Heatwave: कौन हैं वो लोग जिन्हें 40 से 45 डिग्री तापमान के बीच तपती धूप में करना पड़ता है काम? आख़िर क्या है विकल्प

Heatwave: कौन हैं वो लोग जिन्हें 40 से 45 डिग्री तापमान के बीच तपती धूप में करना पड़ता है काम? आख़िर क्या है विकल्प

बीते महीने बिहार, झारखंड सहित देश के दूसरे हिस्सों में भी दर्ज़न भर से अधिक लोगों की लू लगने से मौत हो गई। लेकिन, हर साल की तरह ही लोगों की मौत ख़बरों में संख्या मात्र बनकर रह गई और उसको लेकर शासन-प्रशासन के बीच कोई ख़ास गंभीरता देखने को नहीं मिली।

लू (हीटवेव) की गर्म हवाओं और 40 डिग्री तापमान में सूरज की तेज़ किरणों ने 60 वर्षीय श्याम सुन्दर दत्ता को लस्त कर दिया। पेड़ की छांव के तलाश में वह अपने गन्ने के जूस के ठेले को किनारे लगा रहे थे। तेज़ धूप के कारण सड़क पर आवाजाही भी कम थी, इक्के-दुक्के लोग ही बेहद ज़रूरी कामों के लिए धूप में बाहर निकल रहे थे। ऐसे में थकी हुई आखों से पलकों को झपकते हुए श्याम सुन्दर कहते हैं, “लू की गर्म हवाएं चल रही हैं। तेज़ धूप के कारण आराम करने के लिए पेड़ की छांव में आकर खड़ा हुआ हूं। यूं तो धूप में गन्ने के जूस की अच्छी बिक्री होती है, मगर इन दिनों धंधा काफ़ी मंदा चल रहा है। आज अभी तक केवल 60 रुपये का धंधा हुआ है।”


गन्ना जूस विक्रेता 60 वर्षीय श्याम सुन्दर दत्ता •

गर्मी-ठंड सबमें सड़क से ही दुकानदारी

श्याम सुन्दर दुमका के नागडीह में रहते हैं और पिछले पांच वर्षों से गर्मी के मौसम में गन्ने का जूस बेच रहे हैं। ऑफ सीज़न में वह ठेला चलाते हैं। श्याम बताते हैं, “पिछले कुछ दिनों से रोज़ाना केवल ₹100-150 की बिक्री ही हो पा रही है, क्योंकि धूप बहुत अधिक है। कमाई का एकमात्र ज़रिया यही है, बिक्री नहीं होती है तो घर का चूल्हा भी ठीक से नहीं जल पाता है। बीते कुछ वक़्त से कम पैसे ही घर लेकर जा रहा हूं, किसी तरह से दाल-रोटी चल रहा है।”

ग़ौरतलब है कि जून के महीने के पहले सप्ताह में 24 घंटे के अंदर झारखंड में हीटवेव के कारण 26 लोगों की जान चली गई। वहीं, 10 जून को मौसम विज्ञान केन्द्र (आईएमडी) ने पूर्वानुमान के ज़रिये चेतावनी जारी की है कि राजधानी रांची में भी लोगों को आने वाले कुछ दिनों तक 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक पारा का सामना करना पड़ेगा।


59 वर्षीय ठेला चालक तिप्तू मिर्धा •

तिप्तू मिर्धा (59 साल) के मुताबिक़, वह साल 1980 से ही ठेला चला रहे हैं। मिर्धा बताते हैं, “तेज़ धूप के कारण बाज़ार में काम-धंधा ठप है। ठेले में भारी सामान उठाने के लिए हमलोग एक कुली रखते हैं, लेकिन गर्मी के कराण उसकी तबीयत ख़राब है और वह काम पर नहीं आ रहा है। मैं अकेला पड़ गया हूं, इसलिए इस गर्मी में भारी काम नहीं ले रहा हूं। एक तो काम नहीं मिल रहा है और तेज़ धूप के कारण भारी काम छोड़ना पड़ रहा है। मेरे 44 वर्षों के कार्य जीवन में इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि लू के कारण काम-धंधा चौपट हो जाए।”

तिप्तू मिर्धा केवल अकेले लू की जद में नहीं हैं, बल्कि पूरे झारखंड में मज़दूर वर्ग इससे परेशान है। वहीं, मध्य वर्ग, उच्च मध्य वर्ग और उच्च वर्ग की भी अपनी दिक़्क़तें हैं। मज़दूरों के लिए स्थिति इसलिए भयावह है क्योंकि उन्हें लू की गर्म हवाओं के बीच न केवल सड़कों पर निकलना पड़ता है, बल्कि घंटों धूप में बैठकर काम करना पड़ता है। पेट की भूख और शरीर में पानी की कम मात्रा लू लगने की उनकी संभावनाओं को और तेज़ कर देती है।


विकास तुरी, ई-रिक्शा चालक •

दिहाड़ी में बीमारी का बहाना नहीं चलता

35 वर्षीय विकास तुरी दुमका में तीन वर्षों से टोटो चलाते हैं। उससे पहले सात वर्षों तक वह टेंपू चलाते थे। अपनी व्यथा सुनाते हुए विकास कहते हैं, “बिजली घंटों गायब रहती है, घर में इन्वर्टर नहीं है। राशन का सामान महंगा हो गया है और इधर लू के कारण सवारी नहीं मिलती है। हर तरफ़ से हम गरीब लाचारी में जीने को विवश हैं। टोटो मेरा ख़ुद का नहीं है, चाहे सवारी आए या न आए; दिन के आख़िर में 250 रुपये मालिक को देने पड़ते हैं। किसी दिन किस्मत ठीक रही तो मालिक को देने के बाद 200 रुपये अगर बच गए तो वह मेरा प्रॉफिट है, लेकिन लू के इस मौसम में ऐसा दिन मुश्किल से ही आता है।”

विकास का कहना है कि “तेज़ गर्मी और लू के कारण 10 दिन में एक बार बीमार पड़ जाता हूं। लगातार बीमार रहने के कारण इस बात का भय भी रहता है कि कहीं मालिक किसी और चालक को टोटो न दे दें, इसलिए बीमार अवस्था में भी हमने टोटो चलाया है। ऊपर वाला अगर हम गरीबों पर थोड़ी रहम करे और बारिश हो जाए तो सुकून मिलेगा।”


राजेश तुरी, दिहाड़ी मज़दूर •

राजेश तुरी रसिकपुर के एक मकान में मज़दूरी करने के दौरान थककर पेड़ के नीचे आराम कर रहे थे। वह कहते हैं, “चिलचिताली धूप के कारण कहीं दूर मज़दूरी करने नहीं जा पा रहा हूं। घर के आसपास ही काम तलाशता हूं, ताकि लू के प्रकोप से बचा जाए; लेकिन इस बार गर्मी की मार कुछ ऐसी है कि आसपास भी बेचैन ही रहता हूं। किसी तरह पानी पी-पीकर शाम होने का इंतज़ार करता हूं, फिर इतना थक जाता हूं कि घर जाकर सोने के अलावा कोई चारा नहीं बचता। गर्मी तो रहेगी ही, लेकिन हम गरीबों को कमाकर ही खाना पड़ेगा।”

उल्लेखनीय है कि दुमका में अप्रैल माह में लू लगने के कारण एक मज़दूर की तड़पकर मौत हो गई थी। ज़िले के नियंत्रण कक्ष के समीप मज़दूरी न मिलने के कारण निराश होकर वापस घर जाने के क्रम में वह मूर्छित होकर गिर पड़े, जितनी देर में लोग समझ पाते कि तब तक मौक़े पर ही उनकी मौत हो गई।


कड़कड़ाती धूप में छाता लेकर सब्ज़ी बेचती महिला पक्कू मुर्मू •

पक्कू मुर्मू जामा प्रखंड के भैरो पंचायत के सिमिरवर गाँव में रहती हैं। चिलचिलाती धूप और लू के गर्म थपेड़ों का प्रभाव उन पर थोड़ा कम पड़े, इसलिए वह सब्ज़ी बेचने के दौरान छाता लेकर बैठी थीं। पक्कू कहती हैं, “गर्मी में ग्राहक बहुत कम आते हैं, इसलिए बेचने के लिए सब्ज़ियां भी हम कम ही लेकर आते हैं। बावजूद उसके अच्छी बिक्री नहीं हो पाती है। हाथ में छाता लेकर थक जाती हूं और ऊपर से सब्ज़ी न बिकने की चिंता परेशान करती है।”

पक्कू के मुताबिक़, उनके तीन बेटे गाँव में थोड़ी-बहुत खेती कर लेते हैं और पति भी इस काम में बच्चों का हाथ बँटा देते हैं। वह कहती हैं कि “आय का मुख्य स्त्रोत सब्जी बेचना ही है, जो कि अभी मंदा है। खेती कभी होती है तो कभी नहीं होती है।”


सोकल हांसदा, मज़दूर •

युवा मज़दूर भी नहीं सह पा रहे गर्मी की ताप

20 वर्षीय सोकल हांसदा बेहराबांक के कोदोकिचा गाँव में रहते हैं। अपने इलाके में मज़दूरी न मिल पाने के कारण वह लगभग 15 किलोमीटर की दूरी तय करके रोज़ाना ज़िला मुख्यालय आते हैं। वह कहते हैं, “पिछले एक हफ़्ते से तेज़ धूप के प्रकोप के कारण घर पर ही रहता था। आज किसी तरह थक-हारकर दुमका आया तो काम मिला। तेज़ धूप के कारण लगातार काम नहीं कर पाता हूं। घर से जो भोजन लेकर आता हूं, वह भी कुछ घंटों में ख़राब हो जाता है। दो भाई भी मज़दूरी करते हैं, लेकिन पिछले 20 दिनों से लू लगने के कारण वे काम नहीं कर पा रहे हैं।”


रोशमेल किस्कू, मज़दूर

लू की गर्म हवाओं के बीच 35 वर्ष के रोशमेल, ज़िले के रसिकपुर में राड काटने का काम कर रहे थे। वह कहते हैं, “कुछ वर्ष पहले बीमारी के कारण मेरी पत्नी का देहान्त हो गया था। बच्चे की परवरिश के लिए दिहाड़ी में राड कटाने का काम करना पड़ता है। एक तरफ़ लू की मार तो दूसरी ओर पेट की भूख का संकट है। आपने लू के बारे में पहली बार हमसे पूछा, अन्यथा ये बातें हमसे कोई पूछता भी नहीं है।”


जींस व गंजी में राजीव और हाफ पैंट एवं गंजी में लखीन्द्र ठेला खींचते हुए •

प्रचंड गर्मी में कुमारपाड़ा से नागडीह की ओर अपने साथी मज़दूर लखीन्द्र के साथ बांस और पटरे से भरे ठेले को खींचते हुए मज़दूर राजीव ठेले को खींचने के दौरान कई दफ़ा विराम ले रहे थे। राजीव पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद से काम के सिलसिले में झारखंड विस्थापित हो गए हैं। वह कहते हैं, “हमें कई जगहों पर एक दिन में बांस और पटरा पहुंचाना होता है। ऐसे में पानी की बोतल लेकर निकलने के बावजूद कोई फ़ायदा नहीं होता। अगर काम करते हुए हम किसी साइट पर पानी की बोतल भूल जाते हैं, तो उसके बाद ठेला छोड़कर कहीं जा नहीं सकते; यदि जाएंगे तो बांस और पटरा चोरी होने का ख़तरा रहता है।” राजीव जोड़ते हैं, “अभी हाल ही में लू के कारण मैं बीमार पड़ गया था और 15 दिन काम बाधित रहा।”

वहीं, राजीव के साथी मज़दूर लखीन्द्र हीटवेव से होने वाली तकलीफ़ों का ज़िक्र करते हुए बताते हैं, “प्रचंड गर्मी तो है ही, साथ ही हमारा ठेला ओवरलोड है। कभी राजीव ठेला खींचते हैं तो कभी मैं। हमारी हालत बहुत ख़राब है, लेकिन कमाएंगे नहीं तो खाएंगे क्या? इसलिए काम करना होगा, चाहे गर्मी हो, ठंड हो या बारिश।”

बड़े शहरों में कैसे हैं मज़दूरी के हालात?

हीटवेव के प्रकोप से केवल झारखंड के मज़दूर ही प्रभावित नहीं हैं, बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों में मज़दूर वर्ग बेहद पेरशान है। कोलकाता के बासु हलधर दिहाड़ी मज़दूरी करते हैं। उनका कहना है कि घर से काम के लिए निकलता हूं तो पत्नी झोले में दोपहर का खाना और पानी दे देती है, लेकिन काम के दौरान हमें प्यास अधिक लगती है और एक बोतल पानी तो साइकिल से जाते वक़्त ही ख़त्म हो जाता है। वह कहते हैं, “हमें तेज़ धूप में काम करने की आदत है, लेकिन अबकि बार की धूप ने सहने की हमारी ताक़त की परीक्षा ली है।”

कोलकाता के दमदम कैंटॉनमेंट के किसून पाल चमड़े की फैक्ट्री में काम करते हैं। उनका कहना है कि फैक्ट्री में पानी की पर्याप्त व्यवस्था है, लेकिन इस प्रचंड गर्मी में कोलकाता की बस में सवार होकर जाना अपने आप में कठिन काम है। वह बताते हैं, “हर चौथे दिन मुझे लू लग जाता है और हम अस्पताल जाकर डॉक्टर को नहीं दिखा सकते, क्योंकि इससे काम बाधित होगा। ग्लूकॉन-डी पीकर हम लू से लड़ते हैं।” किसून के मुताबिक़, 2024 की गर्मी ने बेहद पेरशान किया है।


प्रतीकात्मक चित्र • स्रोत: Unsplash

वहीं, दिल्ली के दल्लूपुरा में रहने वाले बिहार के रमेश साहनी नोएडा मोड़ में मज़दूरी का काम करते हैं। रमेश की समस्या किसून पाल और बाशु हलधर से थोड़ी अलग है। रमेश का कहना है कि तेज़ गर्मी से उनके सिर में दर्द होने लगता है और वह रास्ते में ही कहीं पर बैठकर आराम करने लगते हैं। पूरी क्षमता से काम न कर सकने के कारण उनकी उस दिन की दिहाड़ी ख़त्म हो जाती है और उन्हें निराश होकर ही घर लौटना पड़ता है।

जबकि, मध्यप्रदेश में भोपाल के सरोज कुमार एक ट्रक में खलासी का काम करते हैं। वह बताते हैं, “तपती गर्मी में ट्रक काफ़ी गर्म हो जाता है, जिसकी वज़ह से मुझे दोहरी मार का सामना करना पड़ता है। हम घर से दूर रहते हैं ताकि तीन-चार महीने में जब घर जाएं तो कुछ पैसे साथ ले जाएं, मगर इस गर्मी में हम घर ले जाते हैं तो केवल दवाइयां और नाम मात्र के पैसे। ट्रक में तबीयत ख़राब होने पर हमारी दवाई शुरू हो जाती है।”

क्या कहते हैं सांसद और प्रखंड विकास पदाधिकारी?

दुमका लोकसभा क्षेत्र के मौजूदा सांसद नलिन सोरेन ने मज़दूर वर्ग, स्ट्रीट वेंडर और टोटो चालक आदि को हीटवेव के कारण होने वाली समस्याओं पर बात करते हुए कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि उन्हें भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उनकी आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं होती है, ऐसे में प्रशासन और जन-भागीदारी की मदद से हम उन्हें कुछ राहत पहुंचा सकते हैं।

वह बताते हैं, “आपने देखा होगा कि समाहरणालय सभागार के मुख्य गेट के समीप पानी के घड़े रखे होते हैं, पुलिस थानों के बाहर भी घड़े रखे होते हैं। कोशिशें की जा रही है, लेकिन और व्यापक स्तर पर कोशिश करनी होगी। हमारे कार्यकर्ता भी मज़दूर वर्ग तक ठंडा पानी वगैरह पहुंचाने का काम कर रहे हैं। मैं स्वयं भी स्थिति का जायज़ा लेकर आगे की रणनीति तय कर रहा हूं।”

ज़िले के प्रखंड विकास पदाधिकारी उमेश मंडल कहते हैं, “जिन इलाकों में मनरेगा का कार्य चलता है, वहां प्रखंड कार्यालय द्वारा पानी के घड़ों को रखा जाता है ताकि मज़दूर वर्ग को राहत पहुंचे। सुदूर इलाकों में वैसे तो पानी की दिक्कत नहीं होती है, लेकिन फिर भी इस प्रकार के छोटे प्रयास निश्चित रूप से लू के दौरान मज़दूरों को हाइड्रेटेड रखने में मदद करते हैं। आने वाले समय में स्थिति को मॉनिटर करके इस तरह के दूसरे प्रयास भी किये जाएंगे। गाँवों में रखे घड़ों से रिक्शेवाले और राह चलते ग्रामीण भी पानी पीते हैं, इसलिए इस बात का ध्यान रखा जाता है कि पानी ख़त्म हो तो तुरन्त उन घड़ों में पानी भरने का काम किया जाए।”


मारवाड़ी युवा मंच की ओर से रखे गए प्याऊ से पानी पीते हुए मज़दूर •

मज़दूर वर्ग को हीटवेव में थोड़ी-सी राहत मिले, उसके लिए कई संस्थाएं काम कर रही हैं; उन्हीं में से एक संस्था है ‘मारवाड़ी युवा मंच’। मंच के अध्यक्ष रमेश कुमार अग्रवाल बताते हैं, “17 वर्षों से मारवाड़ी युवा मंच के माध्यम से हमलोग जिले भर में जल प्याऊ रखने का काम कर रहे हैं। अब हमने घड़े की जगह 20 लीटर की नल वाली टंकी जगह-जगह रखना शुरू कर दिया है। थाना रोड में बालाजी साइकिल के पास जल प्याऊ है, मेन मार्केट में कई जगहों पर हमने पानी की व्यवस्था की है। हमने इस सीजन में ऑन रिकॉर्ड 21 जगहों पर पानी का प्रावधान किया है और उससे सबसे ज़्यादा जिन्हें फायदा होता है; वह मज़दूर वर्ग है।”


प्रतीकात्मक चित्र • स्रोत: Flickr

लू के प्रभावों से बचने के लिए क्या हो सकते हैं विकल्प?

मज़दूर तबके पर पड़ने वाले लू के प्रभावों पर बात करते हुए मौसम विशेषज्ञ नीतीश प्रियदर्शी कहते हैं, “टोटो, ठेला चलाने वाले और खोमचे वाले को इस प्रचंड गर्मी में सबसे अधिक नुक़सान होता है। ग्राहक प्रचंड गर्मी में अपने घरों में रहते हैं। देर रात तक उनको बिक्री करने का समय दिया जाना चाहिए। साथ ही टोटो चालक यदि देर रात तक टोटो चलाते हैं तो उसमें प्रशासन की सहभागिता होनी चाहिए।”

“रात को जब गर्मी की तपिश कम होती है, तब लोग घरों से निकलते हैं। प्रशासन और नगर निगम के प्रयासों से ऐसे हाट बाज़ार शुरू किए जाने चाहिए जहां ग्राहक सुविधानुसार पहुंच सकें। वहां उनके लिए पानी की समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए, तात्कालिक शेड बनने चाहिए ताकि वे हीटवेव के दौरान विश्राम कर पाएं। साथ ही नाइट मार्केट कैसे शुरू हो, इस पर विचार करने की ज़रूरत है,” नीतीश जोड़ते हैं।

उन्होंने कहा कि “ई-रिक्शा, टेम्पो आदि की सवारी करने वाले लोगों से मेरी अपील है कि आप उनसे मोल-भाव न करें। जितना पैसा वे मांग रहे हैं, मुमकिन हो तो उन्हें उससे 10 रुपये अधिक ही दे दें। लोगों के पास यदि पानी की बोतल है तो टोटो से उतरते वक़्त चालक को दे दें। इन छोटे-छोटे प्रयासों से भी काफ़ी फ़र्क़ पड़ता है। अगर लोगों के पास इलेक्ट्रॉल है तो ठेले वाले, खोमचे वाले को देने से कतराएं नहीं। यदि संभव हो तो मज़दूर के आराम करने के समय को आधा घंटा बढ़ा दें, जिससे उन्हें थोड़ी राहत मिलेगी। ऐसी पहल केवल झारखंड में नहीं, बल्कि देश के सभी इलाकों में जहां प्रचंड गर्मी है वहां किए जाने की आवश्यकता है; क्योंकि मज़दूर सभी जगह हैं और हर जगह उनकी स्थिति एक जैसी ही है।”


दुमका, झारखंड से प्रतीकात्मक चित्र • स्रोत: Unsplash

झारखंड में क्यों हैं लू का प्रकोप?

क्लाइमेट एक्सपर्ट नीतीश प्रियदर्शी के मुताबिक़, “झारखंड के पलामू जैसे इलाकों में लू पहले भी चलता था, लेकिन रांची और हज़ारीबाग़ जैसे इलाकों में लू चिंताजनक है। जब झारखंड का विभाजन नहीं हुआ था; उस समय रांची ‘समर कैपिटल ऑफ बिहार’ हुआ करता था। गर्मी के मौसम में भी यहां बारिश होती थी। यहां पर गर्मी में भी पसीना नहीं आता था और रात ठंडी होती थी। जबकि, अब ये सारा सिस्टम बदल गया है। उसकी एक बड़ी वज़ह है कि हमलोग जंगल को ही हटाते चले जा रहे हैं और कंक्रीट का जंगल पैदा कर रहे हैं।”

“झारखंड में जितनी तालाब थे, उन्हें भरकर हमने बिल्डिंग बना दिया। तालाब का पानी जलचक्र में मुख्य भूमिका निभाता था। अगर गर्मी 35 डिग्री के ऊपर जाता था तो पानी का वाष्पिकरण होता था और दोपहर दो बजे के बाद बारिश हो जाती थी, जिससे मौसम ठंडा हो जाता था; लेकिन अब वैसी बात नहीं है। अब जब हमने जंगलों को हटा दिया तो वाष्पिकरण कहां से होगा,” वह जोड़ते हैं।

नीतीश आगे खाते हैं, “अब तो रांची और जमशेदपुर जैसे शहर अर्बन हीट आइलैंड प्रभाव में आ गए। अभी हाल ही में रांची में हल्की बारिश हुई, जबकि रांची के बाहर अच्छी बारिश हुई। उससे हो यह रहा है कि गर्म हवा जो शहर से उठ रही है, वह बादल को शहर के बाहर फेंक दे रही है; जिसके कारण रांची के बाहर थोड़ी-बहुत बारिश हो जाती है, लेकिन शहर में उतनी बारिश नहीं हो पाती।”

लू के कारणों पर मौसम विशेषज्ञ प्रियदर्शी कहते हैं, “झारखंड में ओपन कास्ट माइनिंग काफ़ी अधिक होता है। खदानों में आग लगे हुए हैं, उससे जो ग्रीन हाउस गैस निकल रहा है; वह सब हीट उत्पन्न कर रहा है। झारखंड का बहुत बड़ा क्षेत्र हीटवेव से तबाह हो चुका है। नेतरहाट जो कि हिल स्टेशन होता था, इस बार वहां भी गर्मी है। जबकि, आज से 10 वर्ष पहले रांची में गर्मी के दिनों में भी लोग कंबल ओढ़कर सोते थे। आज रांची में उमस (ह्यूमिडिटी) इतनी है कि लोग परेशान हैं।”

“आप देखिए कि शिमला का तापमान 34-35 डिग्री सेल्सियस जा रहा है। हमें समझना पड़ेगा कि हमलोग क्या गलती कर रहे हैं जिससे पृथ्वी इतना आग उगल रही है। सूरज से तो हमेशा गर्मी आती रही है, लेकिन पहले हमलोग संतुलन बना लेते थे। अब हमलोग प्रकृति को ही बर्बाद कर रहे हैं। लोग कहते हैं कि पृथ्वी को बचाइए, लेकिन मैं बार-बार अपने विद्यार्थियों को समझाता हूं कि पृथ्वी को बचाने की ज़रूरत नहीं है। पृथ्वी बीते 4.5 बिलियन वर्षों से यहीं है। पृथ्वी पर आज तक पांच महाविनाश (Mass Extinction) हो चुके हैं, जिसमें कई प्रजातियां गायब हुई हैं। हमलोग छठे महाविनाश में प्रवेश कर चुके हैं, जिसका सबसे बड़ा कारण मनुष्य है। इसलिए मैं बार-बार कहता हूं कि पृथ्वी को बचाने की ज़रूरत नहीं है, आप अपने आप को बचा लें। यदि हम अपने कार्यकलापों में सुधार नहीं करेंगे तो पृथ्वी हमें बर्बाद करेगी ही। पृथ्वी ने डायनासोर जैसे जीव को ख़त्म कर दिया तो मनुष्य क्या चीज़ है,” नीतीश कहते हैं।


बेतला जंगल, झारखंड • स्रोत: Unsplash

क्या है लू का दीर्घकालिक समाधान?

नीतीश प्रियदर्शी के मुताबिक़, हीटवेव के लॉन्ग टर्म सॉल्यूशन (दीर्घकालिक समाधान) की जब हम बात करते हैं तो केवल झारखंड ही नहीं, बल्कि पूरा देश इस समय लू से बुरी तरह प्रभावित है। ऐसे में सभी जगहों के लिए समाधान पर बात करनी होगी। वह कहते हैं, “जितनी जल्दी हो सके, हमें वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत की ओर शिफ़्ट करना होगा। बेहद ज़रूरी है कि मौजूदा वक़्त में जो नदियां, तालाब, पहाड़ और जंगल हैं; उन्हें हेरिटेज घोषित किया जाए। उन्हें ‘रिलीजियस’ घोषित करना होगा। अगर ये चीज़ें रिलीजियस घोषित हुईं तो लोग उन्हें बर्बाद नहीं करेंगे।”

“जैसे झारखंड में आदिवासी समाज के लोग जंगल को ‘सरना’ घोषित करके पेड़ों की पूजा करते हैं और लोग उन पेड़ों को काटने से डरते हैं। वैसे ही आपने देखा होगा कि लोग पीपल, बरगद और तुलसी के पेड़ों को नहीं काटते हैं। ठीक उसी ढंग से जंगल को रिलीजियस घोषित करना होगा। लेकिन, दुख की बात है कि कहीं भी राजनीतिक दलों के एजेंडे में इस बात का ज़िक्र नहीं होता है कि यदि हम चुनाव जीत गए तो आपको शुद्ध हवा देंगे। पर्यावरण संरक्षण को लेकर राजनीतिक इच्छा शक्ति की भी कमी है,” वह जोड़ते हैं।

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