मध्यप्रदेश में ‘Bagless School’ योजना को लेकर क्या है आम राय
राज्य में सप्ताह में एक दिन ‘बैगलेस स्कूल’ की घोषणा की गई है, जिससे हफ़्ते में एक दिन बच्चों को भारी बैग के बोझ से राहत मिलेगी.
“छात्रों का तनाव कम करने के लिए सरकार की ओर से ‘बैगलेस स्कूल’ की घोषणा की गई है, जो कक्षा एक से 12वीं तक के छात्रों के लिए शैक्षणिक सत्र 2024-25 में लागू होगा.”
उपरोक्त शब्द स्कूल शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह के हैं, मोजो स्टोरी से बातचीत के दौरान उन्होंने यह कहा.
मध्य प्रदेश सरकार ने तय किया है कि प्रदेश के सरकारी एवं प्राइवेट स्कूल में सप्ताह का एक दिन ‘बैगलेस डे’ होगा.
उदय प्रताप सिंह, शिक्षा मंत्री, मध्यप्रदेश सरकार.
मध्यप्रदेश सरकार की ओर से जारी नोटिस का ज़िक्र करते हुए मंत्री उदय प्रताप सिंह कहते हैं कि छात्रों के बैग का वज़न तय कर दिया गया है. अब कक्षा पहली और दूसरी के छात्रों के लिए स्कूल बैग का अधिकतम भार 2.2 किलोग्राम होगा, जबकि कक्षा तीसरी से पांचवीं के लिए यह ढाई किलोग्राम तक रहेगा.
मंत्री के अनुसार, “माध्यमिक विद्यालय के विद्यार्थियों के बैग का वज़न अधिकतम ढाई से चार किलोग्राम तय किया गया है, जबकि नौवीं और 10वीं के छात्रों के स्कूल बैग का वज़न अधिकतम साढ़े चार किलोग्राम एवं इंटर के छात्रों के स्कूल बैग का वज़न स्कूल प्रबंधन समिति द्वारा छात्रों के संकाय के अनुसार तय किया जाएगा.”
‘रचनात्मकता को देगा बढ़ावा’
शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह के मुताबिक़, ‘बैगलेस स्कूल-डे’ का उद्देश्य यह है कि बच्चे जब स्कूल पहुंचें तो तनावरहित माहौल में रचनात्मकता के ज़रिये अपने कौशल को निखारें. वह कहते हैं कि “बच्चे इस ख़ास दिन विद्यालय पहुंचकर खेलकूद, क्राफ्ट, क्वीज़, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, संगीत, नैतिक शिक्षा आदि का हिस्सा बन सकेंगे.”
सिंह आगे कहते हैं, “हम चाहते हैं कि नये सत्र से विद्यार्थियों के स्कूल की दिनचर्या कुछ ऐसी हो कि उन्हें स्कूल की चहारदीवारी में तनाव महसूस न हो. साथ ही बच्चों के पास बैगलेस-डे के दिन यह विकल्प रहेगा कि वे यूनिफॉर्म या अपने सामान्य पहनावे में से किसी में भी आएं.”
उदाहरण देते हुए शिक्षा मंत्री कहते हैं कि “छात्राएं मेहँदी लगाने की कला को सीखेंगी; जो उन्हें सीखने के लिए प्रेरित तो करेगा ही, साथ ही उन्हें तनावरहित रखेगा.”
‘शासकीय माध्यमिक शाला बसाटा’, छतरपुर के शिक्षक जयप्रकाश सुत्रकार.
क्या कहते हैं स्कूल के शिक्षक?
मध्यप्रदेश के छतरपुर ज़िला के बसाटा गांव में स्थित ‘शासकीय माध्यमिक शाला’ के शिक्षक जयप्रकाश सुत्रकार कहते हैं कि “वैसे तो हमारे स्कूल में पहले से ही बच्चों को विभिन्न गतिविधियां जैसे; बागबानी, पुस्तकों में अभ्यास हेतु मौजूद एक्टिविटी, योगा आदि से जोड़ा जाता रहा है, लेकिन अब इस प्रकार की गतिविधियां को पूरे सत्र के दौरान प्रत्येक हफ़्ते लागू किया जाना है. देखना है कि शिक्षा विभाग इसके तहत कौन-कौन सी गतिविधि करवाने हेतु आदेश देगा.”
जयप्रकाश का मानना है कि बैगलेस-डे सभी विद्यालयों में संभव नहीं है, क्योंकि कई जगहों पर इसके अनुकूल परिस्थिति नहीं है. विद्यालयों में बच्चे जो बैग ले आते हैं; वह कक्षाओं में उनके स्थान की निशानदेही करता है. अब जब बच्चे बैगलेस आएंगे तो वे स्थान बदलते दिखेंगे, ऐसे में शिक्षक हर छात्र के स्थान को याद नहीं रख सकता. बैग न लाने पर यह भी हो सकता है कि उस दिन छात्रों में स्कूल आने को लेकर रुचि कम हो जाए. इसलिए बैग ज़रूर लाना चाहिए, भले ही उसमें केवल एक रफ़ कॉपी व पेंसिल-पेन ही मौजूद हों. शिक्षक के अनुसार, “बैगलेस-डे के बजाय बुकलेस-डे होना चाहिए.”
वह आगे कहते हैं कि “बैगलेस-डे के दिन होने वाली विभिन्न गतिविधियों से संबंधित सामग्री की आवश्यकता होगी. शहरों में अभिभावक जागरूक होते हैं जो सामग्रियां उपलब्ध करा सकते हैं, लेकिन गांव के अभिभावक जो पेशे से किसान या मज़दूर हैं उनके लिए ये सामग्री जुटा पाना मुश्किल है.”
शासकीय माध्यमिक विद्यालय, बसाटा, छतरपुर, मध्यप्रदेश.
उदाहरण देते हुए जयप्रकाश कहते हैं, “हमारे स्कूल में 300 बच्चे हैं. मान लें कि उसमें 150 बच्चियां हैं. बैगलेस-डे के दिन उनके लिए मेहँदी की एक्टिविटी रखी गई. उसमें समस्या यह होगी कि 75 छात्रा मेहंदी लगाएंगी तो 75 लगवाएंगी. ऐसे में सामग्री के तौर पर 75 मेहँदी कौन लाएगा? ज़ाहिर है छात्राओं को स्कूल से ऐसी सामग्री मिलना मुश्किल है, क्योंकि यह मात्र एक हफ़्ते की बात नहीं है कि स्कूल स्वयं उसका प्रबंध कर दे.”
शिक्षक जयप्रकाश आगे कहते हैं कि “अब यह देखना है कि शिक्षा विभाग बैगलेस-डे के लिए कौन-सी गतिविधि तय करता है, उसके लिए शिक्षकों को क्या-क्या तैयारी करनी पड़ेगी. मुझे उम्मीद है कि बैगलेस-डे हेतु हमारा शिक्षा विभाग एक शानदार कैलेंडर तैयार करेगा.”
छात्र हंसुल एवं उसके पिता मनीराम प्रजापति.
क्या कहते हैं छात्र एवं अभिभावक?
एक छात्र हंसुल प्रजापति जो बसाटा गांव के शासकीय माध्यमिक शाला में पढ़ते हैं; उन्हें बैगलेस स्कूल-डे की जानकारी नहीं थी. जब बैगलेस-डे की बात उनसे कही गई तो वह कहते हैं, “यदि ऐसे होगा तो हमें बैगलेस-डे के दिन विभिन्न गतिविधि में हिस्सा बनने का अवसर मिलेगा, जिससे हमें खेल-खेल में ही सीखने का मौक़ा मिलेगा और हम पढ़ाई करने के साथ रचनात्मक भी बनेंगे.”
छात्र हंसुल के पिता कहते हैं कि “गांव हो या शहर, अब अभिभावक बहुत जागरूक हो चुके हैं. यदि बैगलेस-डे के दिन होने वाली गतिविधि के लिए सामग्री हेतु पैसे देने की आवश्यकता पड़ी तो अभिभावक अवश्य ख़र्च करेंगे. मैं शिक्षा मंत्री के द्वारा उठाए गए कदम का स्वागत करता हूं. मैं भी चाहता हूं कि मेरा बेटा शहर के नामचीन अंग्रेज़ी माध्यम के छात्रों की तरह क्रिएटिव बने.”
क्या बैगलेस-डे से छात्रों के नन्हें दीमाग से तनाव दूर होगा? इस सवाल पर एक अभिभावक मनिराम प्रजापति कहते हैं, “बेशक दूर होगा, इससे दो लाभ होंगे; एक तरफ़ बच्चे तनावरहित होंगे, जबकि दूसरी ओर विभिन्न गतिविधि का हिस्सा बनकर वह अधिक रचनात्मक बनेंगे.”
अर्चना सहाय, शिक्षाविद.
‘बैगलेस स्कूल-डे’ पर शिक्षाविद की राय
शिक्षा के दौरान छात्रों को होने वाले मानसिक तनाव से निपटने में मदद करने एवं छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर काम करने वाली ‘आरंभ’ नामक संस्था की निदेशक सह शिक्षाविद अर्चना सहाय का मानना है कि “बैगलेस स्कूल-डे शिक्षा विभाग द्वारा उठाया गया स्वागत योग्य क़दम है, लेकिन उसे बेहतर तरीके से अमल में लाया जाना चाहिए. मैं ऐसा इसलिए कह रही क्योंकि योजनाएं तो बहुत आती हैं, लेकिन स्कूल उसमें अपने हिसाब से कुछ करने लग जाते हैं.”
वह आगे कहती हैं, “सप्ताह में एक दिन बैग का बोझ नहीं होगा तो उस दिन बच्चे तनावरहित होंगे. उनको केवल एक्टिविटी का हिस्सा बनना होगा, जिसकी मदद से उनको अपने अंदर छिपे टैलेंट को निखारने का अवसर मिलेगा. उसका सुखद परिणाम यह होगा कि विद्यार्थियों और विद्यालय के बीच नज़दीकी बढ़ेगी.”
किस प्रकार की एक्टिविटी होनी चाहिए, क्योंकि शिक्षकों का मानना है कि एक्टिविटी हेतु सामग्री की आवश्यकता पड़ेगी; जिसका ख़र्च ग्रामीण अभिभावक कैसे उठा पाएंगे? इस सवाल पर शिक्षाविद कहती हैं कि “मेरा मानना है कि बैगलेस-डे पर विद्यार्थियों से ऐसी गतिविधि कराई जानी चाहिए जिसमें उनका ख़र्च न बढ़े, जैसे; क्विज़, स्पीच, फिज़िकल एक्टिविटी, गीत-संगीत आदि पर फोकस किया जाना चाहिए.”