अंबेडकर जन्मस्थली: आख़िर किसके हैं ‘बाबसाहेब’? दो गुटों के विवाद के बीच ‘स्मारक’ पर लटका ताला
महू के 'अंबेडकर स्मारक समिति' में पिछले कुछ वर्षों से दावेदारी को लेकर चल रहा मनमुटाव हिंसा में हुआ तब्दील। बीते 18 अगस्त को स्मारक के दो गुटों के बीच हाथापाई और मारपीट के बाद प्रशासन ने स्मारक को सील कर दिया।
दलित अधिकारों और राजनीति की बात हो और आंबेडकर का जिक्र न आए, यह कैसे संभव है? हाल ही में, उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) के फैसले ‘एससी-एसटी आरक्षण में उप-वर्गीकरण’ के विरोध में बीते 21 अगस्त को भारत बंद का आयोजन किया गया, जिसमें एक बार फिर आंबेडकर और उनके विचार केंद्र में थे। बंद का आह्वाहन करने वाले राजनीतिक दल और देश भर के दलित संगठन आंशिक ही सही, लेकिन भारत बंद कराने में सफ़ल रहे।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने एक अगस्त को अपने एक फ़ैसले में कहा था कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में उप-वर्गीकरण (सब-क्लासिफिकेशन) किया जा सकता है।
बहरहाल, जब दलितों के हित की बात आती है तो हर दल आंबेडकर को अपने पाले में लाने की कोशिश करता रहा है। और, यह सब करने के लिए आंबेडकर की जन्मस्थली एवं उनसे जुड़े स्थानों से बेहतर जगह कौन-सी हो सकती है? आरोप है कि अपनी उन्हीं कोशिशों के अन्तर्गत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने साल 2020 में राजेश वानखेड़े को महू, इंदौर में स्थित अंबेडकर स्मारक समिति का सचिव बनवा दिया। सचिव बनने से पहले वानखेड़े भाजपा से दो बार इंदौर नगर निगम के पार्षद का चुनाव भी लड़ चुके थे।
समिति के कुछ सदस्य आरोप लगाते हैं कि राजेश वानखेड़े के सचिव बनने के बाद से स्मारक परिषर में संघ से जुड़ी गतिविधियों की शुरुआत होने लगी, जिसे सरकारी समर्थन भी हासिल था। वानखेड़े की नियुक्ति के बाद से ही बहुत सारे लोग उनकी कार्यशैली पर सवाल उठा रहे थे और उनका विरोध कर रहे थे। समिति के सदस्यों के बीच का आपसी विवाद तब खुलकर सामने आ गया जब बीते 18 अगस्त को दोनों गुटों में मारपीट और हाथापाई तक हो गई, जिसमें कई लोग घायल भी हुए। प्रशासन ने उस झगड़े के बाद स्मारक को सील कर दिया है, जिसके कारण ऑफिस का कामकाज और दर्शानार्थियों के आने पर रोक लगा दी गई है।
बीते साल मोजो स्टोरी ने डॉ आबेंडकर के जन्मदिन के अवसर पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में हुए बदलाव को लेकर एक रिपोर्ट की थी, जिसमें यह चर्चा की गई थी कि कैसे स्मारक की परंपराओं और नियमों को चंद लोगों के फ़ायदे के लिए बदला जा रहा है। और, तब से लेकर अब तक के डेढ़ साल में स्मारक और उससे जुड़ी राजनीति में इतना बदलाव हो गया है कि अब वहां पत्थरबाजी और लाठी-डंडों का प्रयोग किया जा रहा है।
स्मारक के मुख्य द्वार पर लगा परिसर संबंधी व्यवहार-निर्देश •
आख़िर क्या बना हिंसा का कारण?
राजेश वानखेड़े के साथ ही समिति में शामिल हुए और बाद में उपाध्यक्ष बने प्रकाश वानखेड़े बताते हैं, “18 अगस्त की घटना वाले दिन पुरानी समिति के 20 लोगों ने विरोध के तौर पर स्मारक स्थल पर प्रदर्शन, ज्ञापन और बाद में एक ‘टिफ़िन पार्टी’ का आयोजन किया था, जिसका उद्देश्य सबके साथ मिलकर आगे की रणनीति पर चर्चा करना था। उसी दौरान हम लोगों ने स्मारक के प्रबंधक से स्मारक स्थल की चाभी मांगी, जिसे उन्होंने देने से मना कर दिया और कहा कि आप लोग अब समिति के सदस्य नहीं हैं। अगर आपको अंदर जाना है तो सचिव या फिर अध्यक्ष का पत्र लेकर आएं।”
“उक्त रुकावट के बाद विवाद की शुरुआत हुई। उस दौरान राजेश वानखेड़े के परिवार के एक सदस्य जो कि उनके द्वारा गठित एक और समिति के सदस्य के रूप शामिल हैं, वह वहां पहले से मौजूद थे। तभी आपस में कहा-सुनी के बाद दोनों पक्षों के बीच हाथापाई हो गई, जिसमें कई लोगों को गंभीर चोटें भी आईं,” प्रकाश वानखेड़े ने जोड़ा।
स्मारक समिति के दोनों ही पक्ष एक-दूसरे पर फर्जी समिति होने का आरोप लगा रहे हैं। उस पर प्रकाश वानखेड़े कहते हैं कि किसी के कहने से क्या होता है? समिति का गठन साल 2020 में किया गया था, जिसके अध्यक्ष भंते सुमेध बोधि थे, राजेंद्र वाघमारे व प्रकाश वानखेड़े उपाध्यक्ष एवं राजेश वानखेड़े को सचिव बनाया गया था।
प्रकाश वानखेड़े आगे कहते हैं, “समिति के अध्यक्ष सुमेध बोधि महाराष्ट्र के अकोला में रहते थे और रोज के कामकाज में उनका कोई दखल नहीं होता था, वैसे में सचिव होने के कारण राजेश ही उसके लिए जिम्मेदार थे। स्मारक स्थल पर हो रही हर गतिविधि के लिए वह ही जिम्मेदार थे,” प्रकाश आरोप लगाते हैं, “समिति के बाकि सदस्यों ने जब राजेश वानखेड़े से समिति के कामकाज का हिसाब मांगना शुरू किया तो वह हर बार कोई बहाना बनाकर टाल देते थे। ऐसा करते-करते तीन साल गुजर गए। इस साल जब उनसे हिसाब मांगा गया तो उन्होंने फिर से टाल-मटोल शुरू कर दी, जिसके बाद 14 अप्रैल को समिति के दो-तिहाई सदस्यों ने सर्वसम्मति से उन्हें समिति से बाहर कर दिया।”
“हालांकि, किसी सदस्य को बाहर करने का अधिकार केवल अध्यक्ष के पास होता है, लेकिन समिति के अध्यक्ष सुमेध बोधि बीमार होने के कारण यात्रा करने और समिति का काम देख पाने में अक्षम थे। उस स्थिति में उन्होंने अपनी जगह पर मुझे उनका कार्यभार सम्भालने के लिए नियुक्त किया था। मेरे पास सुमेध बोधि का वह पत्र भी है, जो उन्होंने मुझे कार्यकारी अध्यक्ष बनाने के लिए लिखा था,” प्रकाश वानखेड़े जोड़ते हैं।
उक्त आरोपों और 18 अगस्त के विवाद की घटना पर मोजो स्टोरी ने राजेश वानखेड़े से बात की, तो वह कहते हैं कि उनके ऊपर लगाए जा रहे सभी आरोप बेबुनियाद हैं। वह कहते हैं, “जिन अनियमितताओं का आरोप मुझ पर लगाया जा रहा है, वह कभी हुए ही नहीं। किसी को शक है तो ‘ऑडिट रिपोर्ट’ देख ले।” हालांकि, ऑडिट रिपोर्ट मांगने पर वह उसे कुछ दिनों बाद देने की बात कहते रहे। उसका कारण पूछने पर राजेश वानखेड़े ने बताया कि वह अभी बाहर हैं और लौटकर आने पर ही कुछ भी कर पाएंगे।
स्मारक के अंदर का दृश्य •
किन कारणों से बढ़ते रहे मतभेद?
राजेश वानखेड़े से पहले स्मारक समिति के सदस्य रहे मोहन राव वाकोड़े आरोप लगाते हैं कि “बीते कुछ वर्षों से स्मारक को किसी होटल या निजि संपत्ती की तरह चलाया जा रहा था,” वह मानते हैं कि उसका कारण समिति में शामिल सभी सदस्यों का राजेश वानखेड़े के समर्थन में होना था, जिसके चलते वह हर काम करा ले रहा था।
वाकोड़े बताते हैं कि स्मारक के ‘बाईलॉज’ (उप-नियम) के अनुसार, सचिव बिना किसी पूर्व सहमति या प्रस्ताव के अपनी मर्जी से केवल पांच सौ रुपये ही खर्च कर सकता है। उससे अधिक खर्च के लिए उसे समिति की सहमति लेना जरूरी होता है। लेकिन सवाल है कि स्मारक में जो काम कराए गये, उसमें समिति के कितने सदस्यों की सहमति थी?
वाकोड़े के इस सवाल का जवाब समिति के वह पूर्व सदस्य देते हैं जो राजेश वानखेड़े के साथ ही स्मारक समिति में शामिल हुए थे। नाम न बताने की शर्त पर बात करते हुए वह कहते हैं, “स्मारक में जमकर भ्रष्टाचार हुआ है।” जब उनसे पूछा गया कि जिस दौरान यह सब हो रहा था, तब आप चुप क्यों थे? तो उस सवाल पर वह कहते हैं, “हम सभी बाबसाहेब के मिशन को आगे बढ़ाने के इरादे से स्मारक से जुड़े थे, पैसा कमाना किसी का उद्देश्य नहीं था। मिशन के काम को आगे बढ़ाना सेवा का काम है। छोट-मोटे विवाद हर जगह होते हैं। कुछ वैसे ही स्मारक में भी थे, और वह स्मारक समिति के काम को लेकर ही थे। दूसरी बात यह थी कि बाबसाहेब कि जन्मस्थली पर देश-दुनिया की नजर होती हैं, ऐसे में अगर उक्त भ्रष्टाचार की बातें बाहर जातीं तो बदनामी होती। यही कारण है कि हम सभी चुप रहे और इंतजार किया कि शायद सब ठीक हो जाए।”
राजेश के साथ ही समिति में शामिल हुए राजीव आंबोरे कहते हैं कि “ऐसा कई बार हुआ जब हम लोगों से कोरे कागज पर दस्तखत ले लिए गये, उसका कारण केवल स्मारक समिति का संचालन ही बताया गया। कुल मिलाकर हम लोगों को बेवकूफ बनाया गया।”
राजेश वानखेड़े के साथ समिति में शामिल रहे लोगों से जब इस बारे में पूछा गया कि क्या आप लोगों ने स्मारक में हो रही इस तरह की गतिविधियों की कहीं शिकायत की? तो इस सवाल पर प्रकाश वानखेड़े कहते हैं कि “हां, हमने हर जगह उसकी शिकायत दी, जिसमें इंदौर संभाग के कमिश्नर, इंदौर के डीएम और महू के एसडीएम को इस सबंध में अवगत कराना शामिल है।”
स्मारक में ‘डॉक्यूमेंट’ किए गये डॉ भीमराव आंबेडकर •
कैसे चुने जाते हैं स्मारक के अध्यक्ष?
स्मारक के संचालन के लिए जो एक व्यक्ति जिम्मेदार है; वह है समिति का अध्यक्ष, जो कि भारतीय बौद्ध महासभा का ‘भंते’ रह चुका होता है और समिति का सदस्य होता है; उसे ही स्मारक का अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है। परंपरा है कि वर्तमान अध्यक्ष अपने जीवित रहते ही अगले अध्यक्ष की घोषणा कर देता है; भंते सुमेध बोधि उसी परंपरा के आखिरी अध्यक्ष थे, जिनकी इसी साल मई महीने में मृत्यु हो गई।
दोनों ही पक्षों का दावा है कि स्मारक समिति के भूत-पूर्व अध्यक्ष भंते सुमेधे बोधि मृत्यु से पहले उनके साथ रहे। प्रकाश वानखेड़े का दावा है कि सुमेध बोधि ने कार्यसमिति के संचालन के लिए उन्हें कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया था, और यह काम उन्होंने 13 मार्च को किया था। हालांकि, आमतौर पर उन दिनों स्मारक समिति आंबेडकर के जन्मदिन की तैयारियों में व्यस्त रहती है। उस पर प्रकाश कहते हैं कि “सुमेधे बोधि की तबितयत खराब रहती थी और उनका निवास यवतमाल (महाराष्ट्र) में था, जिसके चलते उनके लिए बार-बार यहां आना संभव नहीं था और इसलिए उन्होंने मुझे यह जिम्मेदारी सौंपी थी।”
“अंबेडकर जयंति समारोह के बाद जब भंते वापस लौट रहे थे, तब राजेश और उसके गुंड़ों ने भंते का अपहरण करके उनसे अपने समर्थन में एक पत्र लिखवाया और उसी पत्र के आधार पर फर्जी सदस्यों की नियुक्तियां की और, खबर छपवाई कि भंते उनके साथ हैं,” प्रकाश आरोप लगाते हैं।
स्मारक में स्तूप के शिलान्यास में शामिल अतिथियों का विवरण •
क्या दोनों पक्षों के दावों से अलग है हकीकत?
इस पूरे मसले पर दोनों पक्षों के दावों से इतर भंते सुमेध बोधी ने इस संबध में एक पत्र सहायक पंजीयक कलेक्टर इंदौर को लिखा है, उसमें कहा गया है कि राजेश वानखेड़े ने उनके द्वारा पहले से दस्तखत किए चेक बुक और ‘लेटरहेड’ के दुरुपयोग का डर दिखाकर समिति के नियमों के विरुद्ध जाकर प्रबंध कार्यकारिणी के पांच सदस्यों प्रकाश वानखेड़े, प्रकाश निकड़े, राजू अंभोरे, सुनील खंडेराव और शशिकांत वानखेड़े के खिलाफ जबरदस्ती झूठे शपथ-पत्र एवं आरोपपत्र पर दस्तखत करवाए।
भंते द्वारा लिखे गए उसी पत्र में आगे लिखा है कि वह 1 मई को आयोजित की गई साधारण बैठक और निर्वाचन सूची का विरोध एवं खंडन करते हैं। हालांकि, मोजो स्टोरी इस पत्र की सत्यता को सत्यापित नहीं कर सका, क्योंकि पूरे मामले की एक प्रमुख कड़ी स्मारक समिति के अध्यक्ष सुमेध बोधि की मृत्यु हो गई है, इसलिए उनसे उनका पक्ष नहीं जाना जा सकता।
उक्त दावों पर राजेश वानखेड़े कहते हैं, “विवाद की प्रमुख जड़ पांच सदस्यों का निष्कासन है।” पांच सदस्यों के निष्कासन का कारण पूछने पर वह कहते हैं कि “आंबेडकर की जन्मस्थली स्मारक कोई मामूली जगह नहीं है; देश-विदेश भर के लोगों की नजर उस पर होती है, खासकर आंबेडकर और बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों के लिए यह एक तीर्थ स्थल है। साथ ही, यहां देश के बड़े-बड़े नेताओं का आना-जाना लगा रहता है। ऐसे में उसको चलाने के लिए क्षमतावान और प्रबुद्ध व्यक्ति की आवश्यकता है।”
“जिन लोगों को समिति से निकाला गया है, वह समिति के लायक नहीं पाए गये। वे रोज कमाने-खाने वाले लोग हैं; ऐसे में उनको स्मारक की महत्ता का अंदाजा कैसे होगा, जिसके चलते वह हर काम में बाधा डालते थे। यही कारण है कि उनको निष्काषित किया गया था, ताकि नये और क्षमतावान व्यक्तियों को समिति में शामिल किया जा सके,” राजेश वानखेड़े ने अपनी बात में जोड़ा।
वहीं, समिति के पूर्व सचिव रह चुके मोहनराव वाकुड़े कहते हैं कि यह सब नियत का मामला है। बाबसाहेब के मिशन और दलित समाज को आगे ले जाने के लिए पद और प्रतिष्ठा जरूरी नहीं है। वह आरोप लगाते हैं कि “वानखेड़े स्मारक समिति के संसाधनों पर कब्जा करना चाहते हैं, जिसके लिए यह सब खेल खेला जा रहा है,” वाकुड़े के अनुसार, समिति का एक महत्वपूर्ण पद कोषाध्यक्ष राजेश वानखेड़े ने अपने मामा अरुण इंगले को बनाया हुआ था। उनकी मदद से वे स्मारक में आने वाले दान, चंदे और फंड का दुरुपयोग आसानी से कर पाते थे।
उक्त विवाद पर पूर्व में राजेश के करीबी रहे और अब विरोधी गुट में शामिल राजू अंभोरे बताते हैं, “अरुण इंगले राजेश के सगे मामा हैं, उसके बाद भी उन्होंने राजेश की कार्यशैली से दुखी होकर दो-तीन बार इस्तीफा दिया। लेकिन, राजेश उनको हर बार मनाकर ले आता था,” अंभोरे जोड़ते हैं कि “जब कार्यकारिणी समिति ने राजेश को बर्खास्त कर दिया, तब उसके साथ केवल दो ही लोग थे; एक अरुण इंगले, जबकि दूसरा डॉ अनिल गजभिए। और, उन तीनों ने मिलकर ही 18 अगस्त की साजिश रची, जिससे कि स्मारक और समिति का नाम खराब कर सकें।”
वहीं, स्मारक समिति पर करीब से नजर रखने वाले एक पूर्व सदस्य नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि “स्मारक पर जो भी हुआ, वह किसी तीसरे की साजिश है और बाकि सभी लोग मोहरे हैं।” वह आरोप लगाते हैं कि उस सबके पीछे आरएसएस और उससे जुड़े लोग हैं, जो स्मारक पर कब्जा करना चाहते हैं। वे सीधे तौर पर ऐसा कर पाने की स्थिति में नहीं है, इसलिए यह हथकंडा अपनाया है। अगर यह विवाद जल्द नहीं सुलझा तो सरकार यहां अपना नुमाइंदा बैठा देगी।
जबकि, मोहन राव वाकुड़े आरोप लगाते हैं कि “राजेश वानखेड़े हर कीमत पर स्मारक समिति पर अपना कब्जा बनाए रखना चाहते हैं, जिसके लिए वह षड़यंत्र कर रहे हैं।” वाकुड़े एक घटना का जिक्र करते हुए बताते हैं कि “वानखेड़े ने 1 मई को जब एक साधारण सभा करके फर्जी सदस्य बनाए, तो उसे किसी की भी सहमति नहीं मिल सकी,” वह आरोप लगाते हैं, “उसके बाद दो तारीख की रात को स्मारक के ताले तोड़ कर तमाम दस्तावेज वहां से चोरी किए गये, जो प्रशासनिक कार्य के लिए जरूरी होते हैं।”
जानकारी के मुताबिक, इस संबध में स्मारक समिति के प्रकाश वानखेड़े गुट ने स्थानीय थाने से लेकर एसडीएम, कलेक्टर और कमिश्नर तक शिकायत पत्र दिया, लेकिन उसके बाद भी उक्त मसले पर प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की।
स्मारक में स्थापित दान पेटी •
पूरे मसले को कैसे देखते हैं स्थानीय पत्रकार?
महू के वरिष्ठ पत्रकार दिनेश सोलंकी कहते हैं कि स्मारक पर हो रही सारी गतिविधियां चंदे के खेल को लेकर हैं। वह बताते हैं, “स्मारक में हर साल करोड़ों रुपये का दान आता है, जो दानपेटी में डाला जाता है। दानपेटी साल में एक बार जिले के प्रमुख अधिकारियों के सामने खोली जाती है। जबकि, बीते कई वर्षों से उसको अकेले में या फिर छोटे स्तर के अधिकारियों के सामने खोलकर सब खेल कर दिया जाता है।”
सोलंकी आगे कहते हैं, “उससे बड़ा खेल यह है कि राजेश वानखेड़े जब से सचिव बने हैं, उन्होंने जन्मस्थली स्मारक के लिए ऑनलाइन चंदा लेना शुरू किया है। दान देने वाले लोगों को ‘इनकम टैक्स’ में छूट भी प्रदान की जाती है, यहां तक तो सब ठीक है; लेकिन सवाल यह है कि स्मारक स्थल पर विकास किस चीज का हो रहा है? क्योंकि वहां पर कोई काम कराने की आपको अनुमति नहीं है। स्मारक के तीनों तरफ सेना की जमीन है, ऐसे में जो भी काम कराया जाएगा वह सेना और शासन के द्वारा किया जाएगा। फिर आप किस बात का पैसा ले रहे हैं, और उस पैसे से क्या काम कराया गया?”
दिनेश सोलंकी स्मारक स्थल पर पैसे वसूलने के हथकंडों के बारे में बताते हुए बीते दिनों की एक घटना का जिक्र करते हैं, “एक नाबालिग प्रेमी जोड़ा स्मारक के अंदर कुछ करते हुए सीसीटीवी में पकड़ा गया था। सीसीटीवी की रिकॉर्डिंग को आधार बनाकर उन्होंने उन बच्चों के माता-पिता से चार हजार रुपये वसूल किए; यह कहकर कि उनके बच्चे स्मारक की पवित्रता को नष्ट कर रहे थे। लेकिन, स्मारक की ओर से उस वसूली की कोई रसीद या फिर कोई पर्ची नहीं दी गई जिससे पता चले कि उनसे यह शुल्क किस आधार पर वसूला गया।”