बेमौसम बारिश ने क़र्ज़दार किसानों की तोड़ी कमर, फसल के मुआवज़े की शर्तों ने बढ़ाई चिंता
बिना मौसम बारिश और ओलावृष्टि के कारण रबी की फसलें बर्बाद हो रही हैं. बीते दो हफ़्तों में उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के दर्जनों ज़िलों के किसान इस आपदा का शिकार हो चुके हैं. इस कारण गेंहू व दलहन सहित लहसुन, प्याज़ आदि की फसलें भी प्रभावित हो रही हैं.
मध्यप्रदेश के धार ज़िला में कृषि प्रधान गांव दसाई के 38 वर्षीय निवासी सुनील पाटिदार के घर में गेहूं का ढेर लगा है. वह उन ढेरों से बार-बार अपनी हथेली में गेहूं उठाते हैं और फिर ग़ौर से उन्हें देख कर वापस डाल देते हैं. वह गेहूं के भूरे रंग को देख कर मायूस स्वर में कहते हैं कि “इस साल मेरा 2.5 लाख रुपये का कर्ज़ कैसे अदा होगा.”
सुनील पाटिदार, किसान.
सुनील पाटिदार के 10 एकड़ खेत में तैयार गेहूं की फसल हाल में हुई बारिश और ओलावृष्टि का शिकार हो गई है. उनके अनुसार, “ओलावृष्टि न होती तो मेरे खेत में होने वाला लगभग 200 क्विंटल गेहूं 4.5 लाख रुपये में बिकता.”
वह कहते हैं, “गेहूं की फसल खेत में ही भीग गई जिसको मैंने कटवाने के बाद सुखाया, लेकिन कटने के बाद मिलने वाले गेहूं का गेहुआ रंग भूरा हो गया है.”
सुनील पाटिदार के अनुसार, इस भूरे गेहूं की कीमत लगभग दो से 2.5 लाख रुपये ही मिलेगी; यानी उन्हें क़रीब 50 फ़ीसद का नुक़सान होने वाला है.
वह कहते हैं, जलवायु परिवर्तन के कारण गेहूं की पैदावार साल दर साल घट रही है. इस साल पिछले वर्ष की तुलना में गेहूं की पैदावार लगभग आधी है. ऊपर से ओलावृष्टि की मार के कारण जो कीमत मिलनी चाहिेए, वह अब मिलेगी नहीं.
क्या आपको सरकार की ओर से कोई मुआवज़ा मिलेगा? इस सवाल पर सुनील कहते हैं कि कि “क्षेत्र के पटवारी सर्वे करने तो आए नहीं, अंत में मैंने कल गेहूं काट लिया.”
दसाई गांव में गेहूं की ख़राब हुई फसल.
क्या हैं सरकारी मुआवज़ा मिलने की शर्तें?
ओलावृष्टि से हुए नुक़सान हेतु मुआवज़ा के संबंध में मोजो स्टोरी ने स्थानीय पटवारी प्रशांत गोवर्धन से बातचीत की. दसाई गांव के संबंध में वह कहते हैं कि इस गांव में 95 फ़ीसद खेतों में फसल कट चुकी थी, इसलिए यहां कोई मुआवज़ा नहीं बनता.
दसाई के ही एक अन्य किसान सोहन पाटिदार के अनुसार, उनके गांव में लगभग 10 हज़ार की आबादी पूरी तरह से खेती पर निर्भर है. यहां के किसान अपनी खेतों में गेहूं, चना, मटर, लहसुन, प्याज़ आदि की खेती करते हैं.
सोहन पाटिदार, किसान.
वह कहते हैं कि “मेरे और सुनील पाटीदार की तरह दूसरे किसान भी इस आपदा का शिकार हुए हैं, लेकिन फसलों पर मुआवज़ा तभी मिलता है जब वह खेत में लगी हुई हो. यदि फसल कटने के बाद खेत पर मौजूद हो और बारिश हो जाए तब भी कोई मुआवज़ा नहीं मिलेगा.”
सोहन आगे कहते हैं, “मैंने 10 बीघे में लहसुन की खेती की, उसको काट कर खेत पर ही सूखने के लिए छोड़ा था. उसके अगले ही दिन बारिश और ओलावृष्टि हो गई, बारिश के पानी में पूरी लहसुन खेत में ही डूब गई. लेकिन ऐसे में सरकार से कोई मुआवज़ा नहीं मिलेगा.”
क्या आप होने वाले नुकसान के संबंध में बता सकते हैं? इस सवाल पर सोहन कहते हैं कि “10 बीघे लहसुन की खेती के लिए केवल बीज पर एक लाख 70 हज़ार का ख़र्च आता है. जबकि मैंने इसमें सिंचाई, खाद, छिड़काव की दवा एवं कटाई के लिए मज़दूरी मिलाकर लगभग 2.5 लाख रुपये ख़र्च कर दिए. यदि ये फ़सल बारिश होने से ख़राब न होती तो लगभग 6.5 लाख में बिकती.”
बारिश के बाद खेत में पड़ी सोहन पाटिदार के लहसुन की फसल.
आपदा के कारण होने वाले नुक़सान का सर्वे करने वाले पटवारी प्रशांत गोवर्धन कहते हैं, “पिछले तीन साल से बेमौसम बारिश ने फसलों को बहुत प्रभावित किया है.”
प्रभावित खेतों में किसानों को किस प्रकार मुआवज़ा दिया जाता है? इस सवाल पर पटवारी प्रशांत कहते हैं कि “मुआवज़ा तभी संभव होता है जब फसल खेत में खड़ी हो. उसकी क्रॉप कटिंग के आधार पर मुआवज़ा तय होता है.”
दसाई गांव में बारिश के बाद मटर की ख़राब हुई फसल.
किसानों को सता रही कर्ज़ चुकाने की चिंता
सोहन पाटिदार के अनुसार, मध्यप्रदेश में किसानों पर आपदा के कारण एक तरफ फसलों के ख़राब होने का बोझ है, तो दूसरी तरफ़ फसल कट जाने के बाद हुई बारिश से मुआवज़ा न मिल पाना बिगड़ती आर्थिक स्थिति के लिए ज़िम्मेदार है. इस स्थिति में तंगी की मार झेल रहे किसानों के कंधे पूर्व में लिए गए कर्ज़ के कारण कहीं अधिक झुके हुए हैं.
सोहन बताते हैं कि “किसान क्रेडिट कार्ड द्वारा दो लाख रुपये कर्ज़ लेकर मैंने ये खेती इस उम्मीद से कि मार्च में लहसुन बेचकर कर्ज़ चुका दूंगा, लेकिन बारिश में ख़राब हुई फसल के साथ वह उम्मीद भी ख़त्म हो गई. अब मसला यह है कि 30 मार्च तक कर्ज़ चुकाना है, वरना उस पर ब्याज लगना शुरु हो जाएगा.”
बारिश से भीग गई खेत में पड़ी लहसुन.
कर्ज़ में क्यों हैं किसान? इस पर सुनील पाटिदार कहते हैं, “मध्यप्रदेश में नई सरकार बनने के बाद प्रति क्विंटल गेहूं पर 2700 रुपये मिलने का वादा था, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा. मंडी में गेहूं का भाव 1800 से 2200 रुपये मिल रहा है. अब जब किसानों को गेहूं की सही कीमत नहीं मिलेगी तो वे कर्ज़ कैसे अदा करेंगे.”
वह आगे कहते हैं कि “एक तरफ परिवार को देखना है तो दूसरी ओर बच्चों की शिक्षा है. उसके बाद बेमौसम बारिश की तरह परिवार में आने वाली अचानक बीमारी स्थिति को और चिंताजनक बना देती है. जबकि, साल दर साल अनाज का उत्पादन घट रहा है और आपदा उतनी ही बढ़ रही है.”
ज़िला धार के सरदारपुर तहसील के कृषि मंडी के अधिकारी हरिशंकर जोशी किसानों के दावों को नकारते हुए कहते हैं कि गेहूं यहां 3200 रुपये तक बिक रहा है. उनके अनुसार, कीमत गुणवत्ता पर निर्भर करता है. औसत स्तर का गेहूं 2300 रुपये तक में बिक रहा है.
हालांकि, किसानों का दावा है कि उन्हें गेहूं के लिए 2700 सौ रुपये की कीमत मिलने की बात थी. इस सवाल पर मंडी अधिकारी कहते हैं कि 2700 नहीं बल्कि 2200 रुपये है समर्थन मूल्य, जबकि सरकार की ओर से पांच सौ रुपए बोनस देने की बात थी. उस पर सरकार अभी विचार कर रही है.