आख़िर क्यों आज़ादी के 76 साल बाद भी बूंद-बूंद पानी को तरस रहा झारखंड का पहाड़िया समुदाय

आख़िर क्यों आज़ादी के 76 साल बाद भी बूंद-बूंद पानी को तरस रहा झारखंड का पहाड़िया समुदाय

एक रिपोर्ट के मुताबिक़, वर्ष 2030 तक तकरीबन 40 फ़ीसद भारतीयों के पास पीने का पानी नहीं होगा। साल 1952 के मुक़ाबले मौजूदा वक़्त में जल की उपलब्धता एक तिहाई रह गई है।

झारखंड की उपराजधानी दुमका से लगभग 50 किलोमीटर दूर सुदूर पहाड़ी जंगली क्षेत्र में स्थित खिलौड़ी गाँव का पहाड़िया समुदाय आज भी बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहा है। वहाँ पानी की किल्लत ऐसी है कि दो-तीन किलोमीटर पथरीले रास्ते में चढ़ाई करने के बाद ग्रामीणों को पानी नसीब होता है। खिलौड़ी गाँव काठीकुंड प्रखंड के बड़तल्ला पंचायत के अंतर्गत आता है।

खिलौड़ी के बांसकुदरी और चुनरभूंज टोला पानी की समस्या से सबसे अधिक प्रभावित हैं। यहाँ कुल 63 पहाड़िया आदिवासी परिवार रहते हैं। आज़ादी के 76 साल बाद भी इन दोनों टोला को एक भी चापाकल नसीब नहीं हुआ; कुएँ का निर्माण ज़रूर कराया गया है, लेकिन वह गर्मी के महीने में पूरी तरह से सूख जाता है। आलम यह है कि यहाँ के मवेशियों को भी जल संकट का सामना करना पड़ता है।


गाँव का कुआँ, जो पूरी तरह से सूख चुका है •

भीषण गर्मी में अपनी प्यास बुझाने के लिए चुनरभूंज टोला के ग्रामीण पहाड़ से नीचे 1.5 किलोमीटर खेत में जाकर वहाँ मौजूद कुएँ से अपनी प्यास बुझाते हैं। जबकि, बांसकुदरी के ग्रामीण क़रीब दो किलोमीटर पहाड़ पैदल चलकर दूसरे गाँव नामोडीह जाकर अपनी प्यास बुझाते हैं।

घोर जल संकट से जूझ रही बिलाती कुमारी बताती हैं, “हर वर्ष हमारा गाँव भीषण जल संकट से जूझता है। पथरीले रास्तों से चढ़कर पानी लाने जाना हमारी आदत ज़रूर बन गई है, लेकिन पानी लाने के बाद हम इतने थक जाते हैं कि कोई काम करने का मन नहीं बचता। उसके बाद भी पानी को बहुत संभलकर ख़र्च करना पड़ता है।”


पानी लाने के दौरान कतार में खड़ीं बिलाती कुमारी (सबसे आगे) •

बिलाती कुमारी की बेबसी कुछ इस कदर हावी थी कि बातचीत करते और पथरीले रास्ते में चलकर थक जाने के बावजूद अपनी हांडी में रखे पानी को पी भी नहीं सकती थीं। उनका कंठ सूखा जा रहा था, मगर यह सोचकर खुद को तसल्ली दे रही थीं कि घर पहुँच कर थोड़ी देर बैठने के बाद पानी पीऊंगी तो कम पानी ख़र्च होगा; अभी पी ली तो मेहनत व्यर्थ चला जाएगा।”

ग्रामीणों की फ़रियाद: ‘मतदान केन्द्र नज़दीक होने से होगी सहूलियत’

चुनरभूंज टोला के युधिष्ठिर देहरी कहते हैं, “बीते दो महीने से हमें पानी की काफ़ी समस्या हो रही है, क्योंकि हमारा घर पहाड़ के ऊपर है। यहाँ दो कुआँ है, लेकिन दोनों सूख गए हैं। सुबह चार-पांच बजे यदि किसी ग्रामीण की नींद खुल गई तो उन्हें सूखे कुएँ से थोड़ा पानी मिल सकता है, अन्यथा पहाड़ से नीचे उतरकर पानी लाना पड़ता है। पानी को लेकर गाँव में एक भी विकास कार्य नहीं हुआ है। घर की महिलाएँ कष्ट करके पानी लाती हैं, समय मिलने पर हमलोग भी उनका साथ देते हैं।”

वहीं, कल्पना कुमारी कहती हैं, “बांसकुदरी और चुनरभूंज टोला में एक भी चापाकल नहीं है। यहाँ पर पानी की घोर समस्या है। हम दो किलोमीटर दूर से माथे पर पानी लेकर आते हैं, जिसमें हमारे गिर जाने का डर भी बना रहता है। कई बार हम छोटे बच्चे को लेकर भी पानी लाने जाते हैं।”


गोद में बच्चा और माथे पर पानी की हांडी लिए पहाड़ की चढ़ाई कर गाँव लौटती महिला •

बुज़ुर्ग ग्रामीण सोना देहरी कहते हैं, “गाँव में पानी की गंभीर समस्या है। चापाकल तो चाहिए ही चाहिए। स्नान करने और पीने के पानी के लिए सबसे अधिक संघर्ष करना पड़ता है। मुझे ही देखें, किस तरह से बांस के सहारे पानी के डब्बे ढो रहा हूँ। हमारा मतदान केन्द्र भी दूर रखा गया है; एक तो पानी की समस्या और ऊपर से संघर्ष करके वोट देने जाना।”

‘सड़क न होने से पानी पहुँचाना मुश्किल’

जब हमने गाँव में पानी की समस्या पर काठीकुंड के प्रखंड विकास पदाधिकारी (बीडीओ) गौरव कुमार राय से बात की तो उन्होंने कहा कि “उस गाँव में बोरिंग के लिए गाड़ी नहीं जा पा रही है। गाँव में पहुँचने के लिए रोड की कनेक्टिविटी नहीं है। सड़क बनेगा तभी कुछ मुमकिन हो पाएगा। बोरिंग के लिए गाड़ी खड़ी है, लेकिन सड़क ही नहीं है तो गाड़ी कैसे जाएगी?”

हमने प्रखंड विकास पदाधिकारी से पूछा कि क़रीब दो माह पहले ग्रामीण वोट बहिष्कार की बातें कर रहे थे, क्या आपको लगता है कि जब गाँव में जल संकट की इतनी बड़ी समस्या है तो उसकी वज़ह से मतदान फ़ीसद कम हो सकता है?

जवाब में गौरव कुमार राय ने कहा कि “गाँव में सुविधाएँ पहुँचाने के लिए कोशिशें की जा रही हैं। उसके लिए किसी सरकार या पदाधिकारी ने कभी इनकार तो नहीं किया है। अगर कोई पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्र है तो वहाँ पहुँच बनाने में थोड़ा अधिक वक़्त लगता है। मतदान न करना इस समस्या का हल नहीं है। यह तो ‘गीव एंड टेक’ का रवैया हो गया; यानि कि हमको ये नहीं मिला तो वो नहीं करेंगे।”

मतदान केन्द्र गाँव से काफ़ी दूर बनाए जाने पर बीडीओ कहते हैं, “पहाड़ी दुर्गम क्षेत्र होने के कारण गाँव में जिस स्कूल को मतदान केन्द्र बनाया जाता था, वहाँ से बूथ को हटाकर सुरक्षित स्थान में लाया गया है। वह जगह गाँव से अधिक दूरी पर नहीं है, लेकिन फिर भी ग्रामीणों से बात करके मतदान वाले दिन ई-रिक्शा वगैरह का बंदोबस्त कराया जाएगा।”

“पोलिंग बूथ के लिए भी कुछ शर्तें होती हैं, उसके लिए जगह की पहचान करनी पड़ती है। पहाड़ी क्षेत्र में मदतान केन्द्र बनाना प्रशासनिक, सुविधा और सुरक्षा के दृष्टिकोण से ठीक नहीं है, इसलिए मदतान का जगह बदला गया है,” बीडीओ गौरव ने यह कहकर अपनी बात पूरी की।

वहीं, गाँव में पानी की समस्या पर पीएचईडी विभाग के जेई प्रशांत कहते हैं, “जब तक सड़क नहीं बनेगा, तब तक गाँव में पानी कैसे पहुँचेगा? हम गाँव में काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं; वहाँ जिस दिन सड़क बन गई, आप पाएँगे कि बांसकुदरी और चुनरभूंज टोला में पानी की समस्या ख़त्म हो जाएगी।”

हमने स्थानीय विधायक नलीन सोरेन से उक्त समस्याओं के बारे में बात की और उनसे पूछा कि काठीकुंड के बड़तल्ला पंचायत अंतर्गत खिलौड़ी गाँव में सड़क निर्माण कार्य किस विभाग से प्रस्तावित है? जवाब में उन्होंने कहा, “वह सड़क ग्रामीण विकास विभाग से बनना है। हमने कई बार विकास विभाग को लिखकर दिया है, लेकिन अब तक सड़क नहीं बनी।”

जल संकट की समस्या पर विधायक ने कहा कि “मेरा क्षेत्र है, मुझे पता है। लेकिन ग्रामीण विकास विभाग से सड़क बन नहीं पा रही है, इसलिए समस्याओं का हल नहीं निकल पा रहा है।”

सड़क न बन पाने का कारण जानने के लिए हमने ग्रामीण विकास विभाग से संपर्क करने की कोशिश की, मगर स्टोरी प्रकाशित होने तक उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला। अगर विभाग की ओर से कोई जवाब मिलता है, तो स्टोरी को यथासंभव अपडेट किया जाएगा।


गाँव से दूर स्थित एक कुएँ से पानी भरने के दौरान जद्दोजहद करती महिलाएँ •

क्या कहती है जल संकट पर आधारित रिपोर्ट?

नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, वर्ष 2030 तक तकरीबन 40 फ़ीसद भारतीयों के पास पीने का पानी नहीं होगा। रिपोर्ट की मानें तो साल 2020 से ही पानी की यह किल्लत शुरू हो गई है। देश पानी की दो समस्याओं से जूझ रहा है; एक पानी की किल्लत और दूसरी स्वच्छ जल की अनुपलब्धता।

साल 1952 के मुक़ाबले मौजूदा वक़्त में जल की उपलब्धता एक तिहाई रह गई है, जबकि देश की आबादी में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। पानी की किल्लत को कम या ख़त्म करने के लिए हम लगातार भू-जल पर निर्भर होते जा रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप भूमिगत जल साल-दर-साल औसतन एक फीट की दर से नीचे खिसक रहा है।

भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के एक अध्ययन के अनुसार, ऊर्जा और उद्योग क्षेत्र में कुल भू-जल की मांग मौजूदा वक़्त के करीब सात प्रतिशत के मुबाबले साल 2025 तक 8.5 फ़ीसद हो जाएगी, जबकि वर्ष 2050 तक वह बढ़कर तकरीबन 10.1 फ़ीसद हो जाएगी।

वहीं, ‘केन्द्रीय जल आयोग’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, देश के 91 फ़ीसद जलाशयों में केवल 20 फ़ीसद पानी ही बचा है। जलाशयों में पानी की कमी की वज़ह से देश का क़रीब 42 फ़ीसद हिस्सा सूखाग्रस्त है। नीति आयोग की रिपोर्ट यह भी कहती है कि हर साल लगभग दो लाख लोग स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं होने के कारण मर जाते हैं।

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