कौन हैं बुंदेलखंड को जल संकट से उबारने के लिए संघर्ष कर रहीं जल सहेलियां? पानी को लेकर कैसा है उनका प्रयास

कौन हैं बुंदेलखंड को जल संकट से उबारने के लिए संघर्ष कर रहीं जल सहेलियां? पानी को लेकर कैसा है उनका प्रयास

झांसी सहित बुंदेलखंड के आठ ज़िलों में सक्रिय ‘जल सहेलियां’ जल संरक्षण हेतु एक मिसाल बन चुकी हैं. यही कारण है कि वर्ष 2023 में ललितपुर, झांसी और छतरपुर की जल सहेलियों को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू व केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने सम्मानित किया.

“स्लोगन ‘जल है तो कल है’ के महत्व को हम बुंदेलखंड वासी हमेशा से समझ तो रहे थे, लेकिन आदिवासी महिला ‘सोना’ के साथ घटित एक दुर्घटना ने इस क्षेत्र में जल क्रांति ला दी.”

उपरोक्त शब्द सिद्ध गोपाल सिंह के हैं, जो ललितपुर में कार्यरत ‘परमार्थ’ नामक संस्था के ज़िला प्रबंधक हैं. सिंह ‘जल सहेली’ के जनक हैं, और जल सहेली अभियान की ज़िम्मेदारी उनके ही कंधे पर है.


उदगुवां गांव, आदिवासी महिला सोना देवी यहीं की रहने वाली हैं •

तालबेट ब्लॉक की रहने वाली आदिवासी महिला सोना (45 वर्ष) ने ‘मोजो स्टोरी’ से बताया कि “15 साल पहले अपने गांव उदगुवां से दो किलोमीटर दूर कुएं से पानी लेकर कच्चे रास्ता से आ रही थी, तभी बेल के पेड़ के नीचे से गुज़रने के दौरान एक बेल मेरी पीठ पर आ गिरा; जिससे मेरे पैर डगमगा गए और मैं पानी का मटका लिए ज़मीन पर जा गिरी.”

उक्त घटना का ज़िक्र करते हुए सोना की आखों में आंसू आ गए. वह भर्राई आवाज़ में कहती हैं कि “उस समय गिरने से मेरा गर्भपात हो गया. उस दौरान मेरी तबियत बहुत ख़राब हो गई; मैं हफ़्तों चारपाई पर पड़ी रही, लेकिन मेरी आखों के सामने वह मंज़र बार-बार आता रहा. उसके बाद मेरी अंतरात्मा मुझसे बार-बार यह कहती कि यदि गांव में पानी की सुविधा होती तो निश्चित तौर पर यह गर्भपात न होता और मैं समय पर अपने बच्चे को जन्म देती.”

सोना के अनुसार, जब वह ठीक होने लगीं तो उन्होंने तय किया कि वह गांव में पानी की समस्या को सुलझाने के लिए काम करेंगी.

ठीक होने के बाद सोना गोपाल सिंह के संपर्क में आईं. सिंह कहते हैं कि “जल संरक्षण के लिए हमारी संस्था ‘परमार्थ’ काम करना चाहती थी. इस संबंध में हमने विभिन्‍न गांवों की ग्रामीण महिलाओं को जोड़ते हुए ‘जल सहेली’ नामक संगठन की नींव रखी, जिन्हें किसी भी प्रकार का मानदेय नहीं मिलता.”

“जल सहेली से जुड़ते ही सोना ने परमार्थ की सहायता से स्थानीय ‘नरेना का नाला’ में आने वाले नहरों के पानी को रुकवाया, क्योंकि उस नाले में नहरों से पानी आया करता था; जो बह कर निकल जाता था. उस पानी को रोकने के लिए सोना ने ग्रामीण महिलाओं की सहायता से चेक-डैम बनाया, जिसमें पानी जमा होने के बाद आसपास के लगभग 250 बीघे खेतों में सिंचाई के लिए उपलब्ध होने लगा. दूसरी तरफ़ उससे क्षेत्र में भू-जलस्तर में ज़बरदस्त सुधार हुआ,” सिंह जोड़ते हैं।


सोना देवी, जल सहेली •

चेक-डैम बनने से ग्रामीणों के जीवन में क्या बदला?

सोना कहती हैं कि “चेक-डैम बनाना बहुत ही संघर्षपूर्ण था. हम सभी ग्रामीण पहले मज़दूरी करते थे, लेकिन मेरे साथ हुए उस हादसे के बाद उदगुवां गांव के सभी ग्रामीण बहुत दुखी थे. अत: साल 2009 में बारिश आने से पूर्व हम सभी ग्रामीण गोपाल सिंह के मार्गदर्शन में श्रमदान कर चेक-डैम बनाने में लग गए. उसके लिए सबसे पहले हमने सीमेंट की बोरी में बालू भर कर बांध बनाने की प्रक्रिया आरंभ की - आसपास के तालाबों को उस चेक-डैम से जोड़ा गया; दो-तीन साल किये गए इस प्रयास के बाद क्षेत्र में खेती आरंभ हो पाई.”

वह आगे कहती हैं, “आज 15 साल होने वाले हैं मजंदूरी छोड़े हुए, जिसका श्रेय ‘जल सहेली’ से जुड़ी सभी साथियों को जाता है. आज मेरे पांच एकड़ खेतों में उरद, मूंग, सोयाबीन, चना आदि की बढ़िया खेती हो रही है.”


उदगुंवा में जलस्तर बढ़ने के बाद का कुआं •

कैसे आया ‘जल सहेली’ का विचार?

ललितपुर स्थित समाजसेवी संस्थान ‘परमार्थ’ पिछले डेढ़ दशक से ‘जल सहेली’ संगठन का निर्माण कर जल संरक्षण, संवर्धन एवं प्रबंधन के लिए पहल कर रहा है. उसके तहत जल सहेलियां अपने गांवों में पानी की समस्या के समाधान के लिए निरंतर प्रयासरत हैं.

आख़िर ‘परमार्थ’ ने जल सहेली की कल्पना कैसे की? इस पर संस्था के जनसंपर्क अधिकारी गौरव पांडे कहते हैं कि “इस पहल का श्रेय परमार्थ के संस्थापक संजय सिंह को जाता है. उनका मानना था कि पानी पर पहला अधिकार महिलाओं का होना चाहिए; यदि उन्हें कोई जिम्मेदारी दी जाए तो वे पुरुषों की अपेक्षा कहीं अधिक मेहनत, लगन, निष्ठा और जिम्मेदारी से कार्य करती हैं. इसके अलावा उनके मन में यह विचार भी था कि महिलाएं जिसे अपनी मेहनत से तैयार करती हैं, उसके रख-रखाव की ज़िम्मेदारी भी उन्हें ही दी जाए तो वे उसका बेहतर ढंग से प्रबंधन करेंगी. इन बिंदुओं पर ग़ौर करते हुए साल 2011 में जल सहेली का आधिकारिक गठन किया गया.”


सिद्ध गोपाल सिंह, जिला प्रबंधक, परमार्थ, समाजसेवी संस्था, ललितपुर •

जल सहेली के संस्थापक संजय सिंह कहते हैं, “मैंने जब पानी की दिशा में काम करने के लिए क़दम बढ़ाया तो सबसे पहले मुझे वे महिलाएं दिखीं जो मीलों दूर से सिर पर और हाथ में पानी भरे मटके लेकर कतार में चलती थीं.”

वर्ष 2011 से 2013 के बीच लगभग तीन साल में 100 जल सहेलियां तैयार हो चुकी थीं, जबकि 2024 आते-आते जल सहेलियों की संख्या 1536 हो चुकी है; जो बुंदेलखंड के आठ ज़िलों में सक्रिय हैं. उनको कोई भुगतान नहीं किया जाता, वे मुख्यतः श्रमदान करती हैं. परमार्थ समाजसेवी संस्था सभी जल सहेली कैडर को जल संरक्षण, संवर्धन एवं जल प्रबंधन आदि के लिए समय-समय पर निःशुल्क ट्रेनिंग देती है.

जनसंपर्क अधिकारी गौरव पांडे बताते हैं कि जल सहेलियों की सफलता को देखकर हमारी संस्था ने उनको मनरेगा योजना के तहत महिला मेठ बनवाया, जिससे पंचायत स्तर पर जल संरक्षण सहित नाली, कच्ची सड़क के निर्माण व पुनरुद्धार आदि विकास कार्य सभी आठ जिले हमीरपुर, जालोन, ललितपुर, छतरपुर, निवाड़ी, टिकमगढ़, चित्रकूट व झांसी में सुचारू रूप से जारी है.

“मनरेगा से जुड़ने के पूर्व उन महिलाओं के समक्ष आय के लिए सिर्फ़ खेती ही एक ज़रिया था. जबकि, मनरेगा से जुड़ने के बाद जल सहेलियों को खेती से फ़ुरसत मिलते ही मनरेगा के तहत काम मिल जाता है, जो उनकी आय बढ़ाने का एक ज़रिया है,” गौरव जोड़ते हैं.


शारदा देवी दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में राष्ट्रपति से सम्मानित होते हुए

राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित हो चुकी हैं जल सहेलियां

बुंदेलखंड के कई ज़िलों में जल संरक्षण में महिलाओं के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करते हुए पहली बार केन्द्र सरकार ने जल सहेलियों को सम्मानित करने की ओर क़दम बढ़ाया, जिसके तहत ललितपुर, झांसी और छतरपुर की जल सहेलियों को 4 मार्च, 2023 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने सम्मानित किया.

ललितपुर की जल सहेली शारदा देवी और छतरपुर की गंगा देवी को राष्ट्रपति ने नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में ‘स्वच्छ स्वजल शक्ति सम्मान’ दिया, जबकि झांसी की गीता देवी को गजेंद्र सिंह शेखावत ने ‘वॉटर वारियर्स’ सम्मान से सम्मानित किया.

ग़ौरतलब है कि ब्लॉक तालबेहट स्थित विजयपुरा गांव की 35 वर्षीय शारदा देवी ने अपने गांव में वर्षों से सूखी ‘बरुआ नदी’ को पुनर्जीवित करने का काम किया. उससे पहले पांच हज़ार आबादी वाले इस गांव में पानी के लिए एक किलोमीटर दूर कुएं पर जाना पड़ता था, जो सर्दी के दिनों में सूख जाता था.


विजयपुरा गांव में शारदा देवी के नेतृत्व में चेक-डैम बनातीं जल-सहेलियां •

शारदा देवी कहती हैं कि “साल 2018 में मैंने 40 जल सहेलियों की टीम बना कर नदी के पुनरुद्धार के लिए काम शुरू किया, जिसके तहत पांच हज़ार सीमेंट की खाली बोरियों में रेत भर कर हमने बरुआ नदी पर चेक-डैम बनाया. उसका परिणाम है कि पिछले वर्ष राष्ट्रपति ने दिल्ली बुलाकर हमें सम्मानित किया.”

बरुआ नदी के पुनर्जीवन से क्या लाभ हुआ? इस सवाल के जवाब में शारदा कहती हैं कि नदी के पुनर्जीवित होने से अब क्षेत्र में गर्मियों के दौरान भी पानी भरा रहता है, जिससे स्थानीय लोग अब पलायन छोड़ कृषि करने को प्राथमिकता दे रहे हैं.

शारदा के अनुसार, उनका वाल विवाह हुआ था. विवाह के बाद बड़े होने तक उन्हें पानी नहीं लाना पड़ा, लेकिन बड़े होने के बाद वह भी कुएं से पानी लातीं जो ठंड का मौसम आते ही सूखने लगता. वह कहती हैं, “साल 2017 में मुझे विचार आया कि यदि नदी जीवित हो उठे तो सारा मसला हल हो जाए. उसी मक़सद से मैं ‘परमार्थ’ संस्था से जुड़ी, लेकिन तब गांव वाले मज़ाक उड़ाने लगे; लोग हंसते और कहते कि पुरुष तो कुछ कर नहीं पा रहे, एक महिला प्रकृति से लड़ कर कैसे नदी को जीवित करेगी!”

“बावजूद उसके मैं रुकी नहीं, गोपाल सर से प्रशिक्षण लेने के बाद हमने काम आरंभ किया. कुछ दिन गुज़रने के बाद गांव के पुरुषों को भी यह पहल अच्छी लगी और फिर क्या, वे भी हमारे साथ जुड़ गए और हमने चेक-डैम बना कर सफलता हासिल की,” शारदा जोड़ती हैं.

वहीं, छतरपुर की बड़ामलेहरा ब्लॉक के चौधरीखेरा गांव की गंगा देवी ने अंधविश्वास से लड़ते हुए सूखे तालाब को पुनर्जीवित कर जलमग्न किया. वह बताती हैं, “मान्यता थी कि जो भी तालाब में पानी लाने की कोशिश करेगा, उसका वंश नष्ट हो जाएगा; लेकिन हमने सोचा कि पानी न होने से बेहतर है कि मर ही जाएं. हमने गांव की दो दर्ज़न से अधिक औरतों को तैयार किया और तालाब की ख़ुदाई की, जिसके बाद बारिश के पानी से तालाब लबालब भर गया. उससे हमारे वंश को कोई हानि भी नहीं हुई, जिससे गांव वालों का अंधविश्वास भी ख़त्म हो गया. आज पूरा गांव पानी का लाभ उठा रहा है.”

उक्त पहल पर ललितपुर ज़िला के भूगर्भ अधिकारी आकाशदीप अपनी राय प्रकट करते हुए कहते हैं, “विपरीत परिस्थिति में ‘जल सहेली’ ने जल संरक्षण के लिए जो पहल की, वह शानदार है. इस टीम को ‘परमार्थ’ संस्था ने समय-समय पर जहां एक तरफ़ मार्गदर्शन किया तो दूसरी ओर हमने मनरेगा से सपोर्ट किया.”

अधिकारी के मुताबिक़, जल सहेली से जुड़ी महिलाओं ने साबित कर दिया कि महिला से बड़ा कोई प्रबंधक नहीं है. उनके बलबूते ही पिछले कुछ वर्षों की तुलना में इलाक़े का जलस्तर लगातार बढ़ता जा रहा है, जो देश भर के सामने एक मिसाल पेश है.

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