दंतेवाड़ा के पीएम आवास हितग्राहियों की कहानी कर रही दर्द बयां, ‘छत पाने का असफल प्रयास करते चल बसे पति’

दंतेवाड़ा के पीएम आवास हितग्राहियों की कहानी कर रही दर्द बयां, ‘छत पाने का असफल प्रयास करते चल बसे पति’

नगरपालिका में पांच हजार रुपये टोकन मनी के रूप में भुगतान करने के बाद भी आज तक नहीं मिला आवास। आंखों में ‘अपना घर’ होने की उम्मीद लिए कई आवेदकों की तो मौत तक हो गई।

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में प्रधानमंत्री आवास योजना के अन्तर्गत बन रहे 315 आवास नौ वर्षों से अधूरे पड़े हैं। उन आवासों के लिए नगरपालिका में 162 लोगों ने पांच हजार रुपये का टोकन लिया, लेकिन उन्हें अब तक अपनी छत नहीं मिली है। उनमें से कुछ लोगों ने तो अब दुनिया को ही अलविदा कह दिया है। ग़ौरतलब है कि केंद्र सरकार पीएम आवास के माध्यम से स्लम बस्ती और झोपड़ियों में रहने वाले लोगों को पक्के मकान एवं सुव्यवस्थित कॉलोनियों में रहने की सुविधा देकर उनके जीवन स्तर में सुधार लाना चाहती थी। और, उसी प्रारूप को तैयार कर दंतेवाड़ा में दो जगहों मांझीपदर व कतियाररास में पीएम आवास बनाना शुरू किया गया था। यह कार्य पिछली बार भाजपा शासित सरकार के शासनकाल में शुरू हुआ था, लेकिन जैसे ही सरकार बदली कि उस योजना को ग्रहण लग गया। हितग्राही कहते हैं कि अब बदली हुई सरकार में छत मिलने के आसार हैं।


शहनाज और उनके बच्चे •

बिलखती महिला बोली, “अब न पति रहे और न छत मिला”

दंतेवाड़ा के कैलाश नगर की रहने वाली शहनाज कहती हैं कि उनके पति ने 2017 में पीएम आवास योजना के लिए फार्म भरा था। “उन्होंने नगरपालिका में पांच हजार रुपये का टोकन मनी के रूप में भुगतान भी किया था।” शहनाज के पति नगरपालिका का चक्कर काटते रहे, लेकिन उनको पीएम आवास नहीं मिला। इस साल मई माह में उनके पति की सडक़ हादसे में मौत हो गई। रोते हुए वह कहती हैं कि “अब दो बच्चों के पालन-पोषण की पूरी जिम्मेदारी मेरी है। हालात घर के ऐसे हैं कि किराये पर रहते हैं; किराया देना तो दूर, दो जून की रोटी के भी लाले पड़ गए हैं।”

शहनाज के मुताबिक, उनके पति इस उम्मीद में बेहद खुश रहते थे कि कभी तो उनको अपना घर मिलेगा और वह अपने बच्चों के साथ हंसी-खुशी रहेंगे। पिछली राज्य सरकार के पूरे पांच साल गुजर गए, लेकिन उन्हें सपनों को आशियाना नहीं मिला।


यास्मीन और उनके दो छोटे बच्चे •

यास्मीन का दर्द भी शहनाज जैसा ही है!

यास्मीन के पति रफीक फेरी लगाकर जूते-चप्पल बेचने का काम कर परिवार का भरण-पोषण कर रहे थे। उन्होंने भी अपने पति को सड़क हादसे में ही खो दिया। वह बताती हैं कि पीएम आवास के लिए नगरपालिका में फॅार्म भरा था। उनका पीएम आवास पास हुआ तो टोकन मनी के रूप में पांच हजार रुपये जमा करवाये गए। इस बात को तकरीबन नौ वर्ष बीत गए और अब पति ही हमेशा के लिए चल बसे। “पीएम आवास तो दूर की कौड़ी लगती है। अहम बात तो यह है कि बच्चों के भरण-पोषण की व्यवस्था कैसे की जाए,” यास्मीन जोड़ती हैं। उनके तीन बच्चे हैं, जिनके परवरिश और पढ़ाई-लिखाई की जिम्मेदारी अब यास्मीन के ही कंधों पर है। वह कहती हैं, “यदि पीएम आवास मिल जाता है तो जीवन थोड़ा आसान हो जाएगा। फिलहाल तो जीवन-यापन करना बड़ा कठिन लग रहा है।”


अधूरे पड़े पीएम आवास के अन्तर्गत बने मकान •

शहनाज और यास्मीन की तरह ही एक पीड़ित रमेश हैं, वह बताते हैं, “दो-तीन बार गया हूं नगरपालिका, लेकिन वहां कोई सुनवाई नहीं हो रही है। हमने पांच हजार रुपये भी जमा किए थे, लेकिन अब अधिकारी का कहना है कि सरकार बदल गई है। पहले राज्य में कांग्रेस की भूपेश सरकार थी तब तो नहीं मिला, अब भाजपा की सरकार बनी है तो उम्मीद है कि प्रधानमंत्री आवास मिल जाए।”


315 हितग्राहियों के सपनों का आशियाना •

कैसे, कब और क्यों लगा प्रोजेक्ट पर विराम?

वर्ष 2017-18 में स्लम बस्ती और झोपड़ियों में रहने वाले लोगों को पक्के मकानों में लाने के लिए दो जगह फ्लैट के रूप में पीएम आवास बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई। उसके लिए टेंडर जारी हुआ तो कोरबा के ठेकेदार को टेंडर मिला। ठेकेदार ने 16 करोड़ 40 लाख की लागत का टेंडर 14 लाख 54 हजार में लिया और सुपर स्ट्रक्चर खड़ा कर काम छोड़ दिया। ठेकेदार ने काम पूरा किए बिना तकरीबन 5.5 करोड़ रुपये भी निकाल लिए। उस ठेकेदार को नगरपालिका से कई नोटिस भेजे गए, लेकिन उसने काम शुरू नहीं किया और उसे ‘ब्लैक लिस्ट’ कर दिया गया।

बाद में उक्त कार्य को पूरा करने के लिए चार बार टेंडर निकाला गया, लेकिन उसमें तीन बार किसी ने भाग ही नहीं लिया। जबकि, एक बार टेंडर में भाग लिया भी गया तो ठेकेदार ने रकम 100 फ़ीसद ऊंची दरों पर भरी। बता दें कि अब एक बार फिर से नगरपालिका द्वारा कई भागों में टेंडर प्रक्रिया जारी करने की बात कही जा रही है।


नगरपालिका सीएमओ पवन कुमार मेरिया •

क्या कहते हैं संबंधित अधिकारी?

हितग्राहियों को पीएम आवास न मिलने पर दंतेवाड़ा नगरपालिका के सीएमओ पवन कुमार मेरिया ने कहा कि योजना के अंतर्गत 315 आवास स्वीकृत हुए थे, लेकिन ठेकेदार ने काम अधूरा छोड़ दिया। उस ठेकेदार के काम को निरस्त कर अब कई भागों में टेंडर निकालने की प्रक्रिया कर जल्द ही आवासों को बनाया जाएगा। नगरपालिका जल्द ही एक जगह के निर्माण को पूरा कर पहले उन हितग्राहियों को आवास देगी जिनका टोकन मनी जमा हो चुका है।

वहीं, नगरपालिका के उपाध्यक्ष धीरेंद्र प्रताप सिंह, जो कि बीजेपी जिला उपध्यक्ष भी हैं; कहते हैं कि “राज्य में भाजपा सरकार के कार्यकाल में पीएम आवास का काम तेजी से चल रहा था। सत्ता का परिवर्तन हुआ और कांग्रेस की सरकार आई तो पूरे पांच साल उन्होंने पीएम आवास पर ध्यान ही नहीं दिया। अब एक बार फिर राज्य में भाजपा की सरकार है, तो जल्द ही कई भागों में टेंडर प्रक्रिया को पूरा करके वंचित हितग्राहियों को आवास प्रदान किया जाएगा।”

जबकि, कांग्रेस की जिला पंचायत अध्यक्ष तूलिका कर्मा उक्त मुद्दे पर बात करते हुए कहती हैं, “नगर में बन रहे 315 पीएम आवास अधूरे हैं; यह सच है। लेकिन, उन आवासों के अधूरे रहने के पीछे सिर्फ नगरपालिका और भाजपा जिम्मेदार हैं। क्योंकि, नगरपालिका में निर्वाचित बॉडी भाजपा की है। यह काम भाजपा सरकार में शुरू हुआ और भाजपा के रहते ही बंद हो गया था। कांग्रेस ने अपने शासनकाल में उसे शुरू करने का बहुत प्रयास किया, लेकिन नगरपालिका में भाजपा का शासन होने से काम नहीं हो पाया।”

“जैसा कि अब एक बार फिर विधानसभा और नगरपालिका दोनों में भाजपा है, तो वह नौ वर्षों से भटक रहे हितग्राहियों को आवास मुहैया करवाए। आवास आवंटन पारदर्शिता के साथ होना चाहिए, ताकि उसमें किसी तरह की कोई गड़बड़ी न हो। आवास नगर के उन सभी निवासियों को मिलना चाहिए, जिन्हें जरूरत है; भले ही वह किसी भी तपके से हों,” कांग्रेस नेत्री जोड़ती हैं।

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