लोकसभा चुनाव 2024: आख़िर क्या है वोटिंग कम होने की वज़ह
पहले चरण में वोटिंग प्रतिशत कम होने के बाद से ही सत्ताधारी पार्टी के साथ-साथ विपक्ष भी कम मतदान को लेकर चिंतित है। राजनीतिक विश्लेषक भी इसका कोई सटीक कारण नहीं बता पा रहे हैं, हालांकि जानलेवा गर्मी को इसके प्रमुख कारणों में से एक माना जा रहा है।
लोकसभा चुनाव 2024 के सांतवें दौर का मतदान आठ राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों की 57 सीटों पर पहली जून को होना है। जिन सीटों पर सातवें चरण में मतदान होना है, उनमें उत्तर प्रदेश और पंजाब में सर्वाधिक 13-13 सीटें हैं। जबकि, पश्चिम बंगाल की नौ, बिहार की आठ, ओडिशा की छ:, हिमाचल प्रदेश की चार और झारखंड की तीन सीटों पर चुनाव है। उसके अलावा चंडीगढ़ की एकमात्र सीट पर भी इसी चरण में मतदान होना है।
ग़ौरतलब है कि लोकसभा चुनाव 2019 में इन 57 सीटों पर कुल 65.29 फ़ीसद मतदान हुआ था। तब पश्चिम बंगाल में सर्वाधिक 78.80 फ़ीसद मतदान हुआ था, जबकि सबसे कम 51.34 फ़ीसद मतदान बिहार में दर्ज़ किया गया था। इस बार 2019 लोकसभा चुनाव के मुक़ाबले कम वोटिंग प्रतिशत देश की सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए चिंता का सबब बन रहा है। आख़िर क्यों कम मतदान हो रहा है, उसे समझने के लिए सबसे पहले देखते हैं कि किस चरण में कितना प्रतिशत मतदान हुआ और साल 2019 के लोकसभा चुनाव से उसकी तुलना करते हैं -
- 2019 लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 69.96 फ़ीसद मतदान दर्ज़ किया गया था, जबकि 2024 के पहले चरण में यह आंकड़ा घटकर 66.14 फ़ीसद पर आ गया।
- 2019 के दूसरे चरण में 70.9 फ़ीसद मतदान दर्ज़ किया गया था, जबकि 2024 में यह आंकड़ा घटकर 66.71 फ़ीसद पर आ गया।
- 2019 के तीसरे चरण में 66.89 फ़ीसद मतदान दर्ज़ हुआ, जबकि 2024 में घटकर यह आंकड़ा 65.68 फ़ीसद पर आ गया।
- 2019 के चौथे चरण में 69.12 प्रतिशत मतदाज़ दर्ज़ किया गया, वहीं 2024 में यह मामूली बढ़त के साथ 69.16 फ़ीसद हुआ।
- 2019 के पांचवे चरण में 62.01 फ़ीसद मतदान दर्ज़ हुआ, जबकि 2024 में यह मामूली बढ़त के साथ 62.20 दर्ज़ हुआ।
- 2019 के छठे चरण में 64.22 फ़ीसद मतदान दर्ज़ हुआ, जबकि 2024 में यह घटकर 63.37 पर आ गया।
ग़ौरतलब है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के सातवें चरण में 65.29 फ़ीसद मतदान दर्ज़ हुआ था, अब देखना है कि पहली जून को होने वाले सातवें एवं आख़िरी चरण के मतदान में पिछला आंकड़ा पार करता है या कमी देखने को मिलेगी।
अर्णव मुखर्जी, फर्स्ट टाइम वोटर •
कम मतदान होने में हीटवेव कितना बड़ा कारक?
अर्णव मुखर्जी झारखंड की उपराजधानी दुमका के रसिकपुर इलाक़े में रहते हैं। पहली जून को होने वाले सातवें चरण के मतदान में वह पहली बार मतदान करेंगे। अर्णव कहते हैं, “वोट करना मेरा संवैधानिक अधिकार है। राजनीनिक दलों की असल मुद्दों पर उदासीनता हम फर्स्ट टाइम वोटर्स को निराशा के भंवर में ले जाती है।” किस तरह के मुद्दे? इस पर वह कहते हैं, “हमारे शहर में बिजली की भारी किल्लत है। इस समय दिनभर में 15 से 20 बार बिजली कटती है, अगर रहती भी है तो काफ़ी कम वोल्टेज में।”
“शहर के रेलवे स्टेशन में कोल डंपिंग यार्ड का होना ख़ासकर हम रसिकपुर वासियों के लिए चिंता का विषय है। हमलोग प्रदूषण के कोप में समाए जा रहे हैं,” अर्णव जोड़ते हैं।
भयंकर गर्मी के बीच मतदान को लेकर वह कहते हैं, “लू की गर्म हवाएं चल रही हैं, बिजली रहती नहीं है; ऐसे में घर से बाहर निकलने का मन नहीं करता है। पहली बार मतदान करने को लेकर उत्साहित हूं, वरना जब आपके शहर की स्थिति ऐसी हो तो राजनीतिक दल किस हक़ से वोट मांगते हैं?” अर्णव का कहना है कि गर्मी को देखते हुए चुनाव आयोग और प्रशासन की ओर से पोलिंग बूथ और अलग-अलग इलाक़ों में ठंडे पानी और शर्बत का इंतज़ाम किया जाना चाहिए। उनके मुताबिक़, “बहुत लोग इस बार तेज़ गर्मी के कारण मतदान करने नहीं जाएंगे।”
चंद्रशेखर कुमार •
दुमका के चंद्रशेखर कुमार कहते हैं, “हीटवेव तो चरम पर है ही और हो सकता है वोट प्रतिशत में थोड़ी सी कमी के पीछे तमाम वजहों में एक यह भी हो, लेकिन आप इसको जस्टिफ़ाई कैसे करेंगे? बच्चों को स्कूल छोड़ने एवं घर और दफ़्तर के कामों के लिए तो लोग हीटवेव में घरों से बाहर निकलते ही हैं; हां कम निकलते हैं। ऐसे में अगर कोई कहता है कि हीटवेव के कारण मतदान करने नहीं गया, तो यह जस्टिफ़ाई नहीं होगा बशर्ते कि कोई बीमार न हो।”
उन्होंने आगे कहा, “सातवें चरण के मतदान के तहत दुमका में भी पहली जून को वोटिंग है। दुमका में केंद्रीय यूनिवर्सिटी और कृषि विश्वविद्याल का बनाया जाना अहम मुद्दा है, ताकि यहां के साथ-साथ आसपास के विद्यार्थियों को बाहर जाकर संघर्ष न करना पड़े।”
बिशु बनर्जी •
बिशु बनर्जी दुमका जिले के केंद्रीय कारा के पास रहते हैं। वह कहते हैं, “दुमका में बिजली संकट एक बड़ा मुद्दा है। बेतहाशा बिजली कटौती दुमका वासियों के लिए एक कॉमन प्रॉब्लम है, लेकिन यह समस्या कैसे हल हो; उसकी परवाह राजनेता नहीं करते हैं। बिजली बाधित रहने से हमारा काम भी प्रभावित होता है। इस बार मैं स्थानीय उम्मीदवार को एक मौक़ा दूंगा, ताकि दुमका में बिजली दुरुस्त हो।”
उन्होंने कहा, “निर्वाचन आयोग हो या जिला प्रशासन; इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाता है कि मतदान केंद्रों में व्यवस्थाएं कैसे बेहतर हों। मतदान केंद्रों में पंडाल लगाया जाना चाहिए, ताकि मतदाताओं को गर्मी से थोड़ी राहत मिले। आंकड़ों में बहुत चीज़ें सामने नहीं आती हैं, लेकिन मुझे लगता है कि कई लोग हीटवेव के कारण मतदान करने से चुकेंगे।”
हरनाकुंडी के सब्ज़ी विक्रेता त्रिभुवन मंडल •
हरनाकुंडी के सब्ज़ी विक्रेता त्रिभुवन मंडल तेज़ धूप और लू के गर्म थपेड़ों के बीच सब्ज़ी बेचकर थक चुके थे। उनके चेहरे पर सब्ज़ी न बिकने और कम पैसे घर ले जाने की चिंता झलक रही थी। वह कहते हैं, “दिनभर कड़ी धूप में घूमने के बावजूद अच्छी बिक्री नहीं हुई। एक तो रोज़ खटकर खाने की चिंता और दूसरी गर्म मौसम की मार।”
पहली जून को त्रिभुवन भी अपने नज़दीकी पोलिंग बूथ पर मतदान करने जाएंगे। उनका कहना है कि “मतदान के दिन वैसे भी लोग दिनभर लाइन में खड़े होकर वोट देते हैं। सब्ज़ी हमारी बिकेगी नहीं, तो धूप सहकर वोट ही दे दूंगा। हम ग़रीबों को कौन पूछता है।”
अमर शाह, चाट विक्रेता •
गले में गमछा, चेहरे पर पसीना और ग्राहकों के इंतज़ार में उम्मीद भरी निगाहों के साथ चाट का ठेला लगाने वाले अमर शाह पहली जून को सातवें चरण में होने वाले दुमका लोकसभा क्षेत्र के मतदान को लेकर कहते हैं, “हम वेंडर्स के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है कि सरकार हमें एक स्थाई जगह दे; इस बात को ध्यान में रखते हुए कि उस जगह पर हमारी बिक्री अच्छी हो।” वह जोड़ते हैं, “पहली जून को मैं चाट का ठेला नहीं लगाऊंगा, क्योंकि मतदान करने जाना है। यह जानते हुए भी कि हमारे शहर में तमाम समस्याओं का कोई निवारण नहीं होता।”
बुज़ुर्ग महिला मतदाता उर्मिला देवी •
उर्मिला देवी (69 वर्ष) गोड्डा ज़िले के महगामा प्रखंड अंतर्गत सरभंगा गांव में रहती हैं। उम्र के इस पड़ाव में वह अक्सर बीमार रहती हैं और उन्हें चलने-फिरने में काफ़ी तकलीफ़ें होती हैं। उनके बेटे जितेंद्र दास बताते हैं, “सातवें चरण में गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में भी मतदान होना है। समस्या यह है कि मां को वोटिंग के लिए कैसे ले जाएं? अगर चुनाव आयोग ने बुज़ुर्ग व्यक्तियों के लिए कोई व्यवस्था की भी है तो हमारे गांव में उसकी जानकारी नहीं मिली है। तपती गर्मी में मां को पोलिंग बूथ पर ले जाकर मतदान कराना बेहद चुनौतीपूर्ण है।”
मतदाताओं की प्रतीकात्मक इमेज •
जिन लोकसभा क्षेत्रों में मतदान हो चुके हैं, वहां हीटवेव ने मतदाताओं को कितना परेशान किया; यह समझने के लिए हमने उन लोकसभा क्षेत्रों के कुछ मतदाताओं से बात की। जमशेदपुर में बीते 25 तारीख़ को मतदान था, वहां की रहने वाली त्रिसा बनर्जी अपना अनुभव साझा करते हुए बताती हैं, “हमारे पोलिंग बूथ में वरिष्ठ नागरिकों की जल्दी वोटिंग कराई गई, लेकिन हम युवाओं के लिए हीटवेव के मद्देनज़र कोई व्यवस्था नहीं थी। तपती गर्मी में पसीने से लथपथ होकर हमने मतदान किया। युवाओं के लिए बेहतर व्यवस्था होना चाहिए थी, इससे चुनाव प्रणाली पर आम जनता का भरोसा और पुख़्ता होता।”
पांचवे चरण के मतदान में बिहार के समस्तीपुर ज़िले में 13 मई को वोटिंग हुई। समस्तीपुर के विशाल सम्राट बताते हैं, “लू और उमस भरी गर्मी में हमने मतदान किया। गर्मी इतनी थी कि मतदान केन्द्र में लाइन में लगे मतदाता परेशान हो रहे थे। कुछ महिलाओं के बच्चे रो रहे थे तो वहीं अधिकांश युवा भी गर्मी की तपिश झेल नहीं पा रहे थे। मेरा मानना है कि इस बार हीटवेव ने मतदाताओं की खूब परीक्षा ली है, अब देखते हैं कि चार जून को उस परीक्षा का क्या परिणाम आता है।”
रेल में यात्रा करते प्रवासी मज़दूरों की प्रतीकात्मक इमेज •
क्या प्रवासी लोग भी करते हैं मतदान?
दुमका जिले के शिकारीपाड़ा प्रखंड के झुनकी पंचायत के अधिकांश ग्रामीण काम की तलाश में पलायन कर चुके हैं। विलाईटांड गांव की वार्ड सदस्य रोसो हेंब्रम के पति प्रेम मरांडी का कहना है कि रोज़गार के लिए पलायन कर चुके लोगों में से सिर्फ़ एक-दो मतदाता ही मतदान करने गांव आते हैं। आख़िर ग़रीब मज़दूर ट्रेन का टिकट कटवाकर कैसे आएंगे?
उन पलायन करने वाले 400 ग्रामीणों में से एक महान हेंब्रम भी हैं। महान केरल में मज़दूरी का काम करते हैं। वह कहते हैं, “गांव में रोजगार की संभावनाएं नहीं थीं, जबकि केरल में हमें लगातार काम मिलता है। मतदान करने के लिए दो-तीन हज़ार रुपये ख़र्च करके भला कैसे गांव जाएं, ऊपर से इतनी गर्मी।”
अभिषेक मुखर्जी हैदराबाद की एक कंपनी में नौकरी करते हैं। अपने शहर दुमका में रोज़गार की संभावनाओं की कमी के कारण अभिषेक ने कोलकाता और दिल्ली जैसे महानगरों में भी नौकरी की। वह बताते हैं, “प्रवासी मतदाताओं को मौजूदा शहर में वोटर कार्ड बनवाने के लिए बहुत अधिक प्रोत्साहित नहीं किया जाता है। काम के भारी दबाव के बीच हमें भी मौक़ा नहीं मिलता है कि दफ़्तरों के चक्कर लगाकर वोटर कार्ड बनवाएं।”
“वोटर कार्ड बनवाने की ऑनलाइन प्रक्रिया भी सहज नहीं लगती है, इसलिए साल 2008 के बाद से अब तक न तो अपने होमटाउन में मतदान किया है और ना ही कोलकाता, दिल्ली या हैदराबाद में। एक बड़ी आबादी आज पलायन कर चुकी है, जिनको चैनलाइज़ करके मौजूदा शहर में उन्हें वोटिंग की प्रणाली के साथ जोड़ने की आवश्यकता है,” वह जोड़ते हैं।
दुमका के दीपांकर बनर्जी जो वर्तमान में पुणे की एक कंपनी में काम करते हैं; वह बताते हैं, “छोटे शहर में हमारा पोलिंग बूथ नज़दीक होता है, लेकिन पुणे में पोलिंग बूथ दूर है। वोटर कार्ड के लिए आवेदन करना मुश्किल नहीं है, लेकिन कार्ड जारी होने में वक़्त लग जाता है। चुनाव प्रचार में राजनीतिक पार्टियों ने कैंपेन चलाया था कि हमलोग वोटर कार्ड बनवा देंगे, लेकिन सारी जानकारी लेने के बाद कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।”
वह आगे कहते हैं, “वोटर कार्ड बनवाने के लिए जो दस्तावेज़ मांगे जाते हैं, उनमें से कुछ दस्तावेज़ कम पड़ जाते हैं। जो लोग प्रवासी हैं, उनके लिए सहज सुविधा लाने की ज़रूरत है। जिस प्रकार से आधार कार्ड बनवाने या उसमें संशोधन करने के लिए प्रज्ञा केन्द्र जाने से आसानी से यह काम हो जाता है, उसी प्रकार से वोटर कार्ड की प्रक्रिया भी सहज होनी चाहिए। हम जैसे प्रवासी मतदाता चाहे दुमका में रहें या पुणे में, ऐसी सहज सुविधा हो कि हम मतदान कर पाएं।”
मतदान करने के लिए लाइन में लगे मतदाताओं की प्रतीकात्मक इमेज •
‘मतदान प्रतिशत: प्रशासन एवं जनप्रतिनिधि’
स्थानीय विधायक और दुमका लोकसभा क्षेत्र से झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसद उम्मीदवार नलिन सोरेन चुनाव पर हीटवेव के प्रभाव पर बात करते हुए कहते हैं, “हीटवेव मतदान प्रतिशत को कुछ हद तक तो ज़रूर प्रभावित करेगा। तेज़ गर्मी में लोगों की हालत ख़राब है। हालांकि, दुमका में अभी मौसम ठीक है; यहां हाल ही में बारिश हुई है। देखें, एक तारीख़ को कैसा मौसम रहता है।”
प्रवासी मतदाताओं के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, “बंगाल में जब चुनाव होता है तो हमने देखा है कि जो मज़दूर बंगाल से झारखंड आते हैं काम करने के लिए, चाहे कुछ भी हो जाए वे मतदान करने बंगाल ज़रूर जाते हैं। अब इसमें बंगाल सरकार और प्रशासन की कुछ तो भागीदारी होगी ही, तभी वे मतदान करने अपने राज्य बंगाल जाते हैं। उसी प्रकार से झारखंड के प्रवासी मतदाताओं के लिए सरकार और प्रशासन को ठोस क़दम उठाने की ज़रूरत है। हमने इस बारे में प्रशासन से कई बार बात की है; उस पर कितना अमल हुआ, सातवें चरण के मतदान के बाद ही कुछ कहा जा सकेगा।”
विधायक के दावों पर हमने दुमका के प्रखंड विकास पदाधिकारी उमेश मंडल से बात की और पूछा कि नलिन सोरेन का कहना है कि प्रवासी मतदाताओं के मतदान की व्यवस्था की चर्चा हमने सरकार और प्रशासन से की थी, इस पर आपका क्या कहना है? तो वह कहते हैं, “प्रवासी मज़दूरों को प्रशासन की ओर से सूचना दी गई थी। वैसे, वे काफ़ी संख्या में मतदान नहीं कर पाए हैं।”
क्या हीटवेव के कारण मतदान प्रतिशत प्रभावित होने की संभावना है? इस सवाल पर उमेश मंडल कहते हैं, “मुझे नहीं लगता कि ऐसा होगा। जिन मतदान केन्द्रों में छाया नहीं है, वहां पंडाल की व्यवस्था की गई है। बुज़ुर्ग और बीमार मतदाताओं को मतदान केन्द्रों तक पहुंचाने के लिए ई-रिक्शा की व्यवस्था की गई है। दुमका प्रखंड के ऐसे 76 मतदाताओं की पहचान कर उन्हें पोस्टल बैलेट से वोटिंग कराई गई है।”
दुमका लोकसभा क्षेत्र के मौजूदा सांसद सुनील सोरेन से हमने पूछा कि क्या आपको लगता है कि मतदान प्रतिशत कम होने की तमाम वजहों में से एक वज़ह हीटवेव भी है? इसके जवाब में वह कहते हैं, “गर्मी तो प्रचंड है, इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन जनता का रुझान है कि गर्मी हो या बारिश, मोदी के लिए वोट करना है।” प्रवासी मतदाताओं के सवाल पर वह कहते हैं, “हमने राज्य सरकारों को चिट्ठी लिखी थी कि हमारे मज़दूरों को मतदान के लिए भेजा जाए, उसके बाद कई मज़दूर वोट करने के लिए आए हैं।”