी राहत मिली है।”

अपने साथी मज़दूरों के साथ हड़ताल में शामिल एक अन्य महिला मज़दूर धनश्री बिहार से आती हैं। उनके परिवार में दो बच्चे और पति हैं। मोजो स्टोरी से बातचीत में धनश्री ने बताया कि “वर्ष 2012 में काफ़ी विरोध प्रदर्शन के बाद बादाम सफ़ाई का मेहनताना एक रुपये से बढ़ाकर दो रुपये किया गया था। उसके बाद से लेकर आज तक वही रेट है।” साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि गोदाम मालिकों का रवैया महिला मज़दूरों के प्रति काफ़ी अपमानजनक रहा है। उन्हे वक़्त-बेवक़्त फ़ोन कर मज़दूरी के लिए बुला लिया जाता है। कभी-कभी तो रात 3 बजे भी बुलाया गया और यदि कोई मज़दूर समय पर नहीं पहुंचता तो उसे डांटकर भगा दिया जाता था।

किसान मज़दूर संगठन के विशाल ने बताया कि आज भी बादाम मज़दूरों को एक किलो बादाम सफ़ाई पर मात्र दो रुपये मिलते हैं। यह रेट भी 2012 में करावल नगर मजदूर यूनियन की अगुवाई में हुई बादाम मज़दूरों की हड़ताल के बाद प्रतिकिलो एक से दो रुपये हुए थे। उनके मुताबिक़, “हम जानते हैं कि तब से आज महंगाई चार गुना बढ़ चुकी है, पर बादाम मज़दूरों की मज़दूरी में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। ऐसे में आप ख़ुद सोच सकते हैं कि ये बादाम मज़दूर कितनी कठिनाई में ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं।”

क्या थीं मुख्य मांगें?

मज़दूर यूनियन के संयोजक योगेश ने बताया कि बादाम मज़दूर यूनियन की स्थापना वर्ष 2009 में की गई थी, लेकिन आज अन्‍य पेशे के मज़दूरों के साथ यह 'करावल नगर मजदूर यूनियन' का स्‍वरूप ले चुकी है। अब यह किसी एक पेशे या फैक्टरी की यूनियन नहीं हैं, बल्कि एक इलाकाई यूनियन है जिसका मक़सद कारखानों के संघर्ष से लेकर मज़दूरों के तमाम नागरिक और मानव अधिकारों के लिए संघर्ष करना है।

मज़दूरों की मांगों को लेकर योगेश ने बताया कि हमारी मुख्यतः चार मांगें थीं; सबसे पहले बादाम सफ़ाई का मेहनताना दो रुपये से बढ़ाकर 12 रुपये किया जाए। दूसरा, गोदाम में मज़दूरी के घंटे तय कर सात से आठ घंटे किया जाना चाहिए। तीसरा, बादाम के कट्टो को ट्रक से उतारकर मशीन में डालने की प्रक्रिया पूरी करने वाले पुरुष मज़दूरों का मेहनताना पांच रुपये से बढ़ाकर 10 रुपये किया जाए। और चौथा, महिला मज़दूरों को माहवारी एवं मातृत्व अवकाश दिया जाए।

“वर्ष 2012 में मज़दूरों और गोदाम मालिकों के बीच समझौता हुआ था। समझौते के मुताबिक़, प्रतिकिलो बादाम की सफ़ाई पर हर साल एक रुपये की वृद्धि की जानी थी। उसके अनुसार, आज मेहनताना बढ़कर 12 रुपये हो जाना चाहिए था। हालांकि ऐसा नहीं हुआ,” योगेश ने जोड़ा।

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