जमशेदपुर के Johar Haat में बन रहे आदिवासी व्यंजन की Zomato पर हो रही बिक्री

जमशेदपुर के Johar Haat में बन रहे आदिवासी व्यंजन की Zomato पर हो रही बिक्री

जोहार हाट, टाटा स्टील फाउंडेशन द्वारा शुरू किया गया एक प्लेटफॉर्म है जो हर महीने की 14 से 20 तारीख़ तक चलता है. इसका उद्देश्य आदिवासी खानपान को बढ़ावा देना है.

भारत में एक अद्वितीय रेस्तरां चल रहा है; जहां केवल विभिन्‍न प्रकार के आदिवासी व्यंजन बनाए जाते हैं. लोग रेस्तरां में उन पकवानों का आनंद लेने के लिए तो पहुंच ही रहे हैं, साथ ही उनको ऑनलाइन फ़ूड प्लेटफार्म ज़ोमैटो (Zomato) से ऑर्डर भी कर रहे हैं. ख़ास बात यह है कि उन व्यंजनों का आनंद लेने वाले सिर्फ़ आदिवासी (Tribals) नहीं, बल्कि जमशेदपुर में रहने वाले अनेक समुदाय के लोग हैं. उधर, जोहार हाट (Johar Haat) में व्यंजन बनाने वाली चुड़ामनी मार्डी दिनोंदिन लोकप्रिय होती जा रही हैं.

“हर महीने में 14 से 20 तारीख का इंतज़ार रहता है; जब मैं ‘जोहार हाट’ स्थित चुड़ामनी जी के रेस्टोरेंट में बनने वाले स्वादिष्ट आदिवासियों व्यंजनों का आनंद ले पाती हूं.”


जोहार हाट के व्यंजनों का मेन्यू देख त्रिपर्णा चक्रवर्ती खाने का ऑर्डर करती हुईं.


ट्राइब्स के पारंपरिक व्यंजन का आनंद लेने जोहार हाट आईं त्रिपर्णा चक्रवर्ती के उपरोक्त शब्दों से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि चुड़ामनी मार्डी के रेस्तरां में बनने वाले व्यंजन जमशेदपुर में कितना प्रसिद्ध हैं.

जोहार हाट स्थित ‘सगुन महिला समिति’ के नाम से मौजूद स्टॉल पर चुरामनी मार्डी सहित तीन महिलाएं आदिवासी व्यंजन बनाने में व्यस्त थीं.


चुड़ामनी मार्डी, माया सोरेन एवं सुमति सोरेन (बाएं से दाएं).


एक चूल्हे पर चुड़ामनी मार्डी ‘मड़वा मोमो’ तैयार कर रही थीं, जबकि दूसरे पर सुमति आदिवासी व्यंजन ‘धुसका’ तलने में व्यस्त थीं. वहीं, माया सोरेन मेन्यू के तहत स्टॉल पर ऑर्डर देने वाले ग्राहकों से बातचीत में मसरूफ थीं.


गुड़ पिठे और धुसका.

बात आदिवासी व्यंजन के मेन्यू की

मेन्यू की शुरुआत में स्नैक्स का ज़िक्र है, जिसके तहत सबसे पहले धुसका का ज़िक्र किया गया है. धुसका का ज़िक्र करते हुए सुमति कहती हैं कि यह उरद की दाल से बनने वाले वड़ा की तरह दिखाई देता है, और इसे मटर की घुगनी के साथ चाव से खाया जाता है.


मड़वा मोमोज़


वहीं, स्नैक्स में दो तरह के मोमोज़ का ज़िक्र है. चुड़ामनी कहती हैं कि “देश भर में जो मोमोज़ बनते हैं; वह मैदा के बने होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. लेकिन हमारे समाज में मड़वा यानी रागी के आटा का इस्तेमाल पूर्वजों के दौर से किया जाता है, वह चाहे वेज मड़वा मोमोज़ हो या चिकेन मड़वा मोमोज़; दोनो ही मड़वा के आटा से बनाए जाते हैं.”

कैश काउंटर पर मौजूद माया सोरेन कहती हैं कि आमतौर पर लोग चने के बेसन की पकौड़ियां खाते हैं, लेकिन हमारे समाज में मसूर दाल की पकौड़ी बहुत चाव से खाई जाती है; इसलिए हमने मसूर दाल की पकौड़ी को भी अपने स्टॉल पर जगह दी.

वह आगे कहती हैं कि “आदिवासी भी बिरयानी के शौक़ीन होते हैं, जिसे हमारे समाज में ‘लेटो माण्डी’ के नाम से जाना जाता है; हालाँकि आम बिरयानी की तुलना में मुर्ग़े से बनने वाली इस डिश के स्वाद एवं बनाने की विधि में बहुत फ़र्क़ है. लेकिन इसे खाने के लिए यहाँ विभिन्न समाज के लोग भी आते हैं.”


जिल कोसा व चिलका रोटी.

मेन्यू के अनुसार मेन कोर्स में ‘जिल कोसा’ डिश का ज़िक्र है; जो चुड़ामनी मार्डी के कारण जमशेदपुर के विभिन्न समाज के लोगों का प्रिय व्यंजन बन गया है.

दरअसल ‘जिल कोसा’ दिखता तो है चिकेन करी की तरह, लेकिन आदिवासी इस मसालेदार व्यंजन को भी अलग तरीके से बनाते हैं. माया सोरेन कहती हैं कि “इसे खाने के लिए आम भारतीय रोटियों का इस्तेमाल नहीं किया जाता. जिल कोसा चिलका रोटी के साथ खाया जाना वाला व्यंजन है. हमारे यहां सबसे अधिक बिकने वाले व्यंजनों में से एक यह भी है.”


माया सोरेन.


माया आगे कहती हैं, “चूंकि आदिवासी क्षेत्रों में चावल का चलन रहा है, इसलिए उसी दौर से चिलका रोटी हमारे समाज में पसंदीदा व्यंजन के रूप में जाना जाता है.”

मिठाई का ज़िक्र करते हुए वह कहती हैं कि “बसंत मौसम में हमारे द्वारा बनाई जाने वाली महुआ की खीर लोकप्रिय है.”


ज़ोमैटो से ऑर्डर किया गया पकवान होम डिलेवरी के लिए जाता हुआ.

Zomato पर बिक रहा ट्राइबल फ़ूड

माया सोरेन का मोबाइल फोन रिंग करता है; उस घंटी की आवाज़ से उत्साहित माया सोरेन ज़ोमैटो के माध्यम से मिलने वाले ऑर्डर को नोट करते हुए अपनी सहयोगी से कहती हैं, “24 चिलका रोटी व मटन और वेज मड़वा मोमो पार्सल करने हैं.”


ऑडर किये गए व्यंजन को भेजने की तैयारी में लगीं सुमति सोरेन, माया सोरेन व चुड़ामनी मार्डी.

ज़ोमैटो से आप कैसे जुड़ीं? इस सवाल पर माया कहती हैं कि “पिछले कई वर्षों से चुड़ामनी मार्डी के नेतृत्व में हमारी ‘सगुन महिला समिति’ को टाटा स्टील फाउंडेशन की ओर से जमशेदपुर में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी कार्यक्रम ‘संवाद’ में हिस्सा लेने का मौक़ा मिल रहा था; जहां आने वाले पर्यटकों को हमारे द्वारा बनाए गए आदिवासी व्यंजनों से परिचित होने का अवसर मिला, और धीरे-धीरे उसकी लोकप्रियता बढ़ने लगी.”

वह आगे कहती हैं कि पिछले वर्ष टाटास्टील फाउंडेशन की ओर से ‘जोहार हाट’ की शुरुआत हुई, जिसके तहत हमारी समिति को भी आदिवासी व्यंजन हेतु स्टॉल लगाने का अवसर मिला.


जोहार हाट के मैनेजर जयदीप भकत.


जोहार हाट के मैनेजर जयदीप भकत कहते हैं कि जोहार हाट, टाटा स्टील फाउंडेशन की ओर से शुरू किया गया एक प्लेटफॉर्म है, जो प्रत्येक महीने की 14 से 20 तारीख़ तक चलता है. इसके तहत उन ट्राइब्स को स्टॉल मिलता है जो किसी विशेष कला में निपुण हों, जैसे; चुड़ामनी मार्डी की टीम आदिवासी व्यंजन बनाने में माहिर है. “उनको टाटा स्टील फाउंडेशन ने ज़ोमैटो रेस्टोरेंट पार्टनर ऐप्लीकेशन से जोड़ दिया, जिसके तहत जोहार हाट में मिलने वाले आदिवासी व्यंजन के शौक़ीन ज़ोमैटो के माध्यम से चुड़ामनी की टीम से संपर्क करते हुए ऑर्डर करते हैं.”

जयदीप आगे कहते हैं कि “हमने इस तरह से कस्टमर को सीधे चुड़ामनी जी से जोड़ दिया, जिससे कोई बिचौलिया न होने के कारण सेल होने के बाद सारा लाभ डायरेक्ट चुड़ामनी की टीम ‘सगुन महिला समिति’ को मिल रहा है.”


जोहार हाट में ग्राहकों को खाना परोसतीं माया सोरेन.

बिक्री का हिसाब-क़िताब

फरवरी की 14, 15 एवं 16 तारीख़ को हुई बुकिंग का ज़िक्र करते हुए माया सोरेन कहती हैं कि पहले दिन 38, दूसरे दिन 40 व तीसरे दिन 45 ऑर्डर बुक हुए; जबकि, शनिवार और रविवार को बिक्री कई गुणा बढ़ जाती है.”

वह आगे कहती हैं कि जब जोहार हाट की शुरुआत हुई, उस समय की तुलना में अब हमारा सेल कई गुणा बढ़ गया है.


Chicken Avakaya .

महीने में सिर्फ़ सात दिनों तक जोहार हाट चलने पर आपकी कितनी कमाई हो जाती है? इस सवाल पर कैश काउंटर पर बैठीं माया सोरेन कहती हैं कि “प्रत्येक महीने 30 हज़ार रुपये से अधिक का सेल हो जाता है. अब हम लोग चाहते हैं कि जोहार हाट का स्टॉल डेली बेसिस पर चले, ताकि हमारी आय और बढ़ जाए.”

आप की टीम में छह लोग हैं, जबकि जोहार हाट सिर्फ़ सात दिन तक चलता है; तो लाभ कैसे होता है? इस सवाल पर चुड़ामनी मार्डी कहती हैं कि “हम सभी महीने में सात दिन जोहार हाट में देते हैं, जबकि कृषि विभाग के ट्रेनिंग कैंप में हमारी टीम के द्वारा लंच पैकेट उपलब्ध किया जाता है; जो हमारी आय का दूसरा स्रोत है. यह काम भी जोहार हाट में मिली सफलता के बाद ही मिला है. अब तो बर्थडे एवं छोटी-मोटी पार्टी में भी हमारे व्यंजन की मांग बढ़ गई है.”


जिल लाड.


वह आगे कहती हैं कि देशभर में आयोजित होने वाले कल्चरल प्रोग्राम में हमारी टीम को टाटा स्टील फाउंडेशन के द्वारा स्टॉल लगाने का मौक़ा मिलता है. साल भर में ऐसे कम से कम 12 इवेंट हमारी आय बढ़ाने का अवसर प्रदान करते हैं, जो आय का एक और ज़रिया है.


वेज मड़वा मोमो बनातीं सुमति सोरेन.


अपनी सहयोगी लक्ष्मी सोरेन, माया सोरेन व सुमति सोरेन का ज़िक्र करते हुए चुड़ामनी मार्डी कहती हैं कि अब तो हम सभी को टाटा स्टील फाउंडेशन की तरफ से होटल ताज जैसे संस्थानों में ट्रेनिंग का हिस्सा बनने का अवसर मिलता है; जहां हम सभी अपने कौशल को एक तरफ निखारते हैं, तो दूसरी तरफ नए-नए पकवान बनाना भी सीख रहे हैं.


होटेल ताज में बेक प्रोडक्ट बनाने की ट्रेनिंग लेने वाली लक्ष्मी सोरेन.


वह आगे कहती हैं कि “ऐसी ट्रेनिंग देश भर में टाटा स्टील फाउंडेशन के द्वारा हर महीने मिलती रहती है; इसी प्रशिक्षण के तहत हमारी सहयोगी लक्ष्मी फिलहाल मुंबई में हैं.”


चुड़ामनी मार्डी.


कौन हैं चुड़ामनी मार्डी?

33 वर्षीय चुड़ामनी मार्डी के पति की 11 साल पहले हृदयघात के कारण मौत होने के बाद उनके जीवन का रुख ही बदल गया. उस समय उनकी सात एवं एक वर्ष की दो बेटियां थीं, जिनकी परवरिश के दौरान होने वाली चुनौतियों से निपटने में उनकी सास का उन्हें भरपूर सहयोग मिला; जोकि एक सेवानिवृत्ति शिक्षिका हैं.

लेकिन, पति के जाने के बाद अकेली पड़ गईं चुड़ामनी मार्डी ने तय किया कि वह आत्मनिर्भर बनेंगी. इस विचार से उन्होंने ‘सगुन महिला समिति’ नाम से एक संस्था शुरु की, जिसमें उन्होंने अपनी ही तरह की परिस्थिति से संघर्ष करने वालीं छह महिला सदस्यों को जोड़ते हुए पहले ब्युटी पार्लर का काम शुरु किया; जिसके तहत वे ऑर्डर आने पर विवाह के दौरान दुलहनों को सजाने का काम करती थीं. दो ही वर्षों में इस काम में निपुणता हासिल करने के बाद साल 2016 में टाटा स्टील फाउंडेशन के कर्मचारी रितेश टुडु की सहायता से चुड़ामनी मार्डी टाटा स्टील फाउंडेशन से जुड़ गईं, जिसके तहत उनकी टीम को सांस्कृतिक कार्यक्रमों में व्यंजन पकाने का अवसर मिलने लगा. और, ये व्यंजन खाने के शौक़ीन लोगों द्वारा उत्साह के साथ हाथोंहाथ लिया जाने लगा.


जिल पिठा.


जोहार हाट रेस्टोरेंट से उत्साहित मैनेजर जयदीप भगत कहते हैं कि “चुड़ामनी व उनकी टीम की मेहनत और सीखने की लगन ने उन्हें इस मुक़ाम पर लाकर खड़ा कर दिया कि अब अगर वे शहर के किसी भी इलाक़े में स्थायी रेस्टोरेंट खोल दें तो वह चल पड़ेगा.”

Next Story