भोपाल गैस त्रासदी: ‘यूनियन कार्बाइड’ का विषैला कचरा पीथमपुर में जलाए जाने की तैयारी, आख़िर क्या होंगे उसके दुष्परिणाम?
दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक भोपाल गैस कांड के 40वीं बरसी की तैयारियां चल रहीं हैं। उन तैयारियों के तहत काफ़ी कुछ हो रहा है, जिसके बारे में सरकार और संबंधित विभाग बात कर रहे हैं। उन सबके बीच बहुत कुछ ऐसा भी है जिसके बारे में उनकी ओर से बहुत चर्चा नहीं हो रही है, लेकिन स्थानीय लोग उससे परेशान हैं।
भोपास गैस हादसे की साइट से क़रीब 250 किमी दूर बसा मध्य प्रदेश (मप्र) का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर है; जहां के स्थानीय लोग आए दिन कोई न कोई प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि दुनिया के सबसे अधिक ज़हरीले रासायनिक कचरों में शामिल 'यूनियन कार्बाइड' का कचरा इसी शहर में जलाए जाने की तैयारी है।
पीथमपुर में ‘यूनियन कार्बाइड’ का कचरा जलाने का विरोध करते स्थानीय लोग •
पीथमपुर में सेक्टर नंबर-दो के जिस इलाक़े में यह कचरा जलाया जाएगा; वह एक पहाड़ी पर मौजूद है, जो धार जिले में आती है और उसकी तलहटी इंदौर जिले में। मप्र सरकार ने निर्णय लिया है कि भोपाल गैस त्रासदी का 337 मिट्रिक टन कचरा पीथमपुर औद्योगिक कचरा प्रबंधन कंपनी (पीआईडब्ल्यूएमसी) में जलाया जाएगा, जो कि औद्योगिक कचरे को जलाने वाली एक निजी और यह काम करने वाली इलाक़े की इकलौती कंपनी है।
साल 2021 में, राज्य सरकार ने उक्त कचरे के निपटान के लिए टेंडर जारी किया; जिसके अन्तर्गत ठेका पीआईडब्ल्यूएमसी को मिला। ग़ौरतलब है कि क़रीब 10 साल पहले यह कचरा जलाने को लेकर यहां यूनियन कार्बाइड का परिक्षण हो चुका है। हालांकि, रिपोर्ट्स कहती हैं कि उनमें से क़रीब छह परिक्षण कोई बहुत सफ़ल नहीं रहे। बावजूद उसके उसी पहाड़ी पर यूनियन कार्बाइड का कचरा लाने की तैयारी है। ऐसे में उस फैक्ट्री के नज़दीक रह रहे तारपुरा गांव के लोग परेशान हैं।
‘इंसीनरेटर फैसिलिटी’ से सटा है गांव तारपुरा, यहां के लोग आजकल उसी समस्या को लेकर फ़िक्रमंद हैं •
कचरा जलने पर कितना प्रभावित होते हैं ग्रामीण?
तारपुरा गांव कचरा जलाने वाली फैक्ट्री से बिलकुल सटा हुआ है। वहां रहने वाले लोग बताते हैं कि आसपास कई फैक्ट्रियां हैं और औद्योगिक क्षेत्र होने के कारण उनके घरों में उसके दुष्परिणाम आए दिन ही देखने को मिलते हैं। यहां रहने वाले प्रकाश सरकड़े बताते हैं कि उनके घरों पर रोज़ाना ही धुएं की कालिख़ ज़मा होती है। अगर स्थानीय नगर पालिका उन्हें पानी न दे तो यहां का ज़मीनी पानी इतना गंदा और बदबूदार है कि उसे पीने से वह मौत का कारण बन सकता है।
प्रकाश सरखड़े, तारपुरा गांव के निवासी •
गंगाबाई, तारपुरा गांव की निवासी •
दूसरे ग्रामीण तुलसीराम यादव कहते हैं, “गांव में कई लोग बीमार हो जाते हैं। पानी से नहाना भी बीमार कर देता है।” यहां मौजूद गंगा बाई बताती हैं कि “जब फैक्ट्री की चिमनी जलती है तो वहां रहना मुश्किल हो जाता है।” वह उस दौरान घर से बाहर निकलना ही बंद कर देती हैं और अगर बाहर निकलती हैं तो घुटन और बदबू के चलते उल्टी हो जाती है।
सजन बाई कहती हैं कि वह कई दशकों से वहां रहती हैं। यहां उनकी ज़मीनें हैं। “हमने तो यह सह लिया, अब बारी बच्चों की है; जो दुर्भाग्य से ऐसे समय में हैं जब भोपाल से कचरा यहां जलाने के लिए लाया जा रहा है,” वह इस बात को लेकर चिंतित हैं कि आने वाले दिन कैसे होंगे।
प्रकाश सरकड़े बताते हैं कि बस्ती में आए दिन लोग आंखों के रोग से पीड़ित रहते हैं और अब तो कैंसर के मरीज़ भी हो गए हैं। वह दावा करते हैं कि यह उनके आसपास के प्रदूषण के चलते है। इसी सिलसिले में तुलसीराम यादव बताते हैं कि जब 10-12 साल पहले यूनियन कार्बाइड का कचरा परीक्षण के तौर पर जलाया गया था, तो उस समय कई लोग बीमार हुए थे।
“तब कचरा सुबह और रात को जलाया जाता था। उस समय आंखों में जलन के कारण दिखना तक बंद हो जाता था,” यादव कहते हैं कि कचरा कई दिनों तक धीरे-धीरे जलता है, लेकिन लोगों की सेहत पर वह वर्षों तक नज़र आता है। उनके मुताबिक़, उसी के चलते लोग अब बीमार पड़ रहे हैं।
भोपाल गैस पीड़ितों के लिए लड़ने वाली सामाजिक कार्यकर्ता रचना ढ़ींगरा •
कितना ख़तरनाक ‘यूनियन कार्बाइड’ का कचरा?
भोपाल गैस पीड़ितों के न्याय के लिए लड़ रहीं ‘भोपाल ग्रुप फ़ॉर इन्फार्मेशन एंड एक्शन’ से जुड़ीं कार्यकर्ता रचना ढ़ींगरा बताती हैं कि यूनियन कार्बाइड के क्लोरीन-युक्त कचरे को उच्च तापमान पर जलाने की आवश्यकता होती है। उनके अनुसार, “अब तक हुए परीक्षणों में दहन प्रक्रिया के दौरान दो घातक रसायन, ‘डाइऑक्सिन और फुरान’ के निकलने की पुष्टि हुई है। ये दोनों ही विषाक्त रसायन मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक हैं और उनमें ‘बायोएक्युमिलेशन’ यानी जैव संचयन होता है।” साधारण शब्दों में कहें तो ये सालों बाद भी पर्यावरण में बचे रहते हैं और कैंसर, प्रजनन संबंधी रोग, मानव विकास में रुकावट जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं।
पीथमपुर में कचरा जलाने का मप्र में लगातार विरोध होता रहा है, और उसमें पूर्व पर्यावरण मंत्री जयंत मलैया, गैस राहत मंत्री बाबूलाल गौर एवं तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जैसे राजनेता भी शामिल रहे हैं।
कुएं का पानी ज़हरीला होकर काला पड़ चुका है, जिसके बाद उसे बंद कर दिया गया है •
तारपुरा के लोग प्रदूषण से किस हद तक प्रभावित हैं, उसका अंदाज़ा बस्ती के नज़दीक ही बने बोकनेश्वर महादेव के मंदिर में पहुंचकर लग जाता है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, यह एक प्राचीन मंदिर है जो पहले पहाड़ी पर हरियाली और साफ़ एवं मीठे पानी के लिए जाना जाता था। हरियाली यहां अब भी दिखाई देती है, लेकिन साफ़ पानी नहीं। मंदिर में बने कुओं का पानी लाल और काला पड़ चुका है। यहां से बहने वाला बरसाती पानी लाल रंग का दिखाई देता है, जिसमें गांव के बच्चे नहा रहे हैं।
बरसाती नाले में लाल रंग का पानी बहता है, जिसमें स्थानीय बच्चे तैरते और नहाते हैं •
बच्चे बताते हैं कि फ़िलहाल पानी से कम खुजली हो रही है इसलिए वे यहां नहा रहे हैं, लेकिन अक्सर ऐसा करना मुश्किल होता है। मंदिर के पुजारी परसराम पुरी कहते हैं कि अब वह कुएं का पानी पूजा में भी उपयोग नहीं करते, जबकि जानवरों को भी यह पानी देने पर वे बीमार हो जाते हैं। पुरी कहते हैं कि “अगर भोपाल गैस का कचरा यहां आता है तो शायद जितना प्रदूषण वे अभी देख रहे हैं, वह उससे भी कहीं ज़्यादा हो जाएगा।”
सरकार के फ़ैसले का हो रहा विरोध
आज भले ही तारपुरा के लोगों को लेकर बहुत चिंता न जताई जा रही हो, लेकिन 12 साल पहले ऐसा नहीं था। उस समय तारपुरा के लोगों को उस प्रदूषण से बचाने की अनुशंसा की गई थी। साल 2012 में, मध्य प्रदेश सरकार जब सुप्रीम कोर्ट में पीथमपुर में ‘यूनियन कार्बाइड’ के ख़तरनाक कचरे को जलाने का विरोध कर रही थी; तब सरकार ने कोर्ट में हवाला दिया था कि पीथमपुर में ‘टीएसडीएफ़ फैसिलिटी’ (ख़तरनाक कचरे का प्रबंधन) से केवल 250 मीटर की दूरी पर स्थित तारपुरा गांव में 105 मकान हैं - कचरे के इंसीनेरेशन से पहले उस गांव के निवासियों को पुनर्स्थापित किया जाना चाहिए।
‘इंसीनरेटर फैसिलिटी’ के नज़दीक स्थित तारपुरा गांव की बस्ती। लोगों के मुताबिक़, इलाक़े में मौजूद फैक्ट्रियों से बहुत प्रदूषण होता है और जब यहां कचरा जलाया जाता है तो सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है •
पीथमपुर नगर पालिका की अध्यक्ष सेवंती बाई पटेल कहती हैं कि वह भोपाल का कचरा पीथमपुर लाए जाने की कवायद के सख़्त ख़िलाफ़ हैं और उनकी परिषद में सभी दलों के पार्षदों ने इस कार्रवाई का विरोध करने का प्रस्ताव पारित किया है। वह बताती हैं कि उन्होंने उसके लिए प्रमुख सचिव स्तर तक के अधिकारियों को अपने इलाक़े की समस्याओं के बारे में बताया है और संभावित ख़तरे भी गिनाए हैं।
पीथमपुर में रासायनिक कचरा न जलाए जाने को लेकर निकाली गई रैली का दृश्य •
पीथमपुर नगरीय क्षेत्र में सरकार के इस फ़ैसले का लगातार विरोध हो रहा है। यहां अब तक कई बार रैलियां निकाली जा चुकी हैं। कचरा जलाए जाने के मसले को लेकर पूर्व पार्षद और स्थानीय कांग्रेस नेता विपुल पटेल कहते हैं, “औद्योगिक क्षेत्र होना अच्छा है, लेकिन पर्यावरण का बचाया जाना भी ज़रूरी है,” वह बताते हैं कि “पीथमपुर में ज़मीनी पानी पीने लायक़ नहीं है, ऐसे में नगर पालिका लोगों तक पानी पहुंचाती है। तारपुरा जैसे गांवों में तो हालात और भी ख़राब है, जहां ज़मीनी पानी में रासायनिक कचरे की बदबू आती है।”
विपुल पटेल कहते हैं कि वह हर हाल में इस फ़ैसले का विरोध करते हैं और उसके ख़िलाफ़ पूरी लड़ाई लड़ रहे हैं। उनके मुताबिक़, आने वाले दिनों में यह विरोध और भी तेज़ होगा।
पीथमपुर एक बड़ा इलाका है और यह धार विधानसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। यहां की विधायक नीना वर्मा कहती हैं कि उन्हें इस बारे में जब से पता चला है, वह लगातार इस फ़ैसले को बदलवाने के लिए प्रयास कर रहीं हैं। उनका कहना है कि वह हमेशा से इसके विरोध में रहीं हैं और आगे भी इसे रोकने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगी। वर्मा के मुताबिक़, यह कचरा अगर पीथमपुर में जलाया जाता है तो एक बड़ी आबादी के लिए वह ख़तरनाक हालत होगी।
तारपुरा पहाड़ी की तलहटी में कई गांव बसे हैं, जहां बहुत से उद्योग भी हैं •
कचरा जलाए जाने से कौन-कौन से गांव होंगे प्रभावित?
यूनियन कार्बाइड का कचरा जिस जगह जलाया जाना है, उसके आसपास के इलाक़े में क़रीब दो दर्ज़न गांव हैं; जहां लाखों की संख्या में बसाहट है। प्रभावित होने वाले गांवों में चिराखान, माचल, सिलोटिया, बगोदा, धन्नड़, गावला, किसानपुरा, भवरेगढ़, बजरंगपुरा, कलारिया, धारवरा, राजपुरा, बीजपुरा, बेटमा खुर्द, गालोंदा, ओरंगपुरा, भेसले, सोनवाय, तिही, सिरखंडी, तलावली, मोना और लिलेंडी शामिल हैं। ये गांव धार और इंदौर ज़िले में आते हैं।
उल्लेखित सभी गांवों के लोग पहले से ही पहाड़ी पर मौजूद कारखानों से होने वाले प्रदूषण के चलते परेशान हैं। इंदौर जिले के देपालपुर में आने वाला चीराखान गांव भी ऐसा ही है। यहां के सचिन पटेल बताते हैं कि उनका गांव पहाड़ी की तलहटी में है और यही वज़ह है कि हमारा पूरा ज़मीनी पानी प्रदूषित हो चुका है। दूसरे ज़िले और तहसील में आने वाले इस गांव को भी पीथमपुर नगर पालिका ही पानी की सप्लाई करता है, क्योंकि इस गांव में भी पीने के पानी की कोई सुविधा नहीं है।
चीराखान गांव की पंचायत में पेय जल की व्यवस्था पर चर्चा करते ग्रामीण, जिसमें सचिन पटेल भी शामिल (नीले टी-शर्ट में) •
“गांव के कुएं और ट्यूबवेल सभी रसायनयुक्त रंग-बिरंगा पानी देते हैं। इलाक़े में बाहरी पानी ही पीना होता है, क्योंकि पानी की ‘हार्डनेस’ का स्तर (टीडीएस) क़रीब 2.5 हज़ार या उससे ज़्यादा होता है,” सचिन जोड़ते हैं।
यहां रहने वाले दीपक पटेल कहते हैं कि “गांव के नालों में भी रसायनयुक्त ज़हरीला पानी ही आता है, जिसमें अगर पैर भी डाल दिया जाए तो दाने पड़ जाते हैं।”
पहाड़ी के नीचे का यही इलाका इंदौर के सबसे बड़े जलाशय यशवंत सागर का ‘कैचमेंट एरिया’ है। यहां के नदी एवं नालों से ही बारिश का पानी कई किलोमीटर का सफ़र तय करते हुए इंदौर के जलाशय तक पहुंचता है। दीपक पटेल बताते हैं कि उनके गांव के नज़दीक से ही ‘गंभीर नदी’ बहती है, जो कई बार बुरी तरह प्रदूषित हो जाती है। “अगर यूनियन कार्बाइड का कचरा जलने के बाद कोई भी रिसाव होता है तो वह इंदौर को भी प्रभावित करेगा,” पटेल ने जोड़ा।
दीपक की बात से इंदौर के नागरिक भी सहमत हैं। शहर में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता राहुल बनर्जी, आईआईटी खड़गपुर से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद दशकों पहले मप्र के इसी इलाके में आकर बस गए। वह कहते हैं कि भोपाल गैस त्रासदी के कचरे को नष्ट करने के इस मामले को गंभीरता से लेने की ज़रूरत है। राहुल मानते हैं कि “इंदौर शहर पर इसके ख़तरे से बिलकुल भी इंकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि तारपुरा की पहाड़ी से जहरीला पानी बहकर यशवंत सागर के कैचमेंट में ही जाता है। ऐसे में अगर हवा और पानी में से कुछ भी प्रदूषित होता है तो पीथमपुर और इंदौर दोनों जगह के लोगों को उसके दुष्परिणाम भुगतने होंगे।”
पीथमपुर औद्योगिक कचरा प्रबंधन कंपनी •
पहले भी हुआ पीथमपुर में कचरा जलाने का विरोध
पीथमपुर की ‘रामकी इन्वायरोमेंट’ जिसे पीथमपुर औद्योगिक कचरा प्रबंधन कंपनी (पीआईडब्ल्यूएमसी) भी कहा जाता है, वहां कई हज़ार टन कचरा ज़मीन में दबाकर रखा गया है; उस कचरे के ढ़ेर पर तो अब पेड़-पौधे तक उगने लगे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक़, उसमें एक बहुत छोटी-सी मात्रा ‘यूनियन कार्बाइड’ के कचरे की भी है जिसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर वर्षों पहले यहां नष्ट करने के लिए परिक्षण के तौर पर पहली खेप में लाया गया था। यही कारण है कि यहां पहाड़ से रिसने वाला पानी साफ़ नहीं होता है।
साल 2010 से पीथमपुर में कचरा जलाने का विरोध लगातार होता रहा है, और उनमें आम लोगों से लेकर पूर्व राजनेता तक शामिल रहे। वर्ष 2012 में पूर्व पर्यावरण मंत्री जयंत मलैया ने खुले तौर पर उससे असहमति जताई। गैस राहत मंत्री बाबूलाल गौर का भी कुछ वैसा ही रुख़ रहा। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी वहां कचरा जलाए जाने को लेकर खुश नहीं थे। वहीं, जयंत मलैया इंदौर की स्थिति को लेकर ख़ासे चिंतित रहे।
हालांकि, सब कुछ के बावजूद भी साल 2012-15 के बीच परिक्षण जारी रहे और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के दस्तावेजों के अनुसार, ‘यूनियन कार्बाइड’ के कचरे के सात परीक्षणों के दौरान तारपुरा गांव के निवासियों को डाइऑक्सिन और फ्यूरान्स (दुनिया के सबसे विषैले रसायनों में से एक) के उच्च स्तर के संपर्क में लाया गया था। रिपोर्ट बताती हैं कि उस समय उन तत्वों की मात्रा तय सीमा से 16 गुना अधिक स्तर पर पहुंच गई थी।
पीथमपुर में यूनियन कार्बाइड का कचरा जलाए जाने के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने राशि ट्रांसफर की •
कचरे को लेकर हर वर्ग है आशंकित
कचरा जलाए जाने से इंदौर पर उसके संभावित असर को लेकर स्थानीय राजनेता भी चिंतित हैं। इंदौर संसदीय क्षेत्र के सांसद शंकर लालवानी कहते हैं कि उन्हें इस बारे में ख़बर है, लेकिन अब तक कोई ठोस प्रस्ताव उन तक नहीं पहुंचा है। हालांकि, वह उस स्थिति को लेकर उच्चाधिकारियों से संपर्क करेंगे। ललवानी कहते हैं कि उन्हें लगता है कि अगर ऐसा फ़ैसला लिया गया है तो उससे पहले लोगों की सुरक्षा के बारे में अच्छी तरह सोचा गया होगा।
हालांकि, भोपाल गैस त्रासदी के बाद दशकों से उक्त मुद्दे पर लड़ रहे सामाजिक कार्यकर्ता और विशेषज्ञ ऐसा नहीं मानते। रचना ढ़ींगरा कहती हैं, “पीथमपुर में भोपाल गैस का कचरा पहले से ही जलाने की मनाही थी, और उसके बाद भी जब ट्रायल हुए तो वे फेल रहे हैं।” वह कहती हैं कि भोपाल में हादसे वाली जगह के नीचे 15 हज़ार टन से ज़्यादा कचरा दबा हुआ है।
कचरा निष्पादन की सुविधा में कचरे को ज़मीन के नीचे दबाकर रखा जाता है •
“337 टन का केवल ऊपरी कचरा है, लेकिन वह इसलिए बेहद ख़तरनाक है क्योंकि पीथमपुर में उतनी उम्दा सुविधाएं नहीं हैं; ताकि वहां यह कचरा 1200 डिग्री सेल्सियस पर जलाया जा सके और उसका कोई अवशेष शेष न रहे,” ढ़ींगरा के मुताबिक़, पीथमपुर में कचरा जलाने पर पहले भी ‘फारएवर केमिकल’ कहलाने वाले ‘डायक्सोसिन’ और फ्यूरान’ निकल चुके हैं और आगे कचरा जलाए करने पर यह फिर होगा। ‘फॉरएवर केमिकल’, यानी ऐसे रसायन जो उत्सर्जन के बाद सदा के लिए पर्यावरण में व्याप्त हो जाते हैं।
‘इंसीनिरेटर’ के इलाक़े में निष्पादन के लिए कचरे को दबाया गया, जिसके बाद अब यहां बड़े-बड़े पहाड़ बन चुके हैं •
क्या कहते हैं जानकार?
पीथमपुर में कचरा जलाना उसके नज़दीक रहने वाले लोगों के लिए नुक़सानदायक होगा, तमिलनाडु में रहने वाले जानकार धर्मेश साहा भी यही मानते हैं। धर्मेश पूर्व में अंर्तराष्ट्रीय संस्था ‘गाया’ (Global Alliance for Incinerator Alternatives) से भारतीय समन्वयक के रूप में जुड़े रहे हैं और उन्होंने यूनियन कार्बाइड के कचरे को नष्ट करने के लिए उपयोग की जा रही इस युक्ति पर भी काम किया है। वह कहते हैं, “भारत में इस तरह की उच्च गुणवत्ता वाली कोई सुविधा नहीं है जहां यूनियन कार्बाइड का कचरा जलाया जा सके,” धर्मेश के मुताबिक़, पीथमपुर में जो ‘इन्सिनिरेटर’ है; वह कम क्षमता का है और अगर उसमें यूनियन कार्बाइड का कचरा जलाया जाता है तो ‘स्पिलेज’ की संभावना अधिक है।
हमने जब सीपीसीबी के क्षेत्रीय निदेशक पी जगन से इसकी गंभीरता के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि ख़बरों में पहले ही काफ़ी कुछ आ चुका है, इससे ज़्यादा वह कुछ नहीं कह सकते। पी जगन ने कहा, “वह फ़िलहाल भोपाल में नहीं हैं और इस बारे में ज्यादा बात नहीं कर सकते।”
जबकि, गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग के उपसचिव कृष्णकांत दुबे ने उक्त मसले पर पूछने पर कहा कि “इस मामले में अभी कुछ ख़ास कहने को नहीं है, हम आपसे आगे बात करेंगे।”
वहीं, धार जिले के ज़िलाधिकारी (कलेक्टर) को कचरा जलाए जाने के संबंध में कोई सूचना नहीं है। कलेक्टर प्रियांक शुक्ला कहते हैं कि भले ही यह उनके ज़िले में हो रहा है, लेकिन इस बारे में उन्हें जानकारी नहीं है। वह कहते हैं कि इसको लेकर हमें भोपाल में संबंधित अधिकारियों से बात करनी चाहिए।
पीथमपुर में रक्षाबंधन के मौके पर महिलाओं ने मुख्यमंत्री को प्रतीकात्मक रूप से राखी भेंट कर ‘यूनियन कार्बाइड’ का कचरा नहीं जलाए जाने का वादा मांगा •
अपने नुक़सान को लेकर कितना जागरूक आमजन?
दुनिया का सबसे ख़तरनाक कचरा नष्ट करने की जिस प्रक्रिया से जनता सबसे अधिक प्रभावित हो रही है, उसके बारे में उसे कोई ख़ास जानकारी नहीं दी जा रही है। यह एक परेशान करने वाली स्थिति है। सामाजिक कार्यकर्ता राहुल बनर्जी कहते हैं कि “यह ख़तरनाक कचरा है, ऐसे में उसके निस्तारण को लेकर कुछ कड़े नियम हैं,” वह कहते हैं कि भले ही अधिकारियों ने यह प्रक्रिया गुप्त रखी है, लेकिन कचरे को भोपाल से इंदौर और पीथमपुर तक पहुंचाना आसान नहीं होगा।
“इस ख़तरनाक कचरे का ‘ट्रांसपोर्टेशन’ करने के लिए कई कठिन नियम हैं, जिनका पालन करना आवश्यक होगा,” राहुल ने कहा। वह कहते हैं कि कचरे को ‘टांसपोर्ट’ करके भोपाल से पीथमपुर तक लाना ही एक बेहद कठिन प्रक्रिया है; उसके लिए विशेष कंटेनर बनाने होंगे। कंटेनर को लाने के लिए पूरा पुलिस बंदोबस्त होगा।
राहुल बनर्जी का कहना है कि ख़तरनाक कचरे का सुरक्षित परिवहन अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह न केवल स्वास्थ्य बल्कि पर्यावरण के लिए भी ख़तरा पैदा कर सकता है। उन्होंने बताया कि रासायनिक कचरे का परिवहन, चाहे वह उत्पादन स्थल पर हो या उपचार और निपटान सुविधा (TSDF) तक; सब कुछ बेहद हिदायती ढंग से होना चाहिए।
“कचरे के कंटेनर को लीक-प्रूफ और यांत्रिक रूप से स्थिर होना चाहिए, साथ ही उन पर स्पष्ट लेबल लगा होना चाहिए; जिसमें कचरे के प्रकार, ख़तरे की जानकारी और आपातकालीन उपाय शामिल हों,” राहुल ने जोड़ा। उन्होंने कहा कि ‘ट्रांसपोर्ट’ वाहनों को ख़तरनाक कचरे के परिवहन के लिए विशेष अनुमतियां प्राप्त होनी चाहिए और उन पर ‘ख़तरनाक अपशिष्ट’ (HAZARDOUS WASTE) लिखा होना चाहिए। साथ ही, वहां आपातकालीन संपर्क नंबर भी दिए होने चाहिए।
यूनियन कार्बाइड का कचरा • प्रतीकात्मक चित्र: फ्लिकर
कई राज्य कर चुके हैं रासायनिक कचरा जलाने से इनकार
यूनियन कार्बाइड के ज़हरीले कचरे के निपटान के लिए भारत में कई राज्य सरकार उसे अपने राज्य में जलाने से मना कर चुकी हैं। साल 2010 में गुजरात सरकार ने ऐसे कचरे को जलाने से इनकार करते हुए पर्यावरण और जनस्वास्थ्य के लिए ख़तरा बताया था। यह फ़ैसला गुजरात के तब के मुख्यमंत्री जो अब प्रधानमंत्री हैं, नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में लिया गया था।
वहीं, वर्ष 2013 में महाराष्ट्र सरकार ने भी जनता एवं पर्यावरणीय समूहों के विरोध के चलते इस प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया, क्योंकि लोगों को विषैले तत्वों के उत्सर्जन से होने वाले स्वास्थ्य ज़ोख़िम का डर था। साल 2015 में, तमिलनाडु सरकार ने भी समान कारणों से कचरे को जलाने से मना कर दिया। ऐसा करते हुए सभी राज्य सरकारों ने पर्यावरण और जनस्वास्थ्य के संभावित ख़तरों को प्राथमिकता दी और कचरे के निपटान के लिए वैकल्पिक और सुरक्षित उपायों की मांग की।
बहरहाल, ऐसा नहीं है कि ‘यूनियन कार्बाइड’ का कचरा केवल देश में ही जलाया जा सकता है, बल्कि उसे विदेश ले जाकर जलाने के भी प्रस्ताव आए हैं।
साल 2012 में, जर्मन कंपनी ’जीआईजेड’ (Deutsche Gesellschaft für Internationale Zusammenarbeit) ने 345 एमटी ‘यूनियन कार्बाइड’ कचरे को क़रीब छह हजार किमी दूर जर्मनी के हैम्बर्ग शहर में ले जाकर जलाने की पेशकश की थी। तब उस ‘इन्सिनरेशन’ की कुल लागत 54 करोड़ रुपये होती, लेकिन अब उसके लिए सरकार 126 करोड़ रुपये ख़र्च कर रही है।
केंद्र सरकार में महिला एवं बाल विकास विभाग में राज्य मंत्री सावित्री ठाकुर भी धार जिले से ही आती हैं। पीथमपुर के लोगों ने उनसे वहां कचरा न जलाने की मांग की थी। मंत्री कहती हैं कि वह नहीं चाहतीं कि पीथमपुर में ‘यूनियन कार्बाइड’ का कचरा जलाया जाए; उस संबंध में वह संबंधित विभाग के लोगों से मिलेंगी और केंद्रीय स्तर पर भी उक्त मुद्दे को उठाएंगीं।
सामाजिक कार्यकर्ता रचना ढींगरा कहती हैं कि फ़िलहाल जो तरीक़ा अपनाया जा रहा है; वह ग़लत है, क्योंकि कचरे के एक बहुत छोटे से हिस्से को ख़त्म करने के लिए बहुत बड़ी आबादी को ख़तरे में डाला जा रहा है, जबकि उसके बाद भी भोपाल में हजारों टन कचरा शेष रहेगा। उनके मुताबिक़, “कचरा विशेष तौर पर बनाए गए ‘स्टेनलेस स्टील’ के बड़े ड्रमों में हमेशा के लिए रखा जा सकता है,” ढींगरा समझाती हैं कि “फ़िलहाल कचरा लीक न हो, उसके लिए हमारे पास बस यही उपाय है; क्योंकि उसे जलाने पर विशाक्त रसायन तो निकलेंगे ही।” रचना मानती हैं कि यह तरीक़ा कहीं ज्यादा सस्ता होगा, लेकिन फिर भी अधिकारी महंगे तरीक़ों को ही अपना रहे हैं; ऐसा क्यों हो रहा है, यह समझना मुश्किल नहीं।