Malnutrition in Palamu: झारखंड के अनुसूचित जाति के बच्चे आख़िर क्यों हैं कुपोषण के अधिक शिकार
पिछले एक वित्तीय वर्ष के दौरान पलामू ज़िला के जिन 443 कुपोषित बच्चों का कुपोषण उपचार केंद्र में इलाज हुआ, उनमें से 203 बच्चे अनुसूचित जाति से हैं.
वैश्विक भुखमरी सूचकांक (Global Hunger Index 2023) के अनुसार, दुनिया भर के 125 देशों में भारत का स्थान 111वां रहा, जबकि पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका की रैंकिंग भारत से कहीं बेहतर है. उक्त रिपोर्ट का हवाला देते हुए सामाजिक कार्यकर्ता जेम्स हेंरेज कहते हैं कि यह रिपोर्ट साबित करती है कि देश का एक बड़ा तबका आज भी कुपोषण की चपेट में है.
वह आगे कहते हैं, “इसे प्रैक्टिकली देखना है तो आप पलामू ज़िला का उदाहरण ले लें; जहां दलित व आदिम जनजाति समाज कुपोषण की गिरफ़्त में है.”
जेम्स हेंरेज के इस दावे को लेकर मोजो स्टोरी ने पलामू ज़िले के सिविल सर्जन डॉ. अनिल सिंह से संपर्क किया. उन्होंने बताया कि पलामू में दलित समाज के अधीन आने वाला ‘भुंइया समाज’ कुपोषण (Malnutrition) से सबसे अधिक प्रभावित है.
सतबरवा ब्लॉक के कोंची गाव के मुखिया गिरवर प्रसाद राम कहते हैं कि पलामू के सभी क्षेत्रों के अनुसूचित जाति के लोगों की स्थिति बहुत ख़राब है. उनके अनुसार, “यहां एक तरफ लोग दिहाड़ी पर काम करते हैं, वहीं दूसरी ओर उन लोगों को केंद्र सरकार की ओर से मिलने वाला राशन केवल पांच किलो ही मिलता है. उस पांच किलो राशन में भला क्या होगा!”
इलाक़े में कुपोषण के मसले स्थानीय स्वास्थ्य सहिया स्वहबतिया देवी कहती हैं कि यहां एक परिवार में पति-पत्नी के अलावा लगभग चार से पांच बच्चे हैं. राशन में मिलने वाले पांच किलो राशन से उनका क्या होगा? एक परिवार को महीने में 35 से 40 किलोग्राम चावल की ज़रूरत पड़ती है; ऐसे में हर अनुसूचित जाति का परिवार प्रति महीने 25 से 30 किलोग्राम चावल ख़रीद कर खाता है, जबकि उसकी आय न के बराबर है.
अनुसूचित जाति की कोसिला देवी (हरी साड़ी में) अपने परिवार के साथ.
कैसे हैं हालात?
कोंची गांव की 40 वर्षीय कौसिला देवी के परिवार में कुल छह सदस्य हैं. वह बताती हैं कि उन्हें महीने भर में 40 किलो चावल लग जाता है. साग-सब्जी के मौसम में जंगल से सब्ज़ी मिल जाती है, लेकिन दो वर्षों से पड़ रहे सूखे के कारण वह भी नसीब नहीं हो रही; ऐसे में बच्चे भात-पानी खाने को मजबूर हैं.
आप दाल नहीं खातीं? इस सवाल पर वह कहती हैं कि “दाल खाते तो हैं, लेकिन बस नाम के लिए. कहां से 180 रुपये किलो की दाल लाकर खाएं? बीते दो साल से सूखा पड़ रहा है, वरना स्थानीय किसानों से सस्ती दाल मिल जाती थी.”
राशन में मिलने वाले चावल का ज़िक्र करते हुए एक अन्य 38 वर्षीय महिला फुलमतिया देवी कहती हैं, “हमें मिलने वाला राशन कभी-कभी अनियमित हो जाता है. ऐसे में हम जैसे लोगों का परिवार जो पूर्णतः चावल पर निर्भर है; उनकी सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ना लाज़िमी है, जिसकी वज़ह से हमारे बच्चे कुपोषित हो जाते हैं.”
जेम्स हेंरेज के मुताबिक़, कुपोषण का ऐसा मामला अनुसूचित जाति (SC) में ही नहीं, बल्कि पलामू के पहड़िया समाज में भी बहुत अधिक है.
फुलमतिया देवी अपने परिवार के साथ.
कितना बड़ा कारक अनियमित राशन वितरण?
मोजो ने रामगढ़ ब्लॉक के आदिवासी गांव चोरहट की संगीता देवी से बात की. उनके तीन बच्चों में बड़ा बेटा तो शरीर से स्वस्थ दिखा, लेकिन तीन व एक साल का दोनों बेटे अधिक कुपोषित नज़र आए. संगीता कहती हैं कि “पिछले साल अगस्त, सितंबर और अक्तूबर में राशन नहीं मिल सका. ऐसे हालात में मेरे पति नवंबर में काम करने के लिए चेन्नई चले गए. वहां वह 400 रुपये की दिहाड़ी पर मज़दूरी करते हैं. उनके द्वारा भेजी गई राशि से घर की स्थिति बदली, साथ ही बच्चों की सेहत में भी बदलाव आया है.”
कुपोषण के ऐसे मामलों पर रामगढ़ के बीडीओ व मार्केटिंग अधिकारी नितेष भास्कर कहते हैं, “जब मैंने चार्ज लिया तो पाया कि यहां के लोगों को तीन महीने का राशन नहीं मिला है. हालांकि, मैंने उसकी तहक़ीक़ात करते हुए मामले का हल निकाल लिया है और जल्द ही सभी का बकाया राशन जारी कर दिया जाएगा.”
वहीं, जेम्स हेंरेज कहते हैं कि “ग्रीन कार्ड पर तीन महीने तक राशन न मिल पाने का मामला केवल पलामू तक सीमित नहीं है, बल्कि यही हाल पूरे झारखंड में है.”
इस संबंध में मोजो ने दिलीप तिर्की, निदेशक, खाद एवं उपभोक्ता मामले (Directorate of Food and Consumer Affairs, Jharkhand) से संपर्क किया. अनियमितता का कारण बताते हुए निदेशक तिर्की कहते हैं, “ग्रीन कार्ड के लिए झारखंड सरकार, भारतीय खाद्य निगम (FCI) से राशन खरीदती है, लेकिन पिछले साल मई से एफसीआई ने हमें राशन बेचना बंद कर दिया. ऐसे में अगस्त तक हमने सामान्य बाज़ार से ग्रीन कार्डधारियों के लिए राशन का प्रबंध करने हेतु टेंडर निकाले, जिसकी वज़ह से राशन वितरण में चार महीने देरी हुई.”
कुपोषण में सहायक अनेक कारण
कोंची गाव के मुखिया गिरवर प्रसाद राम कहते हैं कि कुपोषण के लिए सिर्फ़ राशन की अनियमितता ही एकमात्र कारण नहीं है, बल्कि अनुसूचित जाति में नशा का बढ़ता चलन भी उसका बहुत बड़ा कारण है. परिवार का मुखिया यदि दिहाड़ी में 250 रुपये ले आया, तो वह उससे 50 की शराब पी जाता है. जबकि, यदि वह उसे बच्चों की परवरिश में लगाए तो बहुत हद तक कुपोषण से निजात मिल सकती है.
कोंची की रीना देवी स्वास्थ्य सहिया हैं. वह बताती हैं कि गरीबी, ऊपर से बेरोज़गारी और उसके बाद बाल विवाह भी कुपोषण के बड़े कारक हैं. उनके अनुसार, “शिक्षा की कमी के कारण भुइंया समाज में शादी कम उम्र में हो जाती है, जिसके कारण बच्चों को मां के पेट में ठीक पोषण नहीं मिल पाता है.”
रीना आगे कहती हैं कि उन परिवारों में दिन में एक बार चावल बन जाता है, तो उसे बच्चे दिन भर घूम-घूम कर खाते रहते हैं. दाल मिली तो ठीक, वरना चावल को पानी के साथ खाते हैं. ऐसे हालात में बच्चे कुपोषण का शिकार तो होंगे ही.
उनके अनुसार, सबसे अधिक कुपोषण का शिकार दो वर्ष तक के बच्चे होते हैं. उसका कारण बताते हुए वह कहती हैं कि शुरुआती उम्र में बच्चे दूध पर निर्भर होते हैं. लेकिन जब मां को ही पोषक आहार नहीं मिलेगा तो वह बच्चे को क्या फीड करा पाएगी. जब तक बच्चे स्कूल नहीं पहुंचते, उनकी स्थिति कमज़ोर ही रहती है. स्कूल जाने पर उन बच्चों को मिड-डे मील मिलने लगता है, जो उनके स्वास्थ्य में सुधार का मुख्य ज़रिया बनता है.
स्थानीय सिविल सर्जन डॉ. अनिल सिंह रीना की बात से सहमत नज़र आते हैं. उनके अनुसार, पिछले एक वित्तीय वर्ष के दौरान पलामू ज़िला के 443 कुपोषित बच्चों का कुपोषण उपचार केंद्र (Malnutrition Treatment Centre) में इलाज हुआ. डॉ. सिंह कहते हैं कि उनमें छह महीने से 24 महीने की आयु वाले सबसे अधिक बच्चे कुपोषित थे, जिनकी संख्या 258 रही. जबकि, 24 महीने से 36 महीने की आयु के 68 बच्चे कुपोषित मिले.
सिविल सर्जन बताते हैं कि कुल कुपोषित बच्चों में से 203 बच्चे अनुसूचित जाति से हैं. वह कहते हैं, “यह एक चिंता का विषय तो है, लेकिन सरकार ने कुपोषण से लड़ने के लिए एक्शन प्लान बनाया है.”
क्या है कुपोषण से लड़ने का ‘एक्शन प्लान’?
पलामू ज़िला के सिविल सर्जन डॉ. सिंह के अनुसार, ज़िले में पांच कुपोषण उपचार केंद्र हैं. वह कहते हैं कि “उन पांच सेंटर में से सदर अस्पराल में 10 बेड व चैनपुर में 15 बेड हैं, जबकि तीन ब्लॉक हुसैनाबाद, बिश्रामपुर व पांकी में 10-10 बेड हैं.”
झारखंड सरकार के द्वारा कुपोषण से निपटने के लिए सरकार ने साल 2012 में उपचार केंद्रों की शुरुआत की, जहां छह माह व अधिक आयु वर्ग के बच्चों की मध्य भुजा परिधि (Mid-Arm Circumference) मापी जाती है. यदि वह मानक से कम रही तो उस बच्चे को मां के साथ कम-से-कम 15 दिनों के लिए केंद्र में भर्ती किया जाता है.
डॉ. सिंह बताते हैं, “भर्ती के दौरान बच्चे का कुपोषण से संबंधित सभी जांच निःशुल्क किए जाते हैं, साथ ही बच्चे की मां की स्क्रीनिंग भी की जाती है. उसके अलावा वहां बच्चे की मां को भरपाई के के तौर पर 130 रुपये रोज़ाना की मज़दूरी दी जाती है. उस दौरान मां की काउंसिलिंग भी की जाती है और बच्चे के पोषण से संबंधित जानकारी दी जाती है, ताकि वह कुपोषण से मुक्त हो सके.”
सिविल सर्जन के अनुसार, पिछले साल उपचार केंद्र में कुपोषित बच्चों के इलाज में लड़कियों की संख्या अधिक रही. वह कहते हैं कि यह बात संकेत देती है कि आज भी समाज लड़कियों के प्रति दोयम दर्जे का व्यवहार करता है और उसे हाशिये पर रखते हुए लड़कों के पोषण को तरज़ीह देता है.