‘अग्निपथ’ के कारण युवाओं का सेना भर्ती से हुआ मोहभंग: ‘वोट की ताक़त से सरकार को पहुंचाना चाहते हैं संदेश’
अग्निपथ योजना आने के बाद से हरियाणा और पंजाब जैसे सेना बहाली के लिए मशहूर राज्यों में भारतीय सेना में जाने को लेकर युवाओं के बीच आकर्षण कम हो गया है। पश्चिमी हरियाणा के कुछ जिले जैसे; जींद, हिसार और भिवानी में युवा चार साल की सैन्य सेवा के बजाय विदेश जाने को प्राथमिकता दे रहे हैं।
हरियाणा के जींद में ‘उचाना’ को फौजियों का गांव कहा जाता है। यहां से बड़ी संख्या में लोग सेना में जाते रहे हैं, मगर बीते दो वर्षों में तस्वीर बिल्कुल बदल गई है। अब यहां पर सेना भर्ती की तैयारी करने वाले युवाओं की संख्या में भारी कमी दर्ज की गई है। साथ ही उचाना में पासपोर्ट और वीजा बनवाने वाले लोगों की संख्या में इज़ाफा हुआ है। युवाओं का कहना है कि देश में भूखे मरने से बेहतर है कि ज़िंदगी को बेहतर बनाने के लिए विदेश कूच किया जाए।
एक अनुमान के मुताबिक़, जींद और हिसार के गांवों से पिछले दो वर्षों में सैकड़ों युवा विदेश पलायन कर गए हैं। उनमें से ज़्यादातर वही हैं जो सेना भर्ती की तैयारी करते थे, वहीं कुछ ऐसे भी हैं जिनकी भर्ती अग्निवीर आने के बाद रद्द हो गई थी। इन गांवों में ऐसे युवाओं की संख्या बड़ी है जो आज सेना में होते, मगर बेरोजगार बैठे हैं - वे लोग भी अपने पासपोर्ट बनवा रहे हैं और देश से बाहर जाने की तैयारी में हैं।
‘अग्निपथ’ से उपजी चिंताएं
अग्निपथ भारत सरकार द्वारा लाई गई एक योजना है, जिसमें 17.5 से 21 वर्ष तक के युवाओं को चार वर्षों तक सशस्त्र बल में सेवा करने का अवसर मिलता है। इस योजना के अंतर्गत बहाल किये गए युवा ‘अग्निवीर’ कहलाते हैं। इस व्यवस्था में बहाली के चार साल बाद केवल 25 फ़ीसद अग्निवीरों को ही स्थायी रूप से बहाल किए जाने की व्यवस्था है, बाक़ी 75 फ़ीसद अग्निवीर को कार्यकाल पूरा करने के बाद 11.71 लाख रुपये सेवा निधि के तौर पर देकर सेवानिवृत्त कर दिया जाता है। इस योजना को 14 जून 2022 को मंज़ूरी दी गई थी; जिसे लागू करने के पीछे सरकार का तर्क था कि सेना में औसत आयु कम किया जाए जोकि पहले 32 वर्ष था।
जानकारी के मुताबिक़, अग्निपथ योजना रूस, इजरायल, फ्रांस, दक्षिण कोरिया, ब्राजील, चीन, और अमरीका जैसे देशों की सैन्य सेवा से प्रभावित होकर लागू की गई थी। लेकिन, चार साल बाद एक तय रक़म देकर सेना से सेवाएं समाप्त कर दिया जाना सेना की तैयारी कर रहे युवाओं के लिए चिंता का विषय बन गया है। ग़ौरतलब है कि बहुत सारी सुविधाएं जो स्थायी सैनिकों को मिलती हैं; मसलन कैंटीन, पेंशन और नियमित सरकारी सुविधाएं अग्निवीरों को नहीं दी जा रही हैं।
“अगर भर्ती हो जाती है तो मेरे और मेरे परिवार के लिए बेहद खुशी की बात होगी, लेकिन इस बात की भी चिंता रहती है कि नौकरी के चार साल ख़त्म होने के बाद घर कैसे चलेगा। सेवा समाप्त होने के बाद पेंशन मिलने की सुविधा भी नहीं है। हम निम्न मध्यम वर्ग से ताल्लुक़ रखने वाले लड़के सेना में इसीलिए जाते हैं ताकि हमारा परिवार आर्थिक रूप से सुरक्षित रहे। हमें जब आर्थिक सुरक्षा ही नहीं मिलेगी तो क्या फ़ायदा? हमारे आस-पड़ोस के बेरोजगार युवा रोज़गार के लिए ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इंग्लैंड, और अमेरिका की तरफ़ रुख कर रहे हैं,” डेढ़ साल से सेना बहाली की तैयारी कर रहे हिसार के 19 वर्षीय नितिन ने मोजो स्टोरी को बताया।
वहीं, दूसरे अग्निवीर अभ्यर्थी 22 वर्षीय सुमित सोम कहते हैं, “चुनाव जीतने के बाद नेताओं को पांच साल दिया जाता है, लेकिन अग्निपथ में हमें सिर्फ़ चार साल की नौकरी दी जा रही है। सरकार ने अभ्यर्थियों की उम्र सीमा 23 से घटाकर 21 वर्ष कर दी है। विचार करने वाली बात है कि 25 साल का युवा सेवानिवृत्ति के बाद क्या करेगा?”
सुमित और उनके साथी बताते हैं कि सेना अभ्यर्थियों के लिए अग्निपथ योजना चुनाव का मुद्दा है। उनमें से कई अग्निपथ अभ्यर्थी ‘फर्स्ट टाइम वोटर’ भी हैं।
“एक तरफ़ सरकारी नौकरियों की बहाली परीक्षा का पेपर लीक हो जा रहा है, दूसरी ओर जिन परिक्षाओं का पेपर लीक नहीं होता, जैसे; सेना का; तो उन परीक्षा नीतियों में सरकार ही बदलाव कर देती है,” हताशा भरे स्वर में सेना अभ्यर्थी पुलकित कहते हैं।
12वीं पास वंश शर्मा अग्निवीर की तैयारी कर रहे हैं। उनका कहना है कि वह बहाली के पहले ये सोचने को मजबूर हैं कि चार साल के बाद क्या करेंगे। “अगर हमें नौकरी के पहले रिटायरमेंट की चिंता करनी पड़ेगी तो हम देश की सेवा में 100 फ़ीसद कैसे दे सकेंगे?,” वंश कहते हैं, “यह चिंता सिर्फ़ मुझे नहीं है, बल्कि हमारे साथियों और उनके परिवारों को भी है।”
हरियाणा में खरबे डिफेंस अकादमी (Kharbe Defence Academy) चलाने वाले यशवीर सिंह खरबे बताते हैं कि उनके पास हर साल क़रीब 300 से 400 छात्र सेना भर्ती की तैयारी करने आते हैं, लेकिन वे दुविधा में होते हैं कि अगर उनका चयन नहीं हुआ तो क्या होगा और अगर हो भी गया तो चार साल बाद क्या करेंगे।
वह कहते हैं, “अधिकतर छात्र ग़रीब घर से आते हैं और उनके ऊपर घर की जिम्मेदारियां होती हैं। यही वज़ह है कि पिछले दो-तीन वर्षों से हजारों युवा रोज़गार की तलाश में विदेश पलायन कर रहे हैं। पढ़ाई के नाम पर उन्हें आसानी से विजा प्राप्त हो जाता है, जिसके बाद वे दूसरे देशों में जाकर पेट्रोल पंप, पैकेजिंग, कृषि इत्यादि सेवाओं में काम करने लगते हैं।”
लोकसभा चुनाव में कितना बड़ा मुद्दा ‘अग्निवीर’
हरियाणा के सभी लोकसभा सीट पर छठे चरण (25 मई) में मतदान होना है। बता दें कि 2019 लोकसभा चुनाव में यहां की दसों सीटों पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने जीत दर्ज की थी। बावजूद उसके यहां सत्ताधारी दल भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में अग्निपथ योजना पर विचार करने की बात भी नहीं की है, बल्कि उनके विज्ञापन इस योजना को देश के लिए सकारात्मक पहल बताते हैं। वहीं, इंडिया गठबंधन (Indian National Developmental Inclusive Alliance) ने अपने घोषणापत्र में वादा किया है कि उनकी सरकार आने पर वे अग्निपथ योजना को ख़त्म कर पुरानी व्यवस्था बहाल करेंगे।
अपनी चुनावी रैली में कांग्रेस नेता राहुल गांधी कहते रहे हैं, “इंडिया गठबंधन की सरकार आते ही हम अग्निवीर योजना को ख़त्म करेंगे। भारत को दो तरह के शहीदों की ज़रूरत नहीं है; सभी को पेंशन मिलनी चाहिए।”
कांग्रेस नेता दीपेन्द्र हुडा के एक बयान के अनुसार, “सेना की नियमित भर्तियों में हरियाणा से प्रतिवर्ष औसतन 5000 युवा सेना में जाते थे, मगर अग्निवीर आने के बाद से यह संख्या महज़ 972 रह गई।”
हुडा के मुताबिक़ उन्होंने ये आंकड़े सेना के विभिन्न रेजिमेंट से जुटाया था। वह बताते हैं, “जब रक्षा मंत्रालय से सूचना के अधिकार के मार्फ़त राज्यवार अग्निवीरों की संख्या मांगी गई तो मंत्रालय ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर टाल दिया। वहीं, थल सेना ने कहा कि आंकड़े मुहैया कराने में उन्हें काफ़ी समय एवं संसाधन लगेगा; जो सेना के संसाधनों को डायवर्ट करेगा - इसलिए सूचना के अधिकार अनुच्छेद 7(9) के तहत यह जानकारी नहीं दी जा सकेगी।”
‘अग्निपथ योजना देश के लिए घातक’
रक्षा विशेषज्ञ रिटायर्ड मेजर जनरल पीके सहगल ने मोजो स्टोरी से बातचीत में कहा कि “अग्निपथ योजना देश के लिए बेहद घातक है। उसका सीधा असर देश की अखंडता और संप्रभुता पर पड़ेगा, जिससे हमारी मज़बूत सेना कमज़ोर हो जाएगी। इस योजना से अग्निवीर फ़ौजियों में देश-सेवा का भाव कम हो गया है। कोई सिर्फ़ चार साल की नौकरी के लिए अपना जान न्योछावर नहीं करना चाहता।”
सहगल अपनी 41 वर्षों की सेवा को याद करते हुए कहते हैं, “चूंकि अग्निवीरों का प्रशिक्षण केवल छह महीने का होता है, तो स्वाभाविक रूप से उनमें अनुभव की कमी रहेगी जिससे भविष्य में वे मोर्चे संभालने में नाकाम रहेंगे। जब मैं सेना में एनडीए के तहत भर्ती हुआ था, तब चार वर्षों की सिर्फ़ ट्रेनिंग दी गई थी। आज अग्निवीरों को महज़ छह महीने की ट्रेनिंग में लाखों रुपये का राइफल चलाने को दिया जाएगा। हमें सात साल बाद हेलीकॉप्टर चलाने को दिया गया था।”
वह आगे कहते हैं कि “यह योजना सेना की तैयारी कर रहे युवाओं पर थोपी गई है। उसका नतीज़ा है कि पहले जहां बॉर्डर से सटे इलाकों में 90 फ़ीसद युवा फ़ौज में भर्ती होते थे, आज यह दर घटकर महज 20-25 फ़ीसद रह गई है।”
“हमारे युवा रोज़गार के लिए दूसरे देशों में पलायन कर रहे हैं और वहां ड्राइवर, कार्पेंटर जैसे छोटे-छोटे कामों में लगे हैं,” मेजर ने जोड़ा।
सरकार का कहना है कि अग्निवीर योजना इजरायल की रक्षा नीति से प्रेरित है। इस पर सहगल कहते हैं, “इजरायल के पास मैन-पावर नहीं है, जबकि भारत के पास है। फिलहाल हमारे देश में नौजवान ज़्यादा हैं और ज़्यादातर बेरोजगार हैं।”
स्थानीय राजनीति पर अग्निवीर का प्रभाव
जींद के प्रधान एवं किसान नेता सतबीर पहलवान कहते हैं, “चार साल में जवान अपने आप को कितना प्रक्षिशित कर पाएंगे; न ही उनकी पेंशन है, न महंगाई भत्ता है। चार साल में तो सिपाही की ट्रेनिंग भी पूरी नहीं हो पाती।”
बता दें कि पिछले साल जींद में अग्निपथ योजना के विरोध में युवा उग्र हो गए थे। उसके बाद इस योजना के ख़िलाफ़ आंदोलन की रणनीति तैयार करने के लिए जींद जाट धर्मशाला में 102 खापों की महापंचायत बुलाई गई थी, जिसमें हज़ारों युवकों की भीड़ इकट्ठा हुई थी।
हरमनदीप सिंह, अंबाला के क्रिकेट ग्राउंड में पिछले तीन वर्षों से सेना भर्ती की तैयारी में जुटे हैं। उन्होंने बताया, “पहले वाली स्कीम ठीक थी, उसमें 15 साल तक नौकरी थी और अन्य सरकारी सुविधाएं भी। मैं पिछले तीन साल से सुबह तीन बजे उठकर दौड़ लगा रहा हूं, क्या सिर्फ़ चार साल नौकरी करने के लिए?”
हरमनदीप के साथ मौजूद तैयारी कर रहे अन्य युवाओं ने बताया “अग्निपथ स्कीम आने से पहले ग्राउंड में बहुत भीड़ होती थी, लेकिन अब बहुत कम लोग आते हैं। हमारे साथ मजबूरी है; यह जानते हुए कि चार साल बाद हम बेरोजगार हो जाएंगे, हमें यह नौकरी करनी पड़ेगी क्योंकि हमारे पास कोई रास्ता नहीं है।”
“फ़ौजी बनना हमारा एक सपना है। यहां इतनी बेरोजगारी है कि अगर भर्ती नहीं हुए तो पैसे कमाने कनाडा, अमरीका ही जाना पड़ेगा। बस इसी उम्मीद में हैं कि चार साल बाद भी नौकरी पक्की हो जाए,” बातचीत के दौरान एक युवक ने बताया।
“अग्निपथ योजना युवाओं को अग्नि में झोंकने की योजना है। जवान चार साल तक इस तनाव में रहेगा कि उसे उक्त समय के बाद बेरोजगार होना है, जिसके कारण उसकी देश के प्रति सेवा भाव में गिरावट आएगी,” जींद के प्रधान बताया, “हमने एक साल पहले अग्निपथ योजना के ख़िलाफ़ आंदोलन किया था, लेकिन सरकार ने हमारी नहीं सुनी। इस बार के चुनाव में जनता सरकार को अपनी ताक़त का एहसास कराएगी।”