भूत-प्रेत की कहानियों में कितनी सच्चाई और कितना मन का भ्रम? क्या कहते हैं मानवविज्ञानी और मनोविज्ञानी
किसी भी जगह के बारे में किंवदंतियां होती हैं कि यहां ऐसा है, वहां वैसा है। एक बार जब आपका दिमाग़ किसी चीज़ या जगह के बारे में धारणा बना लेता है, तो ‘माइंड इल्युजन’ (मन का भ्रम) भी बनाने लगता है।
साल 2020, रात के बज रहे थे साढ़े आठ। कल्पना हर रोज़ की तरह डिनर तैयार कर रही थीं। वह बंगाली परिवार से संबंध रखती हैं। रविवार का दिन था और कड़ाही में तेज़ आंच पर खौलते तेल में मछलियां तली जा रही थीं, तभी किचन के टीन वाले दरवाज़े से किसी के धक्का देने की बड़ी स्पष्ट आवाज़ आई। उनका खपड़ैल का मकान था और चूल्हे के ठीक सामने वाली खिड़की खुली थी, मगर हर तरफ़ घनघोर अंधेरा पसरा था। वह आवाज़ ऐसी नहीं थी कि एक बार आई हो और रुक गई, बल्कि लगातार कुछ सेकंड के अंतराल में ऐसी और आवाज़ों की पुनरावृति हुई।
कल्पना के लिए वह घटना आज भी किसी बड़े सदमे से कम नहीं है। मोजो स्टोरी से बात करते हुए वह कहती हैं, “जब एक बार किसी के दरवाज़ा ठेलने की आहट हुई तो मैंने नज़रअंदाज़ किया और सोचा कि चूहा या बिल्ली होगी, लेकिन लगातार 10-12 बार ऐसी आवाज़ हुई। हम किराये के मकान में रहते थे और 10 क़दम की दूरी पर उसी बिल्डिंग में एक बैचलर लड़की रहती थी, जिससे मेरे अच्छे रिश्ते हैं। मैंने उन्हें फ़ोन किया और पूछा कि क्या आप अभी आई थीं और मेरा दरवाज़ा खटखटाया? उन्होंने न में जवाब देते हुए कहा कि ‘मैं अपने कमरे में हूं।’ उसके बाद भी दरवाज़ा खटखटाये जाने की घटना नहीं रुकी, तब मैंने फिर उन्हें कॉल किया और वह आईं, उनके आते ही वह खटखटाहट बंद हो गई।”
कल्पना के मुताबिक़, दरवाज़ा खटखटाये जाने की घटना उस रोज़ ही होती थी जब मछली बनती थी। उन्होंने यह भी बताया कि दरवाज़ा खटकने की घटना के लगभग दो माह पहले उनका पूजा स्थल जो कि घर के तीन भाग में बंटे रैक के एक भाग में मौजूद था, वह जल गया था और कुछ भगवान की तस्वीरें भी जल गई थीं। बहरहाल, कल्पना के किचन का दरवाज़ा जो कि घर की दूसरी ओर निकलने का रास्ता भी था; उस पर खटखटाने की आवाज़ लगभग सात से आठ दिन तक हुई। उससे हैरान होकर कल्पना ने अपने रिश्तेदारों को इस अजीबोग़रीब घटना के बारे में बताया, जिसके बाद घर में पूजा-पाठ की गतिविधियां बढ़ाई गईं; लेकिन उसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ और उससे परेशान होकर कल्पना की सेहत भी दिन-प्रतिदिन बिगड़ती गई।
वर्ष 2020 की उस ख़ौफ़नाक रात को याद करते हुए कल्पना कहती हैं, “हमलोग एक तांत्रिक के पास गए। उन्होंने बताया कि आपके घर में बुरी आत्मा है। यदि उसका काट नहीं कराया तो वह आपके परिवार के लिए जानलेवा हो सकती है। तांत्रिक ने 10 हज़ार रुपये की मांग की और दावा किया कि तंत्र क्रिया के ज़रिये उसका काट कराने पर ऐसी घटनाएं दोबारा नहीं होंगी।”
उसके बाद एक-दो दिन में एडवांस पेमेंट की गई, जिसके बाद तांत्रिक जलधर मंडल, कल्पना के मकान में आए। उन्होंने एक प्लास्टिक की बोतल और थोड़ा-सा पानी मांगा। तांत्रिक ने हाथ में चुल्लू बनाकर उसमें पानी भरने के बाद पानी की कुछ बूंदों का छिड़काव उस बोतल में किया और कल्पना सहित वहां मौजूद रिश्तेदारों ने भी इसकी अनुभूति की कि पानी छिड़कते ही पक्षियों की आवाज़ हुई और तांत्रिक ने बोतल बंद कर दिया। बोतल बंद करने के बाद उन्होंने कहा कि “अब मैं इसे ले जाऊंगा और क़ैद कर लूंगा।” कल्पना का दावा है कि कुछ दिनों के बाद किचन के दरवाज़े से खटखटाए जाने की आवाज़ बंद हो गई और फिर आज तक कभी नहीं हुई।
एंथ्रोपोलॉजिस्ट (मानवविज्ञानी) शिशिर कुमार से उक्त घटना के बारे में बात करने पर वह कहते हैं, “कल्पना के घर में जो भी घटनाएं हुई थीं, यदि मैं उक्त स्थान पर गया होता तो सबसे पहले वहां रोडेंट टेस्ट (चूहों का परीक्षण) कराता। हमने रांची में भैरव मंदिर बनाया है, जिसका पिछला दरवाज़ा ‘गैलवानाइज़्ड आयरन’ का है। अगर आप रात को वहां रुकेंगे और आप नए व्यक्ति हैं तो डर से भाग जाएंगे, क्योंकि ऐसा लगता है कि उस दरवाज़े को दोनों हाथों से कोई पीट रहा है; जबकि वे चूहे होते हैं। भूत-प्रेत आपके यहां दरवाज़ा नहीं खटखटाएगा; ऐसा विरले परिस्थितियों में ही होता है, और अगर भूत-प्रेत आ गया तो वह आपको क्षति पहुंचाएगा। वह आपको भावनात्मक या आर्थिक रूप से नुक़सान पहुंचाएगा, केवल दरवाज़ा खटखटाकर नहीं जाएगा।”
मानवविज्ञानी या मनोचिकित्सक से मिलने में संकोच करते हैं पीड़ित
कोलकाता के बबलतला में रहते हैं रविशंकर बैध; वह एक रोज़ मेज़ पर बैठकर चाय की चुस्कियां ले रहे थे। घर पर कोई नहीं था और शाम के 07:45 बज रहे थे, तभी उन्होंने ग़ौर किया कि एक बुज़ुर्ग महिला फ्लैट की सीढ़ी चढ़ रही है; जबकि रविशंकर का कहना है कि ऊपर वाले फ्लोर में ताला बंद था। यह घटना मार्च 2024 की है। रविशंकर को पहली दफ़ा लगा कि यह मन का कोई भ्रम है। वह बताते हैं, “मैंने अगली सुबह मेरी पत्नी शशिकला को फ़ोन पर पूरी घटना बताई तो वह घबरा गई और मायके से जल्द लौटने की बात कहने लगी, तब मैंने उसे समझाया और विश्वास दिलाया कि मैं सुरक्षित हूं।”
रविशंकर का कहना है कि “भले ही मैंने अपनी बीबी को झूठी दिलासा दे दी हो कि घर पर सब ठीक है, लेकिन आज भी जब कभी मैं सिगरेट पीता हूं या देर रात को जगता हूं; तब वही बुज़ुर्ग महिला मुझे दिखाई देती है। हमारे ऊपर का फ्लैट हमेशा बंद रहता है तो आख़िर वह बुज़ूर्ग महिला कौन है जिस पर अक़्सर मेरी नज़रें ठहर जाती हैं और मेरे रौंगटे खड़े हो जाते हैं।”
रविशंकर कोलकाता के बड़ा बाज़ार से कपड़े लाकर आसपास की कॉलोनियों में बेचते हैं। उनसे यह पूछे जाने पर कि क्या ऐसी घटना के बाद उन्होंने किसी मनोचिकित्सक, मानवविज्ञानी या तांत्रिक से संपर्क किया? वह कहते हैं, “भगवान सदैव मेरे साथ हैं, मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। मुझे न तो दिमाग़ के डॉक्टर के पास जाने की ज़रूरत है और न ही किसी तांत्रिक के पास।”
झारखंड के गोड्डा ज़िले के सरभंगा गांव की रहने वाली उर्मिला देवी बताती हैं, “देर रात को शौच के लिए जब भी आंगन में जाती हूं तो लगता है कि मेरे पीछे कोई खड़ा है। कई बार अज़ीब तरह की आवाज़ें आती हैं और जब भी इस तरह की घटनाएँ होती हैं; उस वक़्त कुत्ता ज़ोर-ज़ोर से भौंकने लगता है। ऐसा लगता है कि हमारे घर में कुछ तो है जो हमें डराने की कोशिश कर रहा है। हमारे घर में न बिल्ली आती है न चूहे, फिर भी कई दिन हमने ग़ौर किया है कि रसोई घर में रखे बर्तन रैक से नीचे गिरे रहते हैं और बर्तन पटकने की आवाज़ हमें परेशान करती है।”
इस पर उनके बेटे जितेन्द्र दास का कहना है कि “मां कई वर्षों से ऐसा कहती हैं; पहले हमने सोचा कि वह बुजुर्ग हैं, यूं ही कहती होंगी - लेकिन मैंने भी मेरे घर में अजीबोग़रीब हरकतों को ग़ौर किया है। आंगन के पास देर रात को जाने पर अज़ीब किस्म की घबराहट होती है। कई बार हमने ध्यान दिया कि कोई आधी रात को हमारा दरवाज़ा खटखटाता है। हमने एक-दो बार पूजा पाठ किया, लेकिन उससे कोई विशेष फ़र्क़ नहीं पड़ा।”
अंकिता पांडे कोटा में रहकर नीट (मेडिकल परीक्षा) की तैयारी करती हैं। वह कहती हैं, “मुझे भूत-प्रेत से बहुत डर लगता है, लेकिन कैरियर बनाने की बात है इसलिए कोटा में अकेले रहकर पढ़ाई करना पड़ता है। इसी साल मार्च की बात है; मैं देर रात तक पढ़ रही थी, तभी अचानक वॉशरूम जाने के लिए उठी तो घुँघरू की आवाज़ आ रही थी। जैसे-जैसे मैं डर रही थी, वह आवाज़ और तेज़ हो रही थी। डर इतना ज़्यादा लग रहा था कि उतनी रात को न तो किसी को फ़ोन करने की हिम्मत हुई और न ही मकान-मालकिन को जाकर बताने की।”
“सुबह उठकर मकान की मालकिन के पास गई, जो उसी बिल्डिंग में रहती हैं। उनसे पूरी बात बताई तो उन्होंने कहा कि ‘मैंने सोचा था कि तुम्हें सतर्क कर दूँ, लेकिन मौक़ा नहीं मिला। रात को यदि पायल या घुँघरू की आवाज़ आए तो नज़रअंदाज़ करना या कोई अगर रात को आवाज़ दे तो दरवाज़ा मत खोलना। उन्होंने यह भी बताया कि ‘अंकिता, दरअसल तुम जिस फ्लैट में रहती हो उसमें आज से दो वर्ष पहले एक ‘नीट एसपीरेंट’ ने ख़ुदकुशी कर ली थी; तब से ऐसी चीज़ें यहां होती हैं। हमने कई तांत्रिक से बात की, लेकिन अभी तक उसका हल नहीं निकला है। तुम चिंता मत करो; वह तुम्हें नुक़सान नहीं पहुंचाएगी,’ मकान मालकिन ने कहा।”
भानगढ़ के किले में पैरानॉर्मल ऐक्टिविटी (असाधारण गतिविधि) की जांच करते हुए मानवविज्ञानी शिशिर। इस किले में कोई विद्युत चुंबकीय श्रोत नहीं है, लेकिन ‘K2 मीटर’ काम कर रहा है • फोटो साभार: शिशिर कुमार
क्या कहते हैं मानवविज्ञानी, भूतबंग्ला में ‘पैरानॉर्मल ऐक्टिविटी’ की कैसे की जाती है जांच?
मानवविज्ञानी शिशिर कुमार के मुताबिक़, “भूत-प्रेत की जितनी कहानियां हैं, उनमें एक फ़ीसद की भी सच्चाई नहीं होती है। साधना करते हुए मुझे 10 वर्ष हो गए हैं; इस दौरान चार-पांच बार ऐसी घटनाएं हुईं जब हमने कहा कि ये हमें समझ नहीं आया।”
शिशिर कुमार से यह पूछे जाने पर कि भूत-प्रेत के दावों का वैज्ञानिक पक्ष क्या है, वह कहते हैं, “किसी भी जगह के बारे में किंवदंतियां होती हैं कि यहां ऐसा है, वहां वैसा है। एक बार जब आपका दिमाग़ किसी चीज़ या जगह के बारे में धारणा बना लेता है, तो ‘माइंड इल्युजन’ (मन का भ्रम) भी बनाने लगता है; आपको भी पता होता है कि ऐसी बात नहीं है, लेकिन डरावनी कहानियों से जोड़कर आप मन की चीज़ों को आगे बढ़ाते हैं।”
वह आगे कहते हैं, “जब हम किसी जगह पर जांच-पड़ताल करते हैं, तो पहले पीड़ित व्यक्ति की कहानी सुनते हैं कि वे क्या महसूस कर रहे हैं? वे जो भी महसूस करते हैं, उसके हिसाब से हमारा एक फॉर्म होता है; उसे पढ़ते हैं, और उससे अंदाज़ा लग जाता है कि यहां क्या हो सकता है या कि बिलकुल ही वैसा कुछ नहीं है? उसके बाद ज़रूरत के मुताबिक़ हम उपकरण लेकर जाते हैं और उनके माध्यम से उस जगह की रीडिंग लेते हैं। जैसे; विद्युत चुंबकीय क्षेत्र में अंतर हो सकता है, जिससे आपको मतिभ्रम होते हैं।”
“अगर किसी जगह पर विद्युत चुंबकीय ऊर्जा अधिक होगी तो आप परेशान रहेंगे और आपको मतिभ्रम होगा। ए.सी. और फ्रिज में अत्यधिक विद्युत चुंबकीय ऊर्जा होती है, जो कि सुरक्षित विद्युत चुंबकीय विकिरण के दायरे से अधिक होता है। उसकी वज़ह से लोग चिड़चिड़े हो जाते हैं, अवसाद में चले जाते हैं। इसलिए हमलोग सबसे पहले उन चीज़ों को देखते हैं और पता करते हैं कि अगर कोई कह रहा है कि किसी के घर से आवाज़ें आती हैं तो इसके पीछे की वज़ह क्या है? ऐसा क्यों हो रहा है? पहले हमलोग यह देखने की कोशिश करते हैं कि क्या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक कारण है? अगर किसी को परछाई दिख रही है तो क्यों दिख रही है? हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि उनके घर में ‘कार्बन मोनोऑक्साइड’ का क्या स्तर है? उसके बाद अगर कोई ‘एक्सप्लैनेशन’ (व्याख्या) नहीं मिलता है, तो उसको ‘अनएक्सप्लेन्ड कैटेगरी’ (अस्पष्टीकृत श्रेणी) में डाल देते हैं कि हां यहां पर कुछ ‘सुपरनैचुरल’ (अलौकिक) हो रहा है।”
जांच-पड़ताल के दौरान टीम के साथ दाएं से क्रमशः मानवविज्ञानी गौरव तिवारी और शिशिर कुमार (एक-दूसरे को पकड़े हुए) •
यंत्रों पर बात करते हुए शिशिर बताते हैं, “पश्चिमी दर्शन के अनुसार, ऐसे कई यंत्र हैं जिनकी मदद से अदृश्य ऊर्जाओं (भूत-प्रेत) को मापा जाता है। वे ऊर्जाएं, जिन्हें लोग भूत-प्रेत कहते हैं; वह उन यंत्रों को ‘मैन्यूप्यूलेट’ कर सकते हैं। एक थियरी है ‘e=mc2’ और माना जाता है कि ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती, वह एक रूप से दूसरे रूप में तब्दील होती है। वैसे ही, जब एक इंसान की मौत होती है तो शरीर से प्राण निकलता है; वह ऊर्जा है। अगर वह ऊर्जा अस्तित्व में आई है, तो किसी न किसी रूप में हमेशा मौजूद रहेगी।”
“उदाहरण के लिए हमारे पास एक ‘K2 मीटर’ होता है, जो कि एक साधारण डिवाइस है; वह बताता है कि विद्युत चुंबकीय ऊर्जा कहां पर कम और कहां अधिक है। जैसे; हमने उस यंत्र के ज़रिये सवाल पूछा कि आप मर्द हैं या औरत? मर्द हैं तो इस मीटर की तीन लाइट जलाएं और औरत हैं तो दो जलाएं। हमलोग दूसरे यंत्रों के माध्यम से उस जानकारी को क्रॉस चेक करते हैं,” वह जोड़ते हैं।
शिशिर बताते हैं, “हमने अपनी रिसर्च के दौरान राजस्थान के भानगढ़ किले की जांच-पड़ताल की। एक सामान्य घर में कहीं से भी विद्युत चुंबकीय विकिरण आ सकता है; जिसका कारण ‘अंडरग्राउंड वायरिंग’ हो सकता है या यह दीवार के नीचे किसी विद्युत चुंबकीय श्रोत के होने से भी हो सकता है। लेकिन भानगढ़ किले में आज तक कभी विद्युत चुम्बकीय श्रोत नहीं मिला है, बावजूद उसके वहां पर भी ‘K2 मीटर’ ने काम किया। वहां की जो ऊर्जाएं हैं, वह विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा को बदल कर बताती है कि हम यहां पर हैं।”
कर्नाटक के एक ‘हॉन्टेड चर्च’ में ‘पैरानॉर्मल एक्टिविटीज़’ की जांच-पड़ताल के दौरान मानवविज्ञानी शिशिर कुमार (हरी जैकेट में), बीच में कामेश साहू और दाईं ओर सबसे आख़िर में प्रफुल्ल मान्नेवर •
‘ठंडा रहता है भूतहा जगहों का तापमान’
शिशिर के मुताबिक़, “जहां भूत-प्रेत जैसी चीज़ें होती हैं, वहां के आसपास की ऊर्जाओं को वह अपने अंदर लेते हैं और उसी से उसका ‘एनर्जी फ्यूल’ चलता है। साधारणत: जहां पर भूत रहेगा, वह जगह ठंडी हो जाती है। ‘हॉन्टेड लोकेशन्स’ (भूतहा जगहों) में ‘कोल्ड स्पॉट्स’ होते हैं। आप किसी जगह से जाएंगे तो आपको अचानक ज़ोर से ठंड लगेगी; उसको थर्मामीटर से मापा जाता है। कई बार वह ऊर्जा ‘एंटटी टेंपरेचर’ को ‘मैन्यूप्यूलेट’ भी करती है। जैसे; अगर आप कहेंगे कि इस जगह का तापमान चार डिग्री बढ़ा दो या तीन डिग्री घटा दो, तो वह घटाकर यह साबित करता है कि ‘मैं यहां पर हूं’। इस तरह के हमारे पास कई ‘साइंटिफिक’ यंत्र होते हैं।”
“एक रेडियो होता है, जिसे ‘स्पीरिट बॉक्स’ कहते हैं। उसके अलावा कई ऐसे यंत्र हैं, जो ऐसी जगहों पर काम करते हैं जहां विज्ञान के सिद्धांत काम नहीं करते हैं। जैसे; भानगढ़ में विद्युत चुंबकीय शक्ति का ऊपर-नीचे होना। वैसी स्थिति में हम मान लेते हैं कि यहां कुछ अलौकिक है, जिसको हम वैज्ञानिक दृष्टि से परिभाषित नहीं कर सकते हैं। स्पीरिट बॉक्स (रेडियो) अलग-अलग रेडियो तरंगों को स्कैन करता है और अलग-अलग शब्द उसमें ‘प्रॉम्प्ट’ होते हैं। जो ‘एंटिटी’ उस ‘हॉन्टेड’ जगह में मौजूद होती है और उनको जो शब्द बोलना होता है, वह ‘प्रॉम्प्ट्स’ में से चुनकर उन शब्दों को स्पीकर में फेंकती है। जैसे, आप कहेंगे कि हमारी टीम में से किसी का नाम बताइए; तो वह प्रॉम्प्ट्स में से पिक करके टीम के किसी एक सदस्य का नाम बताएगी। सीधे संवाद का यह एक माध्यम है, जिसके लिए कुछ ‘पेड ऐप्स’ भी मौजूद हैं,” शिशिर जोड़ते हैं।
वह आगे कहते हैं, “जैसे; हमारे पास साउंड रिकॉर्डर नामक जो उपकरण है, उसमें हम क्या करते हैं? बहुत-सी ‘साउंड फ्रिक्वेंसीज़’ (ध्वनि की आवृति) हम नहीं सुन सकते हैं। अगर हमारे पास साउंड रिकॉर्डर होता है, तो हम ध्वनि को रिकॉर्ड कर लेते हैं और हम उनसे उनका नाम भी पूछते हैं। उसके बाद हम उस आवाज़ को सॉफ्टवेयर में डालकर ‘एनहैंस’ करते हैं। भूत के पास ज़ुबान नहीं होता है, जिसके कारण वह फुसफुसाते हैं; जो कि आप सुन नहीं सकते हैं। बहुत बार ऐसा होता है कि हमने कोई सवाल पूछा है तो उधर से जवाब आता है, लेकिन उसे आसानी से सुना नहीं जा सकता।”
“हमारे पास एक ‘फुल स्पेक्ट्रम कैमरा’ होता है। हमलोगों का जो नॉर्मल कैमरा होता है, उसमें ‘यूवीआईआर’ (UVIR) फिल्टर लगे होते हैं; ऐसे में उससे केवल ‘स्पेक्ट्रम ऑफ लाइट’ देख सकते हैं और हमारा कैमरा भी वही ‘कैप्चर’ करता है। जबकि, हमलोग जो फुल स्पेक्ट्रम कैमरा यूज़ करते हैं; उसमें ये ‘फिल्टर्स’ नहीं होते हैं। जब आप उस कैमरे से फोटो खीचेंगे, तो वो चीज़ें भी दिखती हैं जो कि सामान्य आंख या सामान्य कैमरे से नहीं दिख सकता है। ऐसे कैमरे का प्रयोग करके बहुत जगहों पर ‘एंटीटीज़’ की तस्वीरें ली गई हैं,” शिशिर ने अपनी बात में जोड़ा।
वह बताते हैं, “हमलोगों ने गोवा के एक ‘भूत बंग्ले’ में सेटअप लगाया था। हमारी जो ‘इंटरनेशनल सोसायटी’ हैं, उनमें प्रमाणों को लेकर बहुत सख़्त दिशानिर्देश होता है; तो ऐसा नहीं कर सकते कि आपने यूं ही कुछ भी कैप्चर कर लिया और बोल दिया ‘ये भूत था’। उसको ध्यान में रखकर हमलोगों ने एक ‘डीएसएलआर कैमरा’ और दूसरा ‘फुल स्पेक्ट्रम कैमरा’ साथ में लगाया हुआ था, दोनों कैमरों से तस्वीरें क्लिक हो रही थीं। हम बंगले की खिड़की के चार-पांच फिट बाहर से तस्वीरें ले रहे थे; जो फुल स्पेक्ट्रम कैमरा था, उसमें एक महिला खड़ी दिख रही थी। फुल स्पेक्ट्रम कैमरे में यह कैद हुआ था, जबकि डीएसएलआर में नहीं। ऐसी स्थिति में हम ऐसी घटनाओं को ‘पैरानॉर्मल की कैटेगरी’ में डाल देते हैं।”
फुल स्पेक्ट्रम कैमरे में क़ैद एक महिला की तस्वीर में तीर के निशान को फॉलो कर देखें आंखें और बाल • फोटो साभार: शिशिर कुमार
भूतहा जगहों या भूत-प्रेत के प्रकोप के लिए उपायों के बारे में पूछे जाने पर मानवविज्ञानी शिशिर कहते हैं, “जो उपाय होते हैं, वह ‘बिलिफ सिस्टम’ पर काम करते हैं। वास्तव में जो अनदेखी दुनिया है, उसके बारे में हम कुछ अनुमान नहीं लगा सकते हैं। हम उसे भूत-प्रेत या जिन्न बोल रहे हैं, लेकिन हो सकता है कि वे हमसे अधिक बुद्धिमान हों। इसलिए भूत-प्रेत की घटनाओं का समाधान बहुत ट्रिकी है, यह ‘रिलीजियस’ होता है; उसका कोई वैज्ञानिक समाधान नहीं है।”
ग़ौरतलब है कि मानवविज्ञानी गौरव तिवारी, जिनकी मौत दिल्ली में संदिग्ध अवस्था में हुई थी, शिशिर उनके साथ साल 2014 में काम करते थे। शिशिर बताते हैं, “साल 2011 से 2014 तक मैं और गौरव एक ही कार्यालय में काम करते थे। गौरव का कहना था, ‘The First Sign of possession is a depression,’ यह उनका ख़ुद का रिसर्च भी था। उन्होंने आत्महत्या करने की कोशिश की, जो कि ‘डिप्रेशन’ (अवसाद) का लक्षण है। गौरव तिवारी ने जो क़दम उठाया था, वह आत्महत्या थी। उन्होंने फांसी लगा लिया था और फिर वह गिर गए, जबकि उनको लगा था कि ऐसा करके भी बच जाएंगे। साल 2007 में जब वह अमरीका में थे, तब भी उन्होंने आत्महत्या की कोशिश की थी; लेकिन उस समय वह बच गए थे।”
“हमने तंत्र में ‘मास्टर’ (परस्नातक) कर रखा है, तो हमें पता है कि अगर हमारे ऊपर किसी शक्ति का हमला होता है तो उससे ख़ुद को कैसे बचाएं। गौरव भी आध्यात्मिक थे; वह अपने साथ रुद्राक्ष रखते थे, लेकिन बाद के दिनों में वह जहां भी ‘पैरानॉर्मल रिसर्च’ के लिए जाते थे तो बोलते थे कि जो भी चीज़ है, वह मेरे साथ आ जाओ,” शिशिर जोड़ते हैं।
क्या जांच-पड़ताल के दौरान ‘रिएक्शन’ दिखता है?
शिशिर बताते हैं, “एक इन्वेस्टीगेशन के दौरान गौरव ने वहां पर बोल दिया कि जो भी है, वह आ जाओ। मैं ऑफिस में अकेले रुकता था, रात के 12 बजे के आसपास जब मैं सोने जा रहा था तब ‘ॐ’ मंत्र का जाप कर रहा था और उसी दौरान मेरे कान में किसी महिला की आवाज़ आई और वह भी ‘ॐ’ कह रही थी। पहले मुझे लगा कि आसपास में कोई शरारत कर रहा है, लेकिन ‘ॐ’ की वह आवाज़ फिर से हुई। उस समय ऑफिस में गौरव ने कोई ‘हॉन्टेड आब्जेक्ट’ लाया था। उसी के दूसरे दिन मेरे पैर में एक कट लगा; वह एक ऐसा कट था जिसमें कोई दर्द नहीं था।”
“गौरव तिवारी के साथ जो हुआ, वह ‘पैरानॉर्मल इंवेस्टिगेशन’ के दौरान की लापरवारी का नतीज़ा था। जो भूत होते हैं, वह मनुष्यों की गतिविधियों से बचते हैं। जहां मनुष्य होते हैं, वहां वो विचरण नहीं करते हैं। रात के वक़्त मनुष्यों की गतिविधि बहुत कम हो जाती है, इसलिए माना जाता है कि भूत उस समय सक्रिय हो जाते हैं। वैसे वे हमेशा हमारे आसपास रहते हैं, लेकिन जब पूरा वातावरण एकदम शांत हो जाता है तो उनकी खट की आवाज़ भी सुनाई देती है। सवाल यह है कि भूत आपसे ‘इंटरैक्ट’ करना चाहता है या नहीं, यह अलग बात है,” वह जोड़ते हैं।
शिशिर के मुताबिक़, “कभी भी अनदेखी ऊर्जा को बुलावा नहीं देना चाहिए। वे आमंत्रण का ही इंतज़ार करते हैं। भूत-प्रेत आपके दिमाग़ पर असर कर सकती हैं। वे आपको थप्पड़ मार सकते हैं, खरोंच लगा सकते हैं; लेकिन जान से मार नहीं सकते हैं। जब भूत आपके संपर्क में आता है तो सबसे पहले आपके प्रति आपका मोह ख़त्म करता है। अगर भूत उत्तेजित हो गया और आपको तंग करने के मूड में है, तो आपको धक्का दे देगा, आपको नोच लेगा, थप्पड़ लगा देगा; लेकिन उससे ज़्यादा कुछ नहीं कर सकता है।”
तंत्र साधने करते शिशिर, उन्होंने ‘पैरानॉर्मल ऐक्टिविटी’ की जांच के दौरान ख़ुद पर होने वाले जोखिम से सुरक्षा के लिए तंत्र साधना सीखा है • फोटो साभार: शिशिर कुमार
तंत्र में क्या है मारण क्रिया?
शिशिर का कहना है कि “पूरे अखंड भारत में कुछ ही लोग हैं जो हिमायल या माउंट आबू वाले रेंज में बैठे हैं। मारण, मोहन, उच्चाटन, और वशीकरण की जब बात आती है, तो हिमायल या माउंट आबू वाले रेंज में साधना करने वालों की बात मैं नहीं कर रहा हूं, लेकिन जितने भी तांत्रिक हैं, उनमें से पूरे भारत में 10-20 ही ऐसे होंगे जिनको तंत्र आता है और आपके लिए वे कभी भी मारण क्रिया नहीं करेंगे। उसके पीछे कई कारण हैं। ऐसी क्रियाओं में जो सामग्रियां लगती हैं, वह मिलती नहीं हैं; उसकी 99 फ़ीसद सामग्रियां ‘वाइल्ड लाइफ एक्ट’ में चला जाता है।”
“उक्त क्रियाओं के लिए जब आप किताब पढ़ेंगे तो उसमें लिखा होगा कि ऐसे जंगल में बैठिए जहां मनुष्य नहीं आता है। आज के समय में ऐसा कोई जंगल नहीं है जहां मनुष्य न आता हो। किताब में लिखा होगा कि ऐसे श्मशान में बैठिए जहां कोई आता न हो, ऐसा कोई श्मशान नहीं है। उसमें लिखा होगा कि ऐसे मंदिर में बैठिए जहां आप अकेले साधना कर सकते हैं। पुजारी मंदिर का पट 8 बजे बंद कर देता है, ऐसे में जिस तांत्रिक को ये मंत्र सिद्ध हो गया होगा; उसे पता होता है कि ये सारी चीज़ें बेकार हैं,” शिशिर जोड़ते हैं।
वह बताते हैं, “कोई व्यक्ति अगर सात साल लगाकर तंत्र साधना सीखता है, तो वह आपके 10 हज़ार रुपये के लिए किसी पर भी मारण नहीं चलाएगा। हां, वशीकरण और मोहिनी वगैरह छोटा-मोटा टोटका होता है और ये सब अल्पकाल के लिए काम करता है। अच्छे साधक अगर अच्छी चीज़ों के लिए उसका प्रयोग करें तो ये हो जाता है। लेकिन, आज के समय में ऐसी क्रियाओं के लिए किसी के पास उतना समय नहीं है।”
मानवविज्ञानी शिशिर एक उदाहरण देते हुए बताते हैं, “हमलोग भैरव जी के उपासक हैं। उनकी साधना करने के लिए खप्पड़ लगता है, जो कि बाहर से आता है और उसकी कीमत 80 हज़ार रुपये होती है। एक केरुए का माला लगता है जिसकी क़ीमत भारत पहुंचते-पहुंचते 72 हज़ार रुपये के आसपास हो जाती है।”
“साधना का मार्ग हमेशा से राजाओं के लिए रहा है, क्योंकि उसकी सामग्रियां इतनी महंगी होती हैं कि सामान्य व्यक्ति उसको वहन ही नहीं कर सकते हैं। आप देखेंगे कि इतिहास में जब भी कोई बड़े ऋषि-मुनि हुए हैं, चाहे आप गौतम बुद्ध से लेकर भरथरी तक की बात कर लें; सभी राजा ही थे और आगे चलकर वे साधु बन गए। जो सिद्ध-साधक है, वह उन सब पचड़ों में नहीं पड़ता है; इसलिए मारण जैसी चीज़ें केवल मनगढ़ंत कहानियां हैं,” शिशिर कहते हैं।
मानवविज्ञानी मेघना •
‘आपका ध्यान अपनी ओर खींचना चाहते हैं भूत’
मेघना के मुताबिक़, ‘पैरानॉर्मल इंवेस्टिगेशन’ के दौरान शरीर में खरोंच आना, बाल खिंचना, अदृश्य शक्ति द्वारा धक्का दिया जाना आदि आम बात है। इसका मतलब है कि किसी भी भूतहा जगह पर अगर कोई ऊर्जा है तो ऐसा करके वह आपका ध्यान अपनी ओर खींचना चाहती है। मान लें कि आप किसी से बात कर रहे हैं और वह शख़्स काफ़ी वक़्त से आपकी बात नहीं सुन रहा है तो आप उसको धक्का देंगे, ताकि वह आपकी बात सुने। मैंने कई ऐसे ‘इंवेस्टिगेशन’ किए हैं, जहां इस तरह की घटनाएं हमारे साथ हुई हैं। हमारे कैमेरा ‘मैलफंक्शन’ (ख़राब) हो जाते हैं, बैटरी ख़त्म हो जाती है।”
वह आगे कहती हैं, “हम ‘स्पिरिट्स’ से कहते हैं कि हमारी ऊर्जा को प्रयोग कर ‘ऐसा’ करके दिखाइए। जब आपकी ऊर्जा प्रयोग होगी तो लगेगा कि वह ख़त्म हो रही है। साथ में अगर हमें कोई ऑडियो रिकॉर्डिंग मिल गई या पिक्चर में कुछ दिख गया तो हमें पता चल जाता है कि वहां पर कुछ है। एक बार एक हॉन्टेड प्लेस में हमने देखा कि जो सीसीटीवी कैमेरा सेटअप किए थे, वह गिर गए हैं। उसके अलावा हमलोगों के मॉनीटर ‘मैलफंक्शन’ हो रहे थे और हमारे दो ‘इंवेस्टिगेटर्स’ एक कमरे में बंद हो गए थे।”
आयुषी प्रियदर्शी, मनोविज्ञानी •
भूत-प्रेत के विचार को लेकर क्या है मनोविज्ञानी की राय?
साइकॉलोजिस्ट (मनोविज्ञानी) आयुषी प्रियदर्शी कहती हैं, “मेरे पास इस तरह के मरीज़ लगभग हर रोज़ आते हैं। विज्ञान में हम इसे ‘फॉल्स पर्सेप्शन’ या ‘हैलोसिनेशन & इल्यूजन’ भी कहते हैं। हमारे पास ऐसे बहुत रोगी आते हैं, जिनको ‘विज़ुअल हैलोसिनेशन’ होता है। उनको डर लगता है कि किसी ने उन पर काला जादू कर दिया है, और कोई उन्हें मारने आ रहा है या उनके ख़िलाफ़ साज़िश रच रहा है।”
एक फ़िल्म का उदाहरण देकर आयुषी समझाती हैं, “मूवी ‘Exorcism of Emily Rose’ में एक लड़की का किरदार था, जिसके मुताबिक़ उसे छह-सात तरीक़े के राक्षस डराया करते थे। उस लड़की को कुछ आकार दिखते थे, लोगों के चेहरे बदलते दिखते थे, उसे अज़ीब-सा लगता था; लोगों से उसे डर लगने लगा था और यह ‘विज़ुअल हैलोसिनेशन’ का लक्षण है। उस लड़की को रात में अज़ीब गंध भी आता था; उसे ऐसा लगता था कि कुछ सड़ रहा है। अगर आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखें तो लोग इसे ‘शैतानी गंध’ कहते हैं, लेकिन विज्ञान में इसे ‘ऑलफैक्ट्री हैलोसिनेशनस’ कहते हैं। उस लड़की को लगता था कि उसके ऊपर कोई चढ़ा हुआ है, जिसे विज्ञान में ‘स्पील पैरालिसिस’ कहते हैं। उसको आवाज़ें सुनाई देती थीं, जिसे ‘ऑडिट्री हैलोसिनेशन’ कहते हैं। लड़की को ऐसा लगता था कि किसी ने उसे कुछ कर दिया है, जिसे विज्ञान में ‘द इल्युजन ऑफ रेफरेंस और इल्युजन ऑफ पर्सीक्यूशन’ कहते हैं। इसलिए ज़रूरी है कि लोग ‘इल्युजन’ के बारे में पढ़ें।”
वह आगे कहती हैं, “किसी मंदिर या पुजारी की सभा में आप जाएंगे तो देखेंगे महिलाएं अपना बाल हिला रही हैं। उनको लगता है कि उनके अंदर माता आ गई हैं या भूत समा गया है। अगर हम ‘इंटरनेशनल क्राइटेरिया ऑफ डायगनॉस्टिक’ की ‘क्राइटेरिया’ को देखें तो उसके मुताबिक़, ऐसी महिलाएं ‘ट्रांस एंड पोज़ेशन डिसॉर्डर या डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसॉर्डर’ से ग्रसित होती हैं।”
“एक रोगी मेरे पास आईं और उनका कहना था कि उनके पड़ोसी उनके ख़िलाफ़ षड्यंत्र रच रहे हैं। अगर वे अपने घर का एक पौधा भी उखाड़ लेते हैं और उनकी तरफ़ देखते हैं या कुछ बोलते हैं तो महिला लगता है कि वे उनके ख़िलाफ़ षड्यंत्र रच रहे हैं। महिला को लगता है कि उनके पड़ोसी जादू-टोना कर रहे हैं। अगर पड़ोसी उन महिला को कुछ बोल भी देते थे तो लगता था कि उनकी बातों का कुछ विशेष मतलब है,” साइकॉलोजिस्ट आयुषी ने बताया।
“कई मरीज़ आते हैं और कहते हैं कि उनको लगता है कि उनके कान में किसी की आवाज़ आ रही है, यह भी एक प्रकार का ‘हैलोसिनेशन’ है। किसी को परछाईयां दिख रही होती हैं, जो कि ‘विज़ुअल हैलोसिनेशन’ का पार्ट है और ये ऑर्गेनिक भी होता है। किसी को दवा या ड्रग्स, शराब और गांजा के साइड इफ़ेक्ट से यह सब दिखता है। जो रोगी मेरे पास ये सब शिकायतें लेकर आई थीं; उनमें हमने ‘थॉट डिसऑर्डर’ पाया,” यह कहकर उन्होंने अपनी बात पूरी की।
(नोट: इस स्टोरी में आम लोगों और ‘पैरानॉर्मल’ विशेषज्ञों की ओर से भूत-प्रेत को लेकर जो भी दावे पेश किये गए हैं, वे उनके अनुभव और अनुसंधान पर आधारित हैं। मोजो स्टोरी उनकी प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं करता है।)