Postal Voting: प्रवासी मज़दूर चाहते हैं कि उनको भी मिले ‘पोस्टल वोट से मतदान करने का अधिकार’
झारखंड सरकार के श्रम विभाग के साथ प्रवासी मज़दूरों को लेकर काम करने वाली ‘फिया’ नामक संस्था की प्रवक्ता शिखा पंकज ने बताया कि सरकार के समाधान पोर्टल पर प्रदेश के एक लाख 70 हज़ार प्रवासी मज़दूर पंजीकृत हैं, जबकि कुल 25 लाख प्रवासी मज़दूर राज्य के बाहर काम कर रहे हैं.
झारखंड से लगभग 25 लाख प्रवासी मज़दूर रोज़गार के सिलसिले में राज्य से बाहर हैं. प्रवासी होने के कारण अधिकांश मज़दूर लोकसभा व विधानसभा चुनावों में वोट डालने से वंचित रह जाते हैं. उनका कहना है कि सर्विस वालों को जिस प्रकार पोस्टल वोट करने का लाभ मिलता है, उसी प्रकार प्रवासी मज़दूरों को भी वोट डालने का हक़ मिलना चाहिए.
“हम प्रवासी जहां काम कर रहे हों वहां अपना वोट दे सकते तो ये सपने के सच होने जैसा होता, यानी हम अपने गांव में न रहते हुए यहां बैंगलोर में भी अपना वोट कर सकते हैं.”
पंकज शर्मा बैंगलोर में लकड़ी का काम करते हुए •
हसरत से भरे लहज़े में कहे गए ये शब्द पंकज शर्मा के हैं जिसे उन्होंने बातचीत के दौरान तब कहा जब उन्हें बताया गया कि देश के सैनिकों से लेकर अन्य सरकारी कर्मचारी अपने निर्वाचन क्षेत्र में मौजूद न होने के बावजूद अपने कार्यक्षेत्र में पोस्टल वोट की सहायता से अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं.
दरअसल 28 वर्षीय पंकज शर्मा जो झारखंड के गिरिडीह ज़िला में स्थित मंगलुहार गांव के रहने वाले हैं; 10 वर्ष से बैंगलोर में बतौर कारपेंटर अपनी सेवा दे रहे हैं.
पंकज शर्मा के अनुसार उन्होंने जीवन में कभी वोट नहीं दिया. कारण पूछने पर वह कहते हैं कि “मैं 18 साल की आयु से बतौर प्रवासी मज़दूर मंगलुहार गांव से पलायन कर गया. इस कारण विधानसभा व लोकसभा चुनाव के दौरान वोट देने का जब भी अवसर आया तब मैं दूसरे राज्य में रोज़गार के सिलसिले में होने के कारण वोट देने के अधिकार से वंचित रह गया.
पंकज शर्मा के दो भाई व पिता भी प्रवासी मज़दूर हैं. हर साल की तरह पंकज शर्मा को दीपावली के बाद बैंगलोर से झारखंड स्थित अपने गांव जाने का अवसर इस बार की होली में मिला, लेकिन उन्होंने अभी नहीं जाने का फ़ैसला किया. उत्साहित स्वर में वह कहते हैं, “मैं चाहता हूं कि इस लोकसभा चुनाव में अपने मत का प्रयोग कर सकूं, इसलिए चुनाव के नज़दीक आने पर ही गांव जाऊंगा.”
वह आगे कहते हैं कि “इस बार मुझे दोगुनी खुशी है; एक तरफ मैं वोट दूंगा तो दूसरी तरफ अपनी छोटी-सी बेटी से मिल सकूंगा, जिसके जन्म के बाद मैंने उसे सामने से नहीं देखा.”
अपने साथी कार्पेंटर के साथ पंकज •
कभी मतदान न कर पाने का दुख
वोट न दे पाने की कसक सिर्फ़ पंकज शर्मा में ही नहीं है, बल्कि मोजो ने ऐसे दर्जनों प्रवासियों से बातचीत में पाया कि किसी ने कभी वोट ही नहीं दिया, जबकि किसी ने वोट तो दिया लेकिन एक दशक पहले.
आप वोट देने के लिए गांव क्यों नहीं जा सके? इस सवाल पर केरल में बतौर पेंटर अपनी सेवा दे रहे सोहन मौर्या कहते हैं, “मैं उत्तरप्रदेश के संतकबीर नगर का निवासी हूं. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मैंने पहली बार वोट दिया, उसके बाद अंतिम बार वर्ष 2022 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में मैंने वोट किया. यानी मैं साल 2019 के लोकसभा चुनाव में वोट नहीं दे सका, जबकि इस साल 2024 के लोकसभा चुनाव में भी वोट देने की उम्मीद नहीं है.”
कारण बताते हुए वह आगे कहते हैं, “क्योंकि एक वोट देने के लिए मेरे पास कई चुनौतियां हैं. एक तरफ मुझे लंबा सफ़र तय करना पड़ेगा, जिसके लिए मुझे ख़ुद आने-जाने हेतु ट्रेन के टिकट का प्रबंध करना होगा. जबकि, दूसरी तरफ यह रिस्क है कि लौटने के बाद मेरा काम मुझे वापस मिलेगा या नहीं; उसकी अनिश्चितता है. मेरी अनुपस्थिति में ठीकेदार किसी दूसरे को काम पर रख सकता है, ऐसे में मुझे दोबारा काम ढूंढने के लिए भटकना पड़ेगा.”
सिकंदर अली •
झारखंड में प्रवासियों के लिए बजरंगी भाईजान के नाम से मशहूर प्रवासी एक्टिविस्ट सिकंदर अली कहते हैं कि प्रवासी मज़दूरों के लिए कई प्रकार की चुनौतियां हैं; किसी के पास कोई स्थायी नौकरी नहीं है. अधिकांश दिहाड़ी मज़दूरी ही करते हैं; जो ठीकेदार के अधीन है. वह उन प्रवासियों को अपने ख़र्च पर बुलाता है, ऐसे में प्रवासी मज़दूर के द्वारा वोट देने के लिए लिया गया रिस्क सीधे-सीधे ठीकेदार से पंगे का रूप ले लेगा. वापसी पर उसे काम मिल जाए यह बहुत मुश्किल है, जिसके कारण कोई भी प्रवासी मज़दूर सिर्फ़ वोट देने के लिए घर का सफ़र करे; यह मुमकिन नहीं है.
ये मज़दूर अपने कार्यक्षेत्र में वोटर आईडी ट्रांसफ़र करवा कर मतदान क्यों नहीं करते? इस सवाल पर झारखंड के प्रवासी मज़दूर एक्टिविस्ट सुखदेव यादव कहते हैं कि अधिकांश प्रवासी मज़दूरों का काम पक्का नहीं है. उन्हें यह पता नहीं होता कि चल रही जॉब ख़त्म होने के बाद अगला कहां और किस शहर में होगा. ऐसे में जिस प्रकार सरकारी कर्मचारियों के लिए पोस्टल वोट की सुविधा है, उसी प्रकार इस सुविधा का लाभ प्रवासियों को भी मिलना चाहिए.
प्रतीकात्मक चित्र •
क्या है सेवा मतदाता के लिए सुविधा?
पोस्टल वोट (Postal Vote), जिसे मेल-इन मतपत्र भी कहा जाता है; पंजीकृत मतदाताओं को मतदान केंद्र पर जाने के बजाय मेल द्वारा अपना वोट डालने की अनुमति देते हैं. भारतीय चुनाव आयोग (ECI) के अनुसार, ‘कोई भी मतदाता पीछे न छूटे’ के आदर्श वाक्य के साथ, ईसीआई के ईटीपीबीएस ने सभी मतदाताओं को राष्ट्र के लिए अपना कर्तव्य निभाने हेतु मतदान करने की एक वैकल्पिक प्रणाली सुनिश्चित की है. जिसके तहत पोस्टल मतपत्र पूरे दस्तावेजों के साथ सुरक्षित तरीके से सेवा मतदाता तक पहुंचाया जाएगा. ये विकल्प मूल रूप से उन लोगों के लिए है जो किसी कारणवश अपने मतदान क्षेत्रों से बाहर हैं.
वोट के बाद उनका पोस्टल मतपत्र दो भागों में भेजा जाता है; ई-पोस्टल मतपत्र और दूसरा ई-पीबी पिन. ई-पोस्टल मतपत्र सेवा अधिकारी के यूनिट अधिकारी को भेजा जाता है जो एक पासवर्ड संरक्षित पीडीएफ है, जबकि ई-पीबी पिन सेवा मतदाता के रिकार्ड अधिकारी को भेजा जाएगा. सेवा मतदाता को वोट डालने के लिए दोनों अधिकारियों से ई-पीबी पिन एकत्र करना होगा, प्रिंट आउट लेना होगा और निर्देशों का पालन करते हुए उसे डाक द्वारा मतगणना तिथि से पहले दिये गए पते पर भेजना होगा.
प्रतीकात्मक चित्र •
योग्य मतदाता जो पोस्टल बैलेट के द्वारा दे सकते हैं वोट
डाक मतपत्रों के माध्यम से मतदान करने का विकल्प भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल और केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, सदन के अध्यक्ष और चुनाव ड्यूटी पर सरकारी अधिकारी तो चुन सकते ही हैं. साथ ही सशस्त्र बलों, अर्धसैनिक बलों के सदस्य और सरकारी कर्मचारी जो अपने गृह निर्वाचन क्षेत्रों से दूर चुनाव ड्यूटी पर तैनात हैं; उन्हें भी पोस्टल बैलेट से वोट देने का अधिकार है.
वहीं, बीमारी या विकलांगता जैसे कारणों से व्यक्तिगत रूप से मतदान करने में असमर्थ व्यक्ति के अलावा 80 साल से ऊपर के वरिष्ठ नागरिक भी पोस्टल बैलेट का प्रयोग करते हुए अपने मत दे सकते हैं.
क्या प्रवासी मज़दूरों को भी पोस्टल वोट का अधिकार है? इस सवाल पर उप सचिव संजय कुमार श्रीवास्तव कहते हैं कि फिलहाल तो प्रवासी मज़दूरों के लिए पोस्टल बैलेट की सुविधा नहीं है, लेकिन यह एक अच्छा क़दम हो सकता है.
दरअसल, मज़दूर वर्ग का प्रवासी तबका ही नहीं बल्कि प्रवासियों का बुद्धिजीवी वर्ग भी पलायन के कारण अपने मताधिकार से वंचित है. ऐसा ही एक मामला अभिनेता अक्षय कुमार के पर्सनल कुक रविंदर कुमार का है; जो वर्षों पहले गिरिडीह के देवरी प्रखंड के किरको गांव से मुंबई चले गए. वोट देने के सवाल पर वह कहते हैं कि “वोटर आईडी मैंने गांव की ही बना रखी है, जब भी वोट पड़ता है मैं गांव वोट देने आता हूं. इस बार भी मैं वोट देने जाऊंगा.”
दूसरा मामला अभिनेत्री श्रद्धा कपूर के पर्सनल सेक्रेटरी राजू पासवान का है, वह भी 10 साल से मुंबई में रह रहे हैं. वह कहते हैं कि “जब भारत में शूट रहता है तो मुझे वोट देने का अवसर मिल जाता है. मैं अपने वोट देने के लिए गिरिडीह जाता हूं. लेकिन जब देश के बाहर सूट चल रहा होता है तो मतदान छूट जाती है. ऐसे में मैं चाहूंगा कि हम जैसे प्रवासियों के लिए भारतीय चुनाव आयोग सर्विस वोट का प्रबंध करे, ताकि हम लोग भी अपने वोट का इस्तेमाल कर सकें.”