मज़दूरी भुगतान के लिए ABPS लागू होने पर MGNREGA मज़दूरों की क्यों बढ़ी मुश्किल
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना यानी मनरेगा के तहत मज़दूरी का भुगतान अब केवल आधार बेस्ड पेमेंट सिस्टम (एबीपीएस) के माध्यम से किया जाएगा.
रामश्री जो एबीपीएस लागू होने के बाद मनरेगा जॉब से वंचित हो गईं; वह अपना आधार दिखाते हुए.
बीते एक जनवरी से मनरेगा में मज़दूरों के भुगतान हेतु एबीपीएस (ABPS) लागू कर दिया गया है. आधार आधारित पेमेंट सिस्टम के लिए यह केंद्र सरकार का पहला प्रयास नहीं है, बल्कि पिछले साल 1 फरवरी, 2023 से इस व्यवस्था को अनिवार्य करने की कोशिश की जा रही है; उस समय मज़दूरों के विरोध करने से यह नियम लागू नहीं हो सका. ‘मनरेगा वाच’ संस्था के संयोजक जेम्स हेरेंज के अनुसार, मज़दूरों के आधार का मनरेगा से लिंक किया जाना प्रशासनिक ज़िम्मेदारी थी; जबकि प्रशासन ने यह काम ख़ुद न करते हुए मज़दूरों पर ही इसका दोषारोपण किया कि वे अपने आधार लिंक नहीं कर रहे.
हेरेंज बताते हैं कि बीते साल जनवरी में केंद्र सरकार ने एक चिट्ठी निकाली जिसके अनुसार आधारित भुगतान को अनिवार्य किए जाने की बात कही गई. उस समय झारखंड में केवल 41 फ़ीसद मज़दूर का आधार पेमेंट के लिए जुड़ा था, यानी 59 फ़ीसद मज़दूरों को एक झटके में मनरेगा से अलग कर दिया गया. इसके बाद मज़दूरों एवं मनरेगा कर्मचारियों द्वारा इस फ़ैसले का काफ़ी विरोध हुआ.
वह आगे कहते हैं, “एबीपीएस की जटिलताओं के कारण इसे लागू न किए जाने की मांग के साथ ‘नरेगा संघर्ष मोर्चा’ व ‘झारखंड नरेगा वॉच’ की तरफ़ से हम लोगों ने दिल्ली के रामलीला मैदान में 60 दिनों तक धरना दिया”.
विरोध के बाद भारत सरकार ने आधार की अनिवार्यता के फ़ैसले को पहले 30 जून तक बढ़ाया, उसके बाद 31 अगस्त और अंत में 31 दिसंबर 2023 तक बढ़ा दिया; लेकिन अब सरकार ने एक जनवरी, 2024 से एबीपीएस को सभी पंचायतों के लिए अनिवार्य रूप से लागू कर दिया है.
बीते साल 30 जनवरी को ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार की ओर से एबीपीएस को अनिवार्य किए जाने हेतु जारी नोटिस.
मनरेगा मज़दूरों को बीते साल 31 दिसंबर तक दो तरह से भुगतान किया जाता था; पहला आधार आधारित यानी एबीपीएस, जबकि दूसरा बैंक खाता आधारित (आधार जुड़ा हो या नहीं). लेकिन अब ग्रामीण विकास मंत्रालय के नये निर्देश के अनुसार, 1 जनवरी 2024 से योजना के तहत कार्य कर रहे मज़दूर का बैंक खाता एवं मनरेगा जॉब कार्ड का आधार से लिंक होना अनिवार्य कर दिया गया है. “ऐसे में जिन मज़दूरों का आधार मनरेगा से नहीं जुड़ा है, उनके जॉब कार्ड को अप्रत्यक्ष कारणों से डिलीट कर दिया जा रहा है; यानी ऐसे मज़दूर योजना से जुड़े कार्यों से वंचित कर दिए गए,” झारखंड नरेगा वॉच से जुड़े जेम्स हेंरेज कहते हैं.
आंकड़ों की दृष्टि से MGNREGA मज़दूर
उदाहरण के लिए अगर झारखंड की बात करें तो वहाँ 31 जनवरी 2023 तक मनरेगा मज़दूरों की संख्या 109,05,731 थी जो एबीपीएस लागू किए जाने के कश्मकश में 19 जनवरी 2024 तक घट कर 98,99,000 हो गई; यानी लगभग एक साल में 10,06,731 मज़दूरों ने झारखंड में मनरेगा छोड़ दिया.
एबीपीएस से आधार को जोड़ने के लिए भेजे गये झारखंड के मज़दूरों की ज़िलेवार सूची.
झारखंड के लातेहार ज़िला के हेरहंज ब्लॉक के नवादा गांव से बिरेंद्र ऊराँव, हीरामनी देवी, उर्मिला देवी, महरगिया देवी व ललिता देवी को मनरेगा में काम करने के बावजूद एबीपीएस के कारण भुगतान नहीं हो सका. यह जानकारी स्थानीय ब्लॉक प्रोग्राम अधिकारी ने दी.
इस मसले पर मज़दूर बिरेंद्र ऊराँव कहते हैं कि हम सभी पांच लोगों ने पिछले वर्ष मनरेगा का काम शुरु होने से पहले ही एबीपीएस के लिए मनरेगा में अपना आधार फीड करा दिया था, बावजूद इसके हमारे पैसों का भुगतान नहीं किया गया.
वह आगे कहते हैं, “भुगतान न मिलने की शिकायत पर ब्लॉक के तत्कालीन प्रखंड कार्यक्रम अधिकारी (बीपीओ) ने कहा कि इसके लिए ज़िला मनरेगा कार्यालय संपर्क करें. पिछले वर्ष हमने छह हफ़्ते काम किया, लेकिन पैसे सिर्फ़ एक दिन के मिले; वह भी 237 रुपये. शेष 8.5 हज़ार रुपयों की राह हम बीते साल से आज तक देख रहे हैं, लेकिन भुगतान नहीं हुआ. हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं कि हम 50 किलोमीटर दूर ज़िला कार्यालय जाएं. मान लें कि किसी तरह चले भी जाएं तो एक दिन में काम हो जाएगा; इसकी गारंटी नहीं है”.
झारखंड के लातेहार ज़िले के नवादा गांव के बिरेंद्र उराँव को उनकी मज़दूरी एबीपीएस के कारण नहीं मिल पा रही.
बिरेंद्र कहते हैं कि “12वीं में पढ़ रहे बेटा व बेटी के आगे की पढ़ाई के लिए पैसों के अभाव को लेकर चिंतित हूं. मेरी पत्नी सहिया का काम करती हैं, जिसके लिए उन्हें दो हज़ार रुपये का वेतन मिलता है; जो घर चलाने के काम आता है. बच्चों की आगे की पढ़ाई रांची से होगी, जिसके लिए उन्हें वहां रहना होगा; लेकिन पैसों के अभाव में यह संभव नहीं लगता है. अब मैं 58 वर्ष की आयु में बाहर जाकर मज़दूरी भी नहीं कर सकता”.
बिरेंद्र उराँव एवं अन्य पांच महिलाओं का भुगतान न होने के संबंध में हेरहेंज ब्लॉक के ‘ब्लॉक प्रोग्रामिंग ऑफिसर’ मोहम्मद तैजुल कहते हैं कि “यह तकनीकी समस्या है न कि इंटेशनली ऐसा किया जा रहा, हम लगातार कोशिश कर रहे हैं कि इस समस्या से मज़दूरों को मुक्ति मिले”.
समस्या क्यों हो रही है? इस सवाल पर तैजुल कहते हैं कि ‘नेशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम’ में तकनीकी समस्या है. मान लें कि एक मास्टर रोल में 10 मज़दूर की उपस्थिति का विवरण है, अगर उसमें से किसी एक की फीडिंग में किसी भी कारण से दिक्कत आ गई तो सभी मज़दूरों की पेमेंट रुक जाती है. इस समस्या से निपटने की कोशिश हो रही है.
मज़दूरों का आधार लिंक कराने की ज़िम्मेदारी जब रोज़गार सेवक की है तो फिर मज़दूरों पर दोषारोपण क्यों किया जाता है? इस सवाल पर लातेहार के मनरेगा लोकपाल संतोष कुमार पांडे कहते हैं कि “मज़दूरों के आधार को मनरेगा से लिंक कराने की ज़िम्मेदारी हमारे रोज़गार सेवक बख़ूबी निभाते हैं. हम मज़दूर को जागरूक भी करते हैं कि वे आधार लिंक कराएं”.
उत्तर प्रदेश के सीतापुर में मनरेगा कार्यकर्ता कमल किशोर पिंटू मज़दूरों की मज़दूरी दिलाने में मदद करते हैं.
फिंगरप्रिंट मैच न होने से मज़दूर हो रहे कार्य से वंचित
उत्तर प्रदेश के ज़िला सीतापुर के मिश्रिख ब्लॉक स्थित दधनामऊ पंचायत के मनरेगा कार्यकर्ता कमल किशोर पिंटू के अनुसार मनरेगा में बढ़ते तकनीक के इस्तेमाल से पेमेंट में दिक्कत बढ़ने के कारण उनकी पंचायत में ही नहीं, बल्कि राज्य की विभिन्न पंचायतों में मज़दूरों की इस परियोजना के कार्यों में रुचि घटी है.
वह अपनी दधनामऊ पंचायत का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि “कभी 100 से अधिक मज़दूर मनरेगा से जुड़े हुए थे, लेकिन आज यहां सिर्फ़ 75 मज़दूर ही मनरेगा में काम कर रहे हैं”.
कमल किशोर आगे कहते हैं, “आज हालत यह है कि जो मज़दूर मनरेगा से जुड़े हैं, उनमें अधिकांश लोग उम्र के उस पड़ाव पर हैं जो कहीं बाहर काम करने नहीं जा सकते. गांव के 75 लोगों के नाम डिलीट हुए, जिनके नाम जुड़वाने के लिए हमें बहुत दौड़ना पड़ा. उनमें से 50 नाम तो जुड़ गए, लेकिन 25 नाम ऐसे हैं जो लाख कोशिशों के बावजूद भी नहीं जुड़ सके. ऐसे में अब एबीपीएस जैसी तकनीक लागू होने के बाद ये मज़दूर मनरेगा से वंचित हो गए हैं”.
पिंटू के पास चार महिलाएं मनरेगा में दोबारा काम हासिल करने के लिए अनुरोध करती दिखीं. वह उनका ज़िक्र करते हुए बताते हैं कि दो बुज़ुर्ग महिला नन्हीं देवी व मैकिन देवी अधिक उम्र के कारण अब बाहर मज़दूरी नहीं कर सकतीं. उनके लिए मनरेगा में मिलने वाला काम ही जीवनयापन का साधन है, लेकिन ये दोनों ही महिलाएं अब मनरेगा कार्य से वंचित हो गईं हैं.
नन्हीं व मैकिन का ज़िक्र करते हुए पिंटू कहते हैं कि “पिछले महीने दोनों महिलाओं का जॉब कार्ड डिलीट हो गया. मैकिन का जेंडर पोर्टल पर गलत दर्ज होने के कारण मास्टर रोल से उनका नाम डिलीट हो गया, जिस वज़ह से उनको पैसा नहीं मिला. बहुत दौड़-धूप करके मैंने उनका जेंडर ठीक करवाया तो अब एबीपीएस लागू हो गया, और अब ब्लॉक के द्वारा एबीपीएस के लिए पोस्ट ऑफिस में खाता खुलवाने के लिए ज़ोर दिया जा रहा है”.
“मैकिन देवी की उंगलियों की रेखाएं ख़राब हो गई हैं, ऐसे में खाता खुलवाने के लिए आधार वेरिफिकेशन हेतु फिंगर रीड नहीं हो रही हैं. कुछ यही स्थिति दूसरी महिला नन्हीं देवी के साथ भी है,” यह कहके पिंटू अपनी बात पूरी करते हैं.
नन्हीं देवी जिनका फिंगर खराब होने के कारण एबीपीएस लागू नहीं हो सका.
इस पर नन्हीं देवी कहती हैं कि “मुझे 15 साल से अधिक हो गए मनरेगा में काम करते हुए, लेकिन जॉब कार्ड डिलीट होने के बाद दोबारा बनवाने की कोशिश की तो ब्लॉक पर कहा गया कि एबीपीएस के लिए पोस्ट ऑफिस में एकाउंट खुलवा लूं तो नया जॉब कार्ड बन जाएगा. वहाँ खाता खुलवाने के लिए आधार हेतु मेरे फिंगरप्रिंट की आवश्यकता है, जोकि उंगलियों की रेखा मिट जाने के कारण हो नहीं पा रहा; ऐसे में मैकिन की तरह मैं भी मनरेगा के कार्य से वंचित हो गई”.
नन्हीं आगे कहती हैं, “मेरे दो बेटे हैं; दोनों अलग हो गए, उनकी इतनी आय नहीं कि वे मेरा ख़र्च उठा सकें. ऐसे में पेट पालने के लिए मुझे काम करना पड़ता है”.
जबकि, मैकिन देवी के दो विवाहित बेटे उनसे अलग रहते हैं. ऐसे में परिवार का ख़र्च उठाने के लिए वह, उनके पति एवं छोटा बेटा मनरेगा पर निर्भर हैं. वह कहती हैं कि “अंगूठा न लगने से काम नहीं मिल रहा, अब आप बताओ कि काम नहीं करेंगे तो खाएंगे क्या?”
मैकिन देवी फिंगरप्रिंट रीड न होने के कारण एबीपीएस लागू न हो पाने से मनरेगा कार्य से वंचित हो गईं.
सीतापुर के मनरेगा डीसी नन्हीं व मैकिन जैसे मनरेगा मज़दूर को आई दिक़्क़त को लेकर कहते हैं कि फिंगरप्रिंट मिट जाने वालों के मामले बहुत कम हैं, ये समस्या अधिक उम्र के मज़दूरों के साथ है. ऐसे मामलों के लिए कोई प्रावधान आएगा तो हम इस मसले का हल ज़रूर करेंगे.
मनरेगा कार्यकर्ता पिंटू कहते हैं कि दधनामऊ पंचायत की एक अन्य महिला रामरानी व उनके पति का जॉब कार्ड डिलीट हो गया है. कारण पूछने पर बताया गया कि उनका आधार पोर्टल पर फीड नहीं है, ऐसे में हमने उनका नाम तो जुड़वा लिया लेकिन अब एबीपीएस के लिए जॉब कार्ड में उनका नाम अब भी नहीं दिख रहा है. कुछ यही हालत एक अन्य महिला रामश्री के भी हैं. वह भी अचानक नाम डिलीट होने के बाद एबीपीएस के लिए नए सिरे से नाम जुड़वाने की कोशिश में हैं, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है.
विभिन्न कारणों से रामरानी व रामश्री सहित 25 लोगों का जॉब कार्ड डिलीट होने के मामले पर सीतापुर ज़िला के मनरेगा डीसी कहते हैं कि “मुझे इस मामले की कोई जानकारी नहीं है. आपने बताया है तो हम इस मसले को ज़रूर हल करेंगे”.
एबीपीएस लागू न हो पाने के कारण रामरानी मनरेगा कार्यों से वंचित हो गईं.
मनरेगा के कार्यों में घट रही मज़दूरों की रुचि
बिहार के अररिया ज़िला के फॉर्बिसगंज ब्लॉक की मिर्ज़ापुर पंचायत से राजा राम रोज़गार सेवक हैं. वह कहते हैं कि सबसे बड़ी चुनौती तब आती है जब मज़दूरों को पिछली पेमेंट का भुगतान न किया गया हो. ऐसे में मज़दूरों को काम करने के किए तैयार करना बहुत मुश्किल है. पहले वे बकाया मांगते हैं, जबकि हम दबाव बनाते हैं कि आप काम करें; पैसा मिल जाएगा. दूसरी तरफ़, एक प्रेशर हमारे ऊपर रहता है कि आप मज़दूरों को काम उपलब्ध कराएं.
वह आगे कहते हैं, “अब बताइए जब उनका पैसा फंस गया तो वे काम कैसे करेंगे. मज़दूरी समय पर न मिलने के कारण मज़दूरों की मनरेगा कार्यों में रुचि घट रही है, ऐसे में उनको काम के लिए तैयार करना बहुत चुनौतीपूर्ण हो गया है. अगर कार्य का भुगतान ठीक से हो जाए तो मज़दूरों की परियोजना में रुचि भी बढ़े”.
एबीपीएस को अनिवार्य रूप से लागू करने हेतु ग्रामीण विकास विभाग, झारखंड सरकार की ओर से जारी दिशानिर्देश.
एबीपीएस लागू होने के बाद क्या समस्या हो रही है? इस सवाल का जवाब देते हुए ‘झारखंड नरेगा वॉच’ के संयोजक जेम्स हेरेंज कहते हैं कि दरअसल भारत सरकार ने मनरेगा के लिए कम किए गए बजट को न्यायोचित ठहराने के लिए ये तकनीक निकाली है.
एक अन्य तकनीक का ज़िक्र करते हुए वह कहते हैं कि पूर्व में ‘नेशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम’ (NMMS) लागू की गई, जिसके तहत काम करने वाले मज़दूरों की अटेंडेंस ऑनलाइन लगाने की व्यवस्था की गई. इसमें सुबह व शाम मज़दूरों की फोटो को ‘नरेगा मेट’ के द्वारा अपलोड किया जाना था, लेकिन यह सिस्टम असफल रहा. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इसके लिए क्षेत्र में एक तरफ़ मोबाइल नेटवर्क बेहतर होना चाहिए, तो दूसरी ओर नरेगा मेट के पास एक अच्छा स्मार्टफ़ोन होना चाहिए जिसमें डेटा भी रहना आवश्यक है.
हेरेंज आगे कहते हैं, “कहीं नेटवर्क नहीं तो कहीं डेटा; ऐसे में ऑनलाइन अटेंडेंस की व्यवस्था प्रभावित हुई, जिसके बाद उपरोक्त बिंदुओं पर मनरेगा मज़दूरों के साथ कहीं धोखाधड़ी तो कहीं सिस्टम फेल होने के बाद पेमेंट मिलने में समस्या आने लगी. इसके कारण काम करने के बावजूद भुगतान से वंचित होने वाले मज़दूरों की रुचि मनरेगा में कम होने लगी”.
जेम्स के मुताबिक़, ख़बर यह भी है कि जल्द ही मनरेगा मज़दूरों की अटेंडेंस व पेमेंट के लिए फेस आइडेंटिफिकेशन मशीन का इस्तेमाल किया जाएगा. वहीं, दूसरी तरफ ड्रोन के द्वारा मनरेगा मज़दूरों के कामकाज की निगरानी की जाएगी.
“एक अधिकारी स्तर का व्यक्ति काम कर रहा है या नहीं, उसके लिए कोई जवाबदेही नहीं है; लेकिन एक मेहनतकश मज़दूर को चोर साबित करने के लिए एक के बाद एक तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा ताकि एक दिन मज़दूर ख़ुद ही कह दे कि उनको मनरेगा नहीं चाहिए, और इस तरह मनरेगा ख़ुद ही ख़त्म हो जाएगा,” जेम्स हेरेंज मनरेगा के भविष्य को लेकर कहते हैं.
उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले का पंचायत भवन.
मनरेगा में एबीपीएस सहित विभिन्न तकनीक लागू किए जाने से मज़दूरों को क्यों दिक़्क़तों का सामना करना पड़ रहा है? इस सवाल पर उत्तर प्रदेश के ज़िला सीतापुर के डीसी कहते हैं कि “मुझे नहीं लगता कि किसी को कोई समस्या है”.
वहीं, झारखंड के हेरहेंज ब्लॉक के बीपीओ मोहम्मद तैजुल कहते हैं कि एनएमएमएस (NMMS) में तकनीकी समस्या आने के कारण मज़दूरों में मनरेगा को लेकर रुचि घट रही है. अब एबीपीएस लागू होने के बाद एनएमएमएस के तहत दो बार हाज़िरी बननी है, कभी ऐप काम किया कभी नहीं; ऐसे में दिन भर मज़दूरी करने वाले मज़दूर की हाज़िरी नहीं बन पाती. उनके काम करने के बावजूद वह अनुपस्थित दर्ज हो जाते हैं, ऐसे में उनका भुगतान प्रभावित होता है. इस कारण मज़दूरों की रुचि मनरेगा से दिन-प्रतिदिन घट रही है.
इस पर उत्तर प्रदेश की मनरेगा कार्यकर्ता ऋचा सिंह कहती हैं कि “देखिए सरकार मनरेगा को सीधे बंद नहीं करेगी, बल्कि तकनीक के नाम पर ऐसा सिस्टम डेवलप हो रहा है जिससे मज़दूरों की रुचि इसमें कम हो जाएगी. और, जब मज़दूर नहीं मिलेंगे तो मनरेगा ख़ुद ही बंद हो जाएगी.
वहीं, जेम्स हेरेंज कहते हैं कि मज़दूरों की जितनी मॉनिटरिंग हो रही है; उससे ज़रूरी अधिकारियों की मॉनिटरिंग है जो तकनीकी समस्या आने पर उसे हल करने में महीनों लगा देते हैं.
उपरोक्त आरोप को लेकर झारखंड की मनरेगा कमिश्नर से संपर्क किए जाने पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.