बेरोज़गारी संकट: छत्तीसगढ़ के नारायणपुर की एक माइंस में रोज़गार की मांग को लेकर 300 से अधिक ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन

बेरोज़गारी संकट: छत्तीसगढ़ के नारायणपुर की एक माइंस में रोज़गार की मांग को लेकर 300 से अधिक ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन

छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में आदिवासी युवाओं में बेरोज़गारी की समस्या बनी चिंता का विषय। छोटे डोंगर में बुधवार से चल रहे ग्रामीणों के प्रदर्शन पर कार्रवाई करते हुए पुलिस ने शनिवार को चार युवकों को हिरासत में लिया, जिसके जवाब में 300 प्रदर्शनकारियों ने थाने का किया घेराव।

छत्तीसगढ़ में नारायणपुर ज़िले का पाँचवीं अनुसूची क्षेत्र गंभीर पलायन का सामना कर रहा है। यहाँ के युवा रोज़गार की तलाश में बाहर जाने को मजबूर हैं। सरकार के आर्थिक विकास के वादों के बावजूद, नौकरियों की कमी ने कई युवाओं को काम की तलाश में अपने परिवार और घरों को छोड़कर दूसरे शहरों एवं राज्यों में पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया है। यहाँ हालात इतने ख़राब हो गए हैं कि क्षेत्र के सैकड़ों युवाओं ने बुधवार को एक माइंस ‘जायसवाल निको इंडस्ट्रीज लिमिटेड’ में इकट्ठा हो लौह अयस्क परिवहन को अवरुद्ध कर दिया और काम को रोक दिया।

प्रदर्शन में शामिल 26 वर्षीय युवक तुला राम बताते हैं कि वह छोटे डोंगर ग्राम पंचायत के निवासी हैं। यह पंचायत खनन क्षेत्र के फेरिफेरी गाँव में आता है। वह कहते हैं, “रोज़गार की मांग को लेकर हम सात पंचायत के युवा चार दिन से धरना प्रदर्शन कर रहे थे। हमें काम की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन करना पड़ता है, जबकि हमारे क्षेत्र में इतनी बड़ी ‘माइनिंग कंपनी’ है।”

वहीं, दूसरे प्रदर्शनकारी 28 वर्षीय युवा धनीराम ऊसेंडी कहते हैं, “मैं धनोरा पंचायत का निवासी हूँ और यह पंचायत खनन प्रभावित गाँवों में आता है। बावजूद उसके न ही यहाँ पर अच्छी सड़क है और ना ही हमें मूलभूत बुनियादी सुविधाओं का लाभ मिलता है। सुविधा के नाम पर सिर्फ़ एक एंबुलेंस मिली है, जिसका सबसे अधिक उपयोग ‘माइनिंग कंपनी’ के लोग ही करते हैं।”

वह आगे कहते हैं, “कंपनी यहाँ पर बाहर के लोगों को लाकर रोज़गार दे रही है, जबकि स्थानीय लोग बेरोज़गार बैठे हैं। इस समस्या को लेकर हम सात पंचायत के लगभग 300 लोग धरने पर बैठे और हमारे लिए रोज़गार की मांग की। सरकार और जिला प्रशासन के अधिकारियों को भी हमने बताया कि हमें रोज़गार की आवश्यकता है, क्योंकि काम न मिलने से हमारे लोग पलायन कर रहे हैं।”


गिरफ़्तारी के बाद साथियों की रिहाई के लिए पुलिस स्टेशन का घेराव करते ग्रामीण •

पुलिस ने की गिरफ़्तारी, ग्रामीणों ने किया थाने का घेराव

पिछले चार दिनों तक चले विरोध प्रदर्शन के कारण ‘जायसवाल निको माइंस’ में काम ठप हो गया और लौह अयस्क ले जाने वाले ट्रकों का काम रुक गया। कंपनी से युवा मांग कर रहे हैं कि वह प्रत्येक परिवार से एक सदस्य को रोज़गार दे। विरोध प्रदर्शन के चौथे दिन पुलिस ने चार युवकों को हिरासत में ले लिया, जिसके जवाब में प्रदर्शनकारियों ने पुलिस थाने का घेराव किया और अपने साथियों के रिहाई की मांग की।


ग्रामीणों के धरना देने के कारण ‘माइंस कंपनी’ का काम ठप पड़ जाने से जीरो पॉइंट पर खड़े ट्रक •

स्थानीय युवा मनीराम कच्च लाम ने बताया कि हम शांतिपूर्ण तरीक़े से रोज़गार की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे थे, तभी स्थानीय पुलिस ज़ोर-ज़बरदस्ती कर हमारे चार साथियों को उठा ले गई। “हमारी मांग है कि हमारे इलाक़े में खनन करने वाली कंपनी हमें रोज़गार दे, जिसके लिए हम शांतिपूर्ण तरीक़े से आंदोलन कर रहे हैं; इसलिए हम चाहते हैं कि हमारे साथियों को रिहा किया जाए,” वह जोड़ते हैं।

वहीं, दूसरे प्रदर्शनकारी रोहित कुमार नाग ने बताया कि “कंपनी के अधिकारियों के साथ बैठक कर हम लोगों ने उन्हें 10 दिन का समय दिया है। अगर तब तक हमारी समस्या का समाधान नहीं होता है तो हम फिर से धरने पर बैठेंगे।”


प्रदर्शन के दौरान अपना मांग-पत्र दिखाते हुए युवक मनीराम कच्च लाम •

‘माइनिंग कंपनी’ और ज़िला प्रशासन का पक्ष

ग्रामीणों के विरोध के बाद ‘जायसवाल निको इंडस्ट्रीज लिमिटेड’ ने एक प्रेस विजप्ति जारी कर बताया कि “नारायणपुर जिले के छोटे डोंगर में लौह अयस्क खनन का खनिपट्टा स्वीकृत है। यह एक छोटी खदान है, जिसमें केवल 100 लोगों को ही रोजगार दिए जाने की आवश्यकता थी। बावजूद उसके हमने साल-डेढ़ साल के अंदर खदान से प्रभावित सात ग्राम पंचायतों के 410 लोगों को रोज़गार दिया है। उसमें से 100 लोगों को इसी साल जनवरी में रोज़गार दिया गया है। अर्थात, जहाँ पर एक व्यक्ति को रोज़गार दिया जाना था, वहाँ पर हमने चार व्यक्तियों को काम दिया है।”


‘माइनिंग कंपनी’ की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति •

उक्त मसले को लेकर जब मोजो स्टोरी ने माइनिंग कंपनी के स्थानीय प्रबंधक से बात की तो उन्होंने भी कंपनी की ओर से जारी विज्ञप्ति की बात को ही दोहराते हुए कहा कि “हमने क्षेत्र के 410 स्थानीय लोगों को रोज़गार पर रखा है। आगे भी ज़रूरत के मुताबिक़ स्थानीय लोगों की भर्ती की जाएगी।”

जबकि, नारायणपुर के ज़िलाधिकारी बिपिन मांझी ने कहा कि प्रदर्शन कर रहे युवाओं से बातचीत हुई है; उनकी समस्या का हल जल्द ही किया जाएगा।

माइनिंग कंपनी से रोज़गार की मांग क्यों कर रहे ग्रामीण?

खनन प्रभावित गांवों में से एक माडा नार निवासी अशोक कहते हैं, “आदिवासी समुदाय जंगलों पर निर्भर है और अगर वे ख़त्म हो गए तो समुदायों का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा। जो आज खनन क्षेत्र है, वहाँ पहले जंगल हुआ करता था। ग्रामीणों का जीवन उस जंगल पर ही आश्रित हुआ करता था, जैसे; इमली, महुआ वन उपज के कई पेड़ थे, जिसको आदिवासी समुदाय इकट्ठा कर बाज़ार में उसकी बिक्री करते थे और उससे उनका जीवन-यापन होता था। जब से उन क्षेत्रों में खनन शुरू हुआ है, वहाँ के बहुत से जंगल कट गए हैं; जिसकी वज़ह से स्थानीय लोगों के पास आय का कोई साधन नहीं बचा है।”

वह आगे कहते हैं, “माइनिंग कंपनी में कुछ लोगों को रोज़गार तो मिला है, लेकिन इलाक़े के बहुत से युवा आज भी काम के लिए भटक रहे हैं। हम खनन प्रभावित गाँवों में आते हैं और पाँचवी अनुसूची एवं ‘पेसा एक्ट’ के तहत हमें ‘माइनिंग कंपनी’ से रोज़गार की मांग करने का अधिकार है।”

ग्रामीणों की मांग कितनी जायज है, इस पर आदिवासी एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता सोनी सोरी कहती हैं, “बस्तर के संसाधनों पर पहला हक़ स्थानीय आदिवासी का है। आदिकाल से निवासरत आदिवासी समाज को कंपनी की नौकरियों में प्राथमिकता देना प्रबंधन का कर्तव्य है। बस्तर के आदिवासियों की मांग अलग या अधिक नहीं है, बल्कि संवैधानिक प्रावधानों पर आधारित है।”

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