वज्रपात का क़हर: ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़े बिजली गिरने के मामले, लोगों को हो रहा जान-माल का नुक़सान

वज्रपात का क़हर: ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़े बिजली गिरने के मामले, लोगों को हो रहा जान-माल का नुक़सान

झारखंड (Jharkhand) में वज्रपात से हर साल बड़ी संख्या में लोगों की मौत होती है. विशेषज्ञों के अनुसार, वैश्विक तापमान (Global Warming) के कारण बिजली गिरने की घटना झारखंड सहित अन्य जगहों पर भी बढ़ी है.

झारखंड के पलामू ज़िले में स्थित हैदरनगर ब्लॉक के सिंघना गांव में 27 फरवरी को आकाशीय बिजली गिरने से एक 15 वर्षीय लड़की की मौत हो गई. मृतका संजू कुमारी के घर में आज भी शोक का माहौल है. उनकी मां फूल कुमारी देवी दुखी मन से कहती हैं, “संजू बादल देख कर बाहर की तरफ़ दौड़ते हुए बोली कि मां बाहर गोयठा और जलावन के लिए लकड़ियां पड़ी हैं; मैं उठा कर लाती हूं, वरना वे भीग जाएंगी.”

“मैं कुछ कह पाती कि बिजली कड़कने की ज़बरदस्त आवाज़ आई और हम सभी घर के अंदर सिहर उठे. मैं उसी अवस्था में बाहर की तरफ़ भागी तो देखा कि मेरी बच्ची अचेतन अवस्था में पड़ी थी. उसके नज़दीक गड़ेश की बेटी भी कराह रही थी. मुहल्ले के लोग भी दौड़ कर पहुंचे, लेकिन मेरी बेटी ने उतना समय नहीं दिया कि उसे हम इलाज के लिए कहीं ले जा सकें. जबकि, गड़ेश की बेटी का इलाज हो सका और वह ठीक हो गई,” यह कहते हुए फूल कुमारी भावुक हो जाती हैं.


फूल कुमारी देवी, बेटी संजू की तस्वीर हाथों में लिये हुए.

संजू की मौत की पुष्टि के बाद उनका पोस्टमार्टम जपला स्थित अस्पताल में हुआ. अब फूलकुमारी देवी मुआवज़ा की प्रतीक्षा में हैं. उनका मानना है कि यह रक़म बेटी को वापस तो नहीं करेगा, लेकिन उसकी मौत के बाद मिलने वाले मुआवज़े से परिवार की आर्थिक स्थिति ज़रूर कुछ बदल जाएगी.

दलित समाज से ताल्लुक रखने वाली संजू के पिता सुनेश्वर रजवार हैदराबाद में मज़दूरी करते हैं. उन्हें काम मिलने पर पांच सौ की दिहाड़ी मिलती है, जबकि उनकी एक बेटी की शादी हो चुकी है. संजू के जाने के बाद अब परिवार में फूल कुमारी व उनके दो बेटे व एक बेटी ही बचे हैं. फूलकुमारी का बड़ा बेटा इंटर की परीक्षा दे रहा है. संजू की मौत के दिन वह परीक्षा दे कर जब घर वापस लौटा, तो पाया कि उसकी बहन की मृत्यु हो चुकी है.


सिंघना गांव का स्कूल.

सिंघना गांव के सरपंच नवाज़िश खान घटना का ज़िक्र करते हुए कहते हैं, “संजू का घर स्थानीय स्कूल के ठीक बगल में है. भला कि स्कूल की छुट्टी कुछ ही देर पहले हुई थी. यदि स्कूल से बच्चों के जाते समय बिजली गिरती तो बहुत बड़ी संख्या में बच्चे इस घटना का शिकार हो जाते.”

हज़ार लोगों की आबादी वाला सिंघना गांव के चारों तरफ पहाड़ हैं, इसलिए यहां आए दिन आकाशीय बिजली गिरने की घटना होती रहती है, जिससे कभी ग्रामीण तो कभी उनके पशु ठनका की चपेट में आ जाते हैं.

संजू के परिवार को अभी तक मुआवज़ा न मिलने के संबंध में सरपंच नवाज़िश खान कहते हैं कि “मृत्यु प्रमाण पत्र मिल गया है. मृतका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने वाली है, जिसके बाद हैदरनगर ब्लॉक से उन्हें मुआवज़ा मिल जाएगा.”

स्थानीय ब्लॉक डेवलपमेंट अधिकारी विश्वप्रताप मालवा कहते हैं, “ठनका (आकाशीय बिजली) गिरने से यदि किसी इंसान की मौत होती है तो उसको चार लाख रुपए का मुआवज़ा मिलता है. संजू के मामले में यह प्रक्रियाधीन है, जिसमें एक से डेढ़ महीने लग सकते हैं.”

जानवरों की मौत पर मुआवज़े का क्या प्रावधान है? इस सवाल पर ब्लॉक डेवेलपमेंट अधिकारी ने कहा कि उन्हें इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है.

स्थानीय लोगों का कहना है कि सिंघना गांव में काफ़ी अधिक वज्रपात होता है. क्या इसको लेकर सरकार की तरफ़ से इस गांव के लिए बचाव के कोई विशेष इंतेज़ाम किये गए हैं? इस सवाल पर बीडीओ मालवा कहते हैं कि “जागरूकता ही बचाव है. जहां तक ठनका गिरने की बात रही तो यह केवल सिंघना, हैदरनगर या पलामू की बात नहीं, बल्कि पूरे राज्य में ऐसे मामले हैं.”

झारखंड में वज्रपात के मामलों से सबसे अधिक प्रभाव पलामू, रांची, गुमला आदि ज़िलों के जनजातीय समाज पर पड़ता है. आकाशीय बिजली के गिरने से जान-माल के नुक़सान हेतु सरकार की तरफ़ से मुआवज़ा देने की योजनाएं भी हैं, लेकिन उनकी जानकारी के अभाव में यहां कम लोग ही उसका लाभ उठा पाते हैं.


वज्रमारा गांव में स्थित माध्यमिक विद्यालय.

झारखंड का एक गांव जिसका नाम ही पड़ गया ‘वज्रमारा’

झारखंड की राजधानी रांची के नामकुम ब्लॉक से 18 किलोमीटर दूर लाली पंचायत का एक गांव वज्रमारा है. स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद महतो के अनुसार, गांव में साल भर आकाशीय बिजली गिरने के कारण इस गांव का नाम वज्रमारा पड़ गया.

महतो के अनुसार, गांव के आसपास आसमान में बादल आने का अर्थ है कि वज्रपात होना. साल भर होने वाले वज्रपात के कारण ग्रामीणों को होने वाले नुक़सान के संबंध में वह कहते हैं, “मेरी उम्र 44 साल है और इस दौरान मैंने दो फेज़ देखे. पहला, वर्ष 2010 से पहले का और दूसरा उसके बाद का.”

वह आगे कहते हैं, “मुझे याद है कि साल 2010 से पहले वज्रपात को लेकर कोई जागरूकता नहीं थी, जिसके कारण इंसानी जान अधिक जाती थीं. उसके बाद जागरूकता बढ़ी और अब स्थानीय लोग डायरेक्ट वज्रपात के शिकार कम हो रहे हैं, लेकिन जानवरों की मौत बढ़ी है.”


वज्रमारा गांव के नज़दीक फुदुन महतो के दो बैल वज्रपात की चपेट में आ गए.

“क्योंकि इंसान सरकार के द्वारा फैलाई जा रही जागरूकता को समझता है, वह वज्रपात की चेतावनी के बाद बाहर कम ही निकलता है; लेकिन असल मसला जानवरों का है जो बाहर ही रहते हैं. आज ही देखिए, किस प्रकार फुदुन महतो के दो बैल वज्रपात के शिकार हो गए. मैंने अबतक ऐसे हज़ारों जानवरों को वज्रपात का शिकार होते देखा है,” महतो ने अपनी बात में जोड़ा.

वज्रमारा गांव के मुखिया पति पासकल लकड़ा, हाल ही में गिरी आकाशीय बिजली से गांव की एक महिला सालगी कच्छप को हुए नुकसान का ज़िक्र करते हैं, “35 वर्षीय सालगी के पति कई साल पहले गंभीर बीमारी के कारण गुज़र गए. उसके बाद परिवार की ज़िम्मेदारी सालगी के कंधे पर आ गई. उसे निभाने के लिए वह रांची जाकर तीन सौ रुपये की दिहाड़ी पर मज़दूरी करती थीं, लेकिन वहां उन्हें नियमित काम नहीं मिलता था इसलिए उन्होंने पिछले वर्ष बकरी के चार बच्चों को किसी से उधार लेकर पाला. सालगी ने तय किया कि जब वे बड़े हो जाएंगे तो उन्हें बेचकर रक़म अदा कर देंगी और बचे पैसे से फिर बकरी के बच्चे खरीदेंगी और उन्हें पालकर अगले साल बेचेंगी.”


वज्रमारा गांव की सालगी कच्छप.

सालगी कच्छप के घर पर मौजूद जानवरों में एक हट्टा-कट्टा बकरा था जिसकी कीमत 15 हज़ार लग रही थी, जबकि बड़ी हो चुकी तीन बकरियों की क़ीमत लगभग 16 हज़ार थी. सालगी बताती हैं कि “पिछले हफ़्ते घर के जिस कोने में चारों जानवर मौजूद थे; वहीं बिजली गिरी और चारों जानवर की मौत हो गई.”

मुखिया पति लकड़ा बताते हैं, “महिला को लगभग 31 हज़ार का नुक़सान हो गया, जिसके बाद वह वहीं पहुंच गई जहां से पिछले साल उसने शुरुआत की थी. वहीं, आकाशीय बिजली से महिला के घर की दीवार भी गिर गई थी जिसे हम सभी ग्रामीणों ने मिलकर बनवा दिया.”

क्या इस मामले में सालगी कच्छप को जानवरों के लिए मुआवज़ा मिल सकता है? इस सवाल पर समाजसेवी अरविंद कहते हैं कि मिलना तो चाहिए, लेकिन ग्रामीणों में उतनी जागरूकता नहीं है. उसके अलावा बात यह भी है कि उनके लिए आर्थिक तंगी में 18 किलोमीटर दूर बीडीओ कार्यालय का चक्कर लगाना संभव नहीं है.”

सरकारी मुआवज़े का हाल

झारखंड सरकार में आपदा प्रभाग के सचिव के सुनील कुमार झा ने मोजो स्टोरी से बातचीत के दौरान बताया कि वज्रपात से एक व्यक्ति की मौत होने पर मृतक के परिवार को चार लाख का मुआवजा मिलता है.

झारखंड सरकार के अनुसार, घायल व्यक्ति को उसके मौजूदा स्वास्थ्य के अनुसार चार हज़ार से दो लाख रुपये तक का मुआवजा दिए जाने का प्रावधान है. जबकि, आकाशीय बिजली से कच्चा या पक्का घर पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त होने पर ‍भी मुआवज़ा देने का प्रावधान है. दुधारू गाय, भैंस की मौत पर प्रति पशु लगभग 30 हजार रुपये, तो वहीं बैल या भैंसा की मौत पर 25 हजार रुपये तक का मुआवज़ा है. वहीं, भेड़ व बकरी समेत अन्य पशु की मौत पर प्रति पशु तीन हजार रुपये तक मुआवज़ा देने का प्रावधान है.

अरविंद महतो कहते हैं कि किसी ग्रामीण के जानवर या घर के क्षतिग्रस्त होने पर मुआवज़ा मिलना आसान नहीं है. यह एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है जिसके लिए ग्रामीणों में जागरूकता होनी ज़रूरी है.

नामकुम ब्लॉक के वज्रमारा गांव में आकाशीय बिजली अक्सर गिरती है. ऐसे में सरकार ने क्या-क्या सुविधाएं मुहैया कराई हैं? इस सवाल पर स्थानीय सर्किल अधिकारी प्रभात भूषण सिंह कहते हैं कि “मैं हाल ही में ट्रांसफ़र होकर आया हूं, मुझे फ़िलहाल ऐसी कोई जानकारी नहीं है. मैं जानकारी के बाद सूचित कर पाऊंगा.”

झारखंड सरकार के आपदा प्रभाग के अवर सचिव सुनील कुमार झा कहते हैं कि वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान राज्य में आकाशीय बिजली गिरने से कुल 303 मौत हुई है. सबसे अधिक मामले पलामू में हुए हैं; जहां कुल 31 लोगों की मौत हुई, जबकि लातेहार में 25 एवं रांची में 21 मौत हुई.

भविष्य में आकाशीय बिजली से निपटने के लिए झारखंड सरकार का एक्शन प्लान क्या है? इस सवाल पर अवर सचिव सुनील कुमार झा कहते हैं कि अभी एक्शन प्लान नहीं बना है; उसके लिए टाइम मैपिंग एवं ज्योग्राफिकल मैपिंग पर काम चल रहा है.


प्रतीकात्मक चित्र •

ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ी वज्रपात की घटना

वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार, बिजली आकाश में बादलों के घर्षण से उत्पन्न होती है जिससे ऋणात्मक आवेश उत्पन्न होता है. पृथ्वी पर पहले से ही सकारात्मक आवेश है, जिससे आकाश और पृथ्वी के ऋणात्मक और धनात्मक आवेश एक-दूसरे को आकर्षित करने लगते हैं. जब कोई कंडक्टर उन दोनों चार्ज के बीच में आता है तो इलेक्ट्रिक डिस्चार्ज होता है. हालाँकि, आकाश में कोई चालक नहीं है इसलिए विद्युत निर्वहन होते हुए पृथ्वी पर गिरता है, जिसे ठनका या आकाशीय बिजली कहा जाता है.

रांची विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नीतीश प्रियदर्शी बताते हैं कि बिजली गिरने की सबसे अधिक संभावना ऊंचे इलाकों जैसे पहाड़ या ऊंचे पेड़ों पर होती है. उन क्षेत्रों में विशेषकर बड़े जलाशयों या लोहे जैसी धातुओं से युक्त चट्टानों पर गरज के साथ बिजली गिरने की संभावना अधिक होती है, क्योंकि लोहा और पानी बिजली के बेहतर संवाहक हैं.

वज्रमारा गांव के संबंध में प्रोफेसर प्रियादर्शी बताते हैं कि 15 साल पहले वहां के स्कूल में 10 बच्चों की बिजली गिरने से मौत हुई थी. उसका मुख्य कारण यह है कि ये गांव समुंदर तल से बहुत ऊंचाई पर है, जबकि चारों तरफ जो पहाड़ी हैं उनमें लोहा धातू मौजूद है जो आकाशीय बिजली को आकर्षित करता है.

प्रोफेसर कहते हैं कि राज्य भर में उन एकसमान क्षेत्रों की पहचान की जाने की आवश्यकता है जहां बिजली अधिक गिरती है. उसके बाद उन क्षेत्रों में तड़ित चालक यंत्र लगाया जाना चाहिए. साथ ही सुरक्षा के लिहाज़ से स्थानीय लोगों में जागरूकता फैलाये जाने की अत्यंत आवश्यकता है.

वह आगे कहते हैं कि स्कूल से लेकर कालेज तक के पाठ्यक्रम में ‘आपदा’ चैप्टर में आकाशीय बिजली शामिल नहीं है. उसे पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि शिक्षा जागरूकता फैलाने का सबसे बड़ा ज़रिया है.

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